बुधवार, फ़रवरी 05, 2014

वार्षिक संगीतमाला 2013 पायदान संख्या 9 रूठे ख़्वाबों को मना लेंगे ..माँझा ( Manjha)

वार्षिक संगीतमाला की नवीं पायदान पर गाना वो जो  उलझते रिश्तों के सुलझाव की उम्मीद जगाता है और साथ ही कठिन परिस्थितियों से लड़ कर सुखद भविष्य का स्वप्न देखने को प्रेरित करता है। गीत की इस भूमिका से आप पहचान गए होंगे की मैं माँझा  की बात कर रहा हूँ जिसे लिखा स्वानंद किरकिरे ने और धुन बनाई अमित त्रिवेदी ने। स्वानंद किरकिरे परिणिता के ज़माने से ही मेरे चहेते गीतकार रहे हैं और यही वज़ह है उनके लिखे दर्जन से भी ज्यादा गीत वार्षिक संगीतमालाओं की शोभा बढ़ा चुके हैं।


जब ये गीत पहले पहल बजना शुरु हुआ था तो मेरे एक पाठक ने एक प्रश्न किया था आख़िर स्वानंद ने इस गीत में उलझते रिश्तों की पेंच को माँझा जैसे रूपक से क्यूँ जोड़ा ? पतंग उड़ाने का शौक़ रखने वाले ये भली भाँति जानते होंगे कि पतंगबाजी में माँझा का प्रयोग डोर की धार तेज करने के लिए किया जाता है। प्रश्न वाजिब था और इसका सही उत्तर तो शायद स्वानंद ही दे पाएँ पर मुझे गीत की भावनाओं को देख कर यही महसूस होता है कि स्वानंद का रिश्तों का माँझा से तात्पर्य रिश्तों की रुखड़ी डोर से होगा।

पहली पार जब ये गीत सुना तो इस गीत से मेरी ये शिकायत रही कि अरे ये इतनी जल्दी क्यूँ खत्म हो गया ! मुझे बाद में पता चला कि फिल्म में पूरा गीत इस्तेमाल नहीं हुआ है। गीत के अप्रयुक्त कुछ हिस्सों में स्वानंद के बोल लाजवाब हैं। खासकर रिश्तों के बारे में कितनी सहजता से वो कह जाते हैं रिश्ते पंखों को हवा देंगे...रिश्ते दर्द को दवा देंगे...रिश्ते दहलीज़े भी लाँघेंगे....रिश्ते लहू भी तो माँगेगे। वहीं दूसरी ओर बर्फीली आँखों में पिघला सा देखेंगे हम कल का चेहरा..पथरीले सीने में उबला सा देखेंगे हम लावा गहरा.... जैसी पंक्तियाँ मन को एक नए जोश से भर देती हैं।

वैसे जो लोग अमित त्रिवेदी के संगीत का अनुसरण करते आए हैं उनके मन में जरूर प्रश्न उठा होगा कि अमित तो अक्सर अमिताभ भट्टाचार्य के साथ ही संगीत रचते नज़र आते हें तो इस फिल्म में बतौर गीतकार स्वानंद कहाँ से आ गए? दरअसल इस फिल्म में स्वानंद के चुनाव और इस गीत के अस्तित्व में आने की मज़ेदार कहानी है।

निर्देशक अभिषेक कपूर ने जब स्वानंद का लिखा और जएब व हानीया के साथ गाया नग्मा कहो क्या ख्याल है.... सुना तभी ये निर्णय ले लिया था कि उनकी फिल्म के गीतकार स्वानंद किरकिरे होंगे। दूसरी तरफ़ संगीतकार के लिए अमित त्रिवेदी का नाम पहले ही तय हो चुका था। अमित को बुलाकर गीत की परिस्थितियाँ बताई गयीं और अमित ने दो हफ्तों के अंदर तीन गीतों को संगीतबद्ध कर  निर्देशक को सुना दिया। अभिषेक को धुनें बुरी नहीं लगीं पर इतनी जल्दी अमित त्रिवेदी के धुनें बनाकर देने से उन्हें ये लगा कि संगीतकार ने गीतों को जल्दी बाजी में बना दिया है। इसलिए अमित त्रिवेदी को कहा गया कि वे थोड़ा और दिल लगाकर काम करें। अभिषेक बताते हैं कि एक दिन जब वो  सोकर अचानक उठे तो उन्हें सुलझा लेंगे उलझे रिश्तों का माँझा  की धुन मन में घूमती सी लगी और उन्हें लगा कि इतनी अच्छी धुनों को लौटाकर उन्होंने अच्छा नहीं किया। फिर क्या था अगले दिन ही अमित को बुलाकर उन्होंने उनके बताए तीनों गीतों को हरी झंडी दे दी।

