गुरुवार, जनवरी 22, 2015

वार्षिक संगीतमाला 2014 पायदान # 15 : तेरी गलियाँ, गलियाँ तेरी गलियाँ Galliyan

वार्षिक संगीतमाला की 15 वीं पायदान का गाना सिर्फ उन्हीं लोगों के लिए नया हो सकता है जो आज कल के गानों को बिल्कुल ही ना सुनते हों। जी हाँ मैं एक विलेन के गीत गलियाँ की बातें कर रहा हूँ जो इस साल शायद ही किसी गली या नुक्कड़ पर ना बजा हो। वैसे भी इस गीत के जनक अंकित तिवारी सही मायने में नई संगीतकार पौध के रॉकस्टार हैं। इनके गीतों में एक ओर तो इलेक्ट्रिक गिटार और ड्रम्स का हल्का सा ओवरडोज होता है पर साथ में सुरीली सी मेलोडी भी होती है। अच्छी आवाज़ के मालिक तो अंकित हैं ही, साथ ही ऊँचे सुरों पर उनकी पकड़ भी मजबूत है। इन सब का मिश्रण युवाओं पर जादू सा असर करता है।

पिछले साल आशिकी 2 में रो रहा है ना तू में मिली जबरदस्त सफलता के बाद अंकित के कैरियर को बड़ा झटका तब लगा जब बेवफाई के आरोप में उन पर एक मुकदमा दायर हो गया। पर इन सब उतार चढ़ावों के बाद भी वो एक विलेन में संगीतबद्ध किए गीत में अपनी पुरानी लय में लौटते दिखे हैं। अंकित तिवारी एक साथ ढेर सारा काम नहीं करना चाहते। उनका मानना है कि सुकून से कोई काम किया जाए तभी कोई बेहतर चीज़ निकलती है। अंकित अपने काम का मूल्यांकन ख़ुद करते हैं और जब वो उससे संतुष्ट होते हैं तभी वो धुन किसी निर्देशक की झोली में जाती है।


एक विलेन के इस गीत के लिए गीतकार मनोज मुन्तसिर ने उन्हें दो पंक्तियाँ भेजी थीं यहीं डूबे दिन मेरे, यहीं होते हैं सवेरे..यहीं मरना और जीना, यहीं मंदिर और मदीना। अपनी चिरपरिचित शैली में अंकित तिवारी ने इस मुखड़े को लेकर गिटार , बाँसुरी और वॉयलिन को प्रमुखता से इस्तेमाल करते हुए जो धुन तैयार की वो आम जनता द्वारा हाथो हाथ ली गई।

बतौर गीतकार मेरा परिचय मनोज मुन्तसिर से पाँच साल पहले हुआ था जब उनका लिखा हुआ फिल्म The Great Indian Butterfly का गीत बड़े नटखट है मोरे कँगना संगीतमाला के प्रथम पाँच गीतों में अपनी जगह बना पाया था। अमेठी से ताल्लुक रखने वाले मनोज शुक्ला को कविता के प्रेम ने मनोज मुन्तशिर बना दिया। अगर आज वो मुंबई के फिल्म उद्योग का हिस्सा हैं तो इसका श्रेय  साहिर लुधयानवी को मिलना चाहिए। आपका प्रश्न होगा आख़िर क्यूँ ? अपने एक साक्षात्कार में उन्होंने बताया था
"मैं एक बार अमेठी से इलाहाबाद जा रहा था। गाड़ी जब प्रतापगढ़ पहुँची तो ट्रेन में कुछ तकनीकी खराबी आ गई। मैं समय काटने के लिए प्लेटफार्म पर टहलने लगा कि अचानक बुक स्टॉल पर मुझे साहिर का एक कविता संग्रह दिखा। गाड़ी के बनने और फिर उसके इलाहाबाद पहुँचने तक वो पुस्तक मैंने पढ़ डाली और साथ ही ये फ़ैसला भी कर लिया कि मुझे भी मुंबई जाकर एक गीतकार बनना है।"

मनोज का कहना है कि एक गीतकार के लिए सबसे दुष्कर कार्य फिल्म की पेचीदा परिस्थितियों को समझते हुए सरल से सरल शब्दों में उन भावों को व्यक्त करना है ताकि एक रिक्शे वाले से लेकर उच्च पदों पर आसीन व्यक्ति को वो समान रूप से असर करे। गलियाँ की सफलता का कारण भी वे यही मानते हैं। इस गीत में मनोज की लिखी  सहज पक्तियाँ जो मुझे सबसे ज्यादा आकर्षित करती हैं  वो हैं तू मेरी नींदों मे सोता है, तू मेरे अश्क़ो में रोता है... और  कैसा है रिश्ता तेरा-मेरा, बेचेहरा फिर भी कितना गहरा।

यहीं डूबे दिन मेरे, यहीं होते हैं सवेरे
यहीं मरना और जीना, यहीं मंदिर और मदीना

तेरी गलियाँ, गलियाँ तेरी गलियाँ
मुझको भावें गलियाँ, तेरी गलियाँ
तेरी गलियाँ, गलियाँ तेरी गलियाँ
यूँ ही तड़पावें, गलियाँ तेरी गलियाँ

तू मेरी नींदों मे सोता है, तू मेरे अश्क़ो में रोता है
सरगोशी सी है ख्यालों में, तू ना हो, फिर भी तू होता है
है सिला तू मेरे दर्द का, मेरे दिल की दुआयें हैं
तेरी गलियाँ...

कैसा है रिश्ता तेरा-मेरा, बेचेहरा फिर भी कितना गहरा
ये लमहे, लमहे ये रेशम से, खो जायें, खो ना जायें हमसे

काफिला, वक़्त का रोक ले, अब दिल से जुदा ना हों
तेरी गलियाँ...


तो आइए अंकित की आवाज़ की गूँज के साथ अपनी गूँज मिलाइए इस गीत में..


वार्षिक संगीतमाला 2014
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5 टिप्पणियाँ:

Unknown on जनवरी 24, 2015 ने कहा…

लाजवाब संगीत! :)

Manish Kumar on जनवरी 31, 2015 ने कहा…

हम्म्म :)

Ankit on फ़रवरी 03, 2015 ने कहा…

इस गीत की विशेषता ही कहिये कि आप सरल और सहज शब्दों के जाल में फँस जाते हैं।
"… तेरी गलियां" का दोहराव बहुत खूबसूरत हुआ है, और धुन में एक अलग सा जुनून तैरता है जिसे अंकित तिवारी अपनी आवाज़ से और गहराते हैं।

कंचन सिंह चौहान on फ़रवरी 08, 2015 ने कहा…

अच्छा लगता है यह गीत.

Manish Kumar on फ़रवरी 09, 2015 ने कहा…

कंचन व अंकित
अंकित तिवारी का एक स्टाइल है जिसे साथ में गुनगुनाना भाता है और आलाप के साथ बहना भी अच्छा लगता है। बाकी इस गीत के लिए मनोज मुन्तशिर और अंकित काफी एवार्ड बटोर ही रहे हैं।

 

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