पिछले कुछ वर्षों में हरियाणा अक्सर गलत कारणों से ज्यादा में चर्चा में रहा है। भ्रूण हत्या की बात हो या खाप पंचायत के अमानवीय फैसले, जाटों का मनमाना उपद्रव या जगतविदित हरियाणवी अक्खड़पन ये सभी मुद्दे ही मीडिया में सुर्खियाँ बटोरते रहे हैं। । पर विगत कुछ महीनों से इस राज्य के कुछ सकरात्मक पहलू भी हमारे सामने आए हैं जिनकी वजह से यहाँ की छवि को एक नई रौशनी में देख कर पूरा देश प्रभावित हुआ है। इसका पहला श्रेय तो यहाँ के पहलवानों, खासकर महिला पहलवानों को जाता है जिन्होंने ना केवल ओलंपिक, एशियाई व कॉमनवेल्थ खेलों में पदक जीत कर देश का नाम रोशन किया बल्कि अपनी इस सफलता से बॉलीवुड के निर्माता निर्देशकों को हरियाणवी ग्रामीण संस्कृति के प्रति आकृष्ट किया।
नतीजा ये हुआ कि वही बोली जो हमें थोड़ी रूखी लगती थी उसमें हमें गाँव का सोंधापन आने लगा। हरियाणवी जुमले हमारी जुबां पर चढ़ गए। हाल ही में आई फिल्म दंगल इस भाषा और परिवेश को हमारे और करीब ले आई। ये सब हो ही रहा था कि कुछ स्कूली छात्राओं द्वारा गाया एक हरियाणवी भजन यू ट्यूब पर इस क़दर लोकप्रिय हुआ कि कुछ हफ्तों में वो पूरे देश में करोड़ लोगों द्वारा देखा और सराहा गया।
कृष्ण सुदामा की मित्रता की कहानियाँ तो हम बचपन से पढ़ते आए हैं। पर रोहतक के खिल्लौड़ गाँव से ताल्लुक रखने वाली विधि ने कृष्ण सुदामा संवाद के उन किस्सों को फिर से पुनर्जीवित कर दिया है। मुख्य गायिका विधि भजन के इस रूप में सामने आने की कहानी अपने एक साक्षात्कार में बड़े भोलेपन से कुछ यूँ बयाँ करती हैं
"मेरी मम्मी को गाणा पसंद था। वो जाती थी सत्संग में गाणे। तो फिर मम्मी ने मुझे सिखाया। फिर मैंने अपने म्यूजिक टीचर को बताया तो सर को भी अच्छा लगा। हमने स्कूल में गाया तो सबको अच्छा लगा। सर ने कहा इसको नया म्यूजिक देते हैं। फिर सर ने तैयार करा के इसे यू ट्यूब पर डलवा दिया और ये प्रसिद्ध हो गया। ये जितनी भी मेहनत है हमारे सर की है। उनके सामने हमारी मेहनत तो कुछ भी नहीं है।"
सोमेश जांगड़ा |
सोमेश का मानना है कि इस भजन के इतने सराहे जाने की तीन वज़हें हैं। पहली तो ये भजन, जिसकी शब्द रचना बिल्कुल एक लोक गीत जैसी है। दूसरे विधि जिसकी आवाज़ में लोक गायिका की सभी खूबियाँ मौज़ूद हैं और तीसरी बात इसका संगीत जिसमें हारमोनियम के साथ लोक वाद्यों का ऐसा समावेश किया गया है जो हरियाणवी मिट्टी में रचा बसा सा लगता है। ये तीनों मिलकर मन में ऐसा सुकून जगाते हैं कि मन कृष्ण द्वारा बालसखा सुदामा के साथ दिखाए अपनत्व से श्रद्धा से भर उठता है।
बता मेरे यार सुदामा रै, भाई घणे दिना में आया
बालक था रे जब आया करता, रोज खेल के जाया करता
हुई कै तकरार सुदामा रै, भाई घणे दिना में आया
मन्ने सुना दे कुटुंब कहाणी, क्यों कर पड़ गयी ठोकर खानी
टोटे की मार सुदामा रै, भाई घणे दिना में आया
सब बच्चों का हाल सुना दे, मिसराणी की बात बता दे
रे क्यूँ गया हार सुदामा रै, भाई घणे दिना में आया
चाहिए था रे तन्ने पहलम आना, इतना दुःख नहीं पड़ता ठाणा
क्यों भूला प्यार सुदामा रै, भाई घणे दिना में आया
इब भी आगया ठीक बखत पे, आज बैठ जा म्रेरे तखत पै
