मंगलवार, अप्रैल 04, 2017

हर ज़ुल्म तेरा याद है, भूला तो नहीं हूँ Har Zulm

कुछ महीने पहले WhatsApp और फेसबुक पर एक वीडियो वायरल हुआ था जिसमें ज़मीन पर बैठा एक शख़्स गा रहा था। उसके कपड़े पर चूने के छींटे थे और पीछे उसका साथी दीवारों की पुताई में व्यस्त था। पर दो मिनट के वीडियो में उसकी सधी हुई गायिकी ने मुझे ऍसा प्रभावित किया कि कुछ दिनों तक तो ये ग़ज़ल होठों से चिपकी ही रही। 

इंटरनेट पर तो ये तुरंत ही पता चल गया कि ये ग़जल सज्जाद अली की गायी है। वही सज्जाद अली जिनकी आवाज़ की ओर मेरा ध्यान बोल फिल्म के गीत दिन परेशां है, रात भारी है से गया था। सज्जाद ने पहली बार इस ग़ज़ल को अपने एलबम कोई तो बात हो....  में पन्द्रह वर्ष पहले 2002 में शामिल किया था।  चार साल पहले जब इसका वीडियो यू ट्यूब पर रिलीज़ हुआ लोगों ने इसे काफी पसंद किया। सज्जाद के बारे में पहले भी यहाँ काफी कुछ लिख चुका हूँ। संगीत में दशकों से सक्रिय रहते हुए पचास वर्षीय सज्जाद फिलहाल दुबई में रहते हैं और इक्का दुक्का ही सही अपने सिंगल्स रिलीज़ करते रहते हैं।

पर जैसा मैंने शुरुआत में कहा कि इस ग़ज़ल से मेरी मुलाकात उस शख़्स ने करवायी जो पाकिस्तान में पेंटर बाबा के नाम से अपनी गायिकी के लिए जाना जाता है पर उनका वास्तविक नाम है ज़मील अहमद। सज्जाद ने जब अपनी गायी इस ग़ज़ल को ज़मील की आवाज़ में सुना तो वो भी ज़मील के हुनर की दाद दिए बिना नहीं रह सके। वैसे ज़मील ने इस अचानक मिली लोकप्रियता के बाद ग़ुलाम अली की ग़ज़ल चमकते चाँद को टूटा हुआ तारा बना डाला को भी अपनी आवाज़ दी है।

सज्जाद अली व आफ़ताब मुज़्तर
वैसे क्या आपको पता है कि इस ग़ज़ल को किसने लिखा? इसे लिखा है आफ़ताब मुज़्तर ने जो कराची से ताल्लुक रखते हैं और लेखक व शायर होने के साथ साथ एक रिसर्व स्कॉलर भी हैं। आफ़ताब साहब की इस ग़ज़ल में यूँ तो आठ अशआर थे पर सज्जाद ने गाने के लिए इनमें से चार को चुना। अपनी इस ग़ज़ल के बारे में आफ़ताब कहते हैं कि इस ग़ज़ल का वो शेर साहिल पे खड़े हो..  उनके उस्ताद ख़ालिद देहलवी को बेहद पसंद था और जब भी वे उनके पास जाते उस्ताद इस शेर की फर्माइश जरूर करते। तो आइए इस ग़ज़ल को सुनाने से पहले रूबरू कराते  हैं आपको इसके सारे अशआरों से..

हर ज़ुल्म तेरा याद है, भूला तो नहीं हूँ
ऐ वादा फ़रामोश मैं तुझ सा तो नहीं हूँ


ऐ वक़्त मिटाना मुझे आसान नहीं है
इंसान हूँ कोई नक़्श-ए-कफ़-ए-पा तो नहीं हूँ

तुम्हारा ढाया हर सितम मुझे याद है पर क्या करूँ मैं तुम्हारे जैसा तो हूँ नहीं जो अपने हर वादे से मुकर जाए। ऐ वक़्त मुझे उन पदचिन्हों की तरह ना समझो जिस पर चल कर तुम उसका निशां मिटा दो।

चुपचाप सही मसलेहतन वक़्त के हाथो,
मजबूर सही, वक़्त से हारा तो नहीं हूँ


उनके लिए लड़ जाऊँगा तक़दीर मैं तुझ से
हालांकि कभी तुझसे मैं उलझा तो नहीं हूँ

आज मैं सब कुछ जानते हुए किसी प्रयोजन से चुप हूँ।  मेरी इस मजबूरी, इस चुप्पी का ये मतलब मत लगा लेना कि मैंने तुम्हारे  सामने अपने घुटने टेक दिए हैं। यूँ तो भाग्य ने जिस ओर चलाया उसी ओर चलता रहा हूँ। पर जब बात उनकी हो तो फिर अपनी तक़दीर से  दो दो हाथ करने में मुझे परहेज़ नहीं।
ये दिन तो उनके तग़ाफ़ुल ने दिखाए
मैं गर्दिश ए दौरां तेरा मारा तो नहीं हूँ


