जगजीत सिंह को गुजरे यूँ तो तीन साल हो गए पर ऐसा कभी नहीं लगा कि उनकी आवाज़ हम से कभी बिछुड़ी हो। कुछ ही दिन पहले की बात है दफ़्तर में एक क्विज का आयोजन हुआ और उसमें मैंने जगजीत चित्रा की मशहूर नज़्म वो काग़ज़ की कश्ती वो बारिश का पानी की आरंभिक धुन बजवाई और सही उत्तर बीस सेकेंड में आ गया। आज भी ज़िदगी के तमाम भागते दौड़ते लमहों के बीच उनकी गाई ग़ज़ल का कोई शेर गाहे बगाहे दिल के दरवाजे पर दस्तक दे ही देता है।
पर जगजीत जी का जो विश्वास था कि ग़ज़लों का पुराना दौर वापस आएगा वैसा निकट भविष्य में होता नहीं दिख रहा। ग़ज़ल गायिकी के पुराने चिराग ढलती उम्र के साथ ग़ज़ल का परचम फहरा तो रहे हैं पर नए कलाकार ग़ज़ल गायिकी में अपना मुकाम तलाशते वापस फिल्म संगीत की ओर मुड़ते नज़र आ रहे हैं। वे करें भी तो क्या आज का बाजार शब्दों से नहीं बल्कि संगीत के सहारे दौड़ता है। वहीं ग़ज़लों की रुह अलफ़ाजों में समाती है।
जगजीत जी की खूबी थी कि वो तमाम शायरों की उन ग़ज़लों को चुनते थे जो सहज होते हुए भावनाओं की तह तक पहुँचने में सक्षम होती थीं। उनकी आवाज़ का जादू कुछ ऐसा था कि मन करता था कि बिना किसी संगीत के उन को घंटों अविराम सुना जाए। तो चलिए आज की इस पोस्ट में याद करते हैं ऐसे ही कुछ अशआरों को जिन्हें गा कर जगजीत ने उन्हें अमरत्व प्रदान कर दिया। वैसे जगजीत के चाहने वाले इस बात से भली भांति वाकिफ़ हैं कि इस फेरहिस्त की कोई सीमा नहीं है। पर जगजीत से जुड़ी यादों से ख़ुद को जोड़ने के लिए मैंने उन चंद ग़ज़लों और नज़्मों का सहारा लिया जिनके अशआर पिछले कुछ महीनों में मेरे आस पास मँडराते रहे हैं।
तो शुरुआत क़तील शिफ़ाई से। क़तील को मोहब्बतों का शायर कहा जाता है। जगजीत ने यूँ तो क़तील साहब की कई ग़ज़लें गायीं पर उनमें सदमा तो है मुझे भी, परेशाँ रात सारी है मुझे बेहद प्रिय है। पर इस ग़ज़ल की तो बात ही क्या। इतनी बार सुना है कि इसका हर शेर दिल पे नक़्श हो गया है...
तो शुरुआत क़तील शिफ़ाई से। क़तील को मोहब्बतों का शायर कहा जाता है। जगजीत ने यूँ तो क़तील साहब की कई ग़ज़लें गायीं पर उनमें सदमा तो है मुझे भी, परेशाँ रात सारी है मुझे बेहद प्रिय है। पर इस ग़ज़ल की तो बात ही क्या। इतनी बार सुना है कि इसका हर शेर दिल पे नक़्श हो गया है...
अपने होठों पर सजाना चाहता हूँ
आ तुझे मैं गुनगुनाना चाहता हूँ
कोई आँसू तेरे दामन पर गिराकर
बूँद को मोती बनाना चाहता हूँ
बशीर बद्र, निदा फ़ाजली और सुदर्शन फ़ाकिर को जो मक़बूलियत बतौर शायर मिली उसमें एक बड़ा हाथ जगजीत जी की गायिकी का भी था। जगजीत की आवाज़ में बशीर बद्र की ग़ज़ल कौन आया रास्ते आईनाख़ाने हो गए... रात रौशन हो गई सुन कर तन मन ही रौशन हो जाता है। पर बशीर बद्र से कहीं ज्यादा मुझे जगजीत, निदा फ़ाजली और सुदर्शन फ़ाकिर के साथ श्रवणीय लगते हैं। निदा फ़ाजली की बात करूँ तो मुँह की बात सुने हर कोई, चाँद से फूल से या मेरी जुबाँ से सुनिए, ये जिंदगी, दुनिया जिसे कहते हैं ..झट से याद पड़ती हैं वहीं फाक़िर की वो काग़ज़ की कश्ती, चराग ओ आफताब गुम, ये शीशे, ये सपने, ये रिश्ते ये धागे को भूलने का तो सवाल ही नहीं पैदा होता।
जगजीत की ग़ज़लों और नज़मों की लोकप्रियता का ही ये असर था कि कुछ शायर गुमनामी के अँधेरों से निकल सके। बताइए अगर सरकती जाये है रुख़ से नक़ाब आहिस्ता आहिस्ता, बात निकलेगी तो फिर दूर तलक जाएगी, बहुत दिनों की बात है जैसी लोकप्रिय ग़ज़लें और नज़्में जगजीत नहीं गाते तो अमीर मीनाई,कफ़ील आज़र और सलाम मछलीशहरी जैसे शायरों का हुनर हम तक कहाँ पहुँच पाता?
