एक शाम मेरे नाम पर साल के अंत के साथ वक़्त आ गया है वार्षिक संगीतमाला 2014 की शुरुआत का। अगर विकिपीडिया पर दी इस सूची पर गौर करें तो इस साल करीब 140 फिल्में रिलीज़ हुई। अगर हर फिल्म में औसत गीतों की संख्या को चार भी मानें तो समझिए साल में पाँच सौ से छः सौ के बीच नए गीत बने। वैसे अगर मैं आपसे ये पूछूँ कि इस साल प्रदर्शित फिल्मों के गीतों में अपनी पसंद बताइए तो शायद ही वो सूची बीस से ऊपर तक पहुँचे।
दरअसल होता ये है कि अधिकतर फिल्म निर्माता प्रदर्शन के समय अपने एक या दो गानों को टीवी के माध्यम से खूब प्रचारित करते हैं। निर्माता भी अक़्सर वही गीत चुनता है जिसकी Visual appeal ज्यादा हो। सो सारे आइटम नंबरों की तो बारी आ जाती है पर फिल्मों के बहुत सारे गीत अनसुने रह जाते हैं। एक शाम मेरे नाम की वार्षिक संगीतमाला में कोशिश यही रहती है कि साल के लोकप्रिय गीतों के साथ वैसे भी गीत बाहर निकाले जाएँ जो मधुर या अनूठे होते हुए भी श्रोताओं की नज़र से ओझल रह जाते हैं।
पर सोचिए पाँच सौ से ऊपर गीतों में अपनी पसंद के पच्चीस गीतों को छाँटना कितना मुश्किल है। वैसे भी गीतों के मामले में हर व्यक्ति की पसंद का नज़रिया अलग होता है। मेरे लिए गीत की धुन और गायिकी के साथ साथ उसके बोल भी उतने ही महत्त्वपूर्ण होते हैं और मैं इसी आधार पर अपना चुनाव करता हूँ। पिछले महीने मैंने सारी फिल्मों के गीत सुनने शुरु किए और उनमें से लगभग पचास को अलग किया। मुझे अपने पसंदीदा दस गीतों को चुनने में कभी दिक्कत नहीं होती पर नीचे की पॉयदानों के गीतों में अंतर करना एक दुष्कर कार्य लगता है।
वार्षिक संगीतमाला में शुरुआती पच्चीस गीतों की क्रमवार प्रस्तुति तो जनवरी से होगी। पर उसके पहले आपके साथ उन ग्यारह गीतों का जिक्र करना चाहूँगा जो भले ही अंतिम पच्चीस में जगह ना बना पाए हों पर ये थे उनके बेहद करीब। इन गीतों में एक समानता है और वो कि ये सभी रूमानियत के अहसासों से लबरेज़ हैं। इन सबकी धुनें भी बेहद कर्णप्रिय है और हल्के फुल्के मूड में इन्हें गुनगुनाना आपको जरूर भाएगा। तो आइए देखें कि एक शाम मेरे नाम की इस दावत ए इश्क़ में प्यार की फुलझड़ियाँ छोड़ते कौन कौन से नग्मे हैं?
36. मेहरबानी
फिल्म शौकीन के इस गीत में संगीतकार और गीतकार अर्को मुखर्जी हैं और गाया है इसे जुबीन ने। अगर कोई मँजा हुआ गीतकार इस धुन पर काम करता तो अंतरे और बेहतर हो सकते थे। मुखड़ा तो ठीक ठाक ही बन पड़ा है इस गीत का।
है साज तू, तेरा तर्ज मैं
तू है दवा और मर्ज मैं
दिलदार तू, खुदगर्ज मैं ..
।वैसे अगर किसी में इतनी ख़ामियाँ रहेगी तो उनकी नज़रें इनायत तो होने वाली नहीं इसीलिए अर्को इन्हें उनकी मेहरबानी मान रहे हैं। :)
35. साँसों को
शरीब साबरी और तोशी साबरी कोआपने बतौर गायक रियालटी शो में देखा होगा। तोशी को मैंने सबसे पहले सा रे गा मा 2005 में गाते सुना था। संगीत से जुड़े राजस्थान के साबरी परिवार के इन चिरागों ने भले ही बतौर गायक पिछले एक दशक में कुछ खास ना कर दिखाया हो पर बतौर संगीतकार पिछले कुछ सालों से उनका किया काम प्रशंसनीय है। गीतकार शकील आज़मी के बोल भले औसत दर्जे के हैं पर ज़िद के दो गीतों साँसों को जीने का इशारा मिल गया और तू जरूरी सा है मुझको जिंदा रहने के लिए की धुन शानदार है। इस गीत को अावाज़ दी है अरिजित सिंह ने
34. जो तू मेरा हमदर्द है
ये गीत है फिल्म एक विलेन का। संगीतकार मिथुन ने आजकल अपने गीतों के बोल भी ख़ुद लिखने शुरु कर दिए हैं। गीत के मुखड़े पर गौर फरमाएँ। पल दो पल की है क्यूँ ज़िदगी
...इस प्यार को है सदियाँ काफी नहीं...
