शनिवार, अक्टूबर 10, 2015

रवींद्र जैन : खुशबू जैसे फूलों में उड़ने से भी रह जाए ! Ravindra Jain

संगीतकार रवींद्र जैन नहीं रहे। पर अपने रचे गीतों की सुनहरी यादों की लड़ी सी छोड़ गए हैं वो। दस वर्ष का भी नहीं रहा हूँगा जब पहली बार उनका रचा संगीत कानों में पड़ा। उन दिनों बाकी फिल्में हम जाएँ या ना जाएँ पर पिताजी राजश्री प्रोडक्शन की फिल्में हमें देखने जरूर ले जाया करते थे। सत्तर के दशक में राजश्री ने जो फिल्में बनाई उनमें से अधिकांश के संगीतकार रवींद्र जैन ही थे। ये वो दौर था जब राजश्री की फिल्में हिट होने पर तीन महीने से लेकर साल भर तक चलती थीं और इन फिल्मों के चलने में कथावस्तु के साथ साथ संगीत का महती योगदान होता था। अब गीत गाता चल और नदिया के पार जैसी फिल्मों का ख़्याल करते वक़्त जेहन में गीत गाता चल ओ साथी गुनगुनाता चल... या कौन दिशा में ले के चला रे बटोहिया... जैसे गीत ना आएँ ऐसा हो सकता है भला?


बतौर संगीतकार रवींद्र जैन की मुझे सत्तर के दशक की जो दो फिल्में हमेशा याद रहती हैं वो थीं चितचोर और अँखियों के झरोखे से। दोनों ही राजश्री की फिल्में थीं और कमाल की बात तो ये है कि रवींद्र जैन ने ना केवल इन फिल्मों का संगीत दिया था बल्कि  गीतों के बोल भी लिखे थे। चितचोर के गीतों आज से पहले आज से ज्यादा.., जब दीप जले आना...., तू जो मेरे सुर में सुर मिलाए... की मधुरता को कौन भूल सकता है? वहीं अगर आपको याद हो तो गोरी तेरा गाँव बड़ा प्यारा ने येसूदास जैसे नवोदित गायक को तब लोकप्रियता की ऊँचाई पर ला खड़ा कर दिया था। येसूदास के आलावा हेमलता , जसपाल सिंह, सुरेश वाडकर जैसी आवाज़ों को जनता के सम्मुख लाने का श्रेय भी रवींद्र जी को ही दिया जाता है।

पर आज रवींद्र जी की याद मुझे ले गई है करीब तीन दशक पीछे जब मैं उनकी संगीतबद्ध फिल्म अँखियों के झरोखे से देखने गया था। आज भी इसके संगीत से जुड़ी दो बातें भुला नहीं पाया एक तो इसकी दोहावली और दूसरे इसका शीर्षक गीत।


इस फिल्म में एक दोहावली है जिसमें कॉलेज में चल रही प्रतियोगिता में रवींद्र जी ने एक गीत का रूप दे दिया था। स्कूल में इनके भावार्थ को लेकर हम तब पशोपेश में पड़े रहते थे पर फिल्म में उनका इतना सुन्दर प्रस्तुतिकरण देखकर बाल मन में दोहों के प्रति अभिरुचि फिर से जाग उठी थी।

रही शीर्षक गीत की बात तो क्या शब्द रचना और क्या धुन बनाई थी रवींद्र जी ने।  जीवन में ना जाने कितनी बातें अप्राप्य लगती हैं। प्रेम भी कभी कभी उनमें से एक हो जाता है क्यूँकि कई बार अपने हमसफ़र तक पहुँचने के लिए कठिन वास्तविकताओं से रूबरू होना पड़ता है, परिस्थितियों से लड़ना पड़ता है। पर आँखें बंद कीजिए, मन के आँगन में गोते लगाइए तो कठोर वास्तविकताओं की ये दीवार ढह सी जाती है। रह जाता है तो अपने उस प्यारे से साथी का सलोना सा मुखड़ा जो इतना करीब आ जाता है कि नींद, चैन, सपने सब फिर से उसके गुलाम हो जाते हैं। पर आँखें हमेशा तो बंद नहीं की जा सकती ना। फिर तो जूझना ही पड़ता है हर किसी को अपने हृदय से, अपने लगाव से और उसके अलग हो जाने के भय से।