जगजीत की ग़ज़लों और नज़मों की लोकप्रियता का ही ये असर था कि कुछ शायर गुमनामी के अँधेरों से निकल सके। बताइए अगर सरकती जाये है रुख़ से नक़ाब आहिस्ता आहिस्ता, बात निकलेगी तो फिर दूर तलक जाएगी, बहुत दिनों की बात है जैसी लोकप्रिय ग़ज़लें और नज़्में जगजीत नहीं गाते तो अमीर मीनाई,कफ़ील आज़र और सलाम मछलीशहरी जैसे शायरों का हुनर हम तक कहाँ पहुँच पाता?
नए पुराने शायरों के साथ भारत के नामाचीन शायरों फिराक़ गोरखपुरी, जिगर मुरादाबादी, मजाज़ लखनवी जैसे शायरों की ग़ज़लों और नज़्मों को बड़े करीने से जगजीत ने धारावाहिक कहकशाँ में अपनी आवाज़ से पिरोया। देखना जज़्बे मोहब्बत का असर आज की रात, तुझसे रुखसत की वो शाम ए..., अब मेरे पास आई हो तो क्या आई हो, अब अक्सर चुप चुप से रहे हैं, आवारा, रोशन जमाल ए यार से ...... इस धारावाहिक में जगजीत की गाई कुछ बेहद कमाल ग़ज़लों में से हैं।
मिर्जा ग़ालिब से गुलजार और जगजीत की जुगलबंदी शुरु हुई। गुलज़ार के साथ जगजीत ने दो बेहतरीन एलबम किए । एक तो कोई बात चले और दूसरा मरासिम । मरासिम में जगजीत की गाई ग़ज़ल आँखों में जल रहा है क्यूँ बुझता नहीं धुआँ आज भी दिल को तार तार कर देती है वहीं कहीं बात चले की फूलों की तरह लब खोल कभी, खुशबू की जुबाँ में बोल कभी मन को एकदम से तरोताजा। आज भी जब किसी अपने की याद रह रह कर सताती है तो लीला की यही ग़ज़ल मन को सुकून पहुँचाती है।
ख़ुमार-ए-गम है महकती फिज़ा में जीते हैं
तेरे ख़याल की आबो हवा में जीते हैं
ना बात पूरी हुई थी कि रात टूट गई
अधूरे ख़्वाब की आधी सजा में जीते हैं
गुलज़ार साहब ने जगजीत सिंह के गुजरने के बाद उन पर एक नज़्म कही थी। चलते चलते गुलज़ार के इन प्यारे शब्दों में एक बार ग़ज़ल सम्राट को याद कर लिया जाए
एक बौछार था वो शख्स
बिना बरसे
किसी अब्र की सहमी सी नमी से
जो भिगो देता था
एक बौछार ही था वो
जो कभी धूप की अफ़शां भर के दूर तक
सुनते हुए चेहरों पे छिड़क देता था...
नीम तारीक़ से हॉल में आँखें चमक उठती थीं
लगता था झोंका हवा का था
कोई छेड़ गया है..
गुनगुनाता था तो खुलते हुए बादल की तरह
मुस्कुराहट में कई तरबों की झनकार छुपी थी
गली क़ासिम से चली एक ग़ज़ल की झनकार था वो
एक आवाज़ की बौछार था वो
हम खुशकिस्मत रहे कि कई दशकों तक इस बौछार में भींगने का सुख पाते रहे। जगजीत की आवाज़ आज भी दूर बादलों के कोने से बहती हुई दिल के कोरों तक पहुँचती है उसे नम करती हुई। आशा है ये नमी सदियों बनी रहेगी हम सब के दिलों में।
7 टिप्पणियाँ:
कभी खामोश बैठोगे ,कभी कुछ गुनगुनाओगे
मैं उतना याद आऊँगा ,मुझे जितना भुलाओगे...
Kaun kahta hain muhabbat ki zuban hoti hain....ye haqeekat toh nigaho se baya hoti hain...
बहुत सुंदर
Kal aadhi raat ke waqt ek comment post kiya tha jo kahin gayab ho gaya. Ab yaad nahi theek se lekin likha toh yahi tha kul mila ke ki aapne bahut shiddat se yaad kiya Jagjit Singh ko.
Jagjit ek aisi pyaas hain jo bujhti hi nahi kabhi.
unke jaisa nakoi hua nahoga
my fevrt nahi rahe to kya hua hamesha unki he fan rahungi main koi mausam nahi jo badal jau....
जगजीत को याद करने का मेरा ये प्रयास आप सब के प्यार और उद्गार से और मनमोहक बन पड़ा है। आभार आप सबके विचारों के लिए।
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