मंगलवार, अक्तूबर 28, 2014

हमसफ़र ग़म जो मोहब्बत में दिया है तुमने.. Humsafar gham jo mohabbat mein diya hai tumne.. Anup Jalota

अनूप जलोटा का नाम सुनते ही उनके द्वारा गाए लोकप्रिय भजनों का ख्याल मन में आने लगता है। अस्सी के दशक में कोई भी पर्व त्योहार हो गली या नुक्कड़ के बजते लाउडस्पीकर से अनूप जी का गाया भजन ना सुनाई दे ऐसा हो नहीं सकता था। ऐसी लागी लगन, जग में सुंदर हैं दो नाम, प्रभु जी तुम चंदन मैं पानी, रंग दे चुनरिया, मैं नहीं माखन खायो और ना जाने कितने ऐसे ही भजन सुनते सुनते रट से गए थे।

भजनों की गायिकी में अपना जौहर दिखलाने वाले अनूप जलोटा को ये क़ाबिलियत विरासत में मिली थी। पिता पुरुषोत्तम दास जलोटा एक भजन गायक थे और अनूप के गुरु भी। आपको जान कर अचरज होगा कि तीन दशकों के अपने सांगीतिक सफ़र में दो सौ से ज्यादा एलबम गाने वाले अनूप जलोटा ने अपनी गायिकी की शुरुआत आल इंडिया रेडियो के समूह गायक (Chorus Singer) से शुरु की थी।


अनूप जलोटा ने उस समय भजन गाने शुरु किए जब बतौर भजन गायक आर्थिक रूप से स्वावलंबी होना बेहद कठिन था। कुछ साल पहले हैदराबाद दूरदर्शन को दिए अपने साक्षात्कार में इसके पीछे की रोचक दास्तान बाँटी थी। अनूप का कहना था उस समय भजन गायक बहुत ही कम थे, इसीसे जब भी किसी महोत्सव या मन्दिर निर्माण, आदि अवसरो के कार्यक्रम होते तो उन्हें आमंत्रित किया जाता था।

अनूप के सामने दुविधा ये थी कि एक तो इन कार्यक्रमों में टिकट भी नहीं होता है सो कोई पारिश्रमिक भी नहीं मिलता था तो दूसरी ओर भजनों के कार्यक्रम के लिए आमन्त्रित किए जाने पर इन्कार भी नहीं किया जा सकता था। पर टिकट नहीं होने का नतीज़ा ये हुआ कि इन कार्यक्रमों में भीङ बढ़ने लगी और कार्यक्रम लोकप्रिय होने लगे, साथ ही भजनों के रिकार्ड भी इसी वज़ह से चल निकले।

अनूप जलोटा भजन सम्राट तो कहलाए ही पर साथ ही उन्होंने ग़ज़लों का दामन भी नहीं छोड़ा। पंकज उधास, पीनाज़ मसानी, अनूप जलोटा जैसे गायक जगजीत सिंह के साथ अस्सी के दशक की शुरुआत में ग़ज़ल गायिकी के परिदृश्य में उभरे। पर जगजीत ने अपने ग़ज़लों के चुनाव और बेमिसाल गायिकी से बाकी गायकों को पीछे छोड़् दिया। उस दौर में भी अनूप जलोटा की कुछ ग़ज़लें हम गुनगुनाया करते थे। तुम्हारे शहर का मौसम बड़ा सुहाना लगे की बात तो मैं यहां पहले कर ही चुका हूँ। आज उनकी गाई एक और ग़ज़ल जो उस वक़्त बेहद लोकप्रिय हुई थी, का जिक्र करना चाहूँगा। बिल्कुल सहज अंदाज़ और हल्के फुल्के शब्दों से सजी इस ग़ज़ल ने किशोरावस्था के उन दिनों में दिल पर जबरदस्त तासीर छोड़ी थी। जलोटा साहब की वो कैसट तो आज मेरे पास नहीं हैं पर जहाँ तक याद पड़ता है इस ग़ज़ल को शायद मुराद लखनवी ने लिखा था।

अनूप अपनी गाई ग़ज़लों की शुरुआत हमेशा एक क़ता से करते आए हैं। अक्सर ये चार पंक्तियाँ ग़ज़ल के मूड को परवान चढ़ा देती थीं। देखिए तो इस क़ता में शायर ने क्या कहना चाहा है। शायर फरमाते हैं..

