गुरुवार, फ़रवरी 11, 2016

वार्षिक संगीतमाला 2015 पायदान # 7 : अगर तुम साथ हो Agar Tum Sath Ho

पाँच हफ्ते पूरे कर मैं आपको गीतमाला के उस हिस्से में ले आया हूँ जहाँ अब साल के सात बेहतरीन गीत अपनी बारी की प्रतीक्षा में हैं। सातवीं सीढ़ी पर जो गीत कब्ज़ा जमाए बैठा है उसे पहली बार सुनकर ही मैंने अपनी वार्षिक संगीतमाला की सूची में शामिल कर लिया था। ये गीत है फिल्म तमाशा का और इस गीत के बोलों के लिए इस साल का फिल्मफेयर एवार्ड इरशाद क़ामिल साहब पहले ही अपनी झोली में डाल चुके हैं। इस गीत को गाया है अलका यागनिक और अरिजीत सिंह ने। वार्षिक संगीतमालाओं में पिछली बार उनकी आवाज़ की गूँज  ए आर रहमान की फिल्म युवराज में सुनाई दी थी और देखिए उन्हीं रहमान साहब की बदौलत सात साल बाद एक बार फिर वो अपने इस मधुर गीत के लिए सुर्खियाँ बटोर रही हैं। 



शुरुआत में ये गीत फिल्म में था ही नहीं। गीतकार इरशाद क़ामिल का कहना है कि उन्होंने जिद कर के इस गीत को फिल्म में डलवाया। तो कैसे आया है ये गीत अपने अस्तित्व में? इरशाद का इस बारे में कहना है

फिल्म में एक परिस्थिति थी जब तारा और वेद  एक दूसरे से मिलते हैं। उनके अंदर भावनाओं का ज्वार सा है। एक दूसरे से शिकायते हैं, मन मुटाव है वो भी छोटी छोटी बातों को लेकर। मुझे लगा कि यहाँ एक रोमांटिक गीत की जरूरत है और उसके द्वारा हम किरदारों के मन की बात अच्छी तरह से रख सकते हैं। आपको जान कर ताज्जुब होगा कि रहमान सर ने इस गीत के लिए सात अलग अलग कम्पोजीशन तैयार कर रखी थीं और उनमें से चार के लिए मैंने अलग अलग शब्द भी लिख डाले थे। बस हमारी कोशिश थी कि अपने आप को थोड़ा और कुरेदें ताकि उस भावना तक पहुँचे जो पहले छूट गई हो। पहले पंक्तियाँ बनी थी अपने पे  बस नहीं रहता.. है इतनी छोटी सी बात। पर जब अगर तुम साथ हो वाला वर्सन बना तो इम्तियाज़ ने कहा बस ये एकदम ठीक है। ये कहानी की परिस्थिति को सही ढंग से परिभाषित कर रहा है और औस उसमें निखार ला रहा है।

तमाशा में ये गीत बड़े दिलचस्प ढंग से एक सीन की तरह फिल्माया गया है। अगर आप सिर्फ गीत सुनते हैं तो अलका जी का स्वर नायिका के प्रेम निवेदन की तरह लगता  है जिसमें वो बता रही है कि किस तरह उसकी ज़िंदगी नायक के बिना अधूरी है। पर इस स्वर में उदासी नहीं बल्कि एक आशा और अपने  प्रेम के प्रति विश्वास का भाव है। वहीं अरिजीत की आवाज़ नायक की नायिका के प्रति शिकायत को ज़ाहिर करती है। पर आप इस गीत का वीडियो देखेंगे तो पाएँगे नायिका बेचैन है वो हर हाल में नायक को अपने से अलग नहीं होने देना चाहती पर पिछली कुछ बातें नायक के मन में इस क़दर हावी हैं कि वो उस निमंत्रण को सहज स्वीकार करने की मानसिक स्थिति में नहीं है। अलका जी ने पूरी मधुरता से इस गीत  को निभाया है पर पता नहीं क्यूँ मुझे लगा कि वो नायिका की मानसिक व्यथा और तड़प को अपनी आवाज़ में कैद नहीं कर पायीं।

इरशाद क़ामिल के बोल इस गीत की जान हैं। कमाल की शब्द रचना की है उन्होंने  देखिए ज़रा.. बैठी बैठी भागी फिरूँ.. यानि शरीर यहाँ और दिल की उड़ान कहीं और.। फिर इस सच से कौन मुकर सकता है कि जो हमें प्यारा होता है वो पास नहीं भी हो तो हम उससे ख़ुद ही सवाल जवाब कर अक़्सर बातें किया करते हैं। उसकी आदतें शौक़ सब हमें भी अच्छे लगने लगते हैं जबकि कुछ दिनों पहले तक उनमें हमारी कोई दिलचस्पी ही नहीं रहती । 

