हिंदी फिल्मों में भारतीय शास्त्रीय रागों पर आधारित गीत बनाए जाते रहे हैं और वे बेहद लोकप्रिय भी हुए हैं। विगत कुछ दशकों में अगर ये संख्या घटी है तो इसका एक कारण संगीतकारों को ऐसी कहानियों का ना मिल पाना है जिसमें ऐसे गीतों को फिल्म की परिस्थिति के साथ जोड़ा जा सके। फिर भी हर साल ऐसे इक्के दुक्के गीत बनते ही रहते हैं। वर्ष 2007 में दीपा मेहता की एक फिल्म आई थी वॉटर, संगीतकार थे ए आर रहमान। इस फिल्म में रहमान साहब ने राग भटियार पर आधारित एक बेहद खूबसूरत धुन रची थी। शास्त्रीयता अपने साथ एक गंभीरता, एक गहराई लाती है जिसमें डूबे बगैर उसके अंदर बहते रस का स्वाद नहीं लिया जा सकता। रहमान की इस सांगीतिक रचना में आप अगर एक बार डूबे तो सच मानिए आपको जल्दी किनारा नहीं मिलेगा या दूसरे शब्दों में कहूँ तो आप जल समाधि से बाहर नहीं निकलना चाहेंगे।
फिल्म का ये गीत था नैना नीर बहाए.. जिसे आवाज़ दी थी साधना सरगम ने। आज भी इसे साधना सरगम के गाए बेहतरीन गीतों में से एक माना जाता है। साधना सरगम जिनका मूल नाम साधना घाणेकर वैसे तो मराठी हैं पर आपको ये जानकर ताज्जुब होगा कि वसंत देसाई और पंडित जसराज जैसे गुरुओं के सानिध्य में शास्त्रीय और सुगम संगीत सीखने वाली ये गायिका हमारे देश की 27 भाषाओं के पन्द्रह हजार के लगभग गीत गा चुकी है। हिंदी फिल्मों में वैसे तो साधना ने सैकड़ों गीत गाए हैं पर जाबांज का हर किसी को नहीं मिलता यहाँ प्यार.. फिर तेरी कहानी याद आई का तेरे दर पर सनम..... , जुर्म का जब कोई बात बिगड़ जाए.... और फिल्म सपने के चंदा रे..... जैसे गीतों से आम जनता के बीच खासी मक़बूलियत मिली। पर मुझे तो वो हमेशा याद रहीं जो जीता वो सिंकदर के गीत पहला नशा पहला ख़ुमार.... और विश्वात्मा के गीत सात समंदर पार से...। मुझे अच्छी तरह याद है कि इंजीनियरिंग कॉलेज के उस पहले साल में हम इस गीत को बारहा सुना और गुनगुनाया करते थे। पर इन सब गीतों पर साथिया में उनका गाए गीत चुपके से.... भारी पड़ता है। वो गीत मुझे इस लिए भी अजीज़ हैं क्यूँकि उसकी भावनाओं को मेरी पूरी पीढ़ी ने दिल से जिया है। दरअसल ए आर रहमान के लिए किया उनका काम उन्हें बतौर पार्श्व गायिका एक अलग ही धरातल पर ला खड़ा करता है।
अब Water के इस गीत को ही लें। जैसा कि मैंने पहले जिक्र किया कि ये नग्मा राग भटियार पर आधारित है। राग भटियार पौ फटने की बेला के ठीक पहले यानि रात्रि के अंतिम प्रहर में गाया जाने वाला राग है। लोग ऐसा मानते हैं कि ये राग अँधेरे से निकल कर एक नई सुबह आने की उम्मीद का राग है। विरह की पीड़ा का दंश झेलती नायिका को राधा और मीरा के दृष्टांत ये विश्वास दिलाते हैं कि उसने सामाजिक प्रताड़ना का जो विष निगला है उसे प्रेम की शक्ति अमृत बना देगी। नायिका का दर्द हृदय की गहराइयों से उठता हुआ आँखों की कोर तक तो पहुँचता अवश्य है पर झर झर गिरती अश्रु धारा एक ऐसी वैतरणी का रूप लेती है जो प्रेम के सात सुरों को साथ पाकर अपने अराध्य की ओर उन्मुख हो जाती है़।
सुखविंदर सिंह के लिखे बोलों में अंतरनिहित भावनाओं को ए आर रहमान ने एक ऐसी मधुर धुन में परिवर्तित किया है जिसे सुनकर व्यथित मन पर भी एक सुकून सा तारी होने लगता है। चित्त को शांत करती संतूर की तरंग के साथ बहती साधना सरगम की आवाज़ इंटरल्यूड्स में बाँसुरी और मृदंगम का साथ पा कर और प्रभावी हो जाती है। तो आइए सुनते हैं इस गीत को...
