मस्ती के माहौल को बरक़रार रखते हुए हम आ पहुँचे हैं वार्षिक संगीतमाला 2013 की बारहवीं पायदान पर। शंकर एहसान लॉय की तिकड़ी ने भाग मिल्खा भाग के गीतों के ज़रिये ये साबित कर दिया कि उनमें अभी भी पिछले सालों का दम खम बाकी है। एक फौज़ी के कठिन जीवन के बीच मस्ती भरे पलों को दर्शाते इस गीत को ही लें। गीत की शुरुआत में मुँह से की जाने वाली आवाज़ हो, या भाँगड़े के साथ रिदम बैठाता इकतारा या फिर फौजी की कठोर ज़िदगी को दिखाने के लिए पार्श्व में बजता पश्चिमी संगीत हो, संगीतकार त्रयी हर जगह श्रोताओं को अपने संगीत संयोजन मुग्ध करने में सफल रही है।
दिव्य कुमार की गायिकी से आप संगीतमाला की 19 वीं पायदान पर रूबरू हो चुके हैं। मस्तों का झुंड उनकी झोली में कैसे आया इसकी कहानी वे कुछ यूँ बयाँ करते हैं।
"शंकर एहसान लॉय के साथ मैंने पहले पहल 2011 के विश्व कप शीर्षक गीत दे घुमा के .....में काम किया था। उसके पहले भी कुछ गीतों और विज्ञापनों के लिए उनके साथ मैंने काम किया था। उनके द्वारा संचालित संगीत कार्यक्रमों के दूसरे चरण में मुझे महालक्ष्मी ऐयर के साथ गाने का मौका मिला। तभी शंकर को लगा था कि मेरी आवाज़ एक सिख चरित्र के लिए आदर्श होगी और मैं 'भाग मिल्खा भाग' का हिस्सा बन सकता हूँ। मैंने मस्तों का झुंड के लिए अपना दो सौ प्रतिशत दिया क्यूँकि इस स्वर्णिम अवसर को मैं यूँ ही हाथ से जाने नहीं देना चाहता था। परिणाम भी शानदार रहा जैसा शंकर एहसान लॉय के साथ होता है। गाते वक़्त मुझे बस इतना कहा गया था कि मुझे एकदम मस्ती में गाना है और पंजाबी उच्चारण को एकदम पकड़ कर चलना है क्यूँकि मेरी आवाज़ एक सिख किरदार की है।"
और पंजाबियत की सोंधी खुशबू हम तक पहुंचाने के लिए दिव्य 'हवन' को 'हवण' की तरह उच्चारित करते हैं। दरअसल इस गीत में एक तरह का पागलपन है जो इसके संगीत और बोलों में सहज ही मुखरित होता है। जिन लड़कों ने कॉलेज की ज़िंदगी का एक हिस्सा हॉस्टल में रहकर गुजारा है उन्हें ऐसी पागलपनती से अपने को जोड़ने में कोई परेशानी नहीं होगी। गीत में चरित्रों की भाव भंगिमाएँ,उनके थिरकने का अंदाज़ सब कुछ उन पुराने दिनों की याद ताज़ा करा देता है जिसे हम सबने अपने सहपाठियों के साथ जिया है।
जीव जन्तु सब सो रहे होंगे..भूत प्रेत सब रो रहे होंगे जैसे बोल लिखने वाले प्रसून जोशी को सहूलियत ये थी कि वे गीतों को लिखने के साथ साथ फिल्म की पटकथा भी लिख रहे थे। वे कहते हैं कि गीत लिखते समय वो उन चरित्रों को वो नए आयाम दे सके जो पटकथा में स्पष्ट नहीं थे। फरहान अख्तर और साथी कलाकारों ने मस्ती और उमंग से भरे इस गीत में जो भाँगड़ा किया है वो किसी का भी चित्त प्रसन्न करने में सक्षम है। तो आइए एक बार फिर उल्लास के माहौल से सराबोर हो लें इस गीत के साथ..
ओए हवन कुंड मस्तों का झुंड
सुनसान रात अब
ऐसी रात, रख दिल पे हाथ, हम साथ साथ
बोलो क्या करेंगे
हवन करेंगे..हवन करेंगे..हवन करेंगे
ओए जीव जन्तु सब सो रे होंगे
भूत प्रेत सब रो रहे होंगे
ऐसी रात सुनसान रात रख दिल पे हाथ
हम साथ साथ बोलो क्या करेंगे
हवन करेंगे..हवन करेंगे..हवन करेंगे
नहाता धोता, नहाता धोता सुखाता
सारे आर्डर
सारे आर्डर बजाता
परेड थम
नहाता धोता सुखाता आहो ..
सारे आर्डर बजाता आहो ..
तभी तो फौजी कहलाता
परेड थम
दौड़ दौड़ के लोहा अपना
बदन करेंगे ...बदन करेंगे हवन करेंगे
ओए हवन कुंड मस्तों का झुंड ..
ओ जंगली आग सी भड़कती होगी
लकड़ी दिल की भी सुलगती होगी
सुनसान रात अब
ऐसी रात रख दिल पे हाथ हम साथ साथ
बोलो क्या करेंगे
हवन करेंगे..हवन करेंगे..हवन करेंगे
4 टिप्पणियाँ:
उत्साह बढ़ाता यह गीत।
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन १७ साल पुराने मामले मे रेलवे देगा हर्जाना - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
मस्त गीत है।मजा आ गया मनीष जी!
प्रवीण व सुनीता जी शुक्रिया अपने विचार देने के लिए !
ब्लॉग बुलेटिन आभार !
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