साहिल पे खड़े हो तुम्हें क्या ग़म, चले जाना
मैं डूब रहा हूँ, अभी डूबा तो नहीं हूँ


मुझे तो बेहाली कभी छू भी नही सकी थी, ये दौर तो अब तेरी बेरुखी की वज़ह से आया है। तेरे ग़म में आज बदहवास सा मैं डूब रहा हूँ। और तुम हो कि बस बस यूँ ही दूर खड़े किनारे से देख भर रहे हो। जाओ, बस संतोष कर लो इस बात का कि मैं अभी तक डूबा नहीं हूँ।

क्यूँ शोर बरपा है ज़रा देखो तो निकल कर
मैं उसकी गली से अभी गुजरा तो नहीं हूँ

मुज़्तर मुझे क्यूँ देखता रहता है ज़माना
दीवाना सही उनका तमाशा तो नहीं हूँ


लो अभी मैं उसकी गली तक पहुँचा भी नहीं और पहले से ही छींटाकशी शुरु हो गयी। आख़िर ज़माना मुझ पर ही क्यूँ बातें बनाता है? मैंने कोई तमाशा तो नहीं सिर्फ प्यार ही तो किया है।

यूँ तो सज्जाद ने इस ग़ज़ल में गिटार का खूबसूरती से उपयोग किया है पर इस ग़ज़ल के बोलों में जो दर्द और इसकी धुन में जो मिठास है वो बिना किसी संगीत के ही दिल में बस जाने का माद्दा रखती है। तो आइए सुनते हैं इसे सज्जाद अली की आवाज़ में।

Related Posts with Thumbnails

27 टिप्पणियाँ:

Kanchan Singh Chouhan on अप्रैल 05, 2017 ने कहा…

पसंदीदा ग़ज़ल के सारे शेर सुनवाने का शुक्रिया

Rajesh Goyal on अप्रैल 05, 2017 ने कहा…

Once again you made my day...what a ghazal... A treat to ear...

विवेक मिश्र on अप्रैल 05, 2017 ने कहा…

सज्जाद की बेहतरीन आवाज़ में ग़ज़ल और कर्णप्रिय लगती है। रू-ब-रू कराने के लिये शुक्रिया मनीष जी।

kumar gulshan on अप्रैल 05, 2017 ने कहा…

शानदार गजल मैंने मोमिना मुस्तेहसन की आवाज़ में इसे पहली बार सुना था और वो भी काफी अच्छा गाती हैं

Manish Kumar on अप्रैल 05, 2017 ने कहा…

Gulshan हाँ कोक स्टूडियो में उनकी आवाज़ सुनी थी कभी। आज इसे भी सुन लिया। अच्छा निभाया हैं उन्होंने। साथ में उनकी एक विनम्रतापूर्ण इल्तिजा भी पढ़ी कि "Nothing even nearly close to the original, I definitely cannot sing like Sajjad Ali, a legendary musician. But I felt like giving it a shot :) Please don't compare it to the original"

Manish Kumar on अप्रैल 05, 2017 ने कहा…

कंचन वैसे इस ग़ज़ल में आपका पसंदीदा शेर कौन सा है ?

Kanchan Singh Chouhan on अप्रैल 05, 2017 ने कहा…

दीवाना सही उनका तमाशा तो नहीं हूँ

Manish Kumar on अप्रैल 05, 2017 ने कहा…

विवेक व राजेश जी ये ग़ज़ल मेरी तरह आपके दिल में भी उतरी जान कर खुशी हुई।

kumar gulshan on अप्रैल 05, 2017 ने कहा…

compare करने का कोई इरादा नहीं रहा मनीष जी बस आप एक ही गजल को दो आवाजों में सुने तो ये भी हो सकता है आपको दोनों पसंद आये और मेरे साथ ऐसा ही हुआ

Manish Kumar on अप्रैल 05, 2017 ने कहा…

आपने कहाँ कम्पेयर किया मैं तो जानकारी के लिए मोमिना मुस्तेहसन के वक़्तव्य को यहाँ quote भर कर रहा था कि वो मानती हैं कि मूल वर्सन शानदार था। वैसे भी चाहे वो ज़मील पेंटर हों या मोमिना सबके वर्सन सुनने में अच्छे लगते हैं।

kumar gulshan on अप्रैल 05, 2017 ने कहा…

मेरे मन में भी दोनों विचार आये फिर सोचा लिख ही दूँ गुस्ताखी माफ़ ....

SeemaSingh on अप्रैल 07, 2017 ने कहा…

आपके ब्लाॅग पे आकर कभी निराश नहीं होती बहुत प्यारी गज़ल खूबसूरत आवाज़ के साश , शेयर करने के लिए बहुत शुक्रिया

niraj on अप्रैल 13, 2017 ने कहा…

bohot acha, thank you so much

Manish Kumar on अप्रैल 14, 2017 ने कहा…

सीमा जी ग़ज़लों से आपका लगाव मेरे जैसा है इसीलिए मेरौ पसंद आपको भी पसंद आती है।

Manish Kumar on अप्रैल 14, 2017 ने कहा…

You are WELCOME Neeraj !

