रविवार, जनवरी 05, 2014

वार्षिक संगीतमाला 2013 पॉयदान संख्या 23 : हवा के झोंके आज मौसमों से रूठ गये..सँवार लूँ (Sanwaar Loon)

अमित त्रिवेदी  व अमिताभ भट्टाचार्य के गीत संगीत का मैं उनकी पहली फिल्म आमिर के दिनों से ही शैदाई रहा हूँ और इसकी अभिव्यक्ति गुजरे साल की वार्षिक संगीतमालाओं में होती रही है। 2013 में इस जोड़ी द्वारा किया गया बेहतरीन काम आपको इस संगीतमाला के विभिन्न पड़ावों पर दिखेगा। पिछले साल उनका जो गीत देश के टीवी और रेडियो चैनलों ने सबसे अधिक बजाया है वो है सँवार लूँ ...और यही गीत बैठा है वार्षिक संगीतमाला 2013 की अगली सीढ़ी पर। 

पिछले कई सालों से आपने एक बात गौर की होगी कि जब जब हमारे संगीतकारों को गुज़रे ज़माने से जुड़ी कोई पटकथा हाथ लगी है तो उन्होंने उसके अनुरूप संगीत देने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। ए आर रहमान की 'जोधा अकबर' और 'लगान', प्रीतम की 'बर्फी', शांतनु मोइत्रा की 'परिणिता', इस्माइल दरबार की 'देवदास' इसके कुछ जीते जागते उदाहरण है। लुटेरा के साथ अमित त्रिवेदी का नाम भी ऐसे संगीतकारों की सूची में जुड़ा है।

'उड़ान' के संगीत निर्देशन के दौरान अमित और विक्रमादित्य के बीच जो आपसी समझ बूझ विकसित हुई उसका विस्तार लुटेरा के दृश्यों में रचे बसे गीतों में मिलता है। निर्देशक अमित त्रिवेदी कहते हैं कि विक्रमादित्य की पटकथाएँ ही अपने आप में इतनी उत्प्रेरक होती हैं कि उसका संगीत रचने के लिए अलग से हमें किसी 'brief' की आवश्यकता नहीं होती। विक्रमादित्य मोटवाने जब अमित त्रिवेदी के सामने लुटेरा की पटकथा लाए तो उनके सामने पचास और साठ के दशक का बंगाल घूम गया। ये वो दौर था जब वहाँ के संगीत में सलिल चौधरी, सचिन देव बर्मन और राहुल देव बर्मन की तूती बोलती थी और उन्होंने इस फिल्म के गीतों को इन्हीं दिग्गज़ों द्वारा रचे संगीत जैसी ही आवाज़ दी। यही वज़ह है कि जहाँ सँवार लूँ की धुन एस डी बर्मन को समर्पित है वहीं 'अनकही' का गीत संगीत गुलज़ार-पंचम द्वारा इजाज़त के किए गए काम से प्रेरित।"

अमित के संगीत और अमिताभ के बोलों को साथ मिला है नवोदित गायिका  मोनाली ठाकुर के स्वर का । यूँ अब मोनाली को सिर्फ गायिका कहना ठीक नहीं क्यूँकि शीघ्र ही बतौर नायिका वो हिंदी फिल्मों के पर्दों पर नज़र आने वाली हैं। इंडियन आइडल-2, 2006 के प्रथम दस में स्थान बनाने वाली 28 वर्षीय मोनाली, यूँ तो बंगाल के एक सांगीतिक पृष्ठभूमि वाले परिवार से आती हैं पर उन्हें गायिकी के आलावा नृत्य और अभिनय करने से भी परहेज़ नहीं है।


इंडियन आइडल 2 में चर्चित होने के बाद उन्हें हिंदी फिल्म जगत में अपनी  पहली सफलता दो साल के संघर्ष के बाद 2008 में रेस  के गीत 'ज़रा जरा टच मी ' से मिली। वैसे पिछले पाँच सालों में उनकी झोली में दर्जन भर से थोड़े ज्यादा गीत ही आ पाए हैं। सँवार लूँ और फिल्मों में अभिनय की शुरुआत के बाद उनका कैरियर किस करवट बैठेगा ये तो वक़्त ही बताएगा।

