रमेश गौड़ को मैं नहीं जानता। कुछ दिन पहले व्हाट्सएप पर उनकी ये कविता एक मित्र ने भेजी और जी एकदम से उसे पढ़कर उदास हो गया। पता नहीं रमेश जी ने किसको सोचकर ये कविता लिखी होगी. पर इसमें उन सब लोगों का दर्द है जो अपनी छाया से दूर हैं। हम उसी व्यक्तित्व से तो जुड़ते हैं या जोड़ने की सोचते हैं जिसमें हमें अपना अक्स नज़र आता है या फिर ऐसी बात नज़र आती है जो हममें भले ना हो पर हम वैसा होना चाहते हैं। बरसों हम इसी काल्पनिक छाया के सपनों में डूबते उतराते रहते हैं। कभी तो ये कल्पना ज़िदगी की आपा धापी में दब सी जाती है तो कभी उस शख्स से सचमुच ही मिला देती है।
अब ये छाया आभासी है या वास्तविक इससे क्या फर्क पड़ता है। उससे दूरी तो हमेशा ही खटकती है। अपनी छाया के बिना हम पूर्ण ही तो नहीं हो पाते। रमेश गौड़ इसी अपूर्णता को कुछ खूबसूरत और अनसुने से बिंबों में बाँटते हैं। कविता में मुझे विशेष रूप से संख्या के पीछे हटती इकाई, और बरसों बाद आई चिट्ठी के धुल जाने की बात दिल को छू गई। लगा कि जो उदासी इसे पढ़ने से मन में छाई है उसे तभी निकाल पाऊँगा जब इसे एक बार मन से पढ़ दूँ..
जैसे सूखा ताल बच रहे या कुछ कंकड़ या कुछ काई
जैसे धूल भरे मेले में चलने लगे साथ तन्हाई,
तेरे बिन मेरे होने का मतलब कुछ-कुछ ऐसा ही है
जैसे सिफ़रों की क़तार बाक़ी रह जाए बिन इकाई ।
जैसे ध्रुवतारा बेबस हो, स्याही सागर में घुल जाए
जैसे बरसों बाद मिली चिट्ठी भी बिना पढ़े धुल जाए,
तेरे बिन मेरे होने का मतलब कुछ-कुछ ऐसा ही है
जैसे लावारिस बच्चे की आधी रात नींद खुल जाए ।
जैसे निर्णय कर लेने पर मन में एक दुविधा रह जाए
जैसे बचपन की क़िताब में कोई फूल मुँदा रह जाए,
मेरे मन पर तेरी यादें अब भी कुछ ऐसे अंकित हैं
जैसे खंडहर पर शासक का शासन-काल खुदा रह जाए...
रमेश गौड़ से अगर मेरे पाठकों में कोई परिचित हो तो जरूर मुझे आगाह करे। उनके व्यक्तित्व और कृतित्व के बारे में जानकर मुझे खुशी होगी...
5 टिप्पणियाँ:
ह्दयस्पर्शी रचना।
bahut pyaaraa ...behad touching :) maza aa jata hai, idhar aa kar...
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (27-06-2016) को "अपना भारत देश-चमचे वफादार नहीं होते" (चर्चा अंक-2385) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत सुंदर कविता
राजेश जी, लोरी व सीमा जी आप सब को ये कविता अच्छी लगी जानकर खुशी हुई।
शास्त्री जी हार्दिक आभार !
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