मैं तुम्हारे सजल नेत्रों के आँसू बटोर सकता हूँ, तुम्हारी इन अस्त व्यस्त बिखरी जुल्फों को सहेज सकता हूँ। बस एक बार तुम मुझे अपना तो मानो फिर तो तुम्हारा हर ग़म मैं अपनाने को तैयार हूँ..

चश्मे पुरनम खरीद सकता हूँ
जुल्फें बरहम खरीद सकता हूँ
तू अगर अपना बना ले मुझको
तेरा हर ग़म खरीद सकता हूँ


हम सफ़र ग़म जो मोहब्बत में दिया है तुमने
ये भी मुझ पर बड़ा एहसान किया है तुमने

एक मुद्दत से इसी दिन की थी हसरत दिल में
आज मैं खुश हूँ कि दीवाना कहा है तुमने

जब भी टकराई मेरे जिस्म से ये शोख़ हवा
मुझको महसूस हुआ ये के, छुआ है तुमने

क्या मेरे दिल के धड़कने की ही आवाज़ है ये
या फिर कान में कुछ आ कर  कहा है तुमने

हिचकियाँ भी कभी कमबख्त नहीं आती हैं
जो यूँ सोचूँ कि याद किया है तुमने



मोहब्बत एक ऐसा दिमागी फितूर है जिसमें ग़म का अक़्स ना हो तो उसका मजा ही क्या। इस प्यारी सी ग़ज़ल के चंद अशआरों में कहीं इश्क़ की खुमारी है तो कहीं विरह की विकलता। पर कुल मिलाकर इस ग़ज़ल को सुन या गुनगुना कर दर्द का मीठा अहसास ही जगता है मन में। क्या आपको ऐसा नहीं लगता ?
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13 टिप्पणियाँ:

Unknown on अक्तूबर 28, 2014 ने कहा…

मनीष जी,आप ने भी ये गजल पोस्ट करके हम सब पर बड़ा एहसान किया है। Very Very Beautiful!Thank u so much.

सुनील कुमार on अक्तूबर 28, 2014 ने कहा…

मै हमेशा से जलोटा जी का मुस्तकबिल रहा हूँ.

Guide Pawan Bhawsar on अक्तूबर 29, 2014 ने कहा…

वाह्ह्ह्ह
जलोटा जी का ये परिचय सब को नहीं पता हे
वाकई में बहुत अच्छे गायक हे और गजल भी बहुत उम्दा पेश करते हे ।
जय जय

Manish Kumar on अक्तूबर 29, 2014 ने कहा…

हाँ पवन कमाल के गायक हैं पर उनका व पंकज उधास का ग़ज़लों का चुनाव जगजीत की अपेक्षा बेहतर नहीं रहा इसलिए बतौर भजन गायक उन्हें ज्यादा प्रतिष्ठा मिली।

Prakash Yadav on अक्तूबर 29, 2014 ने कहा…

भजन उनकी गायकी का उज्ज्वल पक्ष रहा है। बचपन में तो हमारी आँख ही उनके भजनों से खुलती थी कब माताजी उठते ही भजन संध्या बजा देती थी। कई फ़िल्मी गीतों में इनकी आवाज सुनते समय ऐसा लगता था की कोई भजन ही सुन रहे हैं।

Manish Kumar on अक्तूबर 29, 2014 ने कहा…

भक्ति संगीत उनके परिवार में रचा बसा था प्रकाश जी। पिता भी इस विधा में पारंगत थे और अनूप भी भजन गायिकी को ज़्यादा अहमियत देते रहे हैं। पर उनकी चंद ग़ज़लें भी उस ज़माने में मशहूर हुई थीं। उनमें से ये एक है।