जिगरी यार सुदामा रै, भाई घणे दिना में आया
आजा भगत छाती पे लाल्यूँ, , इब बता तन्ने कड़े बिठा लूँ
करूँ साहूकार सुदामा रै, भाई घणे दिना में आया
(घणे दिनों : बहुत दिनों में, टोटा : गरीबी, बखत :वक़्त, ठाणा :उठाना, कड़े : किधर ,छाती पे लाल्यूँ :छाती से लगा लूँ , इब :अब, )बालक था रे जब आया करता, रोज खेल के जाया करता
हुई कै तकरार सुदामा रै, भाई घणे दिना में आया
मन्ने सुना दे कुटुंब कहाणी, क्यों कर पड़ गयी ठोकर खानी
टोटे की मार सुदामा रै, भाई घणे दिना में आया
सब बच्चों का हाल सुना दे, मिसराणी की बात बता दे
रे क्यूँ गया हार सुदामा रै, भाई घणे दिना में आया
चाहिए था रे तन्ने पहलम आना, इतना दुःख नहीं पड़ता ठाणा
क्यों भूला प्यार सुदामा रै, भाई घणे दिना में आया
इब भी आगया ठीक बखत पे, आज बैठ जा म्रेरे तखत पै
जिगरी यार सुदामा रै, भाई घणे दिना में आया
आजा भगत छाती पे लाल्यूँ, , इब बता तन्ने कड़े बिठा लूँ
करूँ साहूकार सुदामा रै, भाई घणे दिना में आया
इस भजन की अपार सफलता से दो बातें बिल्कुल स्पष्ट हो गयीं। भारतीय संगीत से पश्चिमी संगीत के सम्मिश्रण यानि फ्यूजन के इस दौर में भी हमारी देशी संस्कृति में इतना कुछ है कि जिसे अगर ढंग से परोसा जाए तो देश के संगीतप्रेमी उसे सर आँखों पर बिठाते हैं। दूसरी बात ये कि इतनी बड़ी आबादी वाले देश में हुनर हर जगह बिखरा है। जरूरत है तो इक सहारे की और एक माध्यम की। सफलता की ऐसी कहानियाँ इंटरनेट जैसे सशक्त माध्यम से आगे भी दोहराई जाएँगी मुझे इसका पूरा भरोसा है।
10 टिप्पणियाँ:
देशी संगीत का जादू जो सबके सर चढ़ कर बोला..
काफी बार सुना उस दिन इसको बहुत ही शानदार
शानदार भजन है । ये जो आपने शब्दों के मतलब लिखे हैं उनमें टोटा भाग्य नहीं नुक्सान या कंगाली होता है और साहूकार होता है पैसे वाला या धनवान ।
राजेश और गुलशन ये भजन आप दोनों को अच्छा लगा जानकर खुशी हुई।
शुक्रिया हरेंद्र इस ओर ध्यान दिलाने के लिए। हमारी तरफ़ तो साहूकार कर्जा देने वाले को कहते हैं पर उस पंक्ति में वो अर्थ बैठ नहीं रहा है
हार्दिक आभार पोस्ट को बुलेटिन में शामिल करने के लिए।
मैं ज्यादा भजन नही सुनता..शायद इसलिए अबतक इस गीत से अनजान था..हरियाणवी मिट्टी में रचा-बसा यह भजन बहुत पसन्द आया
It is indeed a very melodious bhajan. I have seen another video of this bhajan in which Vidhi and her co-singer friends are making the presentation in their school function. All deserve congratulations including Music composure Shri Somesh Jangra. I like this song very much. !!
हाँ मैंने भी देखा है ये वीडियो जहाँ हरियाणा सरकार के एक कार्यक्रम में विधि व उसकी स्कूल की सहपाठिन मंच से इस भजन की प्रस्तुति दे रही हैं। आपको भी ये भजन उतना ही पसंद है जानकर खुशी हुई।
मैंने हरियाणा से ही belong करता हूँ, बहुत अच्छा लगता हैं जब हरियाणा का कोई गाना या भजन लोग सुनते हैं और ये वाला अभी तक सबसे बढ़िया लगा मैंने इसे काफी बार सुना हैं और सुनता रहता हूँ
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