वार्षिक संगीतमाला के शिखर तक पहुँचने के लिए अब बस तीन पायदानों का सफ़र तय करना बाकी रह गया है। पिछली दो पायदानों की तरह इस सीढ़ी पर एक अलग कोटि का गीत है। जी हाँ इस गीतमाला की चौथी पॉयदान पर है एक कव्वाली। आप कहेंगे कव्वालियाँ तो पुरानी फिल्मों में हुआ करती थीं अब तो उनके नाम पर कुछ भी परोस दिया जाता है। आपकी बात गलत नहीं पर वक़्त बदलने के साथ संगीत में जो बदलाव है उसका कुछ असर तो पड़ेगा ही। पर चौथी पॉयदान की इस कव्वाली में कुछ तो बात ऐसी जरूर है जो पुराने दिनों की यादें ताज़ा कर देती है।
इसे गाने वाले जावेद बशीर को संगीतकार प्रीतम ने खास पाकिस्तान से आयात किया है। चालीस वर्षीय जावेद का ताल्लुक कव्वालों के खानदान से रहा है। उस्ताद मुबारक अली खाँ से शास्त्रीय संगीत की शिक्षा लेने वाले जावेद पहली बार मेकाल हसन बैंड से जुड़ने की वज़ह से चर्चा में आए। शास्त्रीय संगीत, कव्वाली और रॉक इन तीनों विधाओं को अपनी गायिकी में पिरोने वाले जावेद ने पिया तू काहे रूठा रे (कहानी), तेरा नाम जपदी फिरूँ (कॉकटेल) , मेरा यार और रंगरेज़ (भाग मिल्खा भाग) से बॉलीवुड में भी अपनी उपस्थिति दर्ज करायी है।
जावेद बशीर और रजत अरोड़ा
Once upon a time in Mumbai दोबारा की इस कव्वाली को लिखा रजत अरोड़ा ने! रजत ने जयदीप साहनी और निरंजन अयंगार की तरह ही गीतकार बनने के पहले बतौर पटकथा लेखक अपने आप को स्थापित किया है। फिल्म दि डर्टी पिक्चर में उनके संवादों को आम जनता और समीक्षकों दोनों ने ही सराहा। ये अलग बात है कि जब 2001 में उन्होंने दिल्ली से मुंबई का रुख किया था तो उनके मन में गीतकार बनने का ही सपना था।
अगर एक गीतकार पटकथा लेखक भी हो तो उसे गीत की परिस्थिति और चरित्र के अंदर उठ रहे मनोभावों का पूरा अंदाज़ा होता है। अब इस कव्वाली की परिस्थिति देखिए इस बार प्रेम में भाई यानि डॉन खुद पड़े हैं और प्रेम को भी वे हार जीत की बाजी के रूप में तौलते हैं इसीलिए रजत लिखते हैं इश्क़ की.. साज़िशें, इश्क़ की.. बाज़ियाँ.हारा मैं.. खेल के, दो दिलों.. का जुआ या फिर मुझे तू राज़ी लगती है, जीती हुई बाज़ी लगती है तबीयत ताज़ी लगती है, ये तूने क्या किया.
कव्वाली की शुरुआत में रजत इश्क़ को सहजता से इन अशआरों में ढालते हैं. जावेद बशीर की गहरी आवाज़ में वो और निखर जाते हैं.
इश्क़ वो बला है, इश्क़ वो बला है
जिसको छुआ इसने वो जला है
दिल से होता है शुरू, दिल से होता है शुरू
पर कम्बख़्त सर पे चढ़ा है
कभी खुद से कभी ख़ुदा से, कभी ज़माने से लड़ा है
इतना हुआ बदनाम फिर भी, हर ज़ुबाँ पे अड़ा है
और उसके आगे के अंतरों में शब्दों के साथ वो जिस सलाहियत से खेलते हुए प्रेम में घायल दिल का हाल बयाँ करते हैं कि उसे सुनते ही मन सुर में सुर मिलाने को करता है। कव्वाली पूरे रंग में आती है जब कोरस साथ में आता है। प्रीतम इंटरल्यूड्स में Once upon a time in Mumbai की Signature Tune का बखूबी इस्तेमाल करते हैं। और चूँकि ये कव्वाली है इसलिए साढ़े तीन मिनट बाद हारमोनियम भी अपने पूरे रंग में दिखता है।
इश्क़ की.. साज़िशें, इश्क़ की.. बाज़ियाँ
हारा मैं.. खेल के, दो दिलों.. का जुआ
क्यूँ तूने मेरी फ़ुर्सत की, क्यूँ दिल में इतनी हरकत की
इसक में इतनी बरक़त की, ये तूने क्या किया..
फिरूँ अब मारा मारा मैं, चाँद से बिछड़ा तारा मैं
दिल से इतना क्यूँ हारा मैं, ये तूने क्या किया..
सारी दुनिया से जीत के, मैं आया हूँ इधर
तेरे आगे ही मैं हारा, किया तूने क्या असर
मैं दिल का राज़ कहता हूँ, कि जब जब साँसें लेता हूँ
तेरा ही नाम लेता हूँ, ये तूने क्या किया
मेरी बाहों को तेरी साँसों की जो आदतें लगी हैं वैसी
जी लेता हूँ अब मैं थोड़ा और
मेरे दिल की रेत पे आँखों की जो पड़े परछाईं तेरी
पी लेता हूँ तब मैं थोड़ा और
जाने कौन है तू मेरी, मैं ना जानूँ ये मगर
जहाँ जाऊँ करूँ, मैं वहाँ तेरा ही ज़िक्र
मुझे तू राज़ी लगती है, जीती हुई बाज़ी लगती है
तबीयत ताज़ी लगती है, ये तूने क्या किया..
मैं दिल का राज़ कहता हूँ, कि जब जब साँसें लेता हूँ
तेरा ही नाम लेता हूँ, ये तूने क्या किया..
दिल करता है तेरी बातें सुनूँ, सौदे मैं अधूरे चुनूँ
मुफ़्त का हुआ यह फ़ायदा..
क्यूँ खुद को मैं बर्बाद करूँ, फ़ना होके तुझसे मिलूँ
इश्क़ का अजब है क़ायदा..
तेरी राहों से जो गुज़री है मेरी डगर
मैं भी आगे बढ़ गया हूँ, हो के थोड़ा बेफ़िक्र
कहो तो किससे मर्ज़ी लूँ, कहो तो किसको अर्ज़ी दूँ
हँसता अब थोड़ा फ़र्ज़ी हूँ
ये तूने क्या किया.. ये तूने क्या किया..
तो आइए आनंद लें इस गीत का...
2 टिप्पणियाँ:
सुन्दर गीतमाला।
Jaaved Basheer ke baare mein aapse hi jaana. Bahut hi khul ke gaya hai. Must say unique choice for no 4. Unexpected. Like.
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