गुरुवार, जून 16, 2016

हिज्रे यारां ना सता बेवज़ह, बन गया तू क्यूँ वज़ह, बेवज़ह Bewajah

नबील शौक़त अली को क्या आप जानते हैं? मैं तो बिल्कुल नहीं जानता था। आपको याद है रियालटी शो के उस दौर में हर चैनल  चार पाँच  साल पहले गीत संगीत की प्रतियोगिता को अलग अलग रूप रंग से सजा रहा था। कलर्स ने सोचा कि जिस तरह क्रिकेट के मैदान पर भारत पाकिस्तान का आमना सामना लोगों को उत्साहित कर देता है वैसे ही संगीत की सरज़मीं पर दोनों मुल्क के कलाकार जब भिड़ेंगे तो शो का हिट होना पक्का है। कार्यक्रम का नाम रखा गया सुर क्षेत्र।  पर संगीत जब युद्ध की ताल ठोकने का सबब बन जाए तो फिर वो संगीत कैसा? लिहाज़ा कार्यक्रम के प्रोमो में हीमेश रेशमिया व आतिफ़ असलम का नाटकीय अंदाज़ में रणभेरी बजाना मुझे ख़ल गया और आशा, आबिदा व रूना लैला जैसे दिग्गज जूरी के रहते भी मैं इस कार्यक्रम को देखने की हिम्मत नहीं जुटा सका। 



यही वज़ह थी कि नबील शौक़त अली जिन्होंने कार्यक्रम में हो रही ड्रामेबाजी के बीच इस ख़िताब को अपने नाम कर लिया, की आवाज़ से मैं अनजाना ही रह गया। लाहौर में जन्मे 27 वर्षीय नबील को संगीत का शौक़ बचपन से था। घर में संगीत का माहौल था। पिता हारमोनियम में प्रवीण थे तो बड़े भाई गायिकी में । गायिकी का चस्का नबील को टीवी शो में किस्मत आज़माने के लिए प्रेरित कर गया। पाकिस्तानी टीवी के कुछ रियालिटो शो को जीतने के बाद उन्होंने सुर क्षेत्र में हिस्सा ले के अपनी विजय का सिलसिला ज़ारी रखा। पर उनकी आवाज़ को सुनने का मौक़ा मुझे तब मिला जब कुछ  ही दिन पहले एक मित्र ने कोक स्टूडियो के आठवें सत्र की इस प्रस्तुति को साझा किया। यकीन मानिये एक ही बार सुनकर मन इस गीत से बँध सा गया।

इस गीत को गाने के साथ साथ नबील ने इसे संगीतबद्ध भी किया है। गीतकार बाबर शौक़त हाशमी के बोल सहज पर दिल को छू लेने वाले हैं। पर जिस तरह अपनी गायिकी और संगीत रचना से उन्होंने इस ग़ज़ल में चार चाँद लगाए हैं उसकी जितनी भी तारीफ़ की जाए कम है। गिटार और ड्रम्स तो कोक स्टूडियो की हर प्रस्तुति का अहम हिस्सा होते हैं पर इंटरल्यूड्स में कानों में शहद की मिठास भरती बाँसुरी और दिल को बहलाते तबले की थाप मन को सुकून से भर देती है !

किसी को याद करने की कोई वज़ह नहीं होती खासकर जब वो शख्स आपको प्यारा लगने लगे। फिर  तो वक़्त बेवक़्त ही वो आपके दिल के किवाड़ों में दस्तक देने लगता है। रिश्ता बना..वक़्त के हाथों बिगड़ गया। दिमाग ने सारी दीवारें खींच दीं और इस अहसास से अपने आप को संतुष्ट कर लिया कि लो मैंने तुम्हें भुला दिया। नादान था वो जो मोहब्बत को इन सींखचों में बाँधने की सोच बैठा। 

अब वो कहाँ जानता था कि कुछ भी करो , कितने भी व्यस्त रहो. अनायास ही ये दिल सींखचों के बीच उड़ता हुआ उन यादों के भँवर में डूब सा जाता है।  वो भी बिना किसी वज़ह के। 

तो आइए आज बेवज़ह ही सुने शौक़त आज़मी की इन भावनाओं को शौक़त अली की आवाज़ में.. :)


हिज्रे यारां ना सता बेवज़ह
बन गया तू क्यूँ वज़ह, बेवज़ह

दिल से कह वक़्त रुक जा पागल
चल पड़ा  करने ये वफ़ा बेवज़ह

मैं उसे भूल चुका भूल चुका
बात ऐ दिल ना बढ़ा बेवज़ह

नाम लेने का इरादा भी ना था
चल पड़ा जिक्र तेरा बेवज़ह

उनसे मिलने की वज़ह कोई नहीं
ढूँढता क्यूँ है वज़ह बेवज़ह



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10 टिप्पणियाँ:

Unknown on जून 17, 2016 ने कहा…

"बेवजह" को सुनने की बहुत सी वजह हे मेरे पास....पहले तो इस ग़ज़ल के बोल बहुत ही भावपूर्ण हे... और फिर नबील जी ने इतनी सहजता से गाया हे इसे, वो अपने आप में बहुत खूबसूरत हे...उनकी आवाज़ के उतार चढाव के साथ सुनने वाले भी ग़ज़ल में डूबते उतरते जाते हे..
नबील जी को मैंने यहाँ पहली बार सुना...वो सुर क्षेत्र के विजेता थे ये नहीं पता था...
इन सभी जानकारी और आपकी इतनी सुन्दर पोस्ट के लिए बहुत बहुत शुक्रिया..

Parmeshwari Choudhary on जून 17, 2016 ने कहा…

बहुत खूबसूरत शायरी है..धन्यवाद

Manish Kumar on जून 17, 2016 ने कहा…

ग़जल सुनी आपने परमेश्वरी जी, गाया भी बड़ा प्यारा है।

Parmeshwari Choudhary on जून 17, 2016 ने कहा…

गाया भी प्यारा है! पर संगीत के मामले में I am an old timer :)

Asha Kiran on जून 17, 2016 ने कहा…

Sukun dene wala sangeet..

Manish Kumar on जून 17, 2016 ने कहा…

हाँ बिल्कुल आशा जी !

Manish Kumar on जून 17, 2016 ने कहा…

नबील जी ने इतनी सहजता से गाया हे इसे, वो अपने आप में बहुत खूबसूरत हे...उनकी आवाज़ के उतार चढाव के साथ सुनने वाले भी ग़ज़ल में डूबते उतरते जाते हे..

हाँ स्वाति मेरी भी इस ग़ज़ल को पसंद करने की मुख्य वज़ह नबील की गायिकी ही है। इस ग़ज़ल से रूबरू कराने के लिए आभार।

GODWAD JYOTI on जून 17, 2016 ने कहा…

कुछ अहसासों को शब्दों में बयां कर पाना कितना मुश्किल होता है....

बेहतरीन गजल की तारीफ करने की कोई वज़ह कोई नहीं, पर रोक ना पाये खुद को यूँ ही बेवज़ह।

मन्टू कुमार on जून 24, 2016 ने कहा…

कितना भी व्यस्त रहूँ आपको पढ़ने आ ही जाता हूँ..
वजह-बेवजह के साथ..आभार :)

मन्टू कुमार on जून 24, 2016 ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
 

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