शनिवार, जनवरी 11, 2014

वार्षिक संगीतमाला 2013 पॉयदान संख्या 20 : ऐ सखी साजन.. जब ' कह मुकरनी' ने शक़्ल ली एक गीत की ! (Aye Sakhi Sajan...)

वार्षिक संगीतमाला की बीसवीं पॉयदान पर गीत वो जो एक पुरानी साहित्यिक विधा  को एक बार फिर से गीत के लफ़्जों में पिरो कर लाया है। ये गीत है फिल्म रांझणा का, बोल हैं इरशाद क़ामिल के और धुन बनाई है ए आर रहमान ने। आप सोच रहे होगें कि मै किस विधा की बात कर रहा हूँ? इस विधा का नाम है 'कह मुकरनी' जिसे जनाब आमिर खुसरो ने तेरहवीं सदी में विकसित किया था। 

‘कह-मुकरनी’ का अर्थ है ‘कहकर मुकर जाना’ यानी अपनी कही हुई बात को वापस ले लेना। कह मुकरनी चार पंक्तियों की छोटी कविता की एक विशेष शैली है जिसमें संवाद दो सखियों के बीच होता है। इस संवाद में बातें कुछ इस तरह से कही जाती हैं कि वो स्त्री के पति के बारे में हो सकती है या किसी और वस्तु विशेष को इंगित कर रही होती हैं। जब सखी ये कहती है कि अरे तुम तो अपने पिया की बातें कर रही हो तो झट से जवाब आता है नहीं नहीं मैं तो उस वस्तु विशेष की बात कर रही थी। अमीर खुसरो ने यूँ तो तमाम कह मुकरनी लिखीं और उनमें कुछ इंटरनेट पर सहज ही उपलब्ध हैं । मिसाल के तौर पर ये नमूना देखिए..

वो आवे तब शादी होय। उस बिन दूजा और न कोय।
मीठे लागें वाके बोल। ए
सखी साजन? ना सखी ढोल

ऊँची अटारी पलंग बिछायौ। मैं सोयी मेरे सिर पर आयौ।
खुल गयीं अखियाँ भयौ अनन्द। ए
सखी साजन? ना सखी चंद!

अगर इन पंक्तियों को ध्यान से देखें तो आप पाएँगे कि ये पंक्तियाँ कोई अपने पिया के बारे में भी कह सकता है और वास्तव में कह भी रहा है पर आख़िर समय में वो स्वीकारोक्ति ना कर ये कह देती है कि ना जी मैं तो 'ढोल' या  'चंद्रमा' की बात कर रही थी। रांझणा में भी सहेलियों की आपसी बातचीत को इस गीत में 'कह मुकरनी' के अंदाज़ में कहा गया है। वैसे फिल्म संगीत में इस अंदाज़ को लाने का श्रेय  रहमान और इरशाद कामिल को दिया जा सकता है पर इससे पहले भी अस्सी के दशक में  आमिर खुसरो पर बने HMV के गैर फिल्मी एलबम Great Works of Amir Khusro  में संगीतकार मुरली मनोहर स्वरूप ने वाणी जयराम और कृष्णा की आवाज़ में कुछ कह मुकरनियों को रिकार्ड किया गया था।



रहमान ने बड़ी खूबसूरती से इस गीत शास्त्रीयता का रंग भरा है । गीत की शुरुआत चिन्मयी श्रीप्रदा और मधुश्री की मोहक शास्त्रीय सरगम  होती है और फिर शुरु होती हैं कह मुकरनी के अंदाज़ में कही जाने वाली पहेलियाँ। रहमान का संगीत में दक्षिण भारतीय वाद्य घाटम का प्रयोग मन को सोहता है। इरशाद कामिल अपनी पहली पहेली को कह मुकरनी का ज़ामा कुछ यूँ पहनाते हैं

बताओ बताओ है क्या ये सहेली
बताओ बताओ है क्या ये पहेली
हाँ ऐ सखी उलझन, क्या सखी उलझन
ऐ सखी उलझन,, क्या सखी उलझन

हर दर्द सारा बदल है जाता
जनम जनम का उस से नाता
हो .. कभी है बादी हो, कभी सुवादी
कभी है बादी हो, कभी सुवादी 

ऐ सखी साजन, ना सखी शादी

देख रहें हैं ना कि जो बातें शादी के लिए लागू होती हैं वही साजन के लिए। और ये रही गीत की दूसरी पहेली

चाहे तो वो कर दे अँधेरा, गीला कर दे तन मन मेरा
चाहे तो वो कर दे अँधेरा, गीला कर दे तन मन मेरा
मैं तो सुखाती हूँ फिर दामन, ऐ सखी साजन, ना सखी सावन..

