सोमवार, फ़रवरी 03, 2014

वार्षिक संगीतमाला 2013 पायदान संख्या 10 : भागन के रेखन की बँहगिया, बँहगी लचकत जाए (Bhagan Ke Rekhan ki...)

वार्षिक संगीतमाला की अगली सीढ़ी पर एक बार फिर गीत है फिल्म इसक का।  पर इस गीत की प्रकृति एक पॉयदान पहले आए गीत झीनी झीनी से सर्वथा अलग है। इस गीत में प्यार की फुहार नहीं बल्कि शादी के बाद अपने घर से विदा होती एक बिटिया का दर्द छुपा है।  जहाँ लोक गायिका मालिनी अवस्थी इस दर्द को अपनी सधी आवाज़ से जीवंत कर देती हैं वहीं रघुबीर यादव अपने गाए अंतरे में शादी के माहौल को हमारे सामने रचते नज़र आते हैं। 


बनारस की सरज़मीं पर रची इस प्रेम गाथा में निर्देशक इस विदाई गीत को आंचलिक रूप देना चाहते थे। यही वज़ह है कि इसके लिए गीत की भाषा में भोजपुरी के कई शब्द लिये गए और गीतकार भी ऐसा चुना गया जो इस बोली से भली भांति वाकिफ़ हो। गीतकार के रूप में अनिल पांडे चुन लिए गए तो गायक गायिका की खोज़ शुरु हुई। अब बात भोजपुरी की हो तो NDTV Imagine रियालटी शो जुनून कुछ कर दिखाने का से बतौर लोकगायिका अपनी पहचान बनाने वाली मालिनी अवस्थी को चुनाव लाज़िमी था। जहाँ तक रघुबीर यादव का सवाल है तो उनकी गायिकी में हमेशा ज़मीन की मिट्टी की सी सोंधी खुशबू से भरपूर रही है। 


अनिल पांडे ने एक लड़की के भाग्य में आते उतार चढ़ाव के लिए "बँहगी" का रूपक चुना। बँहगी का शाब्दिक अर्थ भार ढोने वाले उस उपकरण से लिया जाता है जिसमें  एक लम्बे बाँस के टुकड़ें के दोनों सिरों पर रस्सियों के बडे बड़े  दौरे लटका दिये जाते हैं और जिनमें बोझ रखा जाता है। जब कोई श्रमिक इस बँहगी को ले कर चलता है तो बँहगी  लचकती चलती है। इसीलिए अनिल लिखते हैं भागन के रेखन की बँहगिया, बँहगी लचकत जाए ...

इसक फिल्म के इस गीत को संगीतबद्ध किया है क्रस्ना ने। ये वही क्रस्ना हैं जिन्होंने तनु वेड्स मनु के गीतों के माध्यम से दो साल पहले वार्षिक संगीतमाला की सर्वोच्च पॉयदान पर अपना कब्जा जमाया था। पहली बार मैंने जब इस गीत की आरंभिक पंक्तियाँ सुनी तो मुझे आश्चर्य हुआ कि क्रस्ना ने छठ की पारम्परिक धुन को गीत के मुखड़े में क्यूँ प्रयुक्त किया। क्रस्ना इस बारे में अपने जालपृष्ठ पर लिखते हैं

"बहुत से लोग ये समझेंगे कि ये एक परम्परागत लोक गीत है। पर पहली दो पंक्तियों की धुन को छोड़ दें  तो मैंने इसे अपनी तरह से विकसित किया है। हालांकि मैं चाहता तो छठ की इस धुन के बिना भी इस गीत को बना सकता था पर कई बार बरसों से चली आ रही सांस्कृतिक परंपरा से लोग जल्दी जुड़ जाया करते हैं। इस मुद्दे पर मेरी फिल्म के निर्देशक जो बिहार से ताल्लुक रखते हैं से काफी बहस हुई पर उनके आग्रह पर मैंने शुरुआत उस धुन से कर एक दूसरे रूप में गाने को आगे बुना। मुझे लगता है कि मालिनी अवस्थी और रघुबीर यादव ने गाने के बारे में मेरी सोच को अपनी गायिकी के माध्यम से परिपूर्ण कर दिया है।"

सच मालिनी जी ने इस तरह  भावनाओं में डूबकर इस नग्मे को निभाया  है कि इसे सुन एकबारगी आँखें नम हो उठती हैं। यकीन नहीं होता तो आप भी सुन कर देखिए...



