वार्षिक संगीतमाला अपने सफ़र के पहले हफ्ते को पूरा करते हुए आज पहुँच चुकी है अपनी बाइसवीं सीढ़ी पर। इस गीत को अपनी मधुर धुन से सँवारा है बंगाली फिल्मों के लोकप्रिय संगीतकार और कभी प्रीतम के जोड़ीदार रह चुके जीत गाँगुली ने।
कोलकाता के संगीत परिवार में जन्मे जीत ने शास्त्रीय संगीत जहाँ अपने पिता एवम् गुरु काली गांगुली से सीखा, वहीं बाद में पश्चिमी संगीत की पकड़ उन्हें गिटार वादक कार्लटन किट्टू के सानिध्य से मिली। बतौर संगीतकार जीत आजकल महेश भट्ट की फिल्मों में अक्सर नज़र आते हैं। पिछले साल की चर्चित फिल्म आशिक़ी 2 में कुछ गीतों का संगीत भी उन्होंने ही दिया था। यंगिस्तान के जिस गीत की बात मैं आज आपसे करने जा रहा हूँ उसकी धुन का इस्तेमाल जीत अपनी बंगाली फिल्म रंगबाज़ में वर्ष 2013 में कर चुके थे। वो गीत था कि कोरे तोके बोलबो..। चलिए पहले इसे ही सुन लेते हैं।
गीतकार कौसर मुनीर ने कि कोरे तोके बोलबो को सुनो ना संगमरमर में रूपांतरित कर दिया। अक्सर निर्माता निर्देशकों की गीतकारों से फर्माइश रहती है कि वो गीत में कुछ ऐसे शब्दों का प्रयोग करें कि लोगों का ध्यान अपनी ओर खींचा जाए। इस कोशिश में कई बार गीतकार आयातित शब्द का प्रयोग करते हैं तो कई बार अंचलिक भाषा के शब्दों का। Te Amo , कतिया करूँ, अम्बरसरिया ऍसे ही कुछ गीतों के उदाहरण हैं। पर महिला गीतकार क़ौसर मुनीर ने अपने गीत में संगमरमर जैसा शब्द लिया जो काफी प्रचलित तो है पर गीतों में इस्तेमाल नहीं होता। वेसे इससे पहले भी क़ौसर ''इश्क़ज़ादे'' जैसे नए लफ्ज़ को गीतों में ला चुकी हैं। क़ौसर इस गीत के बारे में कहती हैं।
"एक गीतकार की हैसियत से मुझे फिल्म में जो छोटा सा हिस्सा मिलता है उसका मुझे इस्तेमाल इस तरह से करना होता है कि वो कानों को श्रवणीय लगे। संगमरमर पर बहस तो खूब हुई पर फिल्म में गीत इस तरह फिल्माया गया कि शब्द दृश्य से घुल मिल गए।"
क़ौसर गीत के मुखड़े में लिखती हैं सुनो ना संगमरमर की ये मीनारें, कुछ भी नहीं है आगे तुम्हारे.. आज से दिल पे मेरे राज तुम्हारा...ताज तुम्हारा... और तब कैमरा ताजमहल की मीनारों को फोकस कर रहा होता है। अब शाश्वत प्रेम के लिए ताजमहल से बढ़िया प्रतीक हो ही क्या सकता था? क़ौसर के लिखे आखिरी अंतरे की पंक्तियाँ भी दिल को लुभाती हैं जब वो लिखती हैं..ये देखो सपने मेरे, नींदों से होके तेरे..रातों से कहते हैं लो, हम तो सवेरे हैं वो...सच हो गए जो... :)
सुनो ना संगमरमर की ये मीनारें
कुछ भी नहीं है आगे तुम्हारे
आज से दिल पे मेरे राज तुम्हारा
ताज तुम्हारा
सुनो ना संगमरमर...
बिन तेरे मद्धम-मद्धम,
भी चल रही थी धड़कन
जबसे मिले तुम हमें
आँचल से तेरे बंधे
दिल उड़ रहा है
सुनो ना आसमानों के ये सितारे
कुछ भी नहीं है आगे तुम्हारे
ये देखो सपने मेरे, नींदों से हो के तेरे
रातों से कहते हैं लो, हम तो सवेरे हैं वो
सच हो गए जो
सुनो ना दो जहानों के ये नज़ारे
कुछ भी नहीं है आगे तुम्हारे
आज से दिल पे...
सुनो ना संगमरमर.