नैना नीर बहाए
मुझ बिरहन का दिल साजन संग
झूम झूम कर गाए
नैना नीर बहाए
विष का प्याला काम ना आया
मीरा ने पी के दिखलाया
प्रेम तो है गंगा जल इसमें
विष अमृत बन जाए
प्रेम है गिरिधर की बाँसुरिया
प्रेम है राधा की साँवरिया
ये है सात सुरों का दरिया
झर झर बहता जाए
चलते चलते रहमान की इस संगीतबद्ध रचना का आनंद फिर लीजिए विजय कानन द्वारा बाँसुरी पर बजाई इस गीत की धुन के माध्यम से..
7 टिप्पणियाँ:
मनीष जी , ऐसी अद्भुत संगीत रचना सुनवाने के लिए धन्यवाद छोटा शब्द है . खासकर यों कि वाटर कब आई और गई सामान्यतः पता नहीं चला . यह गीत आपके माध्यम से ही सुना गया है और सचमुच यह गहरे जल सा ही है .
सदा की भांति एक अत्यंत ही मनमोहक प्रस्तुति मनीष भईया! राग भटियार पर हिंदी सिनेमा में अन्य रागों की अपेक्षा कम ही गीत बने है। कुछ गीतों से इसका साम्य यदि है भी केवल इस कारण कि वे समान थाट (मारवा) पर ही आधारित किसी राग में निबद्ध हैं। एक गीत मुझे भी याद आ रहा है फ़िल्म 'सुर संगम' से 'आयो प्रभात सब मिल गाओ'। पुनः स्मरण करने हेतु आपका हृदय से आभार।
Amazing. I listened it first time. Thank you for sharing this melodious song.
गिरिजा जी
संगीतप्रेमियों का काम ही संगीत की मधुरता और गहराई को आपस में बांटना है। अब देखिए ना मैंने ये गीत वॉटर के प्रदर्शित होने के समय ही सुना था पर इसकी याद मुझे मेरे एक मित्र ने ही दिलाई। आपने इस गीत की भावनाओं को दिल से महसूस किया जान कर प्रसन्नता हुई।
संदीप शुक्रिया इस जानकारी के लिए। आयो प्रभात सब मिल गाओ के मुखड़े को बार बार दोहराना मुझे बेहद पसंद रहा है। :)
वाह! सुबह-सुबह यह गीत सुनकर मन को बड़ी शांति सी मिली। गीत के बोल भी दिल को छू गए। सच्ची प्रीति का हल्का स्पर्श भी रोम-रोम को पुलकित कर देता है। ऐसा आनंद मिलता है की फिर क्या आँसू और क्या मुस्कुराहट सब प्रेम क परिचायक बन जाते है। बहुत अच्छा लगा इस गीत को सुन, धन्यवाद इसे इतनी जानकारी के साथ पेश करने के लिए।
"प्रीत का हल्का स्पर्श भी रोम-रोम को पुलकित कर देता है। ऐसा आनंद मिलता है कि क्या आँसू और क्या मुस्कुराहट सब प्रेम के परिचायक बन जाते है।"
बिल्कुल.. पूर्ण सहमति
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