बुधवार, जनवरी 06, 2016

वार्षिक संगीतमाला 2015 पायदान # 23 : हीर तो बड़ी सैड है.. Heer to badi sad hai

वार्षिक संगीतमाला की तेइसवीं पायदान पर चलिए आपको मिलवाते हैं माडर्न हीर से जिसका दुख निर्देशक इम्तियाज़ अली व गीतकार इरशाद क़ामिल को खाए जा रहा है।  जी हाँ मैं बात कर रहा हूँ फिल्म तमाशा के गीत हीर तो बड़ी सैड है की। तमाशा के सिनेमाहाल में प्रदर्शित होने के पहले टीवी के पर्दों पर सबसे  ज्यादा यही गीत दिखाया गया फिल्म के प्रमोशन के लिए। हीर की अटर सैडनेस के बारे में सुनकर मुझे पहला आश्चर्य ये हुआ कि हिंदी कविता में पी एच डी करने वाले क़ामिल साहब की ज़ुबान हिंग्लिश कैसे हो गई? ए आर रहमान की पंजाबी लोक धुन में रंगे जाने पहचाने संगीत पर मीका की आवाज़ का जादू ऐसा था जो मुझे अंत तक इस गीत को सुनने पर विवश कर गया। पूरे बोल सुन कर लगा कि इरशाद भी गीतों को चटपटा बनाने के गुर सीख चुके हैं। पर उस बात पर आते हैं थोड़ी देर में, पहले ये तो जान लीजिए कि हीर की ऐसी हालत हुई क्यूँ?


अब क्या करे हीर दिल का रोग लगा बैठी? पर जिससे दिल लगा उससे उचित प्रतिकार नहीं मिला। हाँ कुछ साथी जरूर मिले उसे इस बीच। पर उनका साथ हमेशा का तो था नहीं। पापा का चाय का व्यापार सँभाला और लग गई काम पर। पर काम करते करते मन के अंदर की टीस तो खत्म नहीं हो जाती ना। तो वही हाल हीर का है वो अंदर से बेचैन है, दुखी है और ये पीड़ा उसे अपने काम में मन लगाने नहीं दे रही है। इरशाद क़ामिल ने थोड़ी बहुत चुहल भरे शब्दों के साथ इस गीत में हीर की इसी मनोदशा को व्यक्त किया है। मुझे इस गीत के लिए लिखी उनकी ये पंक्तियाँ बड़ी प्यारी लगती हैं जिसमें वे कहते हैं इश्क़ है माचिस, दिल है डीजल दोनों चंगे दूरम दूर। पर इरशाद भाई ये सब जानकर भी इश्क़ से कहाँ दूर रह पाते हैं हम?

तो वापस लौटते हैं इस गीत की एक पंक्ति पर जो काफी चर्चा का विषय रही यानि प्यार की लू में इतनी जल गयी लू में जाना मुश्किल है होए, लू में जाना मुश्किल है। अब जरा देखिए इरशाद भाई इस बारे में क्या कहते हैं..

"मैं नटखट गीतों से परहेज़ नहीं रखता बशर्ते कि वो below the belt ना हों। जरूरी नहीं कि आप उस तरह बातें करें जो हर तरीके से अमर्यादित लगे। मुझे दायरे के अंदर रहकर बात करना अच्छा लगता है। उस दायरे के अंदर आप कितना शरारती हो सकते हैं...  कितना tongue in cheek हो सकते हैं वो आपकी काबिलियत है। जैसे हीर तो बड़ी सैड में एक पंक्ति है प्यार की लू में.. अब आप इस लाइन को दोनों तरह से ले सकते हैं। मैं तो बस ये कह रहा हूँ कि हीर प्यार की गर्मी में इतनी जल गई है कि वो लू में (गर्मी वाली) नहीं जा सकती है। अब आप कुछ और समझ जाएँ तो समझ जाएँ।"