पर जब क़ामिल को नायक की मनोदशा व्यक्त करनी होती है तो वो कहते हैं मुझे लगता है कि बातें दिल की ..होती लफ़्ज़ों की धोखेबाज़ी । ऐसा तो कोई वही कह सकता है जिसके दिल ने चोट खाई हो तभी तो बातों की वो नर्मी एक दिखावे के समान लगने लगती है ।

रहमान का संगीत संयोजन भले नया ना हो पर गीत की तरह ही मधुर है। पियानों से शुरु होता उनका संगीत गीत के बोलों को मुखरता देता हुआ पीछे से बहता प्रतीत होता है। अरिजीत की आवाज़ को उन्होंने इस तरह मिक्स किया है कि दो अरिजीत आपको युगल गायिकी करते सुनाई पड़ते हैं। तो आइए सुनते हैं ये गीत।





पल भर ठहर जाओ
दिल ये संभल जाए
कैसे तुम्हें रोका करूँ
मेरी तरफ आता हर ग़म फिसल जाए
आँखों में तुम को भरूँ
बिन बोले बातें तुमसे करूँ
गर तुम साथ हो
अगर तुम साथ हो

बहती रहती
नहर नदिया सी तेरी दुनिया में
मेरी दुनिया है तेरी चाहतों में
मैं ढल जाती हूँ तेरी आदतों में
तेरी नज़रों में है तेरे सपने

तेरे सपनों में है नाराज़ी
मुझे लगता है के बातें दिल की
होती लफ़्ज़ों की धोखेबाज़ी

तुम साथ हो या ना हो क्या फर्क है
बेदर्द थी ज़िन्दगी बेदर्द है
गर तुम साथ हो
अगर तुम साथ हो

पलकें झपकते ही दिन ये निकल जाए
बैठी बैठी भागी फिरूँ
मेरी तरफ आता हर ग़म फिसल जाए
आँखों में तुम को भरूँ
बिन बोले बातें तुमसे करूँ
गर तुम साथ हो
अगर तुम साथ हो

तेरी नज़रों में है तेरे सपने .... वार्षिक सं

अगर तुम साथ हो , दिल ये संभल जाए
अगर तुम साथ हो, हर ग़म फिसल जाए
अगर तुम साथ हो , दिन ये निकल जाए
अगर तुम साथ हो , हर ग़म फिसल जाए




वार्षिक संगीतमाला 2015

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8 टिप्पणियाँ:

Sumit on फ़रवरी 11, 2016 ने कहा…

Behtarin!!

Disha Bhatnagar on फ़रवरी 11, 2016 ने कहा…

this time hats off to u... Manish ji.. मुझे हमेशा लगता था कि अगर इस गीत में कोई कमी है तो वो है अलका याज्ञनिक की आवाज़।भाव को उकेरने में और दीपिका की आवाज़ बनने में वो नाकाम रहीं।

जसवंत लोधी on फ़रवरी 11, 2016 ने कहा…

धन्यवाद ।
Seetamni. blogspot. in

कंचन सिंह चौहान on फ़रवरी 13, 2016 ने कहा…

मेरे लिए यह गीत साल का दूसरा सबसे प्यारा गीत है. इसे सुन कर सुकून मिलता है. यद्यपि शुरुआत में इसे अपने हिसाब से सुनती थी और बहुत कुछ गलत सुनती थी, लेकिन तब भी बहुत अच्छी फील आती थी. मूवी देखने के बाद लिरिक्स सही से समझ में आये.

बेहतरीन गीत

Manish Kumar on फ़रवरी 15, 2016 ने कहा…

कंचन दूसरा सबसे प्यारा हम्म.. ख़ैर इतनी आशा है कि इस साल का प्रथम गीत जरूर आप का भी पसंदीदा होगा।

Manish Kumar on फ़रवरी 15, 2016 ने कहा…

सुमित व जसवंत गीत पसंद आया आप दोनों को जानकर खुशी हुई।

Manish Kumar on फ़रवरी 15, 2016 ने कहा…

दिशा मतलब हम दोनों की सोच इस गीत के मामले में बिल्कुल एक जैसी है। तुम्हारी इतनी ही खुशी मुझे भी हुई इस बात को जानकर !

Anil Kumar Saharan on फ़रवरी 15, 2016 ने कहा…

lajawaab manish ji

 

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