मदन मोहन के कार्यक्रम को सुनने के बाद से पिछले हफ्ते उनके गीतों में से कइयों को फिर से सुना और आज उन्हीं में से एक मोती को चुन कर आपके समक्ष लाया हूँ। पर इससे पहले कि उस गीत की चर्चा करूँ कुछ बातें उनके काम करने की शैली के बारे में करना चाहूँगा। मदन मोहन उन संगीतकारों में नहीं थे जो धुन पहले बना लेते हों। वो गीतों को सुनते थे, उनके भावों में डूबते थे और फिर एक ही गीत के लिए कई सारी मेलोडी बना कर सबसे पूछते थे कि उन्हें कौन सी पसंद आई? वैसे धुन चुनते समय आख़िरी निर्णय उन्हीं का होता था। सेना से आए थे तो समय के बड़े पाबंद थे। वादकों को देर से आने से वापस कर देते थे, गीत को अंतिम रूप देने से पहले लता हो या रफ़ी घंटों रियाज़ कराते थे। एक बार गुस्से में आकर शीशे की दीवार पर जोर से हाथ मारकर वादकों को इंगित कर बोले..बेशर्मों बेसुरा बजाते हो। सुर के प्रति वो बेहद संवेदनशील थे। रेडियो में दिये अपने एक कार्यक्रम में उन्होंने कहा था
"मैं समझता हूँ कि हर फ़नकार का जज़्बाती होना बहुत जरूरी है क्यूँकि अगर उसमें इंसानियत का जज़्बा नहीं है तो वो सही फ़नकार नहीं हो सकता। सुर भगवान की देन है। उसको पेश करना, उसको सुनना, उसको अपनाना ये कुदरत की चीज है जिसे इंसान सीखता नहीं पर महसूस करता है।"
अक्सर कहा जाता है कि मदन मोहन और लता के बीच ग़ज़ब का तारतम्य था। लता जी ने जब भी बाहर अपने कान्सर्ट किये, उन्होंने मदन मोहन को हमेशा याद किया। लता जी ने मदन मोहन के बारे में दिए गए साक्षात्कार में कहा था
"मेरी उनसे पहली मुलाकात फिल्म शहीद के युगल गीत को रिकार्ड करते वक़्त 1947 में हुई थी. वो गीत भाई बहन के रिश्ते के बारे में था और वास्तव में तभी से वे मेरे मदन भैया बन गए। मैने हमेशा कहा है कि वो भारत के सबसे प्रतिभाशाली संगीतकारों में से एक थे और उनकी अपनी एक शैली थी। हांलाकि मैंने बाकी संगीतकारों के साथ ज्यादा काम किया पर मदन भैया के साथ गाए हुए गीतों को बेहद लोकप्रियता मिली।लोग कहते हैं कि उनके गीतों में मैं कुछ विशिष्ट करती थी। मुझे पता नहीं कि ये कैसे होता था। अगर ये होता था तो शायद इस वज़ह से कि हमारे बीच की आपसी समझ, एक दूसरे के लिए लगाव और सम्मान था। वो मेरी गायिकी को अच्छी तरह समझते थे। वो हमेशा कहा करते थे कि ये धुन तुम्हीं को ध्यान रख कर रची है और वो उसमें अक्सर मेरी आवाज़ के उतार चढ़ाव को ध्यान में रखकर कुछ जगहें छोड़ते थे। इसलिए उनके साथ काम करना व उनकी आशाओं पर खरा उतरना मेरे लिए हमेशा से चुनौतीपूर्ण होता था। रिकार्डिंग के बाद उनके चेहरे पर जो खुशी दिखती थी वो मुझे गहरा संतोष देती थी।"
आज लता और मदन मोहन की इस जोड़ी का जो गीत आपके सामने पेश कर रहा हूँ वो फिल्म दुल्हन एक रात की का है। इसे लिखा है एक बार फिर राजा मेहदी अली खाँ ने। मुखड़े के पहले सितार की बंदिश के बाद से लता की मधुर आवाज़ का सम्मोहनी जादू गीत के अंत और उसके बहुत देर बाद भी बरक़रार रहता है। इंटरल्यूड्स में पहले अंतरे के पहले सेक्सोफोन की आवाज़ चौंकाती है पर साथ ही सितार के साथ उस के अद्भुत समन्वय को सुन मदन मोहन की काबिलियत का एक उदाहरण सामने आ जाता है।
सपनों में अगर मेरे, तुम आओ तो सो जाऊँ
बाहों की मुझे माला पहनाओ, तो सो जाऊँ
सपनों में कभी साजन बैठो मेरे पास आ के
जब सीने पे सर रख दूँ, मैं प्यार में शरमा के
इक गीत मोहब्बत का तुम गाओ तो सो जाऊँ
बीती हुयी वो यादें, हँसती हुई आती हैं
लहरों की तरह दिल में आती, कभी जाती हैं
यादों की तरह तुम भी आ जाओ तो सो जाऊँ
मदन मोहन को जीते जी कभी वो सम्मान नहीं मिला जिसके वो हक़दार थे। नेशनल एवार्ड तो उन्हें मिला पर एक अदद फिल्मफेयर जैसे एवार्ड के लिए तरस गए। उनकी धुनें अपने समय से आगे की मानी गयीं। एक किस्सा जो इस संबंध में अक्सर बताया जाता है वो ये कि उनके बेटे संजीव कोहली को जब स्कूल के कार्यक्रम में स्टेज पर अपने पिता के सामने गाने का मौका मिला तो उसने पिता द्वारा रचित किसी गीत को गाने के बजाए बहारों फूल बरसाओ गाना बेहतर समझा वो भी इस डर से कि शायद वहाँ बैठी आम जनता उसे पसंद ना करे।
इन्हीं मदनमोहन की अंतिम यात्रा में अमिताभ, धर्मेंद्र, राजे्द्र कुमार व राजेश खन्ना जैसे कलाकारों ने कंधा लगाया। संजीव कहते हैं कि अगले दिन ये फोटो अख़बार में छपी और मैं रातों रात कॉलेज में इतना लोकप्रिय हो गया जितना कभी उनके जीते जी नहीं हुआ था। शायद यही दुनिया का दस्तूर है कि हम कई बार किसी के हुनर को वक़्त रखते नहीं परख पाते हैं।
मदन मोहन को हमारा साथ छोड़े लगभग चार दशक हो गए। उनके संगीतबद्ध गीतों को क्या हम भुला पाए हैं ? क्या उनके गीतों को आज की पीढ़ी भी पसंद करती है? अगली प्रविष्टि में एक हाल ही में रिकार्ड किये गीत के माध्यम से इन प्रश्नों के उत्तर को ढूँढने का प्रयास करूँगा।
मदन मोहन को हमारा साथ छोड़े लगभग चार दशक हो गए। उनके संगीतबद्ध गीतों को क्या हम भुला पाए हैं ? क्या उनके गीतों को आज की पीढ़ी भी पसंद करती है? अगली प्रविष्टि में एक हाल ही में रिकार्ड किये गीत के माध्यम से इन प्रश्नों के उत्तर को ढूँढने का प्रयास करूँगा।
3 टिप्पणियाँ:
One of my favourite composers & one of the most under-appreciated composers in Bollywood's history!
Sach hai, insaaniyat ka jazba rakhne wala hi sachcha funkaar ban sakta hai. Aur bare hi sundar bol geet ke.. :)
मदन जी ऐसे जौहरी थे जो संगीत के पत्थरों को भी तराश कर कोहेनूर बना देते थे। लता जी आज जो भी हैं उसमें मदन जी का महती योगदान है।
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