आप को कव्वाली तो जरूर पसंद होगी। पर आज कल बीते ज़माने की तरह की कव्वालियाँ होती कहाँ हैं? आज के संगीत के लिहाज से Out of Fashion जो हो गई हैं। पर कुछ प्रयोगधर्मी संगीतकार गायिकी की इस विधा पर भी फ्यूजन के दाँव आज़मा रहे हैं। ऐसा ही एक प्रयास किया है अमित त्रिवेदी ने अपनी फिल्म घनचक्कर के इस गीत में जो की 19 वीं सीढ़ी की शोभा बढ़ा रहा है। इस गीत को जब पहली बार मैंने सुना तो मन मस्ती से झूम उठा पर ये नहीं समझ पाया कि इस गीत के पीछे की दमदार आवाज़ किस की है। बाद में पता चला कि घनचक्कर की इस फ्यूजन कव्वाली को अपनी आवाज़ दी है दिव्य कुमार ने ।
ये वही दिव्य कुमार हैं जिनके भाग मिल्खा भाग के गीत 'मस्तों का झुंड...' ने पूरे देश में लोकप्रियता हासिल की है। पर बिना किसी विधिवत शास्त्रीय संगीत की शिक्षा के बतौर पार्श्वगायक मुंबई फिल्म उद्योग में कदम रखने के लिए दिव्य कुमार को छः साल का कठिन संघर्ष करना पड़ गया। दिव्य कुमार एक सांगीतिक पृष्ठभूमि वाले परिवार से ताल्लुक रखते हैं। उनके
दादा को वी शातारांम और पिता को पंचम के साथ काम करने का मौका मिल चुका है।
गायक बनने की सोच उन्हें उनकी माँ ने दी।
बचपन से ही वो संगीत से जुड़े कार्यक्रमों में हिस्सा लेते रहे और बाद में वो कल्याण जी-आनंद जी के संगीत समूह से जुड़ गए। इसी बीच उन्होंने संगीत के रियालटी शो में भी हाथ आज़माया पर कई कोशिशों के बाद भी वो इन कार्यक्रमों में अपनी जगह नहीं बना सके। अपने दोस्तों के माध्यम से उनका परिचय अमित त्रिवेदी से हुआ और इशकज़ादे से उनके हिंदी फिल्म कैरियर की शुरुआत हुई।
बचपन से ही वो संगीत से जुड़े कार्यक्रमों में हिस्सा लेते रहे और बाद में वो कल्याण जी-आनंद जी के संगीत समूह से जुड़ गए। इसी बीच उन्होंने संगीत के रियालटी शो में भी हाथ आज़माया पर कई कोशिशों के बाद भी वो इन कार्यक्रमों में अपनी जगह नहीं बना सके। अपने दोस्तों के माध्यम से उनका परिचय अमित त्रिवेदी से हुआ और इशकज़ादे से उनके हिंदी फिल्म कैरियर की शुरुआत हुई।
ख़ैर दिव्य कुमार के बारे में तो आगे भी वार्षिक संगीतमाला में बातें होती रहेंगी, आइए देखें गीतकार अमिताभ भट्टाचार्य ने इस गीत में क्या कहना चाहा है। ये गीत फिल्म में तब आता है जब नायक अपनी याददाश्त भूल जाने के बाद डाक्टर के पास जाता है और उसकी रिपोर्ट देख वो उसके ठीक होने के लिए दवा से ज्यादा दुआ की जरूरत बताते हैं। अमिताभ ने फिल्म की इस परिस्थिति को ध्यान में रखकर ये याद दिलाना चाहा है कि इंसान कितना भी होशियार, हुनरमंद और सफल क्यूँ ना हो ईश्वर के दिये एक ही झटके से उसे अपनी औकात का अंदाज़ा हो जाता है। दिव्य कुमार जीवन से जुड़े इस सत्य को अपनी ज़मीनी आवाज़ में पूरी बुलंदी से हम तक पहुँचाते हैं।
अल्लाह अल्लाह
तेरी साँसों की उजड़े है खेत रे..उजड़े है खेत रे..उजड़े है खेत रे
जैसे मुट्ठी से फिसली है रेत रे..फिसली है रेत रे..फिसली है रेत रे..
माने रे..माने रे..माने रे..नइयो नन्ही जान
चौड़ा सीना तान, चला रे इंसान
अल्लाह मेहरबान तो दिल गुले गुल गुलिस्तान
अपनी कमज़ोरी में घोल दे जर्दा, ख़ुदा मददगार है गर हिम्मते मर्दा
जैसा आगाज़ वैसा अंजाम है, हरक़त मैली तो मैला ही नाम है
माया माया माया रे माया दोज़ख का सामान
बचा के ईमान चला रे इंसान
अल्लाह मेहरबान तो ...
दो दिन की चाँदनी के चाँद भी झूठे
काली करतूतों के दाग ना छूठें
सारी उस्तादी कब्रों में गाड़ के, एक दिन हर ऊँट नीचे पहाड़ के
आया आया आया रे आया माने या ना मान
काहे का बलवान, ठहरा तू इंसान
अल्लाह मेहरबान तो ...
तो हुज़ूर अल्लाह की मेहरबानी का शुक्रिया अदा कीजिए और गीत की मस्ती में अपने दिल को गुले गुल गुलिस्तान बना ही डालिए।
7 टिप्पणियाँ:
सुंदर !
आप ने सुनाया तो सुना, वर्ना नही सुन पाता. मज़ा आ गया.
जैसा आगाज़ है, वैसा ही अंजाम है...
मनीष जी, मैंने तो ये कव्वाली सुना ही नहीं था और ना ही दिव्य कुमार के बारे में इतनी जानकारी थी ।दोनों के लिए शुक्रिया।
सुशील, सुनीता व दिलीप जी गीत को पसंद करने के लिए धन्यवाद !
aapki varshik sangeetmala mein is geet ke aane ki ummeed nahin thi,not among the best song of 2013
सिफ़र अपनी राय रखने के लिए धन्यवाद। ज़ाहिर है इस गीत के बारे में हमारी राय में मतैक्य नहीं है। मुझे तो इस गीत को सुनने में हमेशा आनंद आता है।
सदा की तरह रोचक
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