वार्षिक संगीतमाला 2015 के विधिवत समापन के पहले एक पुनरावलोकन पिछले साल के संगीत के सितारों की ओर। पिछला साल हिंदी फिल्म संगीत में गुणवत्ता के हिसाब से निराशाजनक ही रहा। फिल्में तो सैकड़ों के हिसाब से बनी पर कुल जमा दर्जन सवा दर्जन गीत ही कुछ खास मिठास छोड़ पाए। ये अलग बात है कि मेरी गीतमाला में पच्चीस गीतों की परंपरा है तो मैं भी उनकी फेरहिस्त हर साल सजा ही देता हूँ।
फिल्मी और गैर फिल्मी एलबम तो बाजार में आते ही रहते हैं। इस साल का एक नया चलन ये रहा कि कुछ संगीत कंपनियों ने सिंगल्स को वीडियो शूट कर बाजार में उतारा। सिंगल्स से मतलब ये कि ये इकलौते गाने किसी फिल्म के लिए नहीं बने। अब तो कुछ और संगीतकार भी इसी दिशा में काम करने की सोच रहे हैं। देखें ये प्रयोग कितना सफल होता है।
फिल्मी और गैर फिल्मी एलबम तो बाजार में आते ही रहते हैं। इस साल का एक नया चलन ये रहा कि कुछ संगीत कंपनियों ने सिंगल्स को वीडियो शूट कर बाजार में उतारा। सिंगल्स से मतलब ये कि ये इकलौते गाने किसी फिल्म के लिए नहीं बने। अब तो कुछ और संगीतकार भी इसी दिशा में काम करने की सोच रहे हैं। देखें ये प्रयोग कितना सफल होता है।
साल भर जो दो सौ फिल्में प्रदर्शित हुई उनमें रॉय, बदलापुर, तनु वेड्स मनु रिटर्न, हमारी अधूरी कहानी, जॉनिसार, बजरंगी भाईजान, मसान, पीकू, दम लगा के हैस्सा, तलवार, तमाशा और बाजीराव मस्तानी जैसे एलबम अपने गीत संगीत की वज़ह से चर्चा में आए। पर अपनी पिछली फिल्मों के संगीत की छाया रखते हुए भी संगीतकार संजय लीला भंसाली साल के सर्वश्रेष्ठ एलबम का खिताब अपने नाम कर गए। इस संगीतमाला में उनके एलबम के तीन गीत शामिल हुए और आज इबादत, पिंगा व दीवानी मस्तानी कगार पे रह गए।
साल के संगीत पर किसी एक संगीतकार का दबदबा नहीं रहा। रहमान, प्रीतम, अनु मलिक, सचिन जिगर, अजय अतुल, विशाल भारद्वाज, क्रस्ना, अंकित तिवारी, हीमेश रेशमिया, जीत गांगुली सबके इक्का दुक्का गाने इस संगीतमाला में बजे। अमित त्रिवेदी के कुछ एलबम जरूर सुनाई पड़े पर विशाल शेखर, शंकर अहसान लॉए, साज़िद वाज़िद जैसे नाम इस साल परिदृश्य से गायब से हो गए। हाँ अनु मलिक ने शानदार वापसी जरूर की।
गायकों में नये पुराने चेहरे जरूर दिखे। साल के सर्वश्रेष्ठ गायक का खिताब मेरे ख्याल से अरिजीत सिंह के नाम रहा। यूँ तो उनके गाए पाँच गाने इस गीतमाला का हिस्सा बने और कुछ बनते बनते रह गए पर बाजीराव मस्तानी के लिए उनका गाया गीत ''आयत'' गायिकी के लिहाज़ से मुझे अपने दिल के सबसे करीब लगा।
