संगीतमाला की अगली पायदान सुरक्षित है एक ऐसे गीत के लिए जिसके बोल और संगीत के साथ पिछले साल देश की युवा पीढ़ी के सबसे ज्यादा पैर थिरके होंगे। फिल्म रॉय के इस गीत में अमल द्वारा दिए गए नृत्य के लिए मन माफिक संगीत संयोजन के साथ अरिजित सिंह की आवाज़ और कुमार के बोल मस्ती का वो माहौल तैयार करते हैं कि मन सब कुछ भूल इस गीत की रिदम के साथ बहता चला जाता है। बतौर फिल्म रॉय कोई खास तो नहीं चली पर इसके संगीत को आम जन में लोकप्रियता खूब मिली।
कुमार का लिखा ये गीत हमें अपनी अभी की परेशानियों को भूल कर बेफिक्री के कुछ पल अपने आप को देने की ताकीद करता है। सच बेफिक्री का भी अपना ही मज़ा है। जीवन में काम तो लगे ही रहते हैं पर उसमें अपनी ज़िंदगी इतनी भी ना उलझा लीजिए कि ख़ुद अपने लिए वक़्त ही ना रहे। जब तक चिंतामुक्त होकर अपने अंदर की आवाज़ को हम बीच बीच में नहीं टटोलेंगे तो बस एक मशीन बन कर ही रह जाएँगे। अब ये अलग बात है कि कुछ लोग इस अहसास तक पहुंचने के लिए नशे का सहारा लेते हैं तो कुछ स्वाभाव से ही मस्तमौला होते हैं।
अपने देश में तो मद्यपान बहस का विषय है पर इस गीत के मुखड़े को सुन कर मुझे जापान के लोग याद आ जाते हैं। आपको विश्वास नहीं होगा कि वहाँ दिन भर लोग कड़े अनुशासन में मेहनत से काम करते हैं पर शाम ढलते ही उनका सारा ध्यान इस बात पर रहता है कि कब उन्हें मदिरा पान का सुख मिलेगा। पश्चिमी संस्कृति की तरह जापानी समाज के बहुत बड़े तबके का रिलैक्स होने का यही तरीका है। मतलब जिस तरह ये गीत यहाँ लोकप्रिय हुआ है वैसा जापान में भी हो जाता। :)
इस गीत के युवा संगीतकार हैं अमल मलिक जो गायक व संगीतकार अरमान मलिक के भाई और अनु मलिक के भतीजे हैं। अमल के कैरियर की शुरुआत 23 साल की छोटी उम्र में सलमान खाँ की फिल्म जय हो से हुई थी। पिछले साल खूबसूरत में भी उनके गाने सराहे गए थे। अपने संगीत में वो ज्यादा जटिलताएँ नहीं चाहते। उनके लिए अच्छे संगीत का मतलब वो है जिससे आम जन अपने आप को जोड़ सकें। अगर आपने किसी पार्टी में हफ्ते में चार शनिवार होने चाहिए वाला गीत सुना है तो ये उनकी ही कृति है। ख़ैर ये उनके शुरुआती दिन हैं। वक्त के साथ उनकी इस सोच में और गंभीरता आएगी ये उम्मीद तो अभी उनसे रखी ही जा सकती है।
अरिजित सिंह की आवाज़ के हम सब शैदाई हैं और उन्होंने इस गीत में नया कुछ भले ना किया हो पर सुनने वालों को निराश भी नहीं किया। गीत में उनका साथ दिया है अदिति सिंह शर्मा ने। तो आइए सुनते हैं झूमने झुमाने वाला ये गीत..
मतलबी हो जा ज़रा मतलबी
दुनिया की सुनता है क्यूँ
ख़ुद की भी सुन ले कभी
कुछ बात ग़लत भी हो जाए
कुछ देर ये दिल खो जाए
बेफिक्र धड़कने, इस तरह से चले
शोर गूँजे यहाँ से वहाँ
सूरज डूबा है यारों दो घूँट नशे के मारो
रस्ते भुला दो सारे घर बार के
सूरज डूबा है यारों दो घूँट नशे के मारो
ग़म तुम भुला दो सारे संसार के
Ask me for anything, I can give you everything
रस्ते भुला दो सारे घर बार के
Ask me for anything, I can give you everything
ग़म तुम भुला दो सारे संसार के
अता पता रहे ना किसी का हमें
यही कहे ये पल ज़िन्दगी का हमें
अता पता रहे ना किसी का
यही कहे ये पल ज़िन्दगी का
की ख़ुदग़र्ज़ सी, ख्वाहिश लिए
बे-साँस भी हम तुम जियें
है गुलाबी गुलाबी समां, सूरज डूबा है यारों...
चलें नहीं उड़ें आसमां पे अभी
पता न हो है जाना कहाँ पे अभी
चलें नहीं उड़ें आसमां पे
पता न हो है जाना कहाँ पे
कि बेमंजिलें हो सब रास्ते
दुनिया से हो जरा फासलें
कुछ ख़ुद से भी हो दूरियाँ
8 टिप्पणियाँ:
Achcha gaana jo thirakne ko majboor karta hai. Saath hi bol bhi achche hain. Agar ye movie hit hoti to shayad iske gaane jyada popular hote. Arijit is funtastic in this song!
सच में इस साल का बेहतरीन झूमने झुमाने वाला गीत है ये। धन्यवाद।
सुनने में अच्छा लगता है यह गीत.
मनीष जी यह गीत हमे भी भाता है
Seetamni. blogspot. in
अरे वाह.. इस साल के मेरे सबसे पसंदीदा गीतों में एक ये भी है.. दो घूँट तो बहाना है. जीवन की उलझनों से थोड़ा बेफिक्र हो जाने का सन्देश देता यह गीत अद्भुत है. अरिजीत सिंह इसे गाते हुए बड़े स्वाभाविक लगते है. गीतमाला की अगली कड़ियों के लिए शुभकामनाएं...
थिरकने के लिए ये गाना ठीक है
Mr Manish
Thnx
"मतलबी...हो जा ज़रा मतलबी, दुनिया की सुनता हे क्यूँ....." बिलकुल सही बात...
गाने के बोल अच्छे हे, एक सकारत्मकता हे यहाँ....और संगीत सचमुच मस्ती के माहौल में ले जाता हे...
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