अस्सी के दशक में मुज़फ़्फ़र अली ने एक फिल्म बनाई थी अंज़ुमन। इससे पहले मुज़फ़्फ़र गमन, आगमन और उमराव जान जैसी फिल्में बना चुके थे। पर उमराव जान की सफलता से उलट लखनऊ के चिकन से काम से जुड़े कारीगरों की कहानी कहती ये फिल्म ठीक से प्रदर्शित भी नहीं हो पाई। फिर भी इस फिल्म का जिक्र इसके संगीत और गायिकी के लिए गाहे बाहे होता ही रहता है।
ख़य्याम के संगीत निर्देशन में बनी इस फिल्म में पाँच नग्मे थे जिनमें दो तो युगल गीत थे। रोचक तथ्य ये है कि इस फिल्म के तीन एकल गीतों को मशहूर अदाकारा शबाना आज़मी ने अपनी आवाज़ दी थी। जैसा कि मुजफ्फर अली की अमूमन सभी फिल्मों में होता आया है, इस फिल्म के गीतों की की शब्द रचना जाने मने शायर शहरयार साहब ने की थी।
शबाना ने इस फिल्म तुझसे होती भी तो क्या.. के आलावा मैं राह कब से नई ज़िंदगी की तकती हूँ..हर इक क़दम पे हर इक मोड़ पे सँभलती हूँ... और ऐसा नहीं कि इसको नहीं जानते हो तुम.आँखों में मेरी ख़्वाब की सूरत बसे हो तुम...... जैसी ग़ज़लों को अपनी आवाज़ दी थी। इसके आलावा भूपेंद्र के साथ उनका एक युगल गीत गुलाब ज़िस्म का भी रिकार्ड हुआ था।
शबाना ने इस फिल्म तुझसे होती भी तो क्या.. के आलावा मैं राह कब से नई ज़िंदगी की तकती हूँ..हर इक क़दम पे हर इक मोड़ पे सँभलती हूँ... और ऐसा नहीं कि इसको नहीं जानते हो तुम.आँखों में मेरी ख़्वाब की सूरत बसे हो तुम...... जैसी ग़ज़लों को अपनी आवाज़ दी थी। इसके आलावा भूपेंद्र के साथ उनका एक युगल गीत गुलाब ज़िस्म का भी रिकार्ड हुआ था।
आजकल नायक व नायिकाओं की आवाज़ का इस्तेमाल निर्माता निर्देशक फिल्मों के प्रमोशन के लिए करते रहते हैं। पिछले कुछ सालों पर नज़र डालें तो आलिया भट्ट, श्रद्धा कपूर व प्रियंका चोपड़ा के साथ सलमान खाँ, संजय दत्त और अक्षय कुमार जैसे कलाकार माइक्रोफोन के पीछे अपनी आवाज़ आज़मा चुके हैं। इनमें प्रियंका और कुछ हद तक आलिया को छोड़ बाकियों की आवाज़ कामचलाऊ ही रही है जिन्हें मशीनों के माध्यम से श्रवणीय बना दिया गया है। पर नब्बे के दशक में रेडिओ के प्रायोजित कार्यक्रम के आलावा कहीं प्रमोशन की ज्यादा गुंजाइश ही नहीं हुआ करती थी और कला फिल्मों की तो वो भी नहीं। फिर भी ख़य्याम ने फिल्म की मुख्य गायिका के रूप में शबाना को ही चुना।
शबाना जी से जब भी इस संबंध में सवाल किए गए हैं तो उन्होंने यही कहा है कि अपने पिता की ख़्वाहिश पूरी करने के लिए उन्होंने इन गीतों को गाने के लिए सहमति दी। दरअसल कैफ़ी आज़मी अपनी बेटी को एक अभिनेत्री के आलावा एक गायिका के रूप में भी देखना चाहते थे। शबाना तो अपने आप को बाथरूम सिंगर भी मानने को तैयार नहीं होती पर ये नग्मे उनकी गायिकी के बारे में कुछ और ही कहानी कहते हैं।
भले ही उनकी आवाज़ किसी पार्श्व गायक सरीखी ना हो पर उसे नौसिखिये की श्रेणी में भी नहीं रखा जा सकता। पहली बार सुनने पर मुझे तो उनकी आवाज़ में कुछ सलमा आगा और कुछ गीता दत्त का अक़्स आता दिखा। शबाना की गाई फिल्म की एकल ग़ज़लों में तुझसे होती भी तो क्या होती शिकायत मुझको .. सबसे ज्यादा पसंद हैं। शहरयार ने अपनी लेखनी से ग़ज़ल में जिस दर्द को व्यक्त किया है वो शबाना की आवाज़ में सहजता से उतरता दिखता है।
आप किसी को चाहते हैं भली भांति जानते हुए कि वो आपका हो नहीं सकता तो फिर शिकायत करने से क्या फ़ायदा ! हाँ जो पीड़ा आपको सहनी पड़ी वो ही तो ऐसे रिश्तों की दौलत है जिसे आप हृदय में सहेज के रख सकते हैं। इसीलिए ग़ज़ल के मतले में शहरयार कहते हैं..