इस गीत को गाया है उदीयमान गायक अरिजित सिंह ने। इस साल भले ही किसी एक संगीतकार, गीतकार या एलबम का दबदबा ना रहा हो पर जहाँ गायिकी का सवाल है ये साल अरिजित सिंह के नाम रहा है। पिछले साल की तमाम फिल्मों के गीत खँगालते हुए मैंने पाया कि सबसे ज्यादा अच्छे गीत इसी गायक की झोली में गए हैं। तो आइए सुनें अरिजित की आवाज़ में इस गीत को..
वार्षिक संगीतमाला 2014
- 01 क्या वहाँ दिन है अभी भी पापा तुम रहते जहाँ हो Papa
- 02 मनवा लागे, लागे रे साँवरे Manwa Lage
- 03 काफी नहीं है चाँद हमारे लिए अभी Kaafi Nahin hai Chaand
- 04 शीशे का समंदर, पानी की दीवारें. Sheeshe ka Samundar !
- 05 मैं तैनू समझावाँ की . Main Tenu Samjhawan Ki ..
- 06 ज़हनसीब..ज़हनसीब, तुझे चाहूँ बेतहाशा ज़हनसीब .. Zehnaseeb
- 07. पटाखा गुड्डी ! (Patakha Guddi)
- 08. किन्ना सोणा यार हीर वेखदी नज़ारा .. Ranjha
- 09. ऐसे तेरा मैं, जैसे मेरा तू.. Jaise Mera Tu
- 10. अल्लाह वारियाँ..... Allah Waariyaan
- 11.चाँदनिया तो बरसे फिर क्यूँ मेरे हाथ अँधेरे लगदे ने. Chaandaniya
- 12. ये बावला सा सपना Ye Bawla sa Sapna
- 13. गुलों मे रंग भरे, बाद-ए-नौबहार चले Gulon Mein Rang Bhare.
- 14. मैं ढूँढने को ज़माने में जब वफ़ा निकला Main dhoondhne ko..
- 15. तेरी गलियाँ, गलियाँ तेरी गलियाँ Teri Galiyan
- 16. अर्जियाँ दे रहा है दिल आओ..Arziyan
- 17. कोई मुझको यूँ मिला है, जैसे बंजारे को घर .Banjara.
- 18. पलकें ना भिगोना, ना उदास होना...नानी माँ Nani Maan
- 19. चार कदम बस चार कदम, चल दो ना साथ मेरे Char Kadam
- 20. सोने दो .. ख़्वाब बोने दो Sone Do..
- 21. सूहा साहा Sooha Saaha
- 22. सुनो ना संगमरमर Suno Na Sangmarmar
- 23. दिलदारा Dildaara
- 24. पैर अनाड़ी ढूँढे कुल्हाड़ी Pair Anadi
- 25. नैना नूँ पता है, नैना दी ख़ता है Naina
- दावत ए इश्क़ वो ग्यारह रूमानी गीत जो अंतिम पच्चीस में स्थान बनाने से ज़रा से चूके
7 टिप्पणियाँ:
एक बहुत ही मेलोडियस गीत। बंगाली वरजन भी आपके जरिये सुन लिया। जीत का शानदार कम्पोजीशन और अरिजीत का बखूबी साथ, क्या कहने।
कौसर मुनीर ने लिखा भी अच्छा है। इस की शुरुआत में ही जब 'सुनो न संगमरमर' के बाद एक छोटा सा विराम आता है तो उससे एक अलग इफ़ेक्ट पैदा होता है। यूँ तो अगर लिरिकल देखा जाए तो हीरो संगमरमर की मीनारों की बात कर रहा है लेकिन विराम के आने से लगता है कि जैसे हीरोइन को संगमरमर से संबोधित कर रहा है।
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ये गीत सचमुच सुरीला है...
:)
हाँ अंकित, धुन के साथ शब्द रचना बेहतर है इस गीत की, मुझे क़ौसर का लिखा दूसरा अंतरा खास पसंद आया।
प्रशांत बाँग्ला गान सुनकर मधुरता वैसे भी आ गई होगी :) तुम्हें वैसे बंगाली और हिंदी में कौन सा वर्सन बेहतर लगा बोलों के हिसाब से ?
खूबसूरत गाना है,
बरबस ही ज़हन को जकड लेने वाला.............
और रहा सवाल , " यह कैसे सुरों ढाला गया " तो
यह जानकारी आपकी संगीत माला ने ने दे दी।
जवाब नहीं आपके नॉलेज का !
हाँ लोरी सुरीली धुन तुरंत आकर्षित करती है इस गीत की।
ये गाना जितना हिट हुआ उतना ज़यादा मुझे अच्छा नहीं लग पाया पता नहीं क्यों..यूँ लखनऊ के हाथियों को देखना अच्छा भी लगता है फिर भी. शायद शब्द कुछ ऐसे नहीं थे कि मन में बस सके.
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