सँवार लूँ का सबसे आकर्षक हिस्सा मुझे इसका आरंभिक संगीत और मुखड़ा लगता है। मुखड़े का आकर्षण पहले और फिर दूसरे अंतरे तक आते आते थोड़ा क्षीण हो जाता है।  गीत के साथ चलती हुई ताल वाद्यों की थपक  जहाँ पंचम की तो वहीं इंटरल्यूड्स में सुनाई देने वाली बाँसुरी और सीमिल आर्केस्ट्रा सचिन दा के संगीत की याद दिला जाता है। मोनाली ठाकुर की चुलबुली आवाज़ में शोखी के साथ जो मिठास है वो गीत सुने वक़्त दिल को तरंगित कर देती है।

अमिताभ भट्टाचार्य नायिका के दिल का मूड परखने के पहले उसकी आँखों से प्रकृति की कारगुजारियों का जो खाका खींचते हैं वो वाकई शानदार है। मिसाल के तौर पर गीत का मुखड़ा देखिए जहाँ अमिताभ लिखते हैं कि पवन देवता इसलिए रुष्ट हो गए कि इससे पहले वे फूलों की पंखुड़ियों को सहला पाते, भौंरे उन पुष्पों की सुंदरता का रसपान करके फुर्र हो लिए। किसी अजनबी के लिए नायिका के हृदय में कोमल भावनाओं का आगमन को अमिताभ पहले अंतरे में कुछ यूँ बाँधते हैं पंक्तियाँ बरामदे पुराने हैं, नयी सी धूप हैं, जो पलके खटखटा रहा हैं किसका रूप है अब आप ही बताइए ऐसी शरारतें कर दिल को गुदगुदाने वाले को  नायिका कैसे अपनी शर्मो हया छोड़कार नाम कैसे पुकार ले ?

तो आइए सुनते हैं इस गीत को एक बार फिर से..


हवा के झोंके आज मौसमों से रूठ गये
गुलों की शोखियाँ जो भँवरे आ के लूट गये
बदल रही हैं आज ज़िंदगी की चाल ज़रा
इसी बहाने क्यूँ ना मैं भी दिल का हाल ज़रा
सँवार लूँ , सँवार लूँ ,सँवार लूँ  हाए सँवार लूँ


बरामदे पुराने हैं, नयी सी धूप हैं
जो पलके खटखटा रहा हैं किसका रूप हैं

शरारातें करे जो ऐसे, भूल के हिजाब
कैसे उसको नाम से, मैं पुकार लूँ
सँवार लूँ .....

ये सारी कोयलें बनी हैं आज डाकिया
कूहु-कूहु में चिठ्ठियाँ पढ़े मज़ाकिया

इन्हे कहो की ना छुपाये
किसने है लिखा बताये
उसकी आज मैं नज़र उतार लूँ
सँवार लूँ ....हवा के झोंके आज मौसमों से रूठ गये
...

 वैसे इस गीत का फिल्मांकन भी बड़ा खूबसूरत है ...



 चलते चलते एक बात और ! इस गीत से जुड़ी एक विचित्र बात मुझे ये लगी कि हर जगह इसके गीत को सवार लूँ (Sawaar Loon) के नाम से क्यूँ प्रचारित किया गया जबकि गीत में ये सँवार लूँ  (Sanwaar Loon) की तरह आया है? अर्थ का अनर्थ करती इस भूल के प्रति विक्रमादित्य मोटवाने और अमित त्रिवेदी जैसी हस्तियाँ सजग नहीं रहीं ये देख कर अच्छा नहीं लगा।
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13 टिप्पणियाँ:

कंचन सिंह चौहान on जनवरी 05, 2014 ने कहा…

इस गीत से परिचय दर्पण शाह ने कराया था। ये वो गीत है, जिसे रिपीट मोड पर जाने कितनी बार सुना और अब तक मेरी रिंगटोन है। जिन्हे ये फिल्म पसंद आई उनसे क्षमा के साथ कहूँगी कि ये वो गीत है, जिसके कारण मुझे पूरी फिल्म झेलनी पड़ी।

गीत के बोल, सुर और स्वर तीनो ही खींचते हैं मुझे। कुल मिला कर मेलोडियस सॉंग....!!

