बहुत सारी पसंदीदा ग़ज़लें होती हैं जिनके तीन चार अशआर डॉयरी के पन्नों पर नोट कर हम उन्हें पूरा मान लेते हैं। बरसों वहीं अशआर हमारे ज़हन में रह रह कर उठते और पलते रहते हैं। ऐसे में जब उसी ग़ज़ल के चंद और अशआर अचानक से सामने आ जाते हैं तो लगता है कि बैठे बिठाए कोई सौगात मिल गयी हो। लखनऊ से ताल्लुक रखने वाले शायर कृष्ण बिहारी नूर की इस मशहूर ग़ज़ल के पाँच शेर बरसों से मेरे पास थे पर कल उनसे जुड़ी एक किताब पढ़ते हुए ग़ज़ल के चंद शेर और हाथ लगे तो सोचा आप तक उनकी ये पूरी कृति पहुँचा दूँ।
इस ग़ज़ल से जुड़े एक किस्से का जिक्र कन्हैयालाल नंदन जी ने अपने एक आलेख में किया है। तब नंदन जी मुंबई में पत्र पत्रकारिता से जुड़े काम के सिलसिले में पदस्थापित थे। नूर साहब एक मुशायरे के सिलसिले में मुंबई आए हुए थे और नवी मुंबई के वासी में ठहरे थे जो कि मुख्य शहर से काफी दूर का इलाका है। उन्होंने नंदन जी को फोन कर कहा कि वो उनसे मिलना चाहते हैं। कन्हैयालाल नंदन को यही लगा कि इतनी दूर से ख़ुद फोन कर मिलने की बात कर रहा है तो जरूर इसे मुझसे कोई काम होगा। पर डेढ़ घंटे बाद जब नूर हाज़िर हुए तो उनसे उनके आने का उद्देश्य जान कर नंदन आश्चर्यचकित रह गए। नूर साहब का कहना था कि बस एक नई ग़ज़ल लिखी है वही आप जैसे संवेदनशील श्रोता को सुनाना चाहता था। वो ग़जल यही ग़ज़ल थी जिसका जिक्र मैंने आज आपसे छेड़ा है।
तो चलिए देखते हैं कि आख़िर क्या कहना चाहा था कृष्ण बिहारी नूर ने अपनी इस ग़ज़ल में...
हमारे शास्त्रों में कहा गया है कि ये शरीर प्रकृति के पंच तत्वों से निर्मित है और भगवान का वास हर जगह है। यानि अपने अंदर भी अगर हम पवित्र मन से झांकें तो वहाँ परमात्मा जरूर दिखेंगे। कृष्ण बिहारी नूर ने इस सोच को अपने मतले में ढालते हुए लिखा कि
आग है, पानी है, मिट्टी है, हवा है, मुझ में
और फिर मानना पड़ता है के ख़ुदा है मुझ में
नूर साहब की ये विशेषता थी कि वो अपनी शायरी में सूफ़ियत के साथ मोहब्बत का रंग बड़े सलीके से घोला करते थे। अब अगले शेर में वो परमपिता या अपने महबूब से मुख़ातिब हैं इसका फैसला तो आप ही कीजिए। पर जो भी है इस मोहब्बत का आलम ये है कि इसने उन्हें अपने आप से जुदा कर दिया है। अब तो उसका इख्तियार उनके ज़हन पर हो गया है
अब तो ले-दे के वही शख़्स बचा है मुझ में
मुझको मुझसे अलग करके छुपा है मुझ में
ऐसे अगर आपको चाहने वाला आपकी हर छोटी छोटी बात को आत्मसात करते हुए आपके अंतर्मन को टटोलने की कोशिश करने लगे तो फिर अपने हाल के बारे में आप भी कह उठेंगे कि
मेरा ये हाल उघड़ती हुई परतें जैसे,
वो बड़ी देर से कुछ ढूँढ रहा है मुझ में
ये तो मुझे पूरी ग़ज़ल में सबसे कमाल का शेर लगता है। कितनी तरह के अच्छे बुरे अहसासों, विराधाभासों से दिल जूझता रहता है। ठीक मौसम की बदलती रंगत की तरह। ये अहसास कभी सुकून के पल ले आते हैं तो कभी बेहिसाब बेचैनी। इन बदलती भावनाओं के बीच दिल की फ़िज़ा जो रंग बिखेरती है उन्हें शब्दों में बयाँ करना आसान है क्या?
