कुछ गीत बेहद गूढ़ होते हैं। जल्दी समझ नहीं आते। फिर भी उनकी धुन, उनके शब्दों में कुछ ऐसा होता है कि वो बेहद अच्छे लगते हैं। जब जब चाँद और चाँदनी को लेकर कुछ लिखने का मन हुआ मेरे ज़हन में अमृता प्रीतम की लिखी हुई ये पंक्तियाँ सबसे पहले आती रहीं अम्बर की एक पाक सुराही, बादल का एक जाम उठा कर, घूंट चाँदनी पी है हमने। सन 1975 में आई फिल्म कादंबरी के इस गीत का मुखड़ा अपने लाजवाब रूपकों और मधुर धुन की वज़ह से हमेशा मेरा प्रिय रहा। पर इस गीत से मेरा नाता इन शब्दों के साथ साथ रुक सा जाता था क्यूँकि मुझे ये समझ नहीं आता था कि आसमान की सुराही से मेंघों के प्याले में चाँदनी भर उसे चखने का इतना खूबसूरत ख़्याल आख़िर कुफ्र यानि पाप कैसे हो सकता है? तब मुझे ना इस बात की जानकारी थी कि कादम्बरी अमृता जी के उपन्यास धरती सागर और सीपियाँ पर आधारित है और ना ही मैंने कादम्बरी फिल्म देखी थी।
कुछ दिनों पहले इस किताब का अंश हाथ लगा तो पता चला कि किताब में ये गीत कविता की शक़्ल में था और कविता के शब्द कुछ यूँ थे..
अम्बर की एक पाक सुराही,
बादल का एक जाम उठा कर
घूँट चाँदनी पी है हमने
हमने आज यह दुनिया बेची
और एक दिन खरीद के लाए
बात कुफ़्र की की है हमने
सपनो का एक थान बुना था
गज एक कपडा फाड़ लिया
और उम्र की चोली सी है हमने
कैसे इसका कर्ज़ चुकाएं
माँग के अपनी मौत के हाथों
यह जो ज़िन्दगी ली है हमने
कुफ्र की बात यहाँ भी थी। यानि ऐसा पाप जिसे ऊपरवाला करने की इजाज़त नहीं देता। कविता को गीत में पिरोते हुए अमृता ने काफी परिवर्तन किए थे पर मूल भाव वही था। गीतों के बोलों के इस रहस्य को समझने के लिए फिल्म देखी और तब अमृता के बोलों की गहराई तक पहुँचने का रास्ता मिल पाया...
फिल्म का मुख्य किरदार चेतना का है जो बालपन से अपने साथी अमित के प्रेम में गिरफ्तार हो जाती है। अमित भी चेतना को चाहता है पर उसके माथे पर नाजायज़ औलाद का एक तमगा लगा है। वो सोचता है कि उसकी माँ ने उसके लिए जो दुख सहे हैं उनकी भरपाई वो बिना पत्नी और माँ में अपना प्रेम विभाजित किए हुए ही कर सकता है। चेतना अमित के निर्णय को स्वीकार कर लेती है पर उसे लगता है कि उसका अस्तित्व अमित की छाया के बिना अधूरा है। वो अमित के साथ नहीं रह सकती तो क्या हुआ वो उसके अंश के साथ तो जीवन जी ही सकती है। इसके लिए वो अपने मन के साथ ही अपना तन भी हिचकते नायक को न्योछावर कर देती है। चेतना के लिए ये अर्पण चाँदनी के घूँट को पी लेना जैसा निर्मल है पर समाज के संस्कारों के पैमाने में तो एक कुफ्र ही है ना। इसलिए अमृता गीत के मुखड़े में लिखती हैं..
फिल्म का मुख्य किरदार चेतना का है जो बालपन से अपने साथी अमित के प्रेम में गिरफ्तार हो जाती है। अमित भी चेतना को चाहता है पर उसके माथे पर नाजायज़ औलाद का एक तमगा लगा है। वो सोचता है कि उसकी माँ ने उसके लिए जो दुख सहे हैं उनकी भरपाई वो बिना पत्नी और माँ में अपना प्रेम विभाजित किए हुए ही कर सकता है। चेतना अमित के निर्णय को स्वीकार कर लेती है पर उसे लगता है कि उसका अस्तित्व अमित की छाया के बिना अधूरा है। वो अमित के साथ नहीं रह सकती तो क्या हुआ वो उसके अंश के साथ तो जीवन जी ही सकती है। इसके लिए वो अपने मन के साथ ही अपना तन भी हिचकते नायक को न्योछावर कर देती है। चेतना के लिए ये अर्पण चाँदनी के घूँट को पी लेना जैसा निर्मल है पर समाज के संस्कारों के पैमाने में तो एक कुफ्र ही है ना। इसलिए अमृता गीत के मुखड़े में लिखती हैं..
अम्बर की एक पाक सुराही, बादल का एक जाम उठा कर
घूंट चाँदनी पी है हमने, बात कुफ़्र की, की है हमने
पर ये मिलन जिस नए बीज को जन्म देगा उसके लिए समाज के तंज़ तो चेतना को जीवन पर्यन्त सुनने को मिलेंगे। शायद यही कर्ज है या जीवन भर की फाँस जिसमें लटकते हुए अपने प्रेम की पवित्रता की गवाही देनी है उसे
कैसे इसका कर्ज़ चुकाएँ,
मांग के अपनी मौत के हाथों
उम्र की सूली सी है हमने,
बात कुफ़्र की, की है हमने
अम्बर की एक पाक सुराही, बादल का एक जाम उठा कर...
