वार्षिक संगीतमाला के दो हफ्तों के सफ़र को पार कर हम जा पहुँचे है इस गीतमाला की उन्नीस वीं सीढ़ी पर। यहाँ जो गीत बैठा है वो मेरा इस साल का चहेता डॉन्स नंबर है। जब भी ये गीत सुनता है मन झूमने को कर उठता है। ये गीत है फिल्म फैंटम का और इसके संगीतकार हैं प्रीतम।
आजकल जो गाने थिरकने के लिए बनाए जाते हैं उसमें ध्यान बटोरने के अक़्सर भोंडे शब्दों का इस्तेमाल जनता जनार्दन में सस्ती लोकप्रियता हासिल करने में होता रहा है। मेरा मानना है कि नृत्य प्रधान गीत भी अच्छे शब्दों के साथ उतना ही प्रभावी हो सकता है। बंटी और बबली का गीत कजरारे कजरारे तेरे काले काले रैना जो एक ऐसा ही गीत था । अफ़गान जलेबी में भी शब्दों का चयन साफ सुथरा है और इसका जानदार संगीत संयोजन इस गीत को संगीतमाला में स्थान दिलाने में कामयाब रहा है।
गीत तालियों की थाप से शुरु होता है और फिर अपनी लय को पकड़ लेता है जिससे श्रोता एक बार बँधता है तो फिर बँधता ही चला जाता है। अमिताभ भट्टाचार्य ने फिल्म के माहौल के हिसाब से गीत में उर्दू के शब्दों का इस्तेमाल किया है। प्रीतम ने इस गीत को कई गायकों से थोड़ी बहुत फेर बदल के साथ गवाया है। पर जो वर्सन में आपको सुनाने जा रहा हूँ वो पाकिस्तान के गायक सैयद असरार शाह ने गाया है। प्रीतम ने असरार की आवाज़ कोक स्टूडियो पर सुनी और इस गीत के लिए उन्हें चुन लिया। असरार कहते हैं कि इस गीत को गाना उन्होंने इसलिए स्वीकार किया क्यूँकि इसमें नायिका की खूबसूरती को एक तरीके से उभारा गया है और अल्लाह की बनाई किसी चीज़ की तारीफ़ करना ख़ुदा की ही इबादत करना है।
अमिताभ भट्टाचार्य का ये गीत रोमांटिक से ज्यादा नटखट गीतों में गिना जाएगा जिसके सहज बोलों में हल्का सा हास्य का पुट भी है। इसलिए एक ओर तो गीत में बंदूक दिखा दिखा के प्यार करने वाली नायिका की उलाहना करते हैं तो दूसरी ओर अपनी दाल नहीं गलने पर ख़्वाज़ा जी से शिकायत लगाने की भी बात करते हैं। तो आइए सुनते हैं ये मज़ेदार नग्मा
मक़तूल ज़िगर1 या बाबा, क़ातिल है नज़र या बाबा
इक माहजबीं2 या बाबा, इक नूरे ए नबी या बाबारब की रुबाई3 या बाबा, या है तबाही या बाबा
गर्दन सुराही या बाबा, बोली इलाही या बाबा
अफ़गान जलेबी, माशूक फ़रेबी
घायल है तेरा दीवाना, भाई वाह, भाई वाह
1 वो हृदय जो छलनी हो 2. चंद्रमा के समान मुख वाली यानि बेहद सुंदर 3. भगवान की कविता
बन्दूक दिखा के क्या प्यार करेगी
चेहरा भी कभी दिखाना भाई वाह
भाई वाह भाई वाह भाई
ओ.. देख दराज़ी 4, ओ बंदा नमाज़ी
खेल के बाज़ी वल्लाह खामख्वाह
अब ठहरा ना किसी काम का वल्लाह वल्लाह
मीर का कोई वल्लाह, शेर सुना के वल्लाह
घूँट लगा के वल्लाह जाम का..मैं रहा खान महज़ नाम का
4 शारीरिक बनावट
ओये लख्त ए जिगर5 या बाबा
ओये नूर ए नज़र6 या बाबा
एक तीर है तू या बाबा, मैं चाक ज़िगर या बाबा
बन्दों से नहीं तो, अल्लाह से डरेगी
वादा तो कभी निभाना भाई वाह
भाई वाह भाई वाह भाई
बन्दूक दिखा दिखा के क्या प्यार करेगी...
चेहरा भी कभी दिखाना भाई वाह, भाई वाह
5. दिल का टुकड़ा 6 आँख की रोशनी
ख्वाज़ाजी की पास तेरी चुगली करूँगा
मैं तेरी चुगली करुँगा, हाँ तेरी चुगली करूँगा
अगूँठी में क़ैद तेरी उँगली करूँगा,
मैं तेरी चुगली करुँगा, हाँ तेरी चुगली करूँगा
गुले गुलज़ार या बाबा, मेरे सरकार या बाबा
बड़े मंसूब या बाबा, तेरे रुखसार7 या बाबा
हाय शमशीर8 निगाहें, चाबुक सी अदाएँ
नाचीज़ पे ना चलाना भाई वाह भाई वाह
7..गाल 8. तलवार
बन्दूक दिखा दिखा के क्या प्यार करेगी
चेहरा भी कभी दिखाना भाई वाह, भाई वाह
8 टिप्पणियाँ:
बहुत ही खूबसूरत गाना .... गीत का संगीत, गायक की आवाज़ सब कमाल के हे...और बोल तो बेहद खूबसूरत हे....
"ख्वाजा जी के पास तेरी चुगली करूँगा" सुनने में अच्छा लगता हे...
मेरे तो पसंदीदा गानो में से एक हे ये...
हाँ अगर मस्ती भरे गीतों और झूमने झुमाने की बात हो तो इस साल के गीतों में मुझे भी यही गीत सबसे ज्यादा प्रिय है। :)
हमारा छोटा छुटकू इस गाने को सुनकर तुरन्त रोना बन्द कर देता है .सचमुच प्यारा गीत है .उपमाऐं कमाल है .
भई वाह, भई वाह, भई वाह भई वाह भाई वाह भई वाह.....
ये गीत सुनने में अच्छा लगता है और जुबान पर चढ़ जाता है। शुरुआत में तो इसके वर्ड्स कुछ के कुछ सुनाई देते थे। बाद में समझ में आये। हमारे यहाँ भी एक छुटकू इसे बड़े शौक़ से सुना करते थे जब यह गीत नया-नया आया था।
वैसे इस बार के गीतों से मैं हर बार से ज़्यादा वाकिफ मालूम हो रही हूँ और ज़्यादा कर्णप्रिय भी लग रहे हैं व्यक्तिगत रूप से मुझे। :)
कंचन इस साल कम सुने गानों की फेरहिस्त में एक गाना तो अगली पॉयदान पर ही है। कुछ गीत तो ऐसे हैं जिन से जुड़ी फिल्में देखने के बाद भी मैं तब उन पर ध्यान नहीं दे पाया वहीं कुछ का इस्तेमाल फिल्मों में हुआ ही नहीं। मेरी समझ से आधा दर्जन गाने तो होंगे ही जो शायद आपने ना सुने हों।
It is different!!
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