मदन मोहन से जुड़ी पिछली पोस्ट में बात खत्म हुई थी इस प्रश्न पर कि क्या आज की पीढ़ी भी मदन मोहन के संगीत को उतना ही पसंद करती है? इस बात का सीधा जवाब देना मुश्किल है। मेरा मानना है कि हिंदी फिल्मों में ग़ज़लों के प्रणेता समझे जाने वाले मदन मोहन अगर आज हमारे बीच होते तो उनके द्वारा रचा संगीत भी अभी के माहौल में ढला होता। आज उन दो प्रसंगों का जिक्र करना चाहूँगा जो मदन मोहन के संगीत की सार्वकालिकता की ओर इंगित करते हैं।
मदन मोहन के संगीत में आने वाले कल को पहचानने की क्षमता थी वर्ना क्या कोई ऐसा संगीतकार है जिसकी धुनों को उसके मरने के तीस साल बाद किसी फिल्म में उसी रूप में इस्तेमाल कर लिया गया हो। 2004 में प्रदर्शित फिल्म वीर ज़ारा का संगीत तो याद है ना आपको। यश चोपड़ा विभाजन से जुड़ी इस प्रेम कथा के संगीत के लिए नामी गिरामी संगीतकारों के साथ बैठकें की। पर फिल्म के मूड के साथ उन धुनों का तालमेल नहीं बैठ सका। अपनी परेशानी का जिक्र एक बार वो मदन मोहन के पुत्र संजीव कोहली से कर बैठे। संजीव ने उन्हें बताया कि उनके पास पिता की संगीतबद्ध कुछ अनसुनी धुनें पड़ी हैं। अगर वे सुनना चाहें तो बताएँ। चोपड़ा साहब ने हामी भरी और संजीव तीस धुनों की पोटली लेकर उनके पास हाज़िर हो गए।
जैसे जैसे वो पोटली खुलती गई चोपड़ा साहब को फिल्म की परिस्थितियों के हिसाब से गीत और कव्वाली की धुनें मिलती चली गयीं। फिल्म के संगीत को आम जनता ने किस तरह हाथों हाथ लपका ये आप सबसे छुपा नहीं है। ये उदाहरण इस बात को सिद्ध करता है कि वक़्त से आगे के संगीत को परखने और उसमें अपनी मेलोडी रचने की काबिलियत मदन मोहन साहब में थी।
जैसे जैसे वो पोटली खुलती गई चोपड़ा साहब को फिल्म की परिस्थितियों के हिसाब से गीत और कव्वाली की धुनें मिलती चली गयीं। फिल्म के संगीत को आम जनता ने किस तरह हाथों हाथ लपका ये आप सबसे छुपा नहीं है। ये उदाहरण इस बात को सिद्ध करता है कि वक़्त से आगे के संगीत को परखने और उसमें अपनी मेलोडी रचने की काबिलियत मदन मोहन साहब में थी।
अब एक हाल फिलहाल की बात लेते हैं। अपनी धुनों में मदन मोहन जो मधुरता रचते थे उसके लिए इंटरल्यूड्स और मुखड़े के पहले किया गया संगीत संयोजन कई बार बेमानी हो जाता था। लता जी का गाया फिल्म 'वो कौन थी' का बेहद लोकप्रिय गीत लग जा गले .. तो आप सबने सुना होगा। हाल ही में मैंने इसी गीत को सनम बैंड के सनम पुरी को गाते सुना। मेलोडी वही पर गीत के साथ सिर्फ गिटार और ताल वाद्य का संयोजन। सच मानिए बहुत दिनों बाद एक रिमिक्स गीत में गीत की आत्मा को बचा हुआ पाया मैंने। सनम की आवाज़ का कंपन और इंटरल्यूड्स में उनकी गुनगुनाहट गीत में छुपी विकलता को हृदय तक ले जाती है
वैसे सनम पुरी अगर आपके लिए नया नाम हो तो ये बता दूँ कि मसकत में रहने
वाले सनम ने विधिवत संगीत की शिक्षा तो ली नहीं। संगीत के क्षेत्र में आए
भी तो परिवार वालों के कहने से। पाँच साल पहले SQS Supastars नाम का बैंड
बनाया जिसका नाम कुछ दिनों पहले बदल के सनम हो गया। सनम बताते हैं कि लता जी के गाए इस गीत से उनके बैंड के हर सदस्य की भावनाएँ जुड़ी
हैं और इसीलिए उन्होंने अपने इस प्यारे गीत को आज के युवा वर्ग के सामने
एक नए अंदाज़ में लाने का ख्याल आया। तो आइए सुनते हैं सनम बैंड के इस गीत को।
लग जा गले कि फिर ये हसीं रात हो न हो
शायद फिर इस जनम में मुलाक़ात हो न हो
लग जा गले ...
