वार्षिक संगीतमाला 2013 की अगली सीढ़ी पर है एक बेहद संवेदनशील नग्मा जिसे लिखा निरंजन अयंगार ने धुन बनाई शंकर अहसान लॉए ने और आवाज़ दी राहुल राम व सिद्धार्थ महादेवन ने।
इस गीत की व्यक्त भावनाएँ मुझे माखन लाल चतुर्वेदी की स्कूल में पढ़ी उस कविता की याद दिला देती हैं जिसमें चतुर्वेदी जी एक पुष्प की अभिलाषा को कुछ यूँ व्यक्त करते हैं।
मुझे तोड़ लेना वन माली
इस गीत की व्यक्त भावनाएँ मुझे माखन लाल चतुर्वेदी की स्कूल में पढ़ी उस कविता की याद दिला देती हैं जिसमें चतुर्वेदी जी एक पुष्प की अभिलाषा को कुछ यूँ व्यक्त करते हैं।
मुझे तोड़ लेना वन माली
उस पथ पर देना तुम फेंक
मातृभूमि पर शीश चढ़ाने
जिस पथ जायें वीर अनेक
पर क्या इस अनुकरणीय सोच को हमारा समाज वास्तव में अपने मन में डाल पाया है?
ये गीत हमें अपने उन वीर जवानों की याद दिलाता है जो अपनी जान की परवाह किए बिना देश के बाहरी और भीतरी शत्रुओं से हमारी रक्षा करते हैं। जब ये जवान शहीद होते हैं तो सारा देश कुछ दिनों तक उनकी वीरता की गाथा गाता है और फिर कुछ दिनों बाद लोग उस शहीद की यादों को अपने दिमाग से निकाल देते हैं। निरंजन की कलम हमारी इसी प्रवृति पर इस गीत में कटाक्ष करती नज़र आती है।
शंकर एहसान लॉए ने इंडियन ओशन बैंड के गिटार वादक और मुख्य गायक राहुल राम की ज़ोरदार आवाज़ का गीत में बेहतरीन उपयोग किया है। इस गीत के अंतरों के बीच निरंजन ने गीत की सबसे मारक पंक्तियाँ लिखी हैं जिन्हें सुनकर मन में शर्मिंदगी का अहसास घर करने लगता है। सितारे भी जिनको ना दे सके पनाह...कहानी ये उनकी जिन्हें भूले दो जहाँ..हमने कर दिया जिन्हें धुआँ । संगीतकार त्रयी ने इन पंक्तियों को शंकर महादेवन के सुपुत्र सिद्धार्थ महादेवन से गवाया है। वैसे आपको ध्यान होगा कि बतौर गायक सिद्धार्थ ने इस साल भाग मिल्खा भाग में ज़िदा हैं तो प्याला पूरा भर ले को भी अपनी आवाज़ दी है।
जा रहा कहीं यादों का कारवाँ
मिट चुका यूँ हीं होने का हर निशाँ
क्यूँ भूली इन्हें ज़मीं क्यूँ भला ये आसमाँ
ना जाने ये खो गए कहाँ
रंग ख़्वाबों के जिनके खून से रँगे
रास्ते नए जुनून से बने
क्यूँ भूली इन्हें ज़मीं
क्यूँ भला ये आसमाँ
ना जाने ये खो गए कहाँ
सितारे भी जिनको ना दे सके पनाह
कहानी ये उनकी जिन्हें भूले दो जहाँ
हमने कर दिया जिन्हें धुआँ
माँगना नहीं बस देना है जिनकी जुबाँ
लूटकर जिन्हें हमनें बाँधा है ये समा
जो भूली इन्हें ज़मीं जो भूला ये आसमाँ
ना कहलाएँगे हम इंसान
सितारे भी जिनको ना दे सके पनाह
कहानी ये उनकी जिन्हें भूले दो जहाँ
हमने कर दिया जिन्हें धुआँ
क्यूँ हमने कर दिया उन्हें धुआँ ?.
ये गीत हमारे हृदय को झकझोरने और इस माटी के वीर सपूतों के बलिदान को उचित सम्मान देने के लिए कटिबद्ध करता है। तो आइए सुनें फिल्म डी डे के इस गीत को...
5 टिप्पणियाँ:
पहली बार सुना गीत। फिल्म का नाम भी नही सुन पायी थी। गीत को बोले निश्चित ही बहुत अच्छे हैं। लेकिन ये लॉउड म्यूज़िक मुझे व्यक्तिगत रूप से किसी गीत को बार बार सुनने से रोकता है।
सुनवाने का शुक्रिया
शंकर अहसान लॉय की तिकड़ी दोनों ही तरह का संगीत देने में माहिर रहे हैं। चूंकि यहाँ गाने की थीम वीरों को भूलने की हमारी प्रवृति पर चोट करने की है इसलिए राहुल राम का प्रयोग पश्चिमी संगीत संयोजन के साथ किया गया है। वैसे वार्षिक संगीतमाला का अगला गीत उस प्रकृति का है जो आप पसंद करती हैं ।
Wah kya baat hai
is geet ke release ke waqt iski bhavnao par iss tarah kabhi gaur nahi kiya tha,ab ye geet behtareen prateet hota hai.
मुकेश जी गीत पसंद करने का शुक्रिया !
सिफ़र मेरे साथ भी कईबार ऐसा होता है। पहली बार गीत सुनते समय उसकी धुन ज्यादा दिमाग पर चढ़ती है पर उसके शब्दों से नाता सुकून के पलों में सुनने से ही हो पाता है।
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