शुक्रवार, अक्टूबर 17, 2014

रात खामोश है चाँद मदहोश है,थाम लेना मुझे जा रहा होश है.... (Raat Khamosh Hai..)

मेरे शहर का मौसम बदल रहा है। कार्यालय से वापस आते शरीर से टकराती हवाएँ आने वाली ठंड की पहली दस्तक दे रही हैं। आफिस की आपाधापी में एक अदद शाम का नज़ारा देखना सप्ताहांत में ही नसीब हो पाता है। वैसे जब जब मन अनमना हो तो घर की बालकोनी या फिर छत पर अकेले बैठना व्यथित मन को हमेशा से सुकून देता आया है। इसी सुकून की तलाश कल मुझे ले गई रात्रि के आँचल में कुछ देर अपना सर छुपाने के लिए।

छत पर गहरी निस्तब्धता थी। रात काली चादर ओढ़े  खामोश सी बैठी थी। गहरे सन्नाटे को दूर से आती रेल इंजन की सीटी कभी कभार तोड़ देती थी। आसमान की ओर यूँ ही टकटकी लगा कर देखता रहा। चाँद का दूर दूर तक कोई अता पता ना था। ना जाने कहाँ बेसुध पड़ा था। तारे तो हर तरफ थे  पर ज्यादातर में कोई रोशनी ना थी। बस उनमें से इक्का दुक्का रह रह कर चमक उठते थे। बहुत कुछ वैसे ही जैसे आस पास और आभासी दुनिया मैं फैले हजारों मित्रों में कुछ रह रह कर अपनी उपस्थिति से हमारी यादों को रौशन कर देते हैं।

निशा की इस नीरवता को महसूस करते हुए अचानक ही जगजीत के उस गीत का मुखड़ा याद आ गया जो उन्होंने अपने एलबम मुन्तज़िर के लिए गाया था..  ऐसा लगा मानो चंद शब्द पूरे माहौल को अपनी अंजुलि में भर कर बैठे हों

रात खामोश है चाँद मदहोश है,
थाम लेना मुझे जा रहा होश है....

वर्ष 2004 में मुन्तज़िर के बारे में लोगों को बताने आए Planet M में जगजीत

आप तो जानते ही हैं कि जब अचानक कोई ग़ज़ल या  गीत बरबस ख्यालों के आँगन में आ जाता है तो उसे उसी वक़्त सुनने की तीव्र इच्छा मन में उठती है। फिर तो रात थी और साथ इस गीत की ख़ुमारी। दिल के अनमनेपन को नग्मे की रूमानियत ने धो सा दिया था। जगजीत जिस मुलायमियत से थाम लेना मुझे... जा .. रहा.. होश है गाते हैं कि इक मीठी टीस दिल के आर पार हो जाती है।

हरि राम आचार्या के शब्द किस तरह मेरे मन में मस्ती घोल रहे थे ये आपको इस गीत के शब्दों को पढ़ कर पता चल जाएगा..

मिलन की दास्ताँ धडकनों की जुबाँ,
गा रही है ज़मीन सुन रहा आसमान,
गुनगुनाती हवा दे रही है सदा,
सर्द इस रात की गर्म आगोश है,

महकती यह फिजा जैसे तेरी अदा,
छा रहा रूह पर जाने कैसा नशा,
झूमता है जहाँ अजब है यह समां,
दिल के गुलज़ार मे इश्क पुरजोश है,

रात खामोश है चाँद मदहोश है,
थाम लेना मुझे जा रहा होश है



एक दशक पहले आए इस एलबम का स्वरूप जगजीत के बाकी ग़ज़ल एलबमों से भिन्न था। नब्बे के दशक में जगजीत के एलबमों से सुधी श्रोताओं को एक शिकायत रही थी। वो थी ग़ज़लों में प्रयुक्त संगीत के दोहराव की। बात बहुत कुछ सही भी थी। शायद यही ख़्याल जगजीत के दिमाग में रहा हो जो उन्होंने इस एलबम में अपने आलावा पाँच अलग अलग संगीतकारों को मौका दिया था। इन संगीतकारों में विशाल शेखर और ललित सेन जैसे नाम भी थे जिन्होंने आगे चलकर फिल्म संगीत में बहुत नाम कमाया।

मुन्तज़िर का शाब्दिक अर्थ होता है इंतज़ार में। जगजीत जी की गायिकी अगर आपको उस शख्स की याद दिला दे जिसका इंतज़ार आपको हमेशा रहा है तो समझिए इन शब्दों में समायी भावनाओं ने आपका भी दिल छू लिया है..
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8 टिप्पणियाँ:

Unknown on अक्टूबर 17, 2014 ने कहा…

थकी-हारी वापिस आई थी ऑफिस से, यह ग़ज़ल सुनकर दिमाग की थकान तो मानो गायब ही हो गयी। :)

Prashant Suhano on अक्टूबर 18, 2014 ने कहा…

ये गजल पहली बार... 'लाईफ स्टोरी' में सुना था.. :)

Guide Pawan Bhawsar on अक्टूबर 18, 2014 ने कहा…

लाजवाब

Amrita Roy on अक्टूबर 18, 2014 ने कहा…

Unki har ek gazal dil ko cho jati h,very nice

Devender Singh on अक्टूबर 18, 2014 ने कहा…

Very nice

Unknown on अक्टूबर 22, 2014 ने कहा…

रात खामोश है चाँद मदहोश है,
थाम लेना मुझे जा रहा होश है
बहुत उम्दा

Sumit on अक्टूबर 23, 2014 ने कहा…

Wah! Hari Ram Acharya ki gazal. Jagjit Singh ki is kabiliyat ki daad to deni hi hogi. Choice of his songs and gazals.

Manish Kumar on नवंबर 17, 2014 ने कहा…

नम्रता आरे वाह ! जानकर अच्छा लगा

प्रशांत, अमृता, पवन, देवेंद्र युधिष्ठिर, सुमित ये ग़ज़ल आप सब को भी पसंद है जानकर खुशी हुई।

 

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