अमृता की नायिका दूसरे अंतरे मे दार्शनिकता का लबादा ओढ़ लेती हैं और कहती है कि प्यार तो जिससे होना है होकर ही रहता है। हम लाख चाहें हमारा वश कब चलता है अपने मन पर? जिस दिन से मैंने इस संसार में कदम रखा है उसी दिन से ये दिल उस की अमानत हो चुका था। फिर मैंने तो बस उसका सामान उसे सौंपा भर है। अगर चाँदनी जैसे शीतल व स्निग्ध प्रेम का रसपान करना जुर्म है तो हुआ करे।
अपना इसमे कुछ भी नहीं है, कुछ भी नहीं है
रोज़-ए-अज़ल से उसकी अमानत,
उसको वही तो दी है हमने,
बात कुफ़्र की, की है हमने
अम्बर की एक पाक सुराही, बादल का एक जाम उठा कर..
इस प्यारे से गीत का संगीत संयोजन किया था मशहूर सितार वादक उस्ताद विलायत खाँ साहब ने। अपने पूरे जीवन में उन्होंने तीन बार ही फिल्मों में संगीत संयोजन किया। कादंबरी में दिया उनका संगीत हिन्दी फिल्मों के लिए पहला और आख़िरी था। इसके पहले वे सत्यजीत रे की फिल्म जलसा घर और अंग्रेजी फिल्म गुरु के लिए संगीत दे चुके थे।
गीत सुनते वक़्त विलायत खाँ साहब के मुखड़े के पहले के संगीत संयोजन पर जरूर ध्यान दीजिएगा। संतूर से गीत की शुरुआत होती है और फिर गिटार के साथ सितार के समावेश के बीच आशा जी की मधुर आवाज़ में आलाप उभरता है। इंटरल्यूड में गिटार का साथ बाँसुरी देती है। इस गीत से जुड़े सारे वादक अपने अपने क्षेत्र के दिग्गज रहे हैं। संतूर बाँसुरी पर शिव हरि की जोड़ी तो गिटार पर खूद भूपेंद्र और इन सब के बीच आशा जी की खनकती बेमिसाल आवाज़ सोने में सुहागा का काम करती है।
वैसे चलते चलते आपको एक और रिकार्डिंग भी दिखा दी जाए जिसमें यही गीत जी टीवी के सारेगामा कार्यक्रम में सोनू निगम जजों के समक्ष गाते हुए दिख जाएँगे।
29 टिप्पणियाँ:
यही तो वो बात है जो मुझे आपका मुरीद बनाती है। आप वक्त की राख में दबे संगीत जगत के ऐसे नायाब नगीने हमारे सामने ले आते हैं जिन तक हमारी पहुँच शायद कभी न हो पाती। आपके इस प्रयास और passion को सादर प्रणाम...
कमाल की पोस्ट.....
अमृता,आशा जी और सोनू निगम.....तीनों दिल के तारों को झनझना देते हैं|
फिल्म मैंने देखी नहीं....खोजती हूँ शायद youtube पर मिल जाए|
शुक्रिया शुक्रिया....
अनुलता
शुक्रिया राजेश आपके इन प्यार भरे शब्दों के लिए!
अनुलता जी हाँ ये गीत तो है ही कमाल। यू ट्यूब का लिंक शेयर कर दिया है आपको। अब धरती, सागर और सीपियाँ पढ़ने की इच्छा है।
Thank you Manishji, Grateful to you for this beautiful translation. It is only for this song i have seen the movie. However your explanation makes me want to see the movie again. Talking of Intelligent and progressive women, this was perfect movie, should i say ahead of time. Amrita Pritamji herself is a symbol of grace, intelligence and liberation. Love is a subject, i am sure she is so qualified to deal with.
Other song that made me watch a movie are "Pyas thi, phir bhi takazaa na kiya". Both equally beautiful. songs were meaningful, poetic and situational in those days, and the compositions were the better half.
आप की reasearch बहुत ही सटीक और तथ्यपूर्ण होती है। उस पर आपकी लेखनी पर पकड़ उसे एक प्रवाहमान पद्य बना देती है।
Nice to read your views Nomita ! Without seeing the movie or reading the novel on which this movie is based it is quite difficult to get the essence of this song. Such a beautiful tune, soulful singing & lyrics so poetic and deep. It's just a treat to ears.
Amrita Pritam ji herself is a symbol of grace, intelligence and liberation. Love is a subject, i am sure she is so qualified to deal with.
I totally agree with what you said about Amrita as a writer. As far as Chetna is concerned she was progressive no doubt but when you are so much in love with a guy, intelligence takes a back seat and it is the heart which rules.
And thanks for referring the other song which I have not heard so far but will definitely listen now.
शुक्रिया जयश्री ! किसी गीत पर लिखने के पहले मैं ये जरूर सोचता हूँ कि वो नया क्या प्रस्तुत करूँ जिसके बारे में लोग जानने को उत्सुक हों