Ravi Rajbhar on जनवरी 05, 2014 ने कहा…

meri mob. ka ring tone yahi hai,, mujhe bhi bahut pasand hai

प्रकाश सिंह अर्श on जनवरी 05, 2014 ने कहा…

मुझे इसमें थपक बहुत पसंद है ..... वाक़ई बेहतरीन गीत है यह.

Anulata Raj Nair on जनवरी 05, 2014 ने कहा…

हाँ मुझे भी पसंद है....परकशन वाकई अच्छा है!!!

संदीप द्विवेदी on जनवरी 05, 2014 ने कहा…

गीत में वास्तव में एक पुरातन भाव प्रक्षेपित हो रहा है.. किन्तु एक बात खटकती है... मोनाली द्वारा सँवार लूँ के स्थान पर 'सवार लूँ' उच्चारण करना.

Manish Kumar on जनवरी 05, 2014 ने कहा…

संदीप पूरे गीत को नेट पर 'सँवार लूँ' की जगह 'सवार लूँ' के रूप में प्रचारित किया गया है। निर्देशक और संगीतकार की ये बड़ी भूल है जिसे सुधारा जाना चाहिए था। पर गीत सुनते वक़्त मुझे तो सँवार लूँ ही सुनाई पड़ा ..

प्रवीण पाण्डेय on जनवरी 06, 2014 ने कहा…

इस गीत का संगीत, शब्द, दृश्य और अभिनय, सभी उत्कृष्ट हैं।

r.n.arora on जनवरी 06, 2014 ने कहा…

पूरा गीत एवं संगीत उत्कृष्ट है।

Ankit on जनवरी 06, 2014 ने कहा…

सँवार के अलावा मुझे मोनाली द्वारा डाकिया का उच्चारण भी "डाकियां" और मज़ाकिया "मजाकियां" सुनाई देता है, आप भी ज़रा ग़ौर कर के बताइये। वैसे गाना मेलोडी से लबरेज़ है और गुनगुनाने पे मज़बूर करता है लेकिन इस फ़िल्म से मेरा फेवरेट स्वानंद का गाया हुआ "मोंटा रे" है, जो ज़रूर आगे की पायदान में चहलकदमी करता हुआ मिलेगा, ऐसी मुझे उम्मीद है।

संदीप द्विवेदी on जनवरी 06, 2014 ने कहा…

पकी बात सौ टके सच है मनीष भाई मैंने कई बार ध्यान लगा कर सुना किन्तु 'सँवार' न हो कर 'सवार' ही प्रतिध्वनित हो रहा है..! वास्तव में ऐसी छोटी-२ त्रुटियों पर ध्यान देना अति आवश्यक है, जहाँ करोड़ों-अरबों ख़र्च हो जाते हैं निर्माण पर वहाँ ऐसी मामूली त्रुटियाँ कचोटती हैं!

Jiten Dobriyal on जनवरी 07, 2014 ने कहा…

lovely lyrics..

Manish Kumar on जनवरी 07, 2014 ने कहा…

संदीप, अंकित : उच्चारण की स्पष्टता नहीं है। मजाकिया और डाकिया को वो थोड़ा खींचती तो हैं।

अंकित : अमित ने बाउल गीतों को याद करते हुए स्वानंद किरकिरे से मोंटा रे गवाया। अभी तो बस इतना कह सकता हूँ कि इस गीतमाला में लुटेरा का एक और गीत शामिल है।

Manish Kumar on जनवरी 07, 2014 ने कहा…

कंचन फिल्म के बारे में तुम्हारी नापसंदगी को फेसबुक पर पढ़ चुका हूँ। मेरी भी रुचि फिल्म की ओर इसका संगीत सुनने से ही बढ़ी। फिल्म जब टीवी पर आई तो कुल मिलाकर औसत लगी पर कुछ दृश्य पूर्वार्ध के बड़े अच्छे बन पड़े हैं।

 

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