गुरुवार, मई 08, 2014

आज की शब तो किसी तौर गुजर जाएगी परवीन शाकिर की नज़्म मेरी आवाज़ में! Aaj ki Shab by Parveen Shakir

क्या आप  मानते हैं कि प्रेम में अनिश्चितता ना रहे, असुरक्षा की भावना ना हो तो प्रेम, प्रेम नहीं रह जाता? आप सोच रहे होंगे कि अचानक ये प्रश्न कहाँ से मेरे दिमाग में चला आया? दरअसल हाल फिलहाल में एक फेसबुक मित्र ने इसी आशय का एक स्टेटस ज़ारी किया जिसने मुझे भी इस विषय पर सोचने पर मजबूर कर दिया।

इतना तो जरूर है कि दिल का ये पंक्षी जब पहले पहल किसी के लिए फड़फड़ाता है तो अपनी हर उड़ान भरने के पहले इस दुविधा से त्रस्त रहता है कि आख़िर इस बार अंजामे सफ़र क्या होगा ? पर ये बैचैनी तो तभी तक रहती है ना जब तक आप इज़हार ए मोहब्बत नहीं कर देते ? नहीं नहीं, अगर उन्होंने हाँ कर भी दिया तो फिर कभी मूड बदल भी तो सकता है। पर एक बार रिश्ते में स्थायित्व आया नहीं कि मन के अंदर पनपने वाला ये खूबसूरत तनाव ख़ुद बा ख़ुद लुप्त सा हो जाता है। शायद यही वज़ह हो कि हम अपने साथी के प्रति थोड़ा लापरवाह हो जाते हैं।

बहरहाल प्यार की इन्हीं दुविधाओं के बारे में सोचते हुए परवीन शाक़िर साहिबा की एक नज़्म की शुरुआती पंक्तियाँ 'आज की शब तो किसी तौर गुजर जाएगी' याद आ गयीं। फिर लगा क्यूँ ना पूरी नज़्म ही खँगाली जाए। मिल गयी तो मन इसे गुनगुनाने का हुआ।  सो आनन फानन में इसे रिकार्ड किया। कहीं कहीं volume अचानक से बढ़ गया है उसके लिए पहले ही ख़ेद व्यक्त कर रहा हूँ। वैसे मेरा ये प्रयास आपको कैसा लगा बताइएगा।

 

रात गहरी है मगर चाँद चमकता है अभी
मेरे माथे पे तेरा प्यार दमकता है अभी

मेरी साँसों में तेरा लम्स महकता है अभी
मेरे सीने में तेरा नाम धड़कता है अभी

ज़ीस्त करने को मेरे पास बहुत कुछ है अभी
तेरी आवाज़ का जादू है अभी मेरे लिए
तेरे मलबूस1 की खुशबू है अभी मेरे लिए
तेरी बातें तेरा पहलू है अभी मेरे लिए
सब से बढ़कर मेरी जाँ तू है अभी मेरे लिए
ज़ीस्त2 करने को मेरे पास बहुत कुछ है अभी
आज की शब3 तो किसी तौर गुजर जाएगी

आज के बाद मगर रंग -ए-वफ़ा क्या होगा
इश्क़ हैरान है कि सर शहर- ए -सबा4 क्या होगा
मेरे क़ातिल तेरा अंदाज़ ए ज़फा क्या होगा
आज की शब तो बहुत कुछ है मगर कल के लिए
एक अंदेशा ए बेनाम है और कुछ भी नहीं


देखना ये है कि कल तुझसे मुलाकात के बाद
रंग ए उम्मीद खिलेगा कि बिखर जाएगा
वक़्त परवाज़ करेगा कि ठहर जाएगा
जीत हो जाएगी या खेल बिगड़  जाएगा
ख़्वाब का शहर रहेगा कि उजड़ जाएगा....


1 पोशाक  2. जीवन में  3. रात,  4.सुबह चलने वाली हवा

परवीन शाकिर को बहुत दिनों बाद याद कर रहा हूँ इस ब्लॉग पर। अगर आप उनकी रचनाओं के मुरीद हैं तो उनकी लिखी चंद खूबसूरत ग़ज़लों और अशआरों से जुड़े इन लेखों को यहाँ पढ़ सकते हैं..
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8 टिप्पणियाँ:

Sonroopa Vishal on मई 08, 2014 ने कहा…

बहुत सुंदर ..नज़्म भी और आपका अंदाज़े बयां भी !

Dr Manju Dubey on मई 08, 2014 ने कहा…

bahut hi sunder awaaz.

Manish Kumar on मई 09, 2014 ने कहा…

शुक्रिया सोनरूपा व मंजू जी नज़्म पसंद करने के लिए। रही बात आवाज़ की तो गाने की सलाहियत तो है नहीं फिर भी कभी कभी गुनगुना मन को अच्छा लगता है। आप लोगों को अच्छा लगा जानकर खुशी हुई।

Ankur Jain on मई 09, 2014 ने कहा…

सुंदर प्रस्तुति।।।

Manish Kumar on मई 13, 2014 ने कहा…

शुक्रिया अंकुर !

Unknown on मई 14, 2014 ने कहा…

Bahut sundar shabd aur utni hi sundar awaaz. :)

संजय भास्‍कर on जून 25, 2014 ने कहा…

सुंदर प्रस्तुति।।

Manish Kumar on अप्रैल 08, 2019 ने कहा…

नम्रता और संजय देर से ही सही पर इस पोस्ट को सराहने के लिए धन्यवाद !

 

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