भागन के रेखन की बँहगिया, बँहगी लचकत जाए 
भेजो रे काहे बाबा हमका पीहर से
बिटिया से बन्नी बनके कहाँ पहुँचाए
सहा भी ना जाए ओ का करें हाए
कहाँ ख़ातिर चले रे कहरिया
बँहगी कहाँ पहुँचाए ? बँहगी कहाँ पहुँ...चाए

बचपन से पाले ऐसन बिटिया काहे
बहियन के पालना झुलाए
खुसियन के रस मन में काहे रे
बाबा तुमने बरतिया लीओ बुलवाए
काहे डोली बनवाए अम्मा मड़वा छवाए
चले सिलवा हरदी त पिस पिस जाए

(सिलवा - सिल,  हरदी - हल्दी, बरतिया - बाराती, खुसियन - खुशी, बहियन -बाँह)

सूरज सा चमकेगा मोर मुकुट पहनेगा, राजा बनके चलेगा बन्ना हमारा रे
जीजा को ना पूछेगा. ओ हो ,अरे फूफा को ना लाएगा ओ हो
मामा को लूटेगा, चाचा खिसियाएगा, बहनों को ठुमका लगाता लाएगा
काला पीला टेढ़ा मेढ़ा बन्ना बाराती ऐसा लाया रे
का करें हाए कहाँ चली जाए, बन्नो शरम से मर मर जाए...बन्नो शरम से मर मर जाए...
भागन के रेखन की बँहगिया, बँहगी लचकत जाए

सोनवा स पीयर बिटिया सुन ले, तोरे निकरत ही निकरे ना जान
बिटिया के बाबा से ना पूछले , मड़वा के कइसन होला बिहान
चले चलेंगे कहार मैया असुवन की धार
बन्नी रो रो के हुई जाए है तार तार
भागन के रेखन की बँहगिया, बँहगी लचकत जाए

जिन्हें भोजपुरी बिल्कुल नहीं समझ आती उनके लिए बता दूँ कि इस अंतरे में कहा जा रहा है सोने सी गोरी (यहाँ पीयर यानि पीला रंग गौर वर्ण को इंगित कर रहा है) बिटिया सुनो, शायद तुम्हारे इस घर से विदा होते ही हमारी जान ना निकल जाए। ये बेटी के बाबू का दिल ही जानता है कि शादी की अगली सुबह कितनी पीड़ादायक होती है। कहार चलने को तैयार हो रहे हैं। माँ की आँखों से आँसू की वैतरणी बह चली है और बिटिया तो रो रो के बेहाल है ही।
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8 टिप्पणियाँ:

पारुल "पुखराज" on जनवरी 30, 2014 ने कहा…

Shukriya sunvane ke liye Manish. pehli baar suna . bahut sundar geet..

Sumit Prakash on जनवरी 30, 2014 ने कहा…

Beautiful Song. Beautifully sung. Songs from 'Ishak' deserved better. Flop film with great songs is separate blog subject for u.

प्रवीण पाण्डेय on जनवरी 31, 2014 ने कहा…

बड़ा ही कर्णप्रिय और मधुर संगीत, बस सुनते गये।

अवधेश कुमार गुप्ता on जनवरी 31, 2014 ने कहा…

शानदार!ऐसा संगीत कम ही सुनने मिलता है। बहुत बहुत धन्यवाद ।

Unknown on जनवरी 31, 2014 ने कहा…

बहुत ही मर्मस्पर्शी गीत।सुन्दर गीत को साझा करने के लिए और इस का अर्थ समझाने के लिए शुक्रिया मनीष जी।

कंचन सिंह चौहान on फ़रवरी 01, 2014 ने कहा…

इस गीत को पहली बार सुन कर तो आँखें भर आई थीं। यद्यपि मध्य में रघुबीर यादव के आने से गीत हलके फुलके मूड में आ जाता है।

ये गीत बहुत बहुत बार रिपीट मोड मर सुना है। शुक्रिया इसे शामिल करने का।

Sarita Upadhyay on फ़रवरी 01, 2014 ने कहा…

Malini Awasthi ke aawaj me jadu hai

Manish Kumar on फ़रवरी 26, 2014 ने कहा…

ये गीत आप सबको भी पसंद आया जानकर खुशी हुई।

 

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