तो ख़ुदा से माँग लूँ मोहलत मैं इक नई...
रहना है बस यहाँ..... अब दूर जाना नहीं
.....जो तू मेरा हमदर्द है... सुहाना हर दर्द है... सही तो कह रहे हैं ना मिथुन। अगर प्यार की राहों में कोई दर्द बाँटने वाला मिल जाए तो फिर दर्द भी तो सगा लगने लगता है ना। मिथुन के सहज भावों को अरिजित सिंह ने अपनी आवाज़ में बखूबी उभारा है।
33. मनचला
फिल्म हँसी तो फँसी इस साल के उन चुनिंदा एलबमों में से हें जिनके सारे गीत औसत से ऊपर वाली कोटि के हैं। संगीतकार विशाल शेखर ने एक बार फिर दिखाया है कि मेलोडी पर उनकी पकड़ कमज़ोर नहीं हुई। शफ़कत अमानत अली का हुनर तो जगजाहिर है। मुझे इस गीत की आरंभिक धुन और अमिताभ भट्टाचार्य के लिखे बोल दिल को छूते से लगते हैं जब वो लिखते हैं..कभी गर्दिशों का मारा.. कभी ख्वाहिशों से हारा.. रूठे चाँद का है चकोर.. ज़रा सी भी समझो कैसे.. यह परहेज़ रखता है क्यूँ.. माने न कभी कोई जोर.. दुनिया जहाँ की बंदिशों की यह कहाँ परवाह करे जब खींचे तेरी डोर ..खींचे तेरी डोर ..मनचला मन चला तेरी ओर
32. तू जरूरी
ये साल सुनिधि चौहान के लिए गायिकी के लिहाज़ से फीका ही रहा है पर इस गीत की लोकप्रियता शायद उनके गिरते कैरियर ग्राफ को कुछ सहारा प्रदान करे। इस युगल गीत में उनका साथ दिया है शरीब साबरी ने। धुन तो ऐसी है जिसे आप बार बार गुनगुनाना चाहें..
31. इश्क़ बुलावा
गायिकी के लिहाज़ से सनम पुरी का नाम इस साल की नई खोजों में लिया जा सकता है। हँसी तो फँसी में विशाल शेखर द्वारा दिए मौके को उन्होंने पूरे मन से निभाया है। जब वो इश्क़ बुलावा जाने कब आवे ...मैं ता कोल तेरे रहना ..तैनू तकदा रवाँ ..बातों पे तेरी हँसदा रवाँ ..तैनू तकदा रवाँ गाते हैं तो एक प्रेमी का मासूम चेहरा उभर कर सामने आ जाता है।
30. सावन आया है
अभी तो ख़ैर ठंड आ गई है पर Creature 3 D का ये प्यारा सा नग्मा सावन में आग लगा चुका है। वैसे लगता है बॉलीवुड में भी पश्चिमी रॉक बैंड की तरह ख़ुद ही गीत लिखकर उसकी धुन बनाने का चलन जोर शोर से शुरु हो गया है। मिथुन और अर्को मुखर्जी के बाद टोनी कक्कड़ ने भी इस गीत और संगीत की कमान अपने पास रखी है। धुन तो कमाल की है जो सहज बोलों को चला ले जाती है। अरिजित सिंह ने इस गीत को गाया भी बड़े प्यार से है।
29 सज़दा
कैसे कैसे नाम हो गए हैं फिल्मों के किल दिल और गीतकार के रूप में गुलज़ार हम्म थोड़ा अजीब सा लगता है ना। ये फिल्म उनके बोलों लायक नहीं थी बहरहाल सज़दा के माध्यम से पानी में आग तो गुलज़ार साहब भी लगा रहे हैं..
इक ख्वाब ने आँखें खोली हैं, क्या मोड़ आया है कहानी में
वो भीग रही है बारिश में और आग लगी है पानी में..
