पिछले दो हफ्तों से मेरे शहर का मौसम बड़ा खुशगवार है। दिन में हल्की फुल्की बारिश और फिर रात में खुले आसमान के नीचे मंद मंद बहती प्यारी शीतल हवा। ऐसी ही इक रात में इंटरनेट की वादियों में भटकते भटकते ये गीत सुनाई दिया। गीत तो सरहद के उस पार का था जहाँ से चलती गोलियों ने पिछले कुछ हफ्तों से सीमा पर रहने वाले लोगों का जीवन हलकान कर दिया है। गीत में आवाज़ उस शख्स की थी जिसकी गायिकी ने दोनों देशों के आवाम को अपना मुरीद बनाया है। जी हाँ मैं मेहदी हसन की बात कर रहा हूँ। सोचता हूँ कि अगर इन दोनों देशों की हुकूमत मेहदी हसन व गुलज़ार सरीखे कलाकारों के हाथ होती तो गोलियों का ये धुआँ गीत संगीत की स्वरलहरियों की धूप से क्षितिज में विलीन हो गया होता।
अमूमन मेहदी हसन का नाम ग़ज़ल सम्राट के रूप में लिया जाता रहा है पर अपने शुरुआती दिनों में गायिकी का ये बादशाह साइकिल और फिर कार व ट्रैक्टर का मेकेनिक हुआ करता था। पर आर्थिक बाधाओं से जूझते हुए भी कलावंत घराने के इस चिराग ने रियाज़ का दामन नहीं छोड़ा। रेडियो में ठुमरियाँ गायीं । उससे कुछ शोहरत मिली तो शायरी से मोहब्बत की वज़ह से ग़ज़लें भी गाना शुरु किया। साठ के दशक में इसी नाम के बल पर पाकिस्तानी फिल्मों के नग्मे गाने का मौका मिला। उनकी रुहानी आवाज़ को मकबूलियत इस हद तक मिली कि साठ से सत्तर के दशक की कोई भी फिल्म उनके गाए नग्मे के बिना अधूरी मानी जाती रही।
मेहदी हसन के गाए जिस गीत की गिरफ्त में मैं आजकल हूँ उसे उन्होंने फिल्म ज़िंदगी कितनी हसीन है के लिए गाया था। गीत में अपनी महबूबा से दूर होते विकल प्रेमी की पीड़ा है। गीत की धुन तो सुरीली है ही पर मेहदी हसन की आवाज़ को इस अलग से सहज अंदाज़ में सुनने का आनंद ही कुछ और है। तो चलिए उसी आनंद को बाँटते हैं आप सब के साथ
जब कोई प्यार से बुलाएगा
तुमको एक शख़्स याद आएगा
लज़्ज़त-ए-ग़म से आशना होकर
अपने महबूब से जुदा हो कर
दिल कहीं जब सुकून न पाएगा
तुमको एक शख़्स याद आएगा
तेरे लब पे नाम होगा प्यार का
शम्मा देखकर जलेगा दिल तेरा
जब कोई सितारा टिमटिमाएगा
तुमको एक शख़्स याद आएगा
ज़िन्दग़ी के दर्द को सहोगे तुम
दिल का चैन ढूँढ़ते रहोगे तुम
ज़ख़्म-ए-दिल जब तुम्हें सताएगा
तुमको एक शख़्स याद आएगा।
पर गीत को सुनने के बाद उसकी मूल भावनाओं से भटकते हुए मुझे तुमको एक
शख़्स याद आएगा वाली पंक्ति ने दूसरी जगह ले जा खींचा। जीवन की पगडंडियों
में चलते चलते जाने कितने ही लोगों से आपकी मुलाकात होती है। उनमें से कुछ
के साथ गुजारे हुए लमहे चाहे वो कितने मुख्तसर क्यूँ ना हों हमेशा याद रह
जाते हैं। रोज़ की आपाधापी में जब ये यादें अचानक से कौंध उठती हैं तो
आँखों के सामने ऐसे ही किसी शख़्स का चेहरा उभर उठता है और मन मुस्कुरा
उठता है। फिर तो घंटों उस एहसास की खुशबू हमें तरोताज़ा बनाए रखती है..
बहरहाल
बात सरहद, मेहदी हसन और गुलज़ार से शुरु हुई थी तो उसे गुलज़ार की मेहदी
हसन को समर्पित पंक्तियों से खत्म क्यूँ ना किया जाए..
आँखो को वीसा नहीं लगता
सपनों की सरहद नहीं होती
बंद आँखों से रोज़ चला जाता हूँ
सरहद पर मिलने मेहदी हसन से
अब तो मेहदी हसन साहब बहुत दूर चले गए हैं, सरहदों की सीमा से पर उनकी आवाज़ कायम है और रहेगी जब तक ये क़ायनात है।
3 टिप्पणियाँ:
Mehndi hashan aur jagjeet ji dono ka janm rajasthan me hua h
हाँ एक का झुंझनू में दूसरे का गंगानगर में
Both are Legends.
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