वार्षिक संगीतमाला की अगली सीढ़ी पर है एक बार फिर ए आर रहमान और इरशाद क़ामिल की जोड़ी, फिल्म रांझणा के नग्मे के साथ। तुम तक की तरह प्रेम का रंग यहाँ भी है पर फर्क सिर्फ इतना है कि यहाँ बात ईश्वरीय प्रेम की हो रही है। रहमान ज़रा सी भी गुंजाइश रहने पर अपनी संगीतबद्ध हर फिल्म में एक सूफ़ी गीत जरूर डालते हैं। फिल्म जोधा अकबर का गीत ख़्वाजा मेरे ख़्वाजा और रॉकस्टार का नग्मा कुन फाया कुन इसकी दो बेहतरीन मिसालें हैं।
इरशाद क़ामिल ने इस गीत के लिए कबीर की पंक्तियों घूँघट के पट खोल रे तोहे पिया मिलेंगे से प्रेरणा ली। कबीर की इस कृति को 1950 में फिल्म जोगन में गीता दत्त ने अपनी आवाज़ से सँवारा था। पर इरशाद ने इस Catch line के इर्द गिर्द जो गीत बुना उसे अगर सुखविंदर सिंह की बेमिसाल गायिकी के साथ शांति से सुनें और गुनें तो इसमें कोई शक़ नहीं कि आप ईश्वर को अपने और करीब पाएँगे।
सुखविंदर जैसे ही शानदार मुखड़े को गाते हुए अकल के परदे पीछे कर दे घूँघट के पट खोल रे तोहे पिया, पिया.. तोहे पिया मिलेंगे मिलेंगे …तक आते हैं मन गीत की लय को आत्मसात कर लेता है। रहमान ने गीत में सुखविंदर के साथ चेन्नई में अपने कॉलेज KM Music Conservatory (KMMC) में सूफी गायन से जुड़े छात्रों को भी गाने का मौका दिया है। दरअसल ये समूह पहले भी कव्वाल शौक़त अली के मार्गदर्शन में रहमन रचित कव्वालियों की प्रस्तुति देता आया है। इस गीत के अंतरों के बीच की सुरीली सरगम और समूह गान को खूबसूरती से निभा कर KMMC Sufi Ensemble इस गीत में और निखार ला दिया है।
यूँ तो इरशाद क़ामिल के बोल सहज पर दिल पे सीधे असर करने वाले हैं। पर इस गीत की शुरुआत में उन्होंने एक अप्रचलित शब्द तुपके तुपके का इस्तेमाल किया है। उन्होंने लिखा है तेरे अंदर एक समन्दर क्यूँ ढूँढे तुपके तुपके ! आप जानना चाह रहे होंगे कि इसका मतलब क्या है? यहाँ क़ामिल कहना चाह रहे हैं जब कि तू तो भगवन को पाने की प्यास में इधर उधर की छोटी मोटी बूँदे खोज़ता फिर रहा है, अरे मूरख तू क्या नहीं जानता कि तेरे अंदर तो पूरा समंदर बह रहा है। जरूरत है उसमें झाँकने की, उस तक पहुँचने की, उसके दिए संकेत समझने की।
तो आइए सुनें इस नग्मे को..
नि नि सा सा ...नि सा नि सा नि सा
जिसको ढूँढे बाहर बाहर वो बैठा है भीतर छुपके
तेरे अंदर एक समन्दर क्यूँ ढूँढे तुपके तुपके
अकल के परदे पीछे कर दे घूँघट के पट खोल रे
तोहे पिया, पिया.. तोहे पिया मिलेंगे मिलेंगे …
सा सा सा... ....पा नि सा रे सा
पा के खोना खो के पाना होता आया रे
संग साथी सा है वो तो वो है साया रे
झाँका तूने ही ना बस जी से जी में रे
बोले सीने में वो तेरे धीमे धीमे रे
तोहे पिया मिलेंगे मिलेंगे … जिसको ढूँढे बाहर बाहर...
जो है देखा वो ही देखा तो क्या देखा है
देखो वो जो औरों ने ना कभी देखा है
नैनो से ना ऐसा कुछ देखा जाता है
नैना मींचो तो वोह सब दिख जाता है
तोहे पिया मिलेंगे मिलेंगे …
उसी को पाना उसी को छूना
कहीं पे वो ना कहीं पे तू ना
जहां पे वो ना वहाँ पे सूना
यहाँ पे सूना...
तोहे पिया, पिया.. तोहे पिया मिलेंगे मिलेंगे …
8 टिप्पणियाँ:
प्यारे बोल, सुन्दर धुन।
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 27-02-2014 को चर्चा मंच पर दिया गया है
आभार |
Too gud manish ji is jodi ka geet "guddi patakha" apne har shabd aur pankti par sammohit kar raha hai
सोनल आज इरशाद क़ामिल का एक साक्षात्कार सुन रहा था। वे कह रहे थे कि रहमान सर ने रॉकस्टार में काम करते वक़्त उन्हें 'खुद' से मिला दिया। इन दोनों की आपसी समझ हर फिल्म के साथ बढ़ी है।
प्रवीण : बिल्कुल।
दिलबाग : आभार आपका !
बहुत सुन्दर गीत ...
I love this song...thanks Kamil sir!!!
Behtrin Geet or aap ka blog bhi bahut accha laga :)
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