कुछ शायर अपनी एक ग़ज़ल से ही लोगों के ज़हन में अपने नाम की परछाई छोड़ जाते हैं। सराहनपुर में जन्मे अदीब सहारनपुरी का नाम ऐसे ही शायरों में किया जा सकता है। आजादी के बाद अदीब पाकिस्तान के कराची में जा बसे थे। पचास और साठ के दशक में उनका शुमार पाकिस्तान के अग्रणी शायरों में किया जाता रहा। पर इस दौरान उनके द्वारा किए गए काम के बारे में पूर्ण जानकारी नहीं है। अदीब की जिस ग़ज़ल के बारे में मैं आज बात करने जा रहा हूँ उसे लोकप्रिय बनाने में उस्ताद मेहदी हसन और अमानत अली खाँ जैसे गायकों का महती योगदान रहा है। तो आइए देखें अदीब सहारनपुरी ने क्या कहना चाहा है इस ग़ज़ल में..
इक ख़लिश को हासिल-ए-उम्र-ए-रवाँ रहने दिया
जान कर हम ने उन्हें नामेहरबाँ रहने दिया
कितनी दीवारों के साये हाथ फैलाते रहे
इश्क़ ने लेकिन हमें बेख़्वानमाँ रहने दिया
इंसान कितनी भी आरज़ू करे पर उसे उसकी हर चाहत का प्रतिकार मिले ये कहाँ मुमकिन है ? इसलिए ग़ज़ल के मतले में अदीब कहते हैं कि
वो हम पर मेहरबान ना भी हुए तो क्या, दिल में उसके प्रेम की जो मीठी आँच जल रही है वही उनकी ज़िदगी का हासिल है। ये भी नहीं कि ज़िदगी अकेलेपन में गुजरी। कितने लोग तो आए जिन्होंने अपने मोहब्बत के साये में मेरे मन को सुकून पहुँचाने की कोशिश की पर ये उसके इश्क़ का ही असर था कि मेरे दिल की कोठरियाँ उजाड़ ही रहीं। वहाँ किसी और को बसाना मेरे लिए गवारा नहीं हुआ।
वो हम पर मेहरबान ना भी हुए तो क्या, दिल में उसके प्रेम की जो मीठी आँच जल रही है वही उनकी ज़िदगी का हासिल है। ये भी नहीं कि ज़िदगी अकेलेपन में गुजरी। कितने लोग तो आए जिन्होंने अपने मोहब्बत के साये में मेरे मन को सुकून पहुँचाने की कोशिश की पर ये उसके इश्क़ का ही असर था कि मेरे दिल की कोठरियाँ उजाड़ ही रहीं। वहाँ किसी और को बसाना मेरे लिए गवारा नहीं हुआ।
अपने अपने हौसले अपनी तलब की बात है
चुन लिया हमने उन्हें सारा ज़हाँ रहने दिया
ये भी क्या जीने में जीना है बग़ैर उन के "अदीब"
शम्मा गुल कर दी गई बाक़ी धुआँ रहने दिया
अदीब अगले शेर मे कहते हैं कि लोग मुझ पर हँसते हैं कि सारी दुनिया को छोड़कर मुझे ऐसे शख्स से दिल लगाने की क्या पड़ी थी जो मेरा कभी ना हो सका। वो क्या समझें मेरे हौसले को, मेरी पसंद को ..
पर मक़ते में शायर का हौसला पस्त होता दिखता है जब वो उदासी की चादर ओढ़ कहते हैं कि उसके बगैर जीना बुझी हुई शमा के धुएँ के साथ जीने जैसा है। आख़िर उसकी यादों के सहारे कोई कब तक जी सकता है?
पर मक़ते में शायर का हौसला पस्त होता दिखता है जब वो उदासी की चादर ओढ़ कहते हैं कि उसके बगैर जीना बुझी हुई शमा के धुएँ के साथ जीने जैसा है। आख़िर उसकी यादों के सहारे कोई कब तक जी सकता है?
यूँ तो मेहदी हसन साहब ने पूरी ग़ज़ल अपने चिरपरिचित शास्त्रीय अंदाज़ में गायी है पर मुझे इसे अमानत अली खाँ साहब साहब के सीधे पर दिल को छूने वाले अंदाज़ में सुनना ज्यादा रुचिकर रहा है।
खाँ साहब पटियाला घराने के मशहूर शास्त्रीय गायक थे। आप भले उनकी गायिकी से परिचित ना हों पर आपने उनके सबसे छोटे पुत्र शफ़कत अमानत अली खाँ के गाए हिंदी फिल्मी गीतो को जरूर सुना होगा। खाँ साहब ने पूरी ग़ज़ल तो नहीं गाई पर दो तीन अशआरों में ही वो ग़ज़ल के मूड को हमारे दिलों तक पहुँचा देते हैं। इस वर्जन में एक नया शेर भी है
खाँ साहब पटियाला घराने के मशहूर शास्त्रीय गायक थे। आप भले उनकी गायिकी से परिचित ना हों पर आपने उनके सबसे छोटे पुत्र शफ़कत अमानत अली खाँ के गाए हिंदी फिल्मी गीतो को जरूर सुना होगा। खाँ साहब ने पूरी ग़ज़ल तो नहीं गाई पर दो तीन अशआरों में ही वो ग़ज़ल के मूड को हमारे दिलों तक पहुँचा देते हैं। इस वर्जन में एक नया शेर भी है
आरजू-ए- क़र्ब भी बख्शी दिलों को इश्क़ ने
फ़ासला भी मेरे उनके दर्मियाँ रहने दिया
बहरहाल आपके लिए ये ग़ज़ल अपने दोनों रूपों में ये रही। आपको किसी गायिकी ज्यादा मन के करीब लगी बताइएगा।
Amanat Ali Khan's Version
Amanat Ali Khan's Version
Mehdi Hasan's Version
11 टिप्पणियाँ:
itne behtreen shayar se milane ke liye shukriya, khoobsurat lekh,khoobsurat ghazal
शुक्रिया सिफ़र इस ग़ज़ल को पसंद करने के लिए !
Shukriya Manish ji ek behatareen ghazal se parichay karaane ka!
A superb ghazal, fantabulous poet and a nice presentation by you. Congratulations and thanks for putting together a great poet and two greatest ever singers, Ustad MH Sahib and Ustad AAK Sahib.
दिल छू लेती है ये ग़ज़ल, जितना भी सुनो दिल नहीं भरता 😍😍
Mehdi hasan sahab laj
wab
Bohot khoob ghazal or bohot khoob Mehdi Hasan sahab laajawab
Do deen ko kaan me baj rahi thi... Dhoondha to koi tippani nahi is ke always. Oopar se ek aur badhiya version bhi sunne mila. Thank you!
हेमल आपको ये ग़ज़ल पसंद आई जान कर खुशी हुई।
Amanita Ali Khan version lacks energy. Not comparable to Mehdi Hassan 's
बिल्कुल
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