कितना अज़ीब है ना एक संगीतकार जिसे उर्दू क्या... हिंदी के सारे शब्दों का ज्ञान नहीं और दूसरी ओर गीतकार जो लिखता उर्दू में हो और जिसकी सोच ऐसी जो इन भाषा को जानने वालों के लिए भी इतनी गहरी हो कि भावों में डूबने पर ही समझ आए। फिर भी हिंदी फिल्म संगीत में जब भी ये जोड़ी साथ आई बस कमाल हो गया। इसका सीधा सीधा मतलब तो ये है कि भाषा, तहज़ीब, रहन सहन से भी ऊपर कोई चीज़ है जो दो लोगों को आपस में जोड़ देती है। कलाकार इसे एक शब्द में बाँध देते हैं वो है तारतम्य या आपसी ट्यूनिंग। पंचम दा और गुलज़ार के बीच भी ऐसा ही कुछ था। सत्तर के दशक में इन्होंने साथ साथ जितनी फिल्में की व हिंदी फिल्म जगत के इतिहास में मील का पत्थर साबित हुई और उनमें आँधी की तो बात ही क्या !
आँधी के मुख्य किरदार आरती के रूप में सुचित्रा सेन थी। इस किरदार और उस वक़्त की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी में सरकार ने साम्यता ढूँढ ली और आपातकाल लगने के बाद इस फिल्म के प्रदर्शन पर रोक लगा दी गई। रोक गानों पर भी थी। इमरजेंसी के बाद जब गाने फिर से बजे तो फिर बजते ही रहे और आज भी बज रहे हैं।
आँधी के यूँ तो सारे ही गीत मुझे प्रिय हैं पर आज बात करेंगे लता व किशोर के गाए युगल गीत तेरे बिना ज़िंदगी से कोई, शिकवा, तो नहीं की। आख़िर क्या खास था इस गीत में गुलज़ार के जादुई शब्द , पंचम की धुन , लता किशोर की गायिकी या फिर पर्दे पर संजीव कुमार व सुचित्रा सेन की जीवंत अदाकारी? दरअसल इस में सब का सम्मिलित योगदान था और यही वज़ह के सत्तर के दशक के गीतों में आज भी इस गीत की गिनती यू ट्यूब पर सबसे ज्यादा सुने जाने वाले गीतों में होती है।
आपको उत्सुकता होगी कि आख़िर ये कालजयी गीत बना कैसे ? उस ज़माने के सारे बंगाली संगीतकार दुर्गापूजा के सांस्कृतिक उत्सव के लिए धुनें तैयार करते थे। इस काम में लगे होने पर वो फिल्मों के अनुबंध भी ठुकरा देते थे। आपको जानकर आश्चर्य होगा कि पंचम ने इस गीत की धुन को सबसे पहले दुर्गापूजा के इसी महोत्सव के लिए तैयार किया था। गीत के बोल थे जेते जेते पाथे होलो देरी..।
पंचम ने आँधी के लिए यहीं धुन गुलज़ार को थमा दी। गुलज़ार ने इसी धुन को पकड़ कर बोल रचे। पर एक मुश्किल और थी। गुलज़ार गीत के बोलों के बीच नायक व नायिका के कुछ संवाद रखना चाहते थे। पंचम गीत की लय में इस तरह के अवरोध के इच्छुक नहीं थे पर उन्हें झुकना पड़ा। आज ये संवाद इस गीत का उतना ही हिस्सा बन चुके हैं जितना इसके अंतरे।
फिल्म में गीत पार्श्व से बजता है। सितार की मधुर धुन आपको गीत के मुखड़े पर लाती है और फिर बरसों के लंबे अंतराल पर मिलते नायक नायिका का सुख दुख गुलज़ार के शब्दों में बयाँ हो जाता है। दरअसल गुलज़ार ने मुखड़े में भावनाओं का जो विरोधाभास रचा वो ही इस गीत का सार है। जीवन में आगे बढ़ने के लिए हमें कई बार रिश्तों को तिलांजलि देनी पड़ती है। कुछ पाने के लिए बहुत कुछ खोना पड़ता है। पर मुकाम पर पहुँच कर ये भी लगता है कि गर वो ना किया होता तो क्या ज़िंदगी और खूबसूरत नहीं हो जाती?
ख़ैर अब आप ये प्यारा सा गीत सुनिए। संवादों को भी मैंने आपकी सहूलियत के लिए ज्यों का त्यों डाल दिया है।
फिल्म में गीत पार्श्व से बजता है। सितार की मधुर धुन आपको गीत के मुखड़े पर लाती है और फिर बरसों के लंबे अंतराल पर मिलते नायक नायिका का सुख दुख गुलज़ार के शब्दों में बयाँ हो जाता है। दरअसल गुलज़ार ने मुखड़े में भावनाओं का जो विरोधाभास रचा वो ही इस गीत का सार है। जीवन में आगे बढ़ने के लिए हमें कई बार रिश्तों को तिलांजलि देनी पड़ती है। कुछ पाने के लिए बहुत कुछ खोना पड़ता है। पर मुकाम पर पहुँच कर ये भी लगता है कि गर वो ना किया होता तो क्या ज़िंदगी और खूबसूरत नहीं हो जाती?
ख़ैर अब आप ये प्यारा सा गीत सुनिए। संवादों को भी मैंने आपकी सहूलियत के लिए ज्यों का त्यों डाल दिया है।
तेरे बिना ज़िंदगी से कोई, शिकवा, तो नहीं, शिकवा नहीं, शिकवा नहीं, शिकवा नहीं
तेरे बिना ज़िंदगी भी लेकिन, ज़िंदगी, तो नहीं, ज़िंदगी नहीं...ज़िंदगी नहीं, ज़िंदगी नहीं
तेरे बिना ज़िंदगी..