गीत के इंटरल्यूड्स में सह गायिकाओं द्वारा पैं पैं... की ध्वनि का प्रयोग कर रहमान सहेलियों के बीच के हल्के फुल्के माहौल का संकेत दे देते हैं। गीत के आख़िरी अंतरे में इरशाद क़ामिल सचमुच के साजन को कुछ यूँ परिभाषित करते हैं।

हाय पास ना हो बड़ा सताए..(सताए)
पास जो हो बड़ा सताए..(सताए)
पास बुलाये बिना बतलाये..(बताए)
पास वो आये बिना बतलाये..(बताए)
पास रहे नज़र ना आये..(ना आये)
पास रहे नज़र लगाये..(लगाये)
पास उसी के रहे ख्वाहिशें..ख्वाहिशें
पास उसी के कहें ख्वाहिशें..ख्वाहिशें

कुल मिलाकर चिन्मयी और मधुश्री के मधुर स्वर में ये गीत हमें आनंद के कुछ और क्षण दे जाता है। आपका क्या ख्याल है?

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11 टिप्पणियाँ:

अनिल सहारण सोनङी on जनवरी 11, 2014 ने कहा…

Lajbab parshtuti...........Aaj pta chala ish vidya ya shaily ko kah-mukrani kahte h varna mai to inhe aamir khushro ki paheliya samjhta tha. Aapka aabhar.

Manish Kumar on जनवरी 11, 2014 ने कहा…

पसंदगी का शुक्रिया अनिल...

कंचन सिंह चौहान on जनवरी 12, 2014 ने कहा…

ये गीत मूवी देखते समय भी अच्छा लगा था। मेलोडियस।
लेकिन पारंपरिक मुकरनी के बारे में जानना और सुनना भी अच्छा लगा ।

सुशील कुमार जोशी on जनवरी 12, 2014 ने कहा…

सुंदर !

Ekta Singh on जनवरी 12, 2014 ने कहा…

Kabse wait tha iss song par aapke comments ka... Rehman ka surila music, singers ki melodious vocals aur shehnai ki jagah unka prayog unique lagte h.

Manish Kumar on जनवरी 12, 2014 ने कहा…

हाँ एकता किसी संगीत की जगह गायिकाओं द्वारा किसी वाद्य यंत्र की ध्वनि निकालने का अंदाज, ना केवल अनूठा व सुरीला है बल्कि गाने में हो रही मौज मस्ती का भी संकेत दे देता है।

Manish Kumar on जनवरी 12, 2014 ने कहा…

कंचन, सुशील जी गीत और मेरा ये लेख आपके लिए रुचिकर रहा जानकर प्रसन्नता हुई।

Unknown on जनवरी 13, 2014 ने कहा…

मुकरनी के बारे में यह लेख और गीत बहुत खूबसूरत लगा।धन्यवाद।

Manish Kumar on जनवरी 13, 2014 ने कहा…

परमेश्वरी चौधरी व सुनीता प्रधान जी पसंदगी का शुक्रिया !

Ankit on जनवरी 14, 2014 ने कहा…

लाजवाब पोस्ट मनीष जी, 'कह-मुकरनी' के बारे में बेहद अहम जानकारी मिली। ये गीत तो पसंद है ही, यूँ फ़िल्म में फिल्मांकन और गीत का अंदाज़ अलग अलग दिखते हैं लेकिन फिर भी काफी समय बाद सखी, सहेलियों की बातों को मद्देनज़र रखते हुए कोई गाना आया है। इससे पहले फ़िल्म यादें का 'सहेली .... " याद आता है।

प्रवीण पाण्डेय on जनवरी 17, 2014 ने कहा…

पहले नहीं सुना था, सुनकर अच्छा लगा।

 

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