वहीं अमित त्रिवेदी कहते हैं कि कभी कभी किसी गीत की धुन के बारे में निर्णय लेने में मुझे महिनों लग जाते हैं पर इस गीत की धुन मुझे पहली ही रात ख्याल में आ गई । अगले दिन मैंने स्वानंद को बुलाया और हमारे गीत तैयार थे। बाकी गीतों को तैयार करने में हमें दस दिन लगे। 

अमित त्रिवेदी अपने संगीत संयोजन में भारतीय वाद्यों का पश्चिमी वाद्यों का खूबसूरत मिश्रण करते रहे हैं। उनकी पिछली फिल्मों में हारमोनियम का उनका प्रयोग लाजवाब लगा था। इस गीत की शुरुआत में उन्होंने इसराज का बेहतरीन इस्तेमाल किया है। तो आइए सुने बिना कटा हुआ ये पूरा नग्मा



रूठे ख़्वाबों को मना लेंगे
कटी पतंगों को थामेंगे
हो हो है जज़्बा हो हो है जज़्बा
सुलझा लेंगे उलझे रिश्तों का माँझा

सोयी तकदीरें जगा देंगे
कल को अंबर भी झुका देंगे
हो हो है जज़्बा हो हो है जज़्बा
सुलझा लेंगे उलझे रिश्तों का माँझा

रिश्ते पंखों को हवा देंगे
रिश्ते दर्द को दवा देंगे

जीत कभी हार कभी
गम तो यारों होंगे दो पल के मेहमाँ
रिश्ते दहलीज़े भी लाँघेंगे
रिश्ते लहू भी तो माँगेगे

आँसू कभी मोती कभी
जाँ भी माँगे यारों कर देंगे कुरबाँ
सुलझा लेंगे उलझे रिश्तों का माँझा
बिसरे यारों को बुला लेंगे
सोई उम्मीदें जगा लेंगे हो ...माँझा

ओ बर्फीली आँखों में पिघला सा देखेंगे हम कल का चेहरा
ओ पथरीले सीने में उबला सा देखेंगे हम लावा गहरा

अगन लगी लगन लगी
टूटे ना टूटे ना
इस बार ये टूटे ना
मगन लगी लगन लगी
कल होगा क्या कह दो
किस को है परवाह
रूठे ख़्वाबों को मना लेंगे
कटी पतंगों को थामेंगे
हो हो है जज़्बा हो हो है जज़्बा
सुलझा लेंगे उलझे रिश्तों का माँझा
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6 टिप्पणियाँ:

प्रवीण पाण्डेय on फ़रवरी 05, 2014 ने कहा…

नयेपन का उत्साह भरती शब्दों की रचना और संगीत

डॉ. दिलबागसिंह विर्क on फ़रवरी 05, 2014 ने कहा…

आपकी इस प्रस्तुति का लिंक कल चर्चा मंच पर है
आभार

कंचन सिंह चौहान on फ़रवरी 05, 2014 ने कहा…

सच है ये गीत मूवी में नही था, लेकिन रिपीटेशन था शायद इस गाने के कुछ भाग का। मूवी देखने के बाद ही मुझे इस गीत के बारे में पता चला और जितना सुना था, उतना ही अच्छा लगता था। आज ध्यान से पूरा सुना वाक़ई दिल को छूने वाले शब्द और धुन भी उतनी ही कर्णप्रिय।

Sumit Prakash on फ़रवरी 06, 2014 ने कहा…

Read it now. As usual very musical. Reading you is really a pleasure. A stress buster. Maanjhe ka sahi interpretation kiya aapne

अवधेश कुमार गुप्ता on फ़रवरी 07, 2014 ने कहा…

अनूठापन लिए हुये मधुर संगीत । प्रस्तुति के लिए धन्यवाद ।

Manish Kumar on फ़रवरी 26, 2014 ने कहा…

दिलबाग जी आभार !

प्रवीण, कंचन, सुमित , अवधेश : इस गीत के बारे में आप सबकी राय भी मेरे जैसी है जानकर अच्छा लगा :)

 

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