इरशाद कामिल की भावनाओं से मैं पूरा इत्तिफाक रखता हूँ मन की बात कह गए वो। बोलों में शरारत का पुट भरिए मगर एक दायरे में। पर रही "लू  की बात" तो इरशाद भाई एक तो गाना आपने हिंग्लिश में रचा और दूसरे आपके बांकुरे जवान रणवीर कपूर गीत के प्रोमो में उंगली यूँ घुमाते हैं कि बड़ों क्या बच्चे बच्चे को तो वही समझ आता है जो आपने नहीं समझाया। ख़ैर हमारे कुछ प्रतिभावान पर बिना ज़मीर वाले गीतकार इरशाद की बात पर अमल करें तो कितना अच्छा हो।

मीका के गीतों का मैं कोई खास प्रशंसक नहीं हूँ पर इस गीत में नक्काश अज़ीज के साथ उनकी आवाज़ बहुत फबी है। हाँ कहीं कहीं मस्ती की झोंक में सुनने वालों को एक बार में शब्दों को पकड़ पाना थोड़ा मुश्किल हो जाता है। रहमान ने हर पंक्ति के साथ हाय जी होए जी का जो मिश्रण किया है वो गीत के आनंद को बढ़ा देता है। तो आइए इस गीत के बोलों के साथ आज की शाम एक बार और झूम लीजिए


हीर तो बड़ी सैड (हाय होए) ,आजकल वेरी मै (हाय जी)
हीर तो बड़ी सैड (हाय होए) ,आजकल वेरी मै (हाय जी)

ना खाती-पीती हाय होए, रोना-धोना मुश्किल (हाय जी)
प्यार की लू में इतनी जल गयी (होए होए)
लू में जाना मुश्किल है होए, लू में जाना मुश्किल है (होए)
हीर की हालत ,क़सम रब की (होए)
क़सम रब की होए ,क़सम रब की (होए)
आजकल वेरी बैड है जी हाय (होए)
हीर तो बड़ी सैड है जी (हाय जी)


हो इश्क़ है माचिस, दिल है डीजल
दोनों चंगे दूरम दूर
काँटे बाँटे आँख आँख को
सपने कर गए चूरम चूर
हाय बजी पड़ी है बैंड हीर की
अब इस बैंड पे नाचे कौन
हुई बोलती बंद बंद सी
कई दिनों से है वो मौन
लोग कहें कि सनकी हो गयी
हाय या वो अटर मैड है (आये हाय)
हीर तो बड़ी सैड है ....

हो मन मृदंग बजे बेढंग
उड़ा है रंग बेचारे का
लुक मुक ऊपर प्रेशर कुकर
हुआ दिमाग कुँवारे का 
हाय तेल लगाये नयी ज़िन्दगी
सो सो के दिन काटें वो
वक़्त के मुँह पे गुस्सा करके
मारती रहती चाँटे वो
फिक्र में अब तो उसका डैड है 

हाय माम भी बड़ी सैड है (हाय ओये)
हीर तो वेरी मैड है (हाय जी)
आज कल वेरी बेड है (हाय ओये)
शी इज़ तो नॉट ग्लैड है (हाय जी)

ना खाती-पीती हाय (होए)
रोना-धोना मुश्किल (हाय जी )
प्यार की लू में इतनी ..

और अगर शब्दों व मीका की गायिकी आप पर असर ना करे तो अंत का संगीत संयोजन तो आपको अपनी जगह से हिला देगा ही


वार्षिक संगीतमाला 2015

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15 टिप्पणियाँ:

मन्टू कुमार on जनवरी 06, 2016 ने कहा…

इस गाने को सोनू निगम या ज़ावेद अली की आवाज़ में सुनना सुकूनदेह साबित होता पर रहमान साहब की धुन ने भी 'सुनना' और 'सुनते रहना' के काबिल बनाया है इस गीत को ।

इरशाद क़ामिल जी के लिए आपने कह ही दिया सबकुछ।दैनिक भास्कर में पिछले दिनों इनका आलेख छपा है।अपनी लेखकीय संघर्ष और ज़िन्दगी पर सराहनीय विचार रखे हैं,आपको पढ़ना चाहिए।