कितनी खूबसूरती से बाँधा था रवीन्द्र जी ने गीत के इन भावों को। मुझे नहीं लगता कि कोई भी संगीतकार ऐसा होगा जिसे कहानी के अनुरूप भावनाओं को शब्दों का जामा पहनाना इस बखूबी से आता हो। यही वज़ह है कि रवीन्द्र जी का गीत संगीत हमेशा एक दूसरे में पूरी तरह घुला मिला सा लगता  है।

फिल्म देखते वक़्त मेरा बाल मन इस गीत से ऐसा जुड़ गया था कि इसके  दुख भरे हिस्से के आते आते आँसुओं की अविरल धारा को मेरे लिए रोकना मुश्किल हो गया था... शायद ये दर्द ही है जो इस गीत को यादों के दायरे के बाहर जाने नहीं देता..। तो आइए आज सुनते हैं इस गीत को जिसे गाया था हेमलता व जसपाल सिंह ने।


अँखियों के झरोखों से मैने देखा जो साँवरे
तुम दूर नज़र आये, बड़ी दूर नज़र आये
बंद कर के झरोखों को ज़रा बैठी जो सोचने
मन में तुम ही मुस्काए, मन में तुम ही मुस्काए


एक मन था मेरे पास वो अब खोने लगा है
पाकर तुझे, हाए मुझे कुछ होने लगा है
एक तेरे भरोसे पे सब बैठी हूँ भूल के
यूँ ही उम्र गुजर जाए, तेरे साथ गुजर जाए

जीती हूँ तुम्हे देख के मरती हूँ तुम्हीं पे
तुम हो जहाँ साजन मेरी दुनियाँ है वही पे
दिन रात दुआ माँगे मेरा मन तेरे वास्ते
कही अपनी उम्मीदों का कोई फूल ना मुरझाए

मैं जब से तेरे प्यार के रंगो में रंगी हूँ
जगते हुए सोयी रही, नींदो में जगी हूँ
मेरे प्यार भरे सपने, कही कोई न छीन ले
मन सोच के घबराए, यही सोच के घबराए


रवींद्र जैन ने धार्मिक फिल्मों में भी संगीत दिया, रामायण जैसे कई लोकप्रिय धारावाहिक में अपना संगीत पिरोया, यहाँ तक कि तमाम गैर फिल्मी एलबम किए जो बेहद लोकप्रिय भी हुए। क्या इतनी बहुमुखी प्रतिभा का धनी कोई व्यक्ति जन्म से अंधा हो सकता है? दरअसल उनके जीवन की इस क्रूर सच्चाई का पता मुझे नब्बे के दशक में चला। ऐसे व्यक्ति की जीवटता और हुनर देख के मन में सच्ची श्रद्धा उमड़ती है। उनका जीवन अपने आप में एक मिसाल था और रहेगा। आज  वो हमारे बीच नहीं है पर उनको याद करते हुए शायद ये शब्द सदा मेरे होठों पर रहें..

 

कलियाँ ये सदा प्यार की मुसकाती रहेंगी
खामोशियाँ तुझसे मेरे अफ़साने कहेंगी
जी लूँगा नया जीवन तेरी यादों में बैठ के
खुशबू जैसे फूलों में उड़ने से भी रह जाए
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20 टिप्पणियाँ:

डॉ. अजीत कुमार on अक्टूबर 10, 2015 ने कहा…

daadu ko sadar hardik shradhanjali.

