पुरानी फिल्मों के गीतों को नए मर्तबान में लाकर फिर पेश करने का चलन बॉलीवुड में कोई नया नहीं है। मूल गीतों की गुणवत्ता से अगर इन नए गीतों की तुलना की जाए तो ये उनके सामने कहीं नहीं ठहरते। पर नए लिबासों में इन गीत ग़ज़लों के आने से एक फ़ायदा ये जरूर रहता है कि हर दौर के संगीतप्रेमी उन पुराने गीतों से फिर से रूबरू हो जाते हैं। अब कुछ साल पहले की तो बात है। मेहदी हसन साहब की ग़ज़ल गुलो में रंग भरे को हैदर में अरिजीत ने गाकर उसमें लोगों की दिलचस्पी जगा दी थी।
फिलहाल तो "वज़ह तुम हो" की वज़ह से हमें किशोर दा का सदाबहार नग्मा पल पल दिल के पास तुम रहती हो बारहा सुनाई दे रहा है तो वहीं "डियर ज़िंदगी" हमें इलयराजा, गुलज़ार और सुरेश वाडकर के कालजयी गीत ऐ ज़िंदगी गले लगा ले...... की याद दिला रही है।
गुलज़ार और इलयराजा |
क्या प्रील्यूड्स और इंटरल्यूड्स रचे थे इस गीत के इलयराजा ने। पश्चिमी वाद्य के साथ सितार का बेहतरीन मिश्रण किया था उन्होंने संगीत संयोजन में । सदमा तो 1983 में पर्दे पर आई थी पर इसके एक साल पहले निर्देशक बालू महेन्द्रू इसका तमिल रूप मूंदरम पिरई ला चुके थे। पर आश्चर्य की बात ये है कि तमिल वर्सन में इस धुन का आपको कोई गीत नहीं मिलेगा।
ऍसा कहा जाता है कि मूल तमिल गीत Poongatru Puthidanadhu के लिए जब हिंदी अनुवाद की बात आई तो गुलज़ार को उसके मीटर पर गीत लिखने में मुश्किल हुई। फिर निर्णय लिया गया कि इसके लिए एक नई धुन बनेगी। इलयराजा की धुन कमाल की थी पर गुलज़ार को इसके लिए ख़ुद काफी पापड़ बेलने पड़े थे। ख़ुद उनके शब्दों में..
"बड़ी इन्ट्रिकेट थी इस गीत की स्कैनिंग। मूल तमिल गीत के मीटर को पकड़ना था। गाने के म्यूजिक में टिउऊँ सा आता था ऐ ज़िंदगी गले लगा ले..टिउऊँ 😆😆 । उसके नोट्स कुछ वैसे थे। मुझे कुछ नहीं सूझा तो वहाँ पर मैंने लफ़्ज़ "है ना" डाल दिया। अब मुझे लगा पता नहीं इलयराजा को वो पसंद आएगा या नहीं पर उन्होंने दो मिनटों में ऊपर का म्यूजिक बदल कर है ना को अपनी धुन के मुताबिक कर लिया।"
बड़ी संवेदनशील फिल्म थी सदमा और उसके गीत भी। मुझे लगता है कि आज इस गीत को एक क्लासिक का दर्जा मिला है तो वो इसके मुखड़े की वज़ह से। इंसानों से भरी इस दुनिया भी हमें कभी बेगानियत का अहसास दिला जाती है। बड़े अकेले अलग थलग पड़ जाते हैं हम और तब लगता है कि ये ज़िंदगी हमें थोड़ी पुचकार तो ले। कोई राह ही दिखा दे, किसी रिश्ते का किनारा दिला दे...
ऐ ज़िंदगी गले लगा ले
हमने भी तेरे हर इक ग़म को
गले से लगाया है...... है ना
हमने बहाने से, छुपके ज़माने से
पलकों के परदे में, घर भर लिया
तेरा सहारा मिल गया है ज़िंदगी
छोटा सा साया था, आँखों में आया था
हमने दो बूंदो से मन भर लिया
हमको किनारा मिल गया है ज़िंदगी
तो आइए सुनें ये गीत सुरेश वाडकर की आवाज़ में.
डियर ज़िंदगी में इस गीत के मुखड़े और पहले अंतरे का इस्तेमाल किया है अमित त्रिवेदी ने। पर अरिजीत की आवाज़ में ये गीत भला ही लगता है अगर आप इंटरल्यूड्स में ड्रम और स्ट्रिंग के शोर को नज़रअंदाज़ कर दें तो। वैसे इस गीत को अमित ने अलिया भट्ट से भी गवाया है। तो आपको मैं अरिजीत का वो वर्सन सुनवा रहा हूँ जिसमें इंटरल्यूड्स हटा दिए गए हैं। ये रूप शायद मेरी तरह आपको भी अच्छा लगे।
11 टिप्पणियाँ:
सचमुच, कल्ट है ये गीत और इसके शब्द। आप भी हमेशा कुछ अनोखा ही याद दिलाते हैं।
कुछ अनजाना खोज़ना ख़ुद को भी आनंद दे जाता है।
दर्द भरा लाजवाब गीत ..
Sach mei ... nice movie nd song
सुरेश वाडेकर की बेहतरीन गायकी.. वैसे अरिजित सिंह की आवाज़ भी अच्छी लगी
मुझे भी बहुत पसंद है ये गीत
जी बिल्कुल सही। कभी कभी अनजानी अनदेखी चीजों के सहारे हम वहाँ पहुँच जाते हैं या उन चीजों से मिल जाते हैं जिनकी हम कल्पना या उम्मीद किया करते हैं।
रोज़ -रोज़ नयी जानकारी जो आप ले आते है अब तो मुझे यकीन हो गया है ज्ञान का सारा काला धन आप ही के पास है जो आप सबको बाँट कर सफ़ेद कर रहे है ..गुस्ताखी माफ़ ...और शानदार पोस्ट के लिए आपका शुक्रिया
हा हा, गुलशन ऐसी गुस्ताखी करते रहा कीजिए। वैसे क्या काला, क्या सफेद मैं तो उस पुरानी कहावत पर विश्वास करता हूँ कि ज्ञान बाँटने से बढ़ता है। :)
Purani filmo mein woh baat thi jo aaj-kal nahin dikhti...tab ke to kalakaar bhi alag hi the.
बेहतरीन पोस्ट। ... Thanks for sharing this!! :) :)
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