श्रेया घोषाल ने जॉनिसार की ग़जल, हमारी अधूरी कहानी के विशुद्ध रोमांटिक गीत और बाजीराव मस्तानी की शास्त्रीयता को बड़े कौशल से अपनी आवाज़ में ढाला। इसलिए मेरी राय में वो साल की सर्वश्रेष्ठ गायिका रहीं। पर साथ ही साथ मैं नवोदित गायिका राम्या बेहरा का भी नाम लेना चाहूँगा जिन्होंने हिंदी फिल्म के अपने पहले गीत से ही दिल में जगह बना ली। राम्या बेहरा, पायल देव व अंतरा मित्रा के डमी गीतों को जिस तरह बिना किसी दूसरे ज्यादा नामी गायक से गवाए हुए अंतिम स्वीकृति दी गई वो इस प्रवृति को दर्शाता है कि बॉलीवुड में नई प्रतिभाओं को आगे लाने के लिए कुछ निर्माता निर्देशक जोख़िम उठाने को तैयार हैं।
साल के सर्वश्रेष्ठ गीतकार तो निसंदेह वरुण ग्रोवर हैं जिन्होंने मोह मोह के धागे और तू किसी रेल सी गुजरती है जैसे गीतों को लिखकर सबका दिल जीत लिया। पर इस साल गीतकारों में कुछ नए नाम भी चमके जैसे अभयेन्द्र कुमार उपाध्याय और ए एम तुराज जिन्होंने रॉय व बाजीराव मस्तानी के लिए प्रशंसनीय कार्य किया। इरशाद कामिल व अमिताभ भट्टाचार्य के लिए भी ये साल अच्छा ही रहा। महिला गीतकार में इस बार सिर्फ क़ौसर मुनीर ही संगीतमाला में दाखिल हो सकीं।
मेरे गीतों के चयन से हर बार लोग कभी बहुत खुश होते हैं तो कभी नाराज़ भी। पर कोई गीत किसी को क्यूँ अच्छा या खराब लगता है इसकी तमाम वजहें हो सकती हैं। आपको जान कर ताज्जुब होगा कि संगीत का मूल्यांकन करने वाले दक्ष लोग भी एक ही गीत के बारे में 180 डिग्री उल्टे विचार रखते हैं। अब देखिए ना इंटरनेट के RMIM समूह द्वारा हर साल दर्जन भर जूरियों की मदद से साल के सर्वश्रेष्ठ नग्मों का चयन होता है पर ऐसा हो ही नहीं सकता कि गीत पर व्यक्त सारे विचारों से सहमति हो। तीन चार बार जिसमें ये साल भी शामिल है, मुझे भी बतौर जूरी इस में शामिल होने का मौका मिला है पर कभी भी अंतिम निर्णय से ख़ुद को पूरी तरह सहमत नहीं पाया।
अब मिसाल के तौर पर मेरे लिए जॉज़ से जुड़ा बाम्बे वेल्वेट में अमित त्रिवेदी का संगीत फिल्म की जरूरतों के हिसाब से तो ठीक ठाक लगा पर उसे मेरे साथ के जूरी मेम्बरान ने साल का बेस्ट एलबम कैसे करार दिया ये निर्णय मेरे गले नहीं उतरा। इसकी दो वजहें हो सकती हैं या तो उन्होंने जो अच्छाई इस एलबम में देखीं वो मेरी समझ के परे रहीं या फिर हमारी संगीत को अच्छा बुरा कहने की कसौटी ही अलग है। दूसरी ओर उन्ही जूरी मेम्बर की राय बहुत सारे दूसरे गीतों मे हूबहू रही।
कहने का मतलब ये कि गीतों के प्रति मेरी या किसी की राय कोई पत्थर की लकीर नहीं है और ये जरूरी नहीं कि आप मेरी राय से इत्तिफाक रखें। मुझे कोई गीत क्यूँ पसंद आता है उसकी वजहें मैं अपनी पोस्ट में यथासंभव लिखता हूँ। आप सहमत हैं मेरे आकलन से तो ठीक और नहीं है तो भी आप अपने विचार रखिए। आपकी पसंद जानना मुझे अच्छा लगता है। पर ना मैं अपनी पसंद बदलने में यकीन रखता हूँ ना आपकी बदलना चाहता हूँ। आप सोच रहे होंगे कि ये सब मैं क्यूँ लिख रहा हूँ तो उसकी वजह ये है कि कल एक संदेश आया कि मैं गीत चुनने में अपनी दिल की आवाज़ नहीं सुन पा रहा हूँ और दूसरों से प्रभावित होकर अपने गीत चुनता हूँ। मुझे हँसी भी आई और