बड़ा विचित्र युग है संगीत का ये। नेट की इस खुली दुनिया ने हमें पिछले कई सालों में नए व हुनरमंद संगीतकार, गायक व गीतकारों को दिया है। कुछ दशक पहले अपनी आवाज़ और संगीत को सही हाथों तक पहुँचने में ही बरसों एड़ियाँ घिसनी पड़ती थी। आज उस फासले को बहुत हद तक कम कर दिया है तकनीक ने। पर इस वज़ह से प्रतिस्पर्धा भी बढ़ गई है। पहले पूरी फिल्म में एक संगीतकार, एक गीतकार और ज़्यादा से ज़्यादा दो से तीन गायक रहते थे। आजकल निर्माता निर्देशक संगीत जगत रूपी ताश की गड्डी के हर इक्के को अपने पास रखना चाहते हैं। जाने कौन सा इक्का हाथ बना ले और कौन सा कट जाए?
ऐसा ही एक बैनर है भट्ट खानदान की विशेष फिल्मस का। अनेक संगीतकारों की टीम के साथ काम करने वाले इस बैनर को ये श्रेय जाता है कि नए कलाकारों को आज़माने में इसने कभी कोताही नहीं बरती। अंकित तिवारी से लेकर अरिजित सिंह जैसे कलाकारों को सही मौका दे सफलता के शिखर तक पहुँचाने में इनका जबरदस्त हाथ रहा है। अब इसी सिलसिले को आगे बढ़ाते हुए उन्होंने हमारी अधूरी कहानी फिल्म के एक गीत के लिए मौका दिया अमि मिश्रा को जिनका संगीतबद्ध गीत वार्षिक संगीतमाला की बारहवीं पायदान की शोभा बढ़ा रहा है।
इंदौर से ताल्लुक रखने वाले अमि मिश्रा की सांगीतिक पृष्ठभूमि को टटोलने के लिए आपको उनकी कॉलेज की ज़िंदगी में झाँकना होगा। अमि ने अपने दोस्तों के साथ कॉलेज में एक बैंड बनाया व रियालटी शो में भाग लेने की कोशिश करते रहे। पर एक बार MBA की डिग्री हाथ आ गई तो अपने सहपाठियों की तरह ही कार्पोरेट जगत के भँवर में खिंचते चले गए।
पर दिल तो उनका संगीत में मन रमाने को कह रहा था सो उसकी आवाज़ सुनते हुए मोटी आमदनी वाली नौकरी को छोड़ रेस्ट्राँ में गाने बजाने लगे। उन्होंने अपने इस निर्णय से अपने मध्यमवर्गीय माता पिता को भी नाराज कर दिया पर संगीत से उनका जुड़ाव बढ़ता ही गया। अगला पड़ाव मुंबई का था। महीनों इधर उधर हाथ आज़माने के बाद मुकेश भट्ट से जब उनकी मिलने की कोशिश बेकार गई तो उन्होंने इंदौर वापस लौटने का मन बना लिया। पर इससे पहले कि वे वापस इंदौर आते विशेष फिल्म द्वारा उनका रचा गीत हँसी स्वीकार कर लिया गया। तब तो उन्हें ये भी नहीं पता था कि ये गीत किस फिल्म के लिए इस्तेमाल किया जाएगा।
पर दिल तो उनका संगीत में मन रमाने को कह रहा था सो उसकी आवाज़ सुनते हुए मोटी आमदनी वाली नौकरी को छोड़ रेस्ट्राँ में गाने बजाने लगे। उन्होंने अपने इस निर्णय से अपने मध्यमवर्गीय माता पिता को भी नाराज कर दिया पर संगीत से उनका जुड़ाव बढ़ता ही गया। अगला पड़ाव मुंबई का था। महीनों इधर उधर हाथ आज़माने के बाद मुकेश भट्ट से जब उनकी मिलने की कोशिश बेकार गई तो उन्होंने इंदौर वापस लौटने का मन बना लिया। पर इससे पहले कि वे वापस इंदौर आते विशेष फिल्म द्वारा उनका रचा गीत हँसी स्वीकार कर लिया गया। तब तो उन्हें ये भी नहीं पता था कि ये गीत किस फिल्म के लिए इस्तेमाल किया जाएगा।
हमारी अधूरी कहानी में अमि ने ख़ुद भी इस गीत को अपनी आवाज़ दी है पर जब अमि की मधुर धुन का श्रेया की दिलकश आवाज़ का साथ मिलता है तो बस गीत में चार चाँद लगा जाते हैं। अमि का कहना है कि चूंकि ये गीत विद्या बालन पर फिल्माया जाना था तो मुझे एक परिपक्व आवाज़ की तलाश थी जो श्रेया पर जाकर खत्म हुई।
वैसे अमि मिश्रा के साथ हिंदी फिल्मों में इस गीत से अपने कैरियर की शुरुआत की है कुणाल वर्मा ने भी। अभी हाल फिलहाल में राजस्थान एन्थम और रैपरिया बालम की वज़ह से चर्चा में आने वाले कुणाल जयपुर में रहते हैं। इस साल उनके गीतों को आप कई नई फिल्मों में सुन पाएँगे। बहरहाल कुणाल की ये पंक्ति हाँ.. हँसी बन गए, हाँ.. नमी बन गए तुम मेरे आसमां, मेरी ज़मीन बन गए.. लोगों के दिल में बस गई।
सही कह रहे हैं कुणाल, अगर किसी की बेसाख्ता सी खिलखिलाहट आपके तन मन को प्रसन्न कर दे या फिर किसी की रंच मात्र की उदासी आपके दिल को विकल कर दे तो प्रेम तो हुआ समझिए। तो आइए सुनते हैं ये प्यारा सा नग्मा
सही कह रहे हैं कुणाल, अगर किसी की बेसाख्ता सी खिलखिलाहट आपके तन मन को प्रसन्न कर दे या फिर किसी की रंच मात्र की उदासी आपके दिल को विकल कर दे तो प्रेम तो हुआ समझिए। तो आइए सुनते हैं ये प्यारा सा नग्मा
मैं जान ये वार दूँ , हर जीत भी हार दूँ
क़ीमत हो कोई तुझे ,बेइंतेहा प्यार दूँ
सारी हदें मेरी, अब मैंने तोड़ दी
देकर मुझे पता, आवारगी बन गए
हाँ.. हँसी बन गए, हाँ.. नमी बन गए
तुम मेरे आसमां, मेरी ज़मीन बन गए.. ओ..
क्या खूब रब ने किया, बिन माँगे इतना दिया
वरना है मिलता कहाँ, हम काफ़िरों को ख़ुदा
हसरतें अब मेरी, तुमसे हैं जा मिली
तुम दुआ अब मेरी, आखिरी बन गए
हाँ.. हँसी बन गए, हाँ.. नमी बन गए...
2 टिप्पणियाँ:
कोई गीत खास पसंद ना हो टोप क्या लिखना ? इसलिए कमेंट नहीं किया था. लेकिन देक्ल्ह रही हूँ कि इस पोस्ट पर टिप्पणियों की अभी तक बोहनी ही नहीं हुई है तो ये भी लिख दिया :)
नहीं पसंद तो वही लिखिए या कुछ भी नहीं लिखने से भी चलेगा। :)
वैसे आपको आश्चर्य होगा कि गीतमाला की नीचे वाली पोस्टें ज्यादातर पढ़ी जाती हैं पिछले साल लोगों ने तेरी गलियाँ जैसे गीत को सबसे ज्यादा पढ़ा और इस बार गेरुआ, तू जो है तो मैं हूँ और तुर्रम खान सबसे ज्यादा पढ़े और पसंद किए जा रहे हैं।
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