शिखा on अक्टूबर 10, 2015 ने कहा…

अँखियों के झरोखों से का एक और गाना "जाते हुए ये पल छिन क्यों जीवन लिये जाते "...आज भी मुझे विचलित कर देता है...
अपने गीतों के द्वारा सदैव हम लोगों के साथ रहेंगे रवींद्र जी

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' on अक्टूबर 10, 2015 ने कहा…

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (11-10-2015) को "पतंजलि तो खुश हो रहे होंगे" (चर्चा अंक-2126) पर भी होगी।
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
चर्चा मंच परिवार की ओर से भावभीनी श्रद्धांजलि
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

Manish Kumar on अक्टूबर 10, 2015 ने कहा…

शिखा जी बिल्कुल छोटी आयु में तो नहीं पर बाद में मुझे भी वो इस फिल्म के बेहतरीन गीतों में लगता था।

हार्दिक आभार शास्त्री जी।

Disha Bhatnagar on अक्टूबर 10, 2015 ने कहा…

मेरे बेहद पसन्दीदा गीत 'साथी रे भूल न जाना मेरा प्यार' के रचयिता 'रवीन्द्र जैन' जी को श्रद्धांजलि! । बाकी Manish जी के शब्दों के बाद कुछ कहने की गुंजाइश ही नहीं रहती।

Manish Kumar on अक्टूबर 10, 2015 ने कहा…

रवींद्र जैन के मधुर गीतों की तो एक लंबी फेरहिस्त है दिशा ! बस उस गीत की तरह आपके साथी आपका प्यार ना भूलें यही कामना है smile emoticon पोस्ट पसंद करने के लिए शुक्रिया !

Manish Kaushal on अक्टूबर 10, 2015 ने कहा…

रवींद्र जैन को श्रद्धांजली.. अँखियों के झरोखे से इतना मधुर लगता है की कानो में मिश्री सा घुलता है.. स्व जैन की स्मृति में इस पोस्ट के लिए हार्दिक आभार.

Manish Kumar on अक्टूबर 10, 2015 ने कहा…

शुक्रिया मनीष सचमुच मुझे भी बेहद मधुर और भावनात्मक लगताा है ये गीत।

Sonroopaa Vishal on अक्टूबर 10, 2015 ने कहा…

कितना सुंदर लिखा आपने बिलकुल रवीन्द्र जी के लिखे रचे गीतों की तरह !

Manish Kumar on अक्टूबर 10, 2015 ने कहा…

ये आलेख आपको अच्छा लगा जानकर प्रसन्नता हुई सोनरूपा। :)

Archana Chaoji on अक्टूबर 11, 2015 ने कहा…

हमेशा याद किए जाते रहेंगे रवीद्र जी ....उनके भक्ति गीत बहुत मनभाए हैं

Onkar on अक्टूबर 11, 2015 ने कहा…

उत्कृष्ट प्रस्तुति

रश्मि शर्मा on अक्टूबर 11, 2015 ने कहा…

Bahut achha likha aapne.

जमशेद आज़मी on अक्टूबर 13, 2015 ने कहा…

शानदार रचना की प्रस्‍तुति। मेरे ब्‍लाग पर आपका स्‍वागत है।

Unknown on अक्टूबर 14, 2015 ने कहा…

रवीन्द्र जी को श्रद्धांजलि, मेरे पसंदीदा गीतों में से है ये गीत !बहुत ही भोला और प्यारा सा !

Manish Kumar on अक्टूबर 14, 2015 ने कहा…

हाँ अर्चना जी बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे रवींद्र जैन साहब !

ओंकार शुक्रिया !

रश्मि आपको पसंद आया जान कर खुशी हुई।

जमशेद हार्दिक आभार !

Manish Kumar on अक्टूबर 14, 2015 ने कहा…

भोला और प्यारा सा बिल्कुल सीमा आपने मेरे मन की बात कह दी :)

जसवंत लोधी on अक्टूबर 23, 2015 ने कहा…

बहूत सुन्दर लेख है ।Seetamni. blogspot. in

मन्टू कुमार on अक्टूबर 26, 2015 ने कहा…

जब दीप जले आना...जब शाम ढले आना...
रवींद्र दादा,संगीत प्रेमियों के मन में देर तक याद रहेंगें

Unknown on जुलाई 15, 2021 ने कहा…

Sir ap ne dunyan ko ye sikhaya hai ke jindagi me agar insan dil se karna chahe to kuch bhi kathin nahi hai

 

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