Manish Kumar on जनवरी 06, 2016 ने कहा…

इरशाद क़ामिल के संघर्ष के किस्से मैं पहले भी पढ़ चुका हूँ क्यूँकि ये बीसवीं बार है कि उनका गीत संगीतमाला में बजा है और हाँ तुम्हारी जानकारी के लिए उनकी अपनी एक साइट है जहाँ उन्होंने अपने जीवन के कई पहलुओं के बारे में विस्तार से लिखा है।
http://www.irshadkamil.com/
बहरहाल मीका इस गीत के लिए बिल्कुल फिट हैं ऐसा मेरा मानना है। सोनू तो हुनंरमंद गायक हैं और मुझे उनकी आवाज़ रूमानी व गंभीर गीतों में ज्यादा जँचती है।

Archana Chaoji on जनवरी 06, 2016 ने कहा…

गीत तो बहुत बढ़िया और सण्गीत उससे भी बढ़िया लगा ...पर मीका शब्दों को मुँह में घुमा घुमा के गाते हैं मजा नहीं आया ....

Manish Kumar on जनवरी 06, 2016 ने कहा…

अच्छा लगा इस गीत के बारे में आपकी राय जानकर। मीका के इस तरीके में मस्ती का पुट है पर उससे उनकी आवाज़ कई जगह स्पष्ट नहीं रह पाती।

Kumar Nayansingh on जनवरी 06, 2016 ने कहा…

अब तो हर गाना आपकी निगाहों से ही देख रहे हैं। पता नहीं साधारण में भी असाधारण कैसे ढूंढ ले रहे हैं आप। मान गए जनाब।वैसे अब तक ये मूवी नहीं देखी।बहुत तीव्र इच्छा है देखने की।

Manish Kumar on जनवरी 06, 2016 ने कहा…

जरूर देखिए! वैसे ये गाना लगता है आपको जँचा नहीं :)

Kumar Nayansingh on जनवरी 06, 2016 ने कहा…

आज पहली बार ही देखा भैया। अच्छा लगा सच में। मैंने प्रशंसा ही की है कि अगर मैं बिना समीक्षा पढ़े इस गाने को सुनता तो निःसंदेह यह मुझे साधारण ही लगता। लेकिन मान गए आपकी पारखी निगाहें और इरशाद कामिल दोनों को।

Manish Kumar on जनवरी 06, 2016 ने कहा…

हा हा ये तो पसंद आया ठीक पर अच्छा ना लगे तो भी बेधड़क लिखिए वो कहते हें ना पसंद अपनी अपनी ख़्याल अपना अपना :)

कंचन सिंह चौहान on जनवरी 07, 2016 ने कहा…

इस मूवी के गीत अच्छे हैं. यह भी गीत हल्के फुल्के मूड के लिए बढ़िया गीत लगा मुझे.

Manish Kumar on जनवरी 07, 2016 ने कहा…

कंचन अब तक के सारे गीत हल्के फुल्के मूड के लिए ही हैं। वैसे एक गीत थोड़ा सा ऊपर जा कर मिलेगा ऐसा ही झूमने झुमाने वाला मूड लिये :)

Swati Gupta on जनवरी 07, 2016 ने कहा…

nice song

मन्टू कुमार on जनवरी 08, 2016 ने कहा…

धन्यवाद

Sumit on जनवरी 11, 2016 ने कहा…

Maza aata hai ye gaana sun ke. Itna hi kahunga Mika ke liye ye song milestone hai. Lekin nishit roop se ye gaana Irshad Kamil ya A R Rahman ki best list mein shaamil nahi hoga.

Manish Kumar on जनवरी 11, 2016 ने कहा…

सहमत हूँ आपके आकलन से सुमित !

Kamal Asif on जनवरी 13, 2016 ने कहा…

Bahut hi satik analysis..bilkul sahi pakda hai

 

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