गुस्सा भी। हँसी इसलिए कि उन सज्जन ने मेरा मन कब पढ़ लिया और गुस्सा इसलिए कि लोग बिना किसी को जाने समझे उसकी ईमानदारी पर उँगलियाँ उठा देते हैं। मन तो हुआ कि डॉयलाग मार दूँ कि एक बार मैंने रेटिंग बना ली तो मैं खुद की भी नहीं सुनता :p। मैं ये भी जानता हूँ कि जो लोग ऐसी प्रतिक्रिया देते हैं उन्हें ख़ुद संगीत से बेहद लगाव है। पर ऐसे लोगों को दूसरे की राय के प्रति सम्मान रखने की भी तो आदत रखनी चाहिए।
ख़ैर,इससे पहले कि मैं आप सब से विदा लूँ अपने कुछ साथियों मन्टू कुमार, कंचन सिंह चौहान, सुमित, दिशा भटनागर, राजेश गोयल, मनीष कौशल, कुमार नयन सिंह, स्वाति गुप्ता, स्मिता जयचंद्रन का विशेष धन्यवाद देना चाहूँगा जो लगातार इस श्रंखला के साथ बने रहे और बाकी मित्रों का भी जो गीतों के प्रति अपने नज़रिये से मुझे अवगत कराते रहे। आशा है अगली वार्षिक संगीतमाला में भी आपका साथ मिलता रहेगा।
7 टिप्पणियाँ:
मनीष जी , हर इंसान का अपना अलग नजरिया होता हे... उसकी पसंद नापसंद हमेशा दूसरे से अलग होती हे...आपने साल के सर्वश्रेष्ठ २५ गानो को चुना... गानो के साथ उनकी खूबियां, उन्हें पसंद करने की वजह भी लिखी... इनमे कुछ गाने ऐसे थे जो मैंने सुने ही नहीं थे... पर उन्हें सुनकर, और आपकी पोस्ट पढ़कर मै आपसे बिलकुल सहमत हु...
किसी गाने को चुनते समय उसके बोल, संगीत, गायिकी और अन्य कई बातो पर ध्यान दिया जाता हे... आप अपनी पोस्ट में इन सभी पक्षों पर रौशनी डालते हे,और इससे हम श्रोताओ को एक नजरिया मिलता हे किसी गाने को अच्छी तरह समझने का... मै आपके लेखन से बहुत प्रभावित हु...इस संगीतमाला के लिए आपका शुक्रिया...
मुझे तो आपका आकलन और व्याख्या दोनों ही बहुत पसन्द हैं..बाकियों का पता नहीं। धन्यवाद देने के लिए आपका धन्यवाद :)
नदारद थे उसके लिए माफ़ी :)
पसंद-नापसंद अपनी जगह है पर हर साल गानों के पीछे की कहानी आप बताते हैं वो कही और से उम्मीद नहीं रखी जा सकती,इसके लिए तहदिल से आपका शुक्रिया।
आखिरी बात-
अपनी पसंद रख ही सकते हैं।दो गाने अमित त्रिवेदी साब के,एक गुड्डू रंगीला का साहेबां और दूसरा शानदार का नज़दीकियाँ। मेरी पसंद में इन्हें संगीतमाला में होना चाहिए था।उम्मीद करता हूँ कि गीतों की खोज में आप इन दोनों गानों से गुजरे होंगे।
धन्यवाद सर, पूरी दुनिया की बातें लिखने वाले ब्लॉगर को हम जैसे अदने से प्रशंसकों का साथ भाया, इसके लिए ह्रदय से धन्यवाद।
Wah manishji...shukriya toh aapka!
धन्यवाद तो हमारा है आपको। अगली गीतमाला की प्रतीक्षा रहेगी
आपने विशेष रूप से हमारा नाम लिया, हमारे लिए सौभाग्य की बात है. आपके माध्यम से हमारी पीढ़ी को जो कुछ भी सीखने को मिलता है...अनमोल है. हमें अपने साथ बनाएं रखने के लिए सादर धन्यवाद. उम्मीद है आगे भी साथ बरक़रार रहेगा..
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