तुझसे होती भी तो क्या होती शिकायत मुझको
तेरे मिलने से मिली दर्द की दौलत मुझको
ऐसी हालत में मन को समझाएँ भी तो कैसे? बस यही कह कर ना कि ज़िदगी में और भी मुकाम हैं मोहब्बत के सिवा। किसे पता शायद ही उन्हें ही पूरा करने के लिए किस्मत ये दिन दिखला रही हो..
जिन्दगी के भी कई कर्ज हैं बाकी मुझ पर
ये भी अच्छा है न रास आई मुहब्बत मुझको
पर उदासी की चादर ओढ़ कर ये जीवन तो जिया नहीं जा सकता ना। सो मुझे तुम्हारी यादों की बदलियों से बाहर निकलना होगा। क्या पता शायद इस ज़हान के किसी कोने में धूप की कोई किरण मेरा इंतज़ार कर रही हो? शायद वो दुनिया ही मेरे ख़्वाबों की तामीर करे
तेरी यादों के घने साए से रुखसत चाहूँ
फिर बुलाती है कहीं धूप की शिद्दत मुझको
सारी दुनिया मेरे ख्वाबों की तरह हो जाए
अब तो ले दे के यही एक है हसरत मुझको
फिर बुलाती है कहीं धूप की शिद्दत मुझको
सारी दुनिया मेरे ख्वाबों की तरह हो जाए
अब तो ले दे के यही एक है हसरत मुझको
तो कैसी लगी आपको शबाना की आवाज? इस फिल्म के बाकी गाने भी फुर्सत से जरूर सुनिएगा। आज़ के इस शोर सराबे में जरूर सुकून के कुछ पल आप अपने करीब पाएँगे। वैसे चलते चलते ये बता दूँ कि हाल फिलहाल में शबाना आज़मी ने एक फिल्म चॉक और डस्टर के लिए अपनी आवाज़ रिकार्ड की है। गणित की शिक्षिका के रूप में यहाँ वो कुछ तुकबंदियों के सहारे BODMAS के गुर को समझाती नज़र आएँगी।
11 टिप्पणियाँ:
सुंदर आवाज़ थी। बोल भी तो कितने सुंदर
जिन्दगी के भी कई कर्ज हैं बाकी मुझ पर
ये भी अच्छा है न रास आई मुहब्बत मुझको
हाँ कंचन ग़ज़ल में शहरयार के बोल सचमुच दिल को छूते हैं।
वाह! आज फिर आप एक बेहद ख़ूबसूरत अनछुआ नगीना चमका रहे हैं। साधुवाद आपके लिए :)
मनीष जी आपने फिर एक बिल्कुल अनजाने से गीत से परिचय करवाया है . बोल तो खैर तारीफ के मोहताज हैं ही नही लेकिन शबाना जी की जरूर तारीफ करनी होगी .
शुक्रिया संदीप ! वैसे इस फिल्म के बाकी गीत भी बेहतरीन हैं।
गिरिजा जी सही कह रही हैं। अच्छा गाया उन्होंने और वो भी तब जब उनके सामने ख़य्याम जैसे मँजे संगीत निर्देशक के साथ काम करने का दबाव था।
शबाना आज़मी जी गाती हुईं ? :) शुक्रिया,ढ़ेर सारा....
तेरी यादों के घने साए ..बहुत पसंद है मुझे ये पंक्ति
Shabana ji gaati bhi hain..? thanks for surprise sir..
Ha Manish Kumar jee hamare liye b ye bada surprise hai
Manish व Radha हाँ, इस फिल्म के तीन गाने गाए हैं उन्होंने एक युगल गीत के आलावा.
तेरी यादों के घने साये से रुख्सत चाहूं
फिर बुलाती है कहीं धूप की शिद्दत मुझको ,
ओह बहुत ही खूबसूरत शब्द रचना और शबाना जी ने इसे अच्छा निभाया है। इस छिपे ख़जाने के लिए आपका तहे दिल से शुक्रिया मनीष जी !
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