जितने मौसम हैं वो सब जैसे कहीं मिल जाएँ
इन दिनों कैसे बताऊँ जो फ़ज़ा है मुझ में
आप मेरे करीब भी नहीं आएँ, दूर से ही मेरे बारे में कोई राय बना लें तो इसमें मेरा क्या कुसूर? मेरे सच्चे दिल की पुकार और व्यक्तित्व की चमक को महसूस करने के लिए आपको मेरे संग कुछ वक़्त तो ज़ाया करना ही पड़ेगा।
वो ही महसूस करेगा जो मुख़ातिब होगा
ऐसे अनदेखे उजाले की सदा है मुझमें
मैंने तो सोचा था कि उनकी नज़दीकियाँ पूरे जिस्म में एक ख़ुमारी सी ले आती हैं। पर मैं नहीं जानता था कि उनके लिए मेरा प्रेम एक नशा नहीं जो चढ़ के उतर जाएगा। वो तो मेरे शरीर के हर कोने में दौड़ते लहू की भांति मेरी नस नस में है जो मेरी साँस थमने से ही रुकेगा।
वो तो मानिंद ए लहू दौड़ रहा है मुझमें
आईने की भी अपनी सीमाएँ हैं। वो बस आपका बाहरी रूप रंग ही दिखा पाता है। आपके अंदर का अक़्स उसकी पहुँच से कोसों दूर है।
आईना ये तो बताता है के मैं क्या हूँ लेकिन
आईना इस पे है ख़ामोश कि क्या है मुझ में
टोंक देता है, कदम जब भी ग़लत उठता है
ऐसा लगता है कोई मुझसे बड़ा है मुझमें
अब तो बस जान ही देने की है बारी ऐ 'नूर'
मैं कहाँ तक करूँ साबित के वफ़ा है मुझ में
ये तो थे ग़ज़ल के पूरे शेर। नूर साहब की आवाज़ में जब ये ग़ज़ल नहीं मिली तो मैंने सोचा क्यूँ ना इसे अपनी आवाज़ में ही रिकार्ड कर लूँ। तो ये रही नूर साहब की भावनाओं तक अपनी आवाज़ से पहुँचने की मेरी कोशिश।
11 टिप्पणियाँ:
वाह !
Thanks for sharing !
परमेश्वरी जी आपको ग़ज़ल का कौन सा शेर सबसे पसंद आया :) ?
टोंक देता है, कदम जब भी ग़लत उठता है
ऐसा लगता है कोई मुझसे बड़ा है मुझमें :)
उम्दा ग़ज़ल । नूर साहब से पहचान कराने के लिए शुक्रिया । आपकी आवाज़ और ग़ज़लें पढ़ने का अंदाज़ बिल्कुल इरशाद कामिल के जैसा है ।
शुक्रिया आशुतोष! मैंने इरशाद क़ामिल को पढ़ते नहीं सुना पर अब सुनूँगा। जहाँ तक नूर साहब की शायरी से परिचय कराने की बात है उसके लिएतफ़सील से एक और आलेख तैयार कर रहा हूँ। शीघ ही यहाँ प्रस्तुत करूँगा साथ ही होगी उनकी आवाज़ में अदाएगी जो ग़ज़ल में चार चाँद लगा देती थी।
आईना ये तो बताता है के मैं क्या हूँ लेकिन
आईना इस पे है ख़ामोश कि क्या है मुझ में
बहुत खूब...
मेरे साथ तो ऐसा बहुत बार हुआ की कुछ शेर जो बहुत पहले डायरी के पन्नो में नोट किये थे उनसे बाद में ग़ज़लों में मुलाकात हुई.. कुछ और शेर के साथ.. किसी गायक की आवाज़ में.. बिलकुल सौगात मिलने वाली ही feeling आती हे..
शुक्रिया स्वाति अच्छा लगा जानकर कि पसंदीदा ग़ज़लों के नये अशआर पाकर आप को भी वैसी ही खुशी मिलती है 😊 👍
waah bahut badhiyaa umdaah collection padhkar maza aa gaya
शुक्रिया पुष्पेंद्र जी !
Waah kya sher hai!!
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