28.दावत ए इश्क़
एक खानसामे के प्यार को गीतकार क़ौसर मुनीर और संगीतकार साजिद वाजिद ने बेहतरीन शब्द रचना और संगीत से बाँधा है इस गीत में। जावेद अली और सुनिधि चौहान की जोड़ी भी पूरे रंग में है। हम भी आपसे यही कहेंगे कि दिल ने दस्तरखान बिछाया, दावत ए इश्क़ है.
27.हम तुम्हें कैसे बताएँ तुममें क्या क्या बात है
इस गीत को आपने पहले सुना हो इसमें मुझे संशय है। राम सम्पत की संगीतबद्ध और संदीप नाथ के लिखे इस गीत को आवाज़ दी है अमन तिरखा और तरन्नुम मलिक ने। एक सुकून है इस सहज से गीत में। फिल्म है इकतीस तोपों की सलामी..एक बार सुनिएगा जुरूर
26.Love is a waste of time
और अगर आपको लगता है कि इन प्यार मोहब्बत की बाते कहने वाले गीतों को सुनवाकर मैंने आपका वक़्त ज़ाया किया है तो उसके लिए मैं कुछ नहीं कर सकता। आख़िर पीके अब दूसरे हफ्ते में चल रही है। अब तक तो
आपको तो पता होना चाहिए कि Love is a waste of time :)
आपको तो पता होना चाहिए कि Love is a waste of time :)
वार्षिक संगीतमाला 2014
- 01 क्या वहाँ दिन है अभी भी पापा तुम रहते जहाँ हो Papa
- 02 मनवा लागे, लागे रे साँवरे Manwa Lage
- 03 काफी नहीं है चाँद हमारे लिए अभी Kaafi Nahin hai Chaand
- 04 शीशे का समंदर, पानी की दीवारें. Sheeshe ka Samundar !
- 05 मैं तैनू समझावाँ की . Main Tenu Samjhawan Ki ..
- 06 ज़हनसीब..ज़हनसीब, तुझे चाहूँ बेतहाशा ज़हनसीब .. Zehnaseeb
- 07. पटाखा गुड्डी ! (Patakha Guddi)
- 08. किन्ना सोणा यार हीर वेखदी नज़ारा .. Ranjha
- 09. ऐसे तेरा मैं, जैसे मेरा तू.. Jaise Mera Tu
- 10. अल्लाह वारियाँ..... Allah Waariyaan
- 11.चाँदनिया तो बरसे फिर क्यूँ मेरे हाथ अँधेरे लगदे ने. Chaandaniya
- 12. ये बावला सा सपना Ye Bawla sa Sapna
- 13. गुलों मे रंग भरे, बाद-ए-नौबहार चले Gulon Mein Rang Bhare.
- 14. मैं ढूँढने को ज़माने में जब वफ़ा निकला Main dhoondhne ko..
- 15. तेरी गलियाँ, गलियाँ तेरी गलियाँ Teri Galiyan
- 16. अर्जियाँ दे रहा है दिल आओ..Arziyan
- 17. कोई मुझको यूँ मिला है, जैसे बंजारे को घर .Banjara.
- 18. पलकें ना भिगोना, ना उदास होना...नानी माँ Nani Maan
- 19. चार कदम बस चार कदम, चल दो ना साथ मेरे Char Kadam
- 20. सोने दो .. ख़्वाब बोने दो Sone Do..
- 21. सूहा साहा Sooha Saaha
- 22. सुनो ना संगमरमर Suno Na Sangmarmar
- 23. दिलदारा Dildaara
- 24. पैर अनाड़ी ढूँढे कुल्हाड़ी Pair Anadi
- 25. नैना नूँ पता है, नैना दी ख़ता है Naina
- दावत ए इश्क़ वो ग्यारह रूमानी गीत जो अंतिम पच्चीस में स्थान बनाने से ज़रा से चूके
12 टिप्पणियाँ:
वाह !! क्या सुरीली सौगात है..