Annapurna Gayhee on अक्तूबर 30, 2014 ने कहा…

मुझे अवसर मिला था अनूप जी से हैदराबाद दूरदर्शन के लिए बातचीत का, उस समय भी वो हैदराबाद मन्दिर के एक महोत्सव के कार्यक्रम के लिए आए थे, अपनी बातचीत में उन्होने बताया था कि शास्त्रीय संगीत और सुगम संगीत गाना चाहते थे और शुरूवात ग़ज़ल, गैर फिल्मी गीत और भजनों से की थी। चूँकि उस समय भजन गायक बहुत ही कम थे, इसीसे जब भी किसी महोत्सव या मन्दिर निर्माण, आदि अवसरो के कार्यक्रम होते तो अनूप जी को आमन्त्रित किया जाता था, इन कार्यक्रमों में टिकट भी नहीं होता है जिससे भीङ बढ़ने लगी और कार्यक्रम लोकप्रिय होने लगे, साथ ही भजनों के रिकार्ड भी इसी लोकप्रियता के चलते निकाले जाने लगे जिससे अनायास ही भजन के क्षेत्र में उनकी लोकप्रियता बढ़ गई।

और भजनों के कार्यक्रम के लिए आमन्त्रित किए जाने पर इन्कार भी नहीं किया जा सकता

Manish Kumar on अक्तूबर 30, 2014 ने कहा…

इस महत्त्वपूर्ण व रोचक जानकारी को यहाँ साझा करने के लिए धन्यवाद अन्नपूर्णा जी। इसे मैं अपनी पोस्ट में समाहित करूँगा।

Darshan jangra on अक्तूबर 30, 2014 ने कहा…

बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी पोस्ट हिंदी ब्लॉग समूह में सामिल की गयी है और आप की इस प्रविष्टि की चर्चा - शुक्रवार- 31/10/2014 को
हिंदी ब्लॉग समूह चर्चा-अंकः 42
पर लिंक की गयी है , ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया आप भी पधारें,

Unknown on नवंबर 02, 2014 ने कहा…

Bahut sunder prastuti aapne Anup jatola ji ke baare me sunder jaankari di va gazal lajawaaab hai... ... Anup jatola ji ke chitr ke niche aapne ek pahra do baar likh diya hai use thik kar dein kripya !!

swati gupta ने कहा…

मनीष जी,
ग़ज़लों का शौक मुझे शुरू से ही रहा हे और मेरी हमेशा से ये कोशिश रही हे की जगजीत सिंह जी की गायी ग़ज़लों के अलावा और जो भी अच्छी ग़ज़ल हे वो मेरे कलेक्शन में रहे.....अनूप जटोला जी की ये ग़ज़ल मैंने पहली बार सुनी....शब्दों के मोती ख़ूबसूरती से पिरोये गए हे.... अनूप जी की गायिकी कमाल की हे.... इसे शेयर करने के लिए शुक्रिया....

बाकि आपकी ये पोस्ट......हमेशा की तरह लाजवाब हे... जब कभी आप कोई ग़ज़ल पोस्ट करते हे तो उसकी सबसे ख़ास बात ये होती हे की ग़ज़ल के साथ साथ आपका नजरिया, हर पंक्ति की जिस तरह से आप व्याख्या देते हे वो काबिले तारीफ हे...आपकी पोस्ट पढ़ने के बाद ग़ज़ल सुनने का मज़ा दुगना हो जाता हे....
आप आगे भी यूँ ही अच्छी अच्छी ग़ज़ल पोस्ट करते रहिये...:)

Manish Kumar on नवंबर 04, 2014 ने कहा…

सुनीता जी आपको ग़ज़ल अच्छी लगी जानकर खुशी हुई।

सुनील अच्छा लगा जानकर।

दर्शन आभार !

परी शुक्रिया बताने के लिए। मैंने वो पैरा हटा दिया है।

Manish Kumar on नवंबर 04, 2014 ने कहा…

स्वाति शुक्रिया ! जानकर खुशी हुई कि ग़ज़ल के साथ मेरा लिखने का अंदाज़ आपको पसंद आता है। गीत ग़ज़ल तो इस ब्लॉग का अभिन्न अ्ग हैं ही। अभी फ़ैज की एक ग़ज़ल गुलों में रंग भरे को अपनी समझ के हिसाब से एक लेख और पॉडकास्ट की शक्ल दी है। बताइएगा आपको कैसी लगी ?

 

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