हमको मिली हैं आज ये घड़ियाँ नसीब से
जी भर के देख लीजिये हमको क़रीब से
फिर आपके नसीब में ये बात हो न होशायद फिर इस जनम...लग जा गले..
पास आइये कि हम नहीं आएंगे बार-बार
बाहें गले में डाल के हम रो लें ज़ार-ज़ार
आँखों से फिर ये प्यार कि बरसात हो न होशायद फिर इस जनम...लग जा गले..
शायद फिर इस जनम में मुलाक़ात हो न हो
लग जा गले ...
हमको मिली हैं आज ये घड़ियाँ नसीब से
जी भर के देख लीजिये हमको क़रीब से
फिर आपके नसीब में ये बात हो न होशायद फिर इस जनम...लग जा गले..
पास आइये कि हम नहीं आएंगे बार-बार
बाहें गले में डाल के हम रो लें ज़ार-ज़ार
आँखों से फिर ये प्यार कि बरसात हो न होशायद फिर इस जनम...लग जा गले..
गीत में उनके भाई समर पुरी गिटार पर हैं, वेंकी ने बॉस गिटार सँभाला है
जबकि केशव धनराज उनकी संगत कर रहे हैं पेरू से आए ताल वाद्य Cajon पर
जब लता जी रॉयल अलबर्ट हॉल में Wren Orchestra के साथ एक कार्यक्रम कर रही
थीं तो कार्यक्रम में शामिल होने वाले गीतों के नोट्स लिख के भेजे गए। जो
दो गीत उन्हें सबसे पसंद आए उनमें लग जा गले भी था। आर्केस्ट्रा प्रमुख
का कहना था कि वो धुनों की मेलोडी और उनके साथ किए नए तरह के संगीत संयोजन से चकित
हैं।
आशा है संगीतकार मदन मोहन से जुड़ी ये तीन कड़ियाँ आपको पसंद आयी होंगी।
एक शाम मेरे नाम पर उनकी यादों का सफ़र आगे भी समय समय पर चलता रहेगा।
8 टिप्पणियाँ:
wah...
आपको सनम पुरी की गायिकी कैसी लगी सुधीर ?
bahut achchi....diffrent feel...
हाँ मुझे भी पहली बार वही सुन कर लगा था।
Really appreciable..
but original one is a masterpiece.. Rather I'd like to be called an orthodox to stick to the original.. One of my favouritemost songs.. :D
:) pyara...
Manish jee, mujhe lagat hai , anushka manchanda ka gaayaa hua , bekraaar karake hume yun naa jaayoye bhi issi shreni mein aata hai, she has sung it so nicely without distorting too much and no cacophony
सुना मैंने ............बिलकुल सही कहा आपने कि आवाज़ के कम्पन ने इस गीत के भाव को सम्प्रेषित करने बहुत मदद की है ....सुन कर बहुत अच्छा लगा ,बस कहीं कहीं मुझे लगा थोड़ा ठहराव और होता !
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