शुक्रिया शुक्रिया :-)
अनुलता
वैसे साल २०१४ गीतों के हिसाब से पिछले सालों से थोड़ा कमज़ोर रहा। आपने सही कहा अगर अपनी पसंद के गीतों की सूची बनाने निकले तो शायद ही वो २० से उप्पर पहुँचे। इस साल एक और चीज़ देखने को मिली जिसका ज़िक्र आपने किया है कि फिल्मों में प्रमोशनल सांग तरजीह दी गई, बमुश्किल एक आध ही फिल्म होंगी जिनमें सारे गीत अच्छे हों, या कर्णप्रिय हों। २५ से उप्पर की सूची में शामिल इन ग्यारह गीतों में दस सुने हैं।
हर बार की तरह इस बार भी आपकी वार्षिक संगीतमाला का बेसब्री से इंतज़ार है। नव वर्ष की शुभकामनायें।
अभी सूची देखी है, फिलहाल गाने सुनने का मन नहीं क्योंकि एक भी गीत तुरन्त सुनने के लिए आकर्षित नहीं कर रहा... प्रतीक्षा है 25 गीतों की, पता नहीं उनमें कितने आकर्षित कर पाएगें
Annapurna jee हम तुम्हें कैसे बताएँ तुममें क्या क्या बात है..सुनिए शायद आज के गानों से थोड़ा अलग लगे..
अनुलता जी इस सूची में आपकी पसंद का कोई गीत था या नहीं ?
अंकित मुझे तो पिछले कुछ सालों से गीतों की गुणवत्ता से गिरावट आती दिख रही है। खासकर बोलों के हिसाब से। एक विलेन, हँसी तो फँसी और हाइवे एलबम के रूप में थोड़े बेहतर जरूर थे पर तुम्हारी बात बिल्कुल सही है कि ज्यादातर फिल्में में इक्का दुक्का गीत ही श्रवणीय रहे। यही वज़ह है कि मेरी पच्चीस गीतों की सूची में 23 अलग अलग फिल्मों के गाने हैं। मेरे ख्याल से ऊपर के गीतों में शायद तुमने हम तुम्हें केसे बताएँ नहीं सुनी होगी। सुकून देने वाली हल्की फुल्की ग़ज़ल है जो आज के शोर से थोड़ा अलग अहसास जगाती है।
मुझे भी इंतज़ार रहेगा तुम्हारी इस साल की पसंद के बारे में जानने का।
हाँ यही ग़ज़ल थी 'हम तुम्हें कैसे...'। लेकिन सुनने पर पता चला ये तो सुनी है फ़िल्म है 'इक्कीस तोपों की सलामी'। दरअसल शुरुआत के कुछ शब्द देखने पर लगा यही वो गीत है जो नहीं सुना था।
आपकी बात सही है पिछले कुछ सालों से गीतों में गिरावट का दौर जारी है। उसका एक अहम पहलू ये भी हो सकता है कि अब फिल्मों में गीत सिचुएशन के हिसाब से नहीं होते, वो कहानी को आगे नहीं बढ़ाते बल्कि वो सिर्फ एक खानापूर्ति के तौर पर रखे जा रहे हैं। इस नज़रिये को जब रखा जाता है तो उनको बनाने में मेहनत भी नहीं की जाती।
लेकिन साथ ही साथ एक अच्छी बात ये है कि इस साल मेलोडी की धमक कुछ ज़्यादा रही और ये ट्रेंड दरअसल आशिकी 2 के बाद शुरू हुआ है। ये अलग बात है कि धुनों में भिन्नता नहीं है, बोल कमज़ोर है परंतु संगीत कानों में दर्द कम पैदा करता है।
इस साल पिछले सालों के मुकाबले अमित त्रिवेदी की सिर्फ एक फ़िल्म 'क्वीन' आई। मुझे समग्र रूप से तो कोई फ़िल्म के गीत पसंद नहीं आये लेकिन फिर भी जो ठीक लगे उनमें हाईवे, हैदर, क्वीन और थोडा थोडा डेढ़ इश्किया, 2 स्टेट्स और एक विलन भी। बाकी कुछ फिल्मों के एक आध गीत हैं।
सरे गीत एक साथ तो सुने नहीं जा सकते. यूँ भी नये गानों का म्यूजिक itnअ डामिनेट करता है कि बोल का असर कम हो जाता है.
फिर भी शौकीन का गीत शब्दों से अच्छा लग रहा है. एक एक कर के सुनूंगी. अगर कुछ फिर अच्छा लगा तो सनद डाल जाऊँगी
Kanchan हम्म वो तो है। इन सारे गीतों का मजबूत पक्ष इनकी धुन ही है। बोलों में उतनी गहराई तो नहीं पर हल्के फुल्के लमहों में इन्हें गुनगुनाना बुरा नहीं लगता। शौकीन के उस गीत की शुरुआत तो मुझे अच्छी लगी पर अंतरों में जो तुलना हुई है वो मुझे कुछ खास पसंद नहीं आई।
देर रात आराम से सुनना अच्छा लगा ..
meethe- pyare songs.....jawab nahi...
mera cmnt to dikh hi nhi raha.... :(
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