पिछला हफ्ते कार्यालय और व्यक्तिगत व्यस्तताओं की वज़ह से वार्षिक संगीतमाला अपना अगला कदम नहीं बढ़ा सकी। आइए देखें कि संगीतमाला की अगली सीढ़ी पर कौन सा गीत आसन जमाए बैठा है? संगीतमाला की आठवीं पायदान पर प्यार की मीठी मीठी खुशबू फैलाता ये नग्मा है फिल्म रांझणा का जिसे लिखा इरशाद क़ामिल ने और संगीतबद्ध किया ए आर रहमान ने। गीत को स्वर दिया है जावेद अली और कीर्ति सागथिया ने।
शब्द रचना की दृष्टि से ये गीत थोड़ा अनूठा है। इरशाद क़ामिल और रहमान ने मिलकर पूरे गीत में 'तुम तक' की पुनरावृति कर प्रेम का जो माहौल रचा है वो अद्भुत है। एक बार व्यक्ति किसी के प्रेम में पड़ जाए तो उसका दृष्टि संसार बस अपने प्रिय तक ही सीमित रह जाता है। उसके सारे तर्क, सारी इच्छाएँ बस अपने प्रिय का ख्याल आते ही उस में विलीन हो जाती हैं। सोते जागते, उठते बैठते कोई भी सोच घूम फिर कर बस उनकी बातों और यादों पर ही विराम लेती है। इरशाद क़ामिल ने प्रेम के इसी रासायन को 'तुम तक' के शाब्दिक जाल में बखूबी बाँधा है।
ए आर रहमान हमेशा अपनी फिल्मों में जावेद अली को मौके देते रहे हैं और जावेद ने हर बार अपनी गायिकी से संगीतप्रेमियों को मंत्रमुग्ध ही किया है। वर्ष 2008 में जोधा अकबर में उनका मन को सहलाता नग्मा कहने को जश्ने बहारा ..हो या फिर सूफ़ियत के रंग में रँगा फिल्म रॉकस्टार का गीत कुन फाया कुन या दिल्ली 6 का अर्जियाँ हो, उन्होंने हमेशा अपनी गायिकी का लोहा मनवाया है। रहमान के इतर गाए उनके गीतों में भी उनकी गायिकी की विविधता नज़र आती है। जब वी मेट के गीत नगाड़ा में जहाँ उनकी आवाज़ में एक जोश नज़र आता है तो वहीं फिल्म ये साली ज़िंदगी के गीत कैसे कहें अलविदा में उनकी आवाज़ दर्द से छटपटाती सी महसूस होती है।
संगीतज्ञों के परिवार से ताल्लुक रखने वाले और ग़ज़ल गायक गुलाम अली के शागिर्द रह चुके जावेद मुंबई ग़ज़ल गायक बनने आए थे। मुंबई की फिल्मी दुनिया में आकर उन्हें एहसास हुआ कि बतौर पार्श्व गायक उन्हें अपनी आवाज़ को गायिकी के अलग अलग रंगों के अनुरूप ढालने के ज्यादा अवसर मिलेंगे। भले ही उन्होंने खालिस ग़ज़ल गायिकी का दामन नहीं पकड़ा पर अपने गुरु के सम्मान में अपना नाम जावेद हुसैन से बदलकर जावेद अली कर लिया।
क्या आप नहीं जानना चाहेंगे कि जावेद इस गीत के बारे में क्या सोचते हैं ? जावेद इस गीत के बारे में कहते हैं
'तुम तक' एक आम प्रेम गीत से अलग है। किशोरों के बीच की चाहत को दर्शाते इस गीत में मस्ती है चंचलता है और अपने महबूब को पाने की विकलता भी । इस गीत में इतनी ताकत है कि ये आपको फिर प्यार करने पर मजबूर कर दे।। रहमान सर का संगीत एक मीठा ज़हर है जो धीरे धीरे चढ़ता है। गीत में उनके द्वारा रचा माधुर्य अद्भुत है। हमने शब्दों के साथ खेलते हुए इस गीत को एक बनारसी रंग में रँगा है।"
सच, मुझ पर भी इस गीत का असर धीरे धीरे ही हुआ और इतना हुआ कि ये गीत 'एक शाम मेरे नाम' के प्रथम दस गीतों का हिस्सा बन गया। तो आइए सुनते हैं फिल्म राँझणा के इस गीत को...
मेरी हर मनमानी बस तुम तक
बातें बचकानी बस तुम तक
मेरी नज़र दीवानी बस तुम तक
मेरे सुख-दु:ख आते जाते सारे
तुम तक, तुम तक, तुम तक, सोणे यार
तुम तक तुम तक अर्ज़ी मेरी
फिर आगे जो मर्ज़ी
तुम तक तुम तक अर्ज़ी मेरी
फिर तेरी जो मर्ज़ी
मेरी हर दुश्वारी बस तुम तक
मेरी हर होशियारी बस तुम तक
मेरी हर तैयारी बस तुम तक
तुम तक, तुम तक, तुम तक, तुम तक
मेरी इश्क़ खुमारी बस तुम तक
इक टक इक टक, ना तक, गुमसुम
नाज़ुक नाज़ुक दिल से हम तुम
तुम ... तुम तुम तुम तुम तुम तुम ...
तुम चाबुक नैना मारो
मारो तुम तुम तुम तुम तुम तुम!
तुम... मारो ना नैना तुम
मारो ना नैना तुम
तुम तक
चला हूँ तुम तक
चलूँगा तुम तक
मिला हूँ तुम तक
मिलूँगा तुम तक
तुम तक, तुम तक, तुम तक
तुम तक, तुम तक, तुम तक, तुम तक ...
हाँ उखड़ा उखड़ा
मुखड़ा मुखड़ा
मुखड़े पे नैना काले
लड़ते लड़ते लडे, बढ़ते बढ़ते बढ़े
हाँ अपना सजना कभी, सपना सजना कभी
मुखड़े पे नैना डाले
नैनो के घाट ले जा, नैनो की नैय्या
पतवार तू है मेरी, तू खेवैय्या
जाना है पार तेरे
तू ही भँवर है
पहुँचेगी पार कैसे
नाज़ुक सी नैय्या
तुम तक, तुम तक, तुम तक ...
मेरी अकल दीवानी तुम तक
मेरी सकल जवानी तुम तक
मेरी ख़तम कहानी तुम तक
मेरी ख़तम कहानी बस तुम तक
तुम तक, तुम तक, तुम तक, तुम तक
वैसे आपकी क्या राय है इस गीत के बारे में?
5 टिप्पणियाँ:
शब्दों के साथ सुन्दर प्रयोग
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 13-02-2014 को चर्चा मंच पर दिया गया है
आभार
लाजवाब प्रस्तुति! शानदार गीत।
lovely lyrics.. Nice song..:)
दिलबाग जी आभार
प्रवीण, मनोज जी व जितेन गीत आप सबको भी पसंद आया जानकर खुशी हुई।
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