आदमी को आदमी बनाने के लिए
जिंदगी में प्यार की कहानी चाहिए
और कहने के लिए कहानी प्यार की
स्याही नहीं, आँखों वाला पानी चाहिए...
सर्वस देकर मौन रुदन का क्यों व्यापार किया करता हूँ?
भूल सकूँ जग की दुर्घातें उसकी स्मृति में खोकर ही
जीवन का कल्मष धो डालूँ अपने नयनों से रोकर ही
इसीलिए तो उर-अरमानों को मैं छार किया करता हूँ
मैं क्यों प्यार किया करता हूँ?
कहता जग पागल मुझको, पर पागलपन मेरा मधुप्याला
अश्रु-धार है मेरी मदिरा, उर-ज्वाला मेरी मधुशाला
इससे जग की मधुशाला का मैं परिहार किया करता हूँ
मैं क्यों प्यार किया करता हूँ?
कर ले जग मुझसे मन की पर, मैं अपनेपन में दीवाना
चिन्ता करता नहीं दु:खों की, मैं जलने वाला परवाना
अरे! इसी से सारपूर्ण-जीवन निस्सार किया करता हूँ
मैं क्यों प्यार किया करता हूँ?
उसके बन्धन में बँध कर ही दो क्षण जीवन का सुख पा लूँ
और न उच्छृंखल हो पाऊँ, मानस-सागर को मथ डालूँ
इसीलिए तो प्रणय-बन्धनों का सत्कार किया करता हूँ
मैं क्यों प्यार किया करता हूँ?
(उर : दिल, सर्वस : सर्वस्व, कल्मष : मैल, परिहार : त्यागने की क्रिया )
जिंदगी में प्यार की कहानी चाहिए
और कहने के लिए कहानी प्यार की
स्याही नहीं, आँखों वाला पानी चाहिए...
गोपाल दास नीरज की इन पंक्तियों से कौन नहीं वाकिफ़ होगा। बिल्कुल सही कहा नीरज ने अगर हममें प्रेम का भाव नहीं हो तो फिर हम इंसान ही नही है। सच मानिए ज़िदगी का जितना हिस्सा इस भाव में डूबा रहे हम उतने ही स्नेहिल, खुशमिजाज़ व उर्जावान हो जाते हैं। ऐसे में आप अपने से ज्यादा दूसरों के बारे में सोचते हैं। स्वार्थ की परछाई आपको छू भी नहीं पाती। संसार में आपके वज़ूद को एक वजह मिल जाती है। ये स्थिति आपको अपनी परिपूर्णता का अहसास दिलाती है। ऐसी अवस्था में दुखों से घिरा होने के बावजूद आप उसके प्रभावों से मुक्त रहते हैं ।
दूसरी ओर ये भी सच है कि प्रेम में हों तो पीड़ा भी होती है। पर ये वो पीड़ा है जो आपको अश्रुविगलित करते हुए भी आपके मन आँगन को धो डालती है। आप उस व्यथा से गुजर कर अपने मन को पहले से अधिक निर्मल पाते हैं। सो प्रेम में पड़िए और बार बार पड़िए चाहे वो प्रेम बच्चों, नाते रिश्तादारों, संगी साथियों, सहचरों या जरूरतमंदों से ही की क्यूँ ना हो।
हो सकता है आपको अब भी मेरे तर्क कुछ खास जम नहीं रहें हों। कोई बात नहीं मेरी नहीं मानते ना सही गोपाल दास नीरज की बात तो मानेंगे ना आप तो चलिए आज उनका ये प्यारा सा गीत ही सुनवा देता हूँ। आवाज़ जरूर मेरी है..
दूसरी ओर ये भी सच है कि प्रेम में हों तो पीड़ा भी होती है। पर ये वो पीड़ा है जो आपको अश्रुविगलित करते हुए भी आपके मन आँगन को धो डालती है। आप उस व्यथा से गुजर कर अपने मन को पहले से अधिक निर्मल पाते हैं। सो प्रेम में पड़िए और बार बार पड़िए चाहे वो प्रेम बच्चों, नाते रिश्तादारों, संगी साथियों, सहचरों या जरूरतमंदों से ही की क्यूँ ना हो।
हो सकता है आपको अब भी मेरे तर्क कुछ खास जम नहीं रहें हों। कोई बात नहीं मेरी नहीं मानते ना सही गोपाल दास नीरज की बात तो मानेंगे ना आप तो चलिए आज उनका ये प्यारा सा गीत ही सुनवा देता हूँ। आवाज़ जरूर मेरी है..
सर्वस देकर मौन रुदन का क्यों व्यापार किया करता हूँ?
भूल सकूँ जग की दुर्घातें उसकी स्मृति में खोकर ही
जीवन का कल्मष धो डालूँ अपने नयनों से रोकर ही
इसीलिए तो उर-अरमानों को मैं छार किया करता हूँ
मैं क्यों प्यार किया करता हूँ?
कहता जग पागल मुझको, पर पागलपन मेरा मधुप्याला
अश्रु-धार है मेरी मदिरा, उर-ज्वाला मेरी मधुशाला
इससे जग की मधुशाला का मैं परिहार किया करता हूँ
मैं क्यों प्यार किया करता हूँ?
कर ले जग मुझसे मन की पर, मैं अपनेपन में दीवाना
चिन्ता करता नहीं दु:खों की, मैं जलने वाला परवाना
अरे! इसी से सारपूर्ण-जीवन निस्सार किया करता हूँ
मैं क्यों प्यार किया करता हूँ?
उसके बन्धन में बँध कर ही दो क्षण जीवन का सुख पा लूँ
और न उच्छृंखल हो पाऊँ, मानस-सागर को मथ डालूँ
इसीलिए तो प्रणय-बन्धनों का सत्कार किया करता हूँ
मैं क्यों प्यार किया करता हूँ?
(उर : दिल, सर्वस : सर्वस्व, कल्मष : मैल, परिहार : त्यागने की क्रिया )
8 टिप्पणियाँ:
Quality post....thanks for sharing
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, कदुआ की सब्जी - ब्लॉग बुलेटिन , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
नीरज एक कालजीवी कवि , जिनकी तुलना कुछ कवियों से की जा सकती है , एक उत्तम कवि हैं
Nice one thanks for sharing
thanks manish ji kavi Gopal Das Neeraj mere sabse priya kavi hain...
परमेश्वरी जी, मनीष, महेंद्र नाग जी, सीमा नीरज जी का ये गीत आप सबको भी रुचिकर लगा जानकर खुशी हुई।
ब्लॉग बुलेटिन हार्दिक आभार !
वाह। अगर प्यार करना पागलपन हो या दुखों का सागर ही हो, इसके जैसा सुकून, निर्मलता और संसार में किसी भी चीज़ में नहीं है। यह कविता मुझे बहुत पसंद आई।
बद्र साहब का शेर आपकी आवाज़ की नज़र :
आग को गुलज़ार कर दे, बर्फ को दरिया करे
देखने वाला , तेरी आवाज़ को देखा करे …।
आपकी आवाज़!!!!
और नीरज जी का कलाम !
ख़ास कर " प्रणय -बंधनो के सत्कार की मासूम वजह "
दिल ले गए जी!
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