कभी कभी जीवन में ऐसी गलतियाँ हो जाती हैं जिसे करने के बाद की ग्लानि अपने आपको माफ करने नहीं देती। इस आत्मग्लानि से बचने के लिए हम खुद को ऐसी दिनचर्या में व्यस्त कर लेते हैं जिसमें स्वयं से भागने की पूरी गुंजाइश रहे। पर ऍसे भागमभाग भरे जीवन का कोई मोल है भला? यूँ ही घिसटती ज़िंदगी को ढोते हुए अगर ऊपरवाला आपको अपनी गलती सुधारने का मौका दे तो क्या आप उसका तहे दिल से शुक्रिया अदा नहीं करेंगे ? उससे ये नहीं कहेंगे कि जिस पश्चाताप की अग्नि में मैं जल रहा था उससे जीते जी तूने निकलने की राह दिखाई ..बस मेरे लिए वही काफी है। इन्हीं मनोभावनाओं को उदासी की चादर में लपेटे खड़ा है वार्षिक संगीतमाला की 21 वीं पॉयदान की नग्मा जिसे गाया और संगीतबद्ध किया है अमित त्रिवेदी ने और जिसके बोल लिखे हैं अमिताभ भट्टाचार्य ने।
लुटेरा फिल्म का ये गीत फिल्म के अन्य गीतों से उलट संगीत संयोजन में आज के युग का ही प्रतिनिधित्व करता है।गिटार,वॉयलिन और ड्रम्स के साथ पूरा आर्केस्ट्रा इस्तेमाल किया है अमित ने इस गीत के संगीत में। इस गीत की कुछ पंक्तियों की काव्यात्मकता कमाल की है। जब अमिताभ लिखते हैं कि हवाओं से जो माँगा हिस्सा मेरा...तो बदले में हवा ने साँस दी, अकेलेपन से छेड़ी जब गुफ़्तगू ...मेरे दिल ने आवाज़ दी तो बस उनकी सोच पर दाद देने को जी चाहता है। उड़ान की तरह अमित त्रिवेदी एक बार फिर माइक्रोफोन के पीछे हैं और उनकी आवाज़ गीत में छुपे दर्द को हमारे ज़हन के करीब ले आती है।
अमित गीत की भावनाओं को Celebration of Tragedy का नाम देते हैं। तो आइए सुनें अमित के स्वर में ये गीत...
मुझे छोड़ दो मेरे हाल पे
ज़िदा हूँ यार काफी है...ज़िदा हूँ यार काफी है
हवाओं से जो माँगा हिस्सा मेरा
तो बदले में हवा ने साँस दी
अकेलेपन से छेड़ी जब गुफ़्तगू
मेरे दिल ने आवाज़ दी
मेरे हाथों, हुआ जो किस्सा शुरु
उसे पूरा तो करना है मुझे
कब्र पर मेरे
सर उठा के खड़ी हो ज़िन्दगी
ऐसे मरना है मुझे
कुछ माँगना बाकी नहीं
कुछ माँगना बाकी नहीं
जितना मिला काफी है
ज़िंदा हूँ यार काफी है
मुझे छोड़ दो मेरे हाल पे
मुझे छोड़ दो मेरे हाल पे
ज़िन्दा हूँ यार काफी है
ज़िन्दा हूँ यार काफी है
मुझे छोड़ दो..
मुझे छोड़ दो..
मेरे हाल पे...
शुरुआत में इस गीत की जगह वो थी जहाँ 'शिकायतें' का फिल्मांकन किया गया था। विक्रमादित्य मोटवाने को ये गीत फिल्म के अंत में क्लाइमेक्स के साथ लाना ठीक लगा और इसलिए उसी के अनुरुप इसे फिर से रिकार्ड किया गया। बर्फबारी के बीच इस गीत में पेड़ की सबसे ऊँची शाख पर नायक द्वारा एक सूखे पत्ते को जोड़ने के दृश्य को बड़ी खूबसूरती से फिल्माया गया है।
13 टिप्पणियाँ:
Beautiful Song. I really thought it would get a place within 20. It means the list is going to get better and better. Excited.
Don’t read too much into the ranking Sumit ! There is hardly any difference in scores for songs featuring from 21 to 15 .
कभी उदास मूड हो और ये गाना सुनिये.. अहा.. एक अलग दुनिया में पहुँचने का अहसास होता है. शुक्रिया मनीष जी.
दिल की बात कह दी तुमने विवेक !
My fav. of this year..
वाह आलोक जानकर अच्छा लगा कि जब आपकी उम्र के लोग आशिक़ी दो के गीतों के दीवाने हैं तो आप इस उदास गीत को दिल में सँजोए बैठे हैं।
Its a really peppy song.. showing how content my heart is.. I like Ashiqui2 songs too.. but I avoid too much sugar these days.. :p
Amit Trivedi calls this song 'Celebration in Tragedy ! U can't deny the tinge of sadness in above lines along with contentment of accepting life as it is...
That's what I thought Manish. It must be a close call. Waiting for others.
शब्द अच्छे लगे इस गीत के लेकिन फिर मेरी वही व्यक्तिगत पसंद..... म्यूज़िक :(
ओह, तो लूटेरा का दूसरा गीत ये है जो संगीतमाला में जगह बना पाया है, हम्म गीत ठीक ही लगा, हाँ उन दो पंक्तियों में ज़रूर कुछ जादू है।
अंकित, स्वानंद की गायिकी का मैं सदा ही मुरीद रहा हूँ। और जब ये एलबम आया तो सँवार लूँ सुनने के बाद सबसे पहले मोंटा रे ही मैंने सुना। गीत की शुरुआत अच्छी लगी पर अगर गीत के शब्द थोड़े और वज़नदार होते तो मुझे उसे यहाँ शामिल करने में खुशी होती। हाल ही में सचिन देव बर्मन से जुड़ी एक श्रंखला की थी और उसकी वज़ह से इस कोटि के कई गीतों को सुनने का मौका मिला। बाँग्ला का अल्पज्ञान होते हुएभी वो गीत एकदम से दिल को छू गए जो मोंटा रे मेरे लिए नहीं कर सका।
जब तुलना सचिन दा के म्यूजिक से हो तो वाक़ई मानक बढ़ और बदल जाते हैं।
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