Ritu asooja rishikesh on अप्रैल 14, 2017 ने कहा…

बेहतरीन

Manish Kumar on अप्रैल 16, 2017 ने कहा…

Thanks for visiting Ritu !

बेनामी ने कहा…

Soulful voice with soulful wrting ....
Ati Uttam ......

Ashutosh Tiwari on मई 12, 2017 ने कहा…

पहली बार ये ग़ज़ल पाकिस्तानी tv serial दिल ए मुज़तर के एक एपिसोड में सुनी थी । उस दिन से आज तक favourite playlist में है ।

Manish Kumar on मई 22, 2017 ने कहा…

Anonymous अनाम भाई तारीफ़ का तो धन्यवाद पर नाम के साथ अपने विचार रखते तो मुझे और अच्छा लगता।

आशुतोष हाँ ये ग़ज़ल है ही ऐसी तुरंत दिल में उतरती है।

Unknown on मई 24, 2017 ने कहा…

मनीष जी जब पहली बार आपकी ये पोस्ट पढ़ी थी तभी ये ग़ज़ल दिल को छू गयी थी..बहुत ही भावपूर्ण और प्यारी ग़ज़ल हे....
और सज्जाद अली साहब ... बहुत depth हे उनकी आवाज़ में... इसे सुनकर हर बार ये लगा की काश इस ग़ज़ल के सारे शेर उनकी आवाज़ में सुनने को मिलते..
मै आपकी इस बात से बिलकुल सहमत हूँ की "इस ग़ज़ल के बोलों में जो दर्द और इसकी धुन में जो मिठास है वो बिना किसी संगीत के ही दिल में बस जाने का माद्दा रखती है"
एक गुज़ारिश है आपसे... ये ग़ज़ल आप हमें एक बार अपनी आवाज़ में सुनाइयेगा.. आपकी आवाज़ में इसे सुनना हमारे लिए बहुत बड़ी खुशकिस्मती होगी..

Manish Kumar on मई 28, 2017 ने कहा…

स्वाति अरे आप इसे मेरी आवाज़ में सुनना चाहती हैं गाकर या पढ़कर? सच बताऊँ मैने इस ग़ज़ल को पढ़ कर रिकार्ड किया था पर मुझे ख़ुद अच्छा नहीं लगा और सज्जाद ने इतना अच्छा निभाया है कि इसे गाने की हिम्मत नहीं हुई :)

Unknown on जून 08, 2017 ने कहा…

दिल से कही गयी हर बात अच्छी होती हे फिर चाहे वो गाकर कही जाये या पढ़कर... आप गीत का "भाव" पकड़ने में , उसे महसूस करने में सक्षम हे..
आपकी आवाज़ सुनना यूँ तो अपने आप में एक सुखद एहसास हे पर आवाज़ से ज्यादा मेरी दिलचस्पी वो भाव सुनने में होती हे जो आप गाते समय खुद महसूस करते हे..
कुछ आपकी गायकी और कुछ इस गाने के बोल... दोनों ही इतने अच्छे हे की आपसे गाने की फरमाइश किये बिना रहा नहीं गया.. :)

Manish Kumar on जून 11, 2017 ने कहा…

स्वाति आपके अनुरोध पर मैंने इस ग़ज़ल को यहाँ गुनगुना कर बाँटा है। आशा है इस गुनगुनाहट को आप झेल पाएँगी :)

https://youtu.be/DDuZKSKiajA

anjani on फ़रवरी 19, 2019 ने कहा…

ओह बेइंतहा खूबसूरत

Manish Kumar on फ़रवरी 20, 2019 ने कहा…

धन्यवाद अंजनी।

बेनामी ने कहा…

बेहद खूबसूरत

 

मेरी पसंदीदा किताबें...

सुवर्णलता
Freedom at Midnight
Aapka Bunti
Madhushala
कसप Kasap
Great Expectations
उर्दू की आख़िरी किताब
Shatranj Ke Khiladi
Bakul Katha
Raag Darbari
English, August: An Indian Story
Five Point Someone: What Not to Do at IIT
Mitro Marjani
Jharokhe
Mailaa Aanchal
Mrs Craddock
Mahabhoj
मुझे चाँद चाहिए Mujhe Chand Chahiye
Lolita
The Pakistani Bride: A Novel


Manish Kumar's favorite books »

स्पष्टीकरण

इस चिट्ठे का उद्देश्य अच्छे संगीत और साहित्य एवम्र उनसे जुड़े कुछ पहलुओं को अपने नज़रिए से विश्लेषित कर संगीत प्रेमी पाठकों तक पहुँचाना और लोकप्रिय बनाना है। इसी हेतु चिट्ठे पर संगीत और चित्रों का प्रयोग हुआ है। अगर इस चिट्ठे पर प्रकाशित चित्र, संगीत या अन्य किसी सामग्री से कॉपीराइट का उल्लंघन होता है तो कृपया सूचित करें। आपकी सूचना पर त्वरित कार्यवाही की जाएगी।

एक शाम मेरे नाम Copyright © 2009 Designed by Bie