कई साल पहले एक उर्दू फोरम में इस ग़ज़ल से पहला परिचय हुआ था। तब भी पता नहीं था कि ये ग़ज़ल किसने लिखी? आज भी नहीं है। पर जिसने भी लिखी है क्या खूब लिखी है। गाहे बगाहे डॉयरी को खोलकर इसे पढ़ जरूर लेता हैँ। पन्नों पर बिखरे शब्द जहाँ दिल को गुदगुदाते हैं वहीं कुछ उदास भी कर जाते हैं। मोहब्बत के जज़्बे में पिरोये अहसास दिल को दाद देने पर मजबूर तो करते ही हैं पर साथ ही शायर का एकाकीपन कुछ अशआरों में एक चुभन सी पैदा करता है।
चूँकि ये ग़ज़ल सरहद पार के किसी शायर की रचना है तो देवनागरी में शायद ही आपने इसे पढ़ा होगा। आज यूँ ही मन हुआ इसे अपनी आवाज़ में रिकार्ड करने का। तो आइए सुनते हैं इस ग़ज़ल को
यूँ मातमी से लिबास में कोई आह ओ फुगाँ है आज भी
जैसे चश्म ए तर में ख़्वाब कोई परेशाँ है आज भीचश्म ए तर : भीगी आँखें, आह ओ फुगाँ :आांतरिक पीड़ा/ विलाप
मैं ज़िंदगी की रहगुज़र पे दरबदर हूँ इसलिए
कि मोहब्बतों के शहर में दिल बेमकाँ है आज भी
तेरी आरजू है बहुत मगर मेरी पहुँच नहीं है इस क़दर
मेरी ख़्वाहिशों के वास्ते तू आसमाँ है आज भी
मैं तौहीद के हर हिसाब से वैसे तो मुसलमान हूँ
पर तुझे पूजने की बात है तो दिल बेईमान है आज भी
तौहीद : नियम
तेरी अंजुमन, तेरा हर करम, तेरी चाहतें तो छिन गयीं
मगर दर्द जो मेरा नसीब बना वो मेहरबाँ है आज भी
तेरी अज़ीयतों का सवाल है तो मुझे कल भी ज़ब्त पे नाज़ था
तुझे कोसने की बात है तो दिल बेजुबाँ है आज भी
अज़ीयत :यंत्रणा, ज़ब्त :अपनी भावनाओं को काबू में रखना
कभी दर्द हद से बढ़ा भी तो मैं तेरी हद से बढ़ा नहीं
मेरी साँस की तस्बीहों में इक तू ही रवाँ है आज भी
तस्बीह :प्रार्थना , रवाँ : चलता बहता हुआ
सौ बादलों के सिलसिले मेरी छत पे बरस कर चले गए
पर जला जला धुआँ धुआँ मेरा आशियाँ है आज भी
मुझे कल मिले थे कुछ गुलाब जो तेरे लिए ये कह गए
कि तेरे इंतज़ार में सोग़वार गुलशन का समा है आज भी
सोग़वार : ग़मज़दा
रिकार्डिंग मोबाइल पे की इसलिए उसकी गुणवत्ता उतनी अच्छी नहीं है, पर ये ग़ज़ल आपके दिल के करीब से गुजरी होगी ऐसी उम्मीद है।
13 टिप्पणियाँ:
bahut sundar
शुक्रिया राधा !
alfaaz aur jazbaat dono kya baat hai share karne ke liye shukria salil
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (04-05-2015) को "बेटियों को सुशिक्षित करो" (चर्चा अंक-1965) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
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बड़ी खूबसूरती से अपनी आवाज का पैरहन पहनाया है आपने इस गजल को ।लाजवाब
सराहने के लिए धन्यवाद स्मिता जी !
हार्दिक आभार शास्त्री जी !
आपकी आवाज़ में भी अलग ही कुछ बात है। :) वाह वाह!
khoobsoorat Manish ji!!!
kamak ki awaaz !
kamaal ka kalaam:
मैं तौहीद के हिसाब हर से वैसे तो मुसलमान हूँ
तुझे पूजने की बात है, तो दिल बेईमान है आज भी
sanjeeda ash'aar ka asar aur aapki pur.soz aawaaz ka jaadu ... dil ko ik ajab-sa sukoon de gaye ... dili mubarakbaak pesh karta huN ... "daanish"
सलिल शुक्रिया इस ग़ज़ल को पसंद करने के लिए।
नम्रता आवाज़ आपको पसंद आई जान कर खुशी हुई।
लोरी ग़ज़ल आतनी अच्छी है कि बोलते वक़्त वो अहसास ख़ुद बा ख़ुद मन में घर कर लेते हैं।
दानिश आप जैसे काबिल ग़ज़लकार की तरफ़ से मिलने वाली मुबारकबाद मेरे लिए खास है।
मनीष जी जाने कितनी बार पढ़ा इस ग़ज़ल को ,और हर बार लगता है एक बार और !आपका बहुत बहुत धन्यवाद इसे शेयर करने के लिए!
अरे वाह खुशी हुई कि इतनी अच्छी लगी आपको ये ग़ज़ल सीमा जी
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