काश ऐसा हो तेरे कदमों से, चुन के मंज़िल चले और कहीं दूर कहीं
तुम गर साथ हो, मंज़िलों की कमी तो नहीं
तेरे बिना ज़िंदगी से कोई, शिकवा, तो नहीं, शिकवा नहीं
सुनो आरती ये जो फूलों की बेलें नजर आती हैं ना ये दरअसल अरबी में आयतें लिखी हुई हैं। इन्हें दिन के वक़्त देखना। बिल्कुल साफ़ नज़र आती हैं। दिन के वक़्त ये पानी से भरा रहता है। दिन के वक़्त ये जो फ़व्वारे हैं ना...
क्यूँ दिन की बात कर रहे हो कहाँ आ पाऊँगी मैं दिन के वक़्त ?
ये जो चाँद है ना इसे रात के वक़्त देखना.. ये रात में निकलता है
ये तो रोज़ निकलता होगा...
हाँ लेकिन कभी कभी अमावस आ जाती है। वैसे तो अमावस पन्द्रह दिन की होती हैं ,,, पर इस बार बहुत लम्बी थी ,
नौ बरस लंबी थी ना....
जी में आता है, तेरे दामन में, सर छुपा के हम रोते रहें, रोते रहें
तेरी भी आँखों में, आँसुओं की नमी तो नहीं
तेरे बिना .....ज़िंदगी नहीं
तुम जो कह दो तो आज की रात, चाँद डूबेगा नहीं,
रात को रोक लो
रात की बात है, और ज़िंदगी बाकी तो नहीं
तेरे बिना .....ज़िंदगी नहीं .....ज़िंदगी नहीं
वैसे क्या आपको पता है ये गीत कहाँ फिल्माया गया था? हैदराबाद के गोलकुंडा किले में..
15 टिप्पणियाँ:
Wonderful read dada. As always ! :-)
लाजवाब शख़्सियतों के हुनर से जन्मा ये लाजवाब गीत...साथ ही बयां करने का आपका लाजवाब तरीका... :)
हमेशा की तरह ही बहुत बेहतरीन ...
और कुछ गाने तो किसी समय और कोई उम्र से परे हो जाते हैं ये भी उनमे से एक है
सदा बहार नगमे जब भी सुनते हैं तो खो जाते हैं हम // आज नए ज़माने के गाने पसंद न भी आये तो क्या करे नयी पीढ़ी को हमारे वाले गाने पसंद नहीं आते और हमें उनके। .. बहुत सुन्दर प्रस्तुति
शुक्रिया मन, शिखा व सौरभ मेरी इस प्रस्तुति को पसंद करने के लिए !
शिखा और कुछ गाने तो किसी समय और कोई उम्र से परे हो जाते हैं ये भी उनमे से एक है हम्म बिल्कुल सही कहा आपने
कविता जी आपकी बाद कुछ हद तक सही है पर नई पीढ़ी के काफी लोग पुराने नग्में भी पसंद करते हैं। अब देखिए ऊपत की तीनों टिप्पणियाँ युवाओं की ही हैं।
व्यक्तिगत रूप से मैं तो नए गाने भी सुनता हूँ उनमें भी कुछ पसंद आते हैं पर उमकी संख्या पुराने गानों की तुलना में निश्चय ही कम होती है।
प्यार का स्पेस या ज़रूरत सोचो तो यही गीत याद आता है। प्यार ना हो तो कुछ रुक तो नहीं जाता खैर मगर बस खाने से नमक चला जाता है।
ज़िंदगी, ज़िन्दगी नहीं
गाने पसंद करने की बात ही और है और उसे सुनते हुए बीते कल को याद करते हुए चुपके से भर आई आँखों के आँसू जल्दी से पोंछना और बात, कि कहीं कोई देख ना ले। कालजयी, नॉस्टेल्जिया के आकर्षण से लबालब भरा हुआ यह गाना। कभी मौका मिले तो" दिल ढूँढता है फिर वही फुरसत के रात दिन" गाने की भी समीक्षा करें। आपकी समीक्षा अदायगी ही लाजवाब है।
WOw..pl.keep it up, dear Manish.
प्यार ना हो तो कुछ रुक तो नहीं जाता खैर मगर बस खाने से नमक चला जाता है।
वाह.. बिल्कुल सही कहा कंचन
Kumar Nayan Singh इस गीत के लिए तुम्हारी दिल से कही बात दिल को छू गई। शायद हम सबका एक ही हाल होता है ये सुन के। जिस गीत का तुमने जिक्र किया है वो मेरा भी पसंदीदा है..जाड़ों को ढंग से आने दो उसकी नर्म धूप से रुह की सिकाई करेंगे ! :)
अच्छा लगा तुम्हें यहाँ देख विपिन.. आपकी शुभकामना व साथ रहा तो ये शामें इसी तरह गुलज़ार होती रहेंगी :)
Aapne likha 12 saal ka antraal, lakin geet mein nayika kahti hai 9 baras ka antraal..ye kya maazra hai.. I got confused here.
Kumar Nayan Singh ji ki farmaish mein mujhe bhi shamil kar lein..zindagi se koi shikwa nahin..par dil fursat ke raat-din to dhundhta hi hai..
दिल को छु लिया
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