बुधवार, नवंबर 04, 2015

मुझे खर्ची में पूरा एक दिन, हर रोज़ मिलता है Poora Din by Gulzar

दुनिया कहाँ से कहाँ पहुँच गई। नित विकसित होती ये तकनीकें दूरियों को इस तेजी से पाटेंगी ये किसे पता था? आज हालात ये हैं कि इंटरनेट पर चंद कदमों के फ़ासले पर आप किसी से भी अपने तार जोड़ सकते हैं। पर ये भी है कि इन आभासी डोरियों के  जोड़ बड़े  नाज़ुक होते हैं । जरूरत से ज्यादा आप उसे खींच नहीं सकते। ये जोड़ तभी पुख्ता होते है जब हम अपने उन पसंदीदा लोगों के साथ कुछ वक़्त साथ साथ बिता पाते हैं। यही वज़ह है कि कॉलेज की दोस्तियाँ कभी फीकी नहीं पड़तीं क्यूँकि उनके साथ गुज़रे हुए लमहों की एक बड़ी सी पोटली होती है।

पर अपनी अपनी दिनचर्या की  गुलाम बनी इस दुनिया में अपने मोहल्लों, अपने  शहरों में रहने वालों के लिए ही वक़्त नहीं निकल पाता तो उस आभासी दुनिया की बिसात क्या? पर यही तो सहूलियत है उस दुनिया की जो एक हल्के फुल्के चुटकुले, एक छोटे से लाइक या फिर टिप्पणियों की चंद पंक्तियों से ही उस शख़्स को ये जतलाने में कामयाब रहती है कि  उस पल के लिए ही सही किसी ने उसके बारे में सोचा तो है। पर जैसा लोभी ये मन है ना उसे चैन कहाँ आता है? वो तो फिर भी सोचता है चंद घड़ियाँ... .नहीं नहीं पूरा दिन उस शख़्स के साथ बिताने का।

आज जब मैं गुलज़ार साहब की नज़्म 'पूरा दिन' पढ़ रहा था तो मेरे दिल में यही ख़्याल आ  रहे थे। वैसे भी गुलज़ार के शब्द हमारी रोज़ की ज़िंदगी का इतना सजीव खाका खींचते हैं कि उससे आपने आप को जोड़ने में कुछ सेकेंड से ज्यादा नहीं लगते। इन ख्यालों को अपनी आवाज़ के माध्यम से मूर्त रूप देने की कोशिश की है। पसंद आए तो बताइएगा..


मुझे खर्ची में पूरा एक दिन, हर रोज़ मिलता है
मगर हर रोज़ कोई छीन लेता है,
झपट लेता है, अंटी से

कभी खीसे से गिर पड़ता है तो गिरने की
आहट भी नहीं होती,
खरे दिन को भी खोटा समझ के भूल जाता हूँ मैं

गिरेबान से पकड़ कर ..माँगने वाले भी मिलते हैं
"तेरी गुजरी हुई पुश्तों का कर्जा है, तुझे किश्तें चुकानी है "
ज़बरदस्ती कोई गिरवी रख लेता है, ये कह कर
अभी 2-4 लम्हे खर्च करने के लिए रख ले,
बकाया उम्र के खाते में लिख देते हैं,
जब होगा, हिसाब होगा

बड़ी हसरत है पूरा एक दिन इक बार मैं
अपने लिए रख लूँ,
तुम्हारे साथ पूरा एक दिन
बस खर्च
करने की तमन्ना है !!

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7 टिप्पणियाँ:

Jay dev on नवंबर 05, 2015 ने कहा…

बहुत खूब |

Manish Kumar on नवंबर 05, 2015 ने कहा…

शुक्रिया जयदेव !

Preet Gill on नवंबर 05, 2015 ने कहा…

Beautifully introduced Manish and recitation is not bad either

Manish Kumar on नवंबर 05, 2015 ने कहा…

शुक्रिया प्रीत जानकर खुशी हुई! मैंने इसे पहले गुलज़ार साहब की आवाज़ में ढूँढा नहीं मिली तो लगा इतनी अच्छी है कि मैं ही पढ़ दूँ :)

मन्टू कुमार on नवंबर 14, 2015 ने कहा…

ये जतलाने में कामयाब रहती है कि उस एक पल ही सही किसी ने उसके बारे में सोचा तो है...सही..

2G,3G,4G के स्टेटस पर रिश्ते बनाये जा रहे हैं। वक़्त के साथ सबकुछ सही है...शायद !

Manish Kumar on नवंबर 21, 2015 ने कहा…

परिपक्व रिश्ते बनने के लिए स्टेटस मेसेज तो काफी नहीं हैं मन.. इसलिए ऐसे रिश्तों की उम्र ज्यादा नहीं होती। पर आभासी दुनिया के ये उपक्रम रिश्तों की लौ जलते रहने देने में एक अच्छी भूमिका निभाते हैं इससे इनकार भी नहीं किया जा सकता।

मन्टू कुमार on नवंबर 21, 2015 ने कहा…

:)

 

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