वर्षिक संगीतमाला का सफ़र अब मुड़ रहा हैं थिरकते, मुस्कुराते गीतों से अपेक्षाकृत गंभीर और रूमानी गीतों की तरफ़ और इस कड़ी की पहली पेशकश है सत्रहवीं पायदान पर बैठा तनु वेड्स मनु रिटर्न का ये नग्मा। संगीतकार क्रस्ना सोलो व गीतकार राजशेखर की जोड़ी इससे पहले 2011 में वार्षिक संगीतमाला के सरताज गीत यानि शीर्ष पर रहने का तमगा हासिल कर चुकी है। ज़ाहिर है जब इस फिल्म का सीक्वेल आया तो इस जोड़ी के मेरे जैसे प्रशंसक को थोड़ी निराशा जरूर हुई।
पिछली फिल्म में शर्मा जी के प्यार का भोलापन पहली फिल्म में राजशेखर से कितने दफ़े दिल ने कहा, दिल की सुनी कितने दफ़े और रंगरेज़ जैसे गीत लिखा गया था। पर सीक्वेल में चरित्र बदले परिवेश बदला उसमें गीतकार संगीतकार के लिए पटकथा ने कुछ ज्यादा गंभीर व प्यारा करने लायक छोड़ा ही ना था। लिहाजा गीत संगीत फिल्म की परिस्थितियों के अनुरूप लिखे गए जो देखते समय तो ठीक ही ठाक लगे पर कानों में कोई खास मीठी तासीर नहीं छोड़ पाए। फिल्म देखने के बाद जब इस एलबम के गीतों को फिर से सुना तो एक गीत ऐसा मिला जिसे मैं फिल्म की कहानी से जोड़ ही नहीं पाया क्यूँकि शायद इसका फिल्म में चित्रांकन तो किया ही नहीं गया था। अब जब नायिका के तेवर ऐसे हों कि शर्मा जी हम बेवफ़ा क्या हुए आप तो बदचलन हो गए तो फिर शर्मा जी क्या खाकर बोल पाते कि ओ साथी मेरे.. हाथों में तेरे.. हाथों की अब गिरह दी ऐसे की टूटे ये कभी ना..
बहरहाल गीत की परिस्थिति फिल्म में भले ना बन पाई हो राजशेखर के लिखे बेहतरीन बोलों और सोनू निगम की गायिकी ने इस गीत का दाखिला संगीतमाला में करा ही दिया। बिहार के मधेपुरा के एक किसान परिवार से ताल्लुक रखने वाले हुनरमंद राजशेखर के मुंबई पहुँचने की कहानी तो आपको यहाँ मैं पहले ही बता चुका हूँ। पिछले साल बिहार के चुनावों में बिहार में बहार हो, नीतीशे कुमार हो का उनका गीत खासा लोकप्रिय हुआ। बचपन में माँ पापा से नज़रे बचाकर पन्द्रह सोलह घंटे रेडियो सुनने वाले इस बालक के लिखे गाने लोग उसी रेडियो पर बड़े चाव से सुन रहे हैं।
ज़िदगी का खट्टा मीठा सफ़र अपने प्रियतम के साथ गुजारने की उम्मीद रखते इस गीत की सबसे प्यारी पंक्तियाँ मुझे वो लगती हैं जब राजशेखर कहते हैं..
हम जो बिखरे कभी
तुमसे जो हम उधड़े कहीं
बुन लेना फिर से हर धागा
हम तो अधूरे यहाँ
तुम भी मगर पूरे कहाँ
करले अधूरेपन को हम आधा
सच अपने प्रिय से ऐसी ही उम्मीद तो दिल में सँजोए रखते हैं ना हम !
संगीतकार क्रस्ना सोलो का नाम अगर आपको अटपटा लगे तो ये बता दूँ कि वो ये उनका ख़ुद का रचा नाम है ताकि जब वो अपने विश्वस्तरीय संगीतज्ञ बनने का सपना पूरा कर लें तो लोगों को उनके नाम से ख़ुद को जोड़ने में दिक्कत ना हो। वैसे माता पिता ने उनका नाम अमितव सरकार रखा था। क्रस्ना ने इस गीत की जो धुन रची है वो सामान्य गीतों से थोड़ी हट के है और इसीलिए उसे मन तक उतरने में वक़्त लगता है। मुखड़े के बाद का संगीत संयोजन गीत के बोलों जितना प्रभावी नहीं है। रही गायिकी की बात तो कठिन गीतों को चुनौती के रूप में स्वीकार करना सोनू निगम की फितरत रही है। इस गीत में बदलते टेम्पो को जिस खूबसूरती से उन्होंने निभाया है वो काबिले तारीफ़ है। तो आइए सुनें ये गीत..
ओ साथी मेरे.. हाथों में तेरे..
हाथों की अब गिरह दी ऐसे
की टूटे ये कभी ना..
चल ना कहीं सपनों के गाँव रे
छूटे ना फिर भी धरती से पाँव रे
आग और पानी से फिर लिख दें वो वादे सारे
साथ ही में रोए हँसे, संग धूप छाँव रे
ओ साथी मेरे..
हम जो बिखरे कभी
तुमसे जो हम उधड़े कहीं
बुन लेना फिर से हर धागा
हम तो अधूरे यहाँ
तुम भी मगर पूरे कहाँ
कर ले अधूरेपन को हम आधा
जो भी हमारा हो मीठा हो या खारा हो
आओ ना कर ले हम सब साझा
ओ साथी मेरे.. हाथों में तेरे ..
गहरे अँधेरे या उजले सवेरे हों
ये सारे तो हैं तुम से ही
आँख में तेरी मेरी उतरे इक साथ ही
दिन हो पतझड़ के रातें या फूलों की
कितना भी हम रूठे पर बात करें साथी
मौसम मौसम यूँ ही साथ चलेंगे हम
लम्बी इन राहों में या फूँक के फाहों से
रखेंगे पाँव पे तेरे मरहम
आओ मिले हम इस तरह
आए ना कभी विरह
हम से मैं ना हो रिहा
हमदम तुम ही हो
हरदम तुम ही हो
अब है यही दुआ
साथी रे उम्र के सलवट भी साथ तहेंगे हम
गोद में ले के सर से चाँदी चुनेंगे हम
मरना मत साथी पर साथ जियेंगे हम
ओ साथी मेरे..
5 टिप्पणियाँ:
व्यक्तिगत रूप से इसके पीछे वाले गीत इससे ज्यादा अच्छे लगे. यद्यपि लिरिक्स बहुत सुंदर हैं लेकिन उतना मेलोडियस नहीं लगा मुझे.
इस वर्ष के संगीतमाला का ये पहला गीत है जो मेरे पसंदीदा गीतों में शुमार है।
Kanchan हाँ मुखड़े के बाद मुझे भी ये कमी खली पर जैसा मैंने कहा गीत के बोल व सोनू की गायिकी इस गीत को मेरी सूची में यहाँ ले आई।
Man चलो शुरुआत तो हुई :)
Sonu ko Salaam! Raj Shekhar ko badhai! Aapko bhi Salaam. Heere ko koyle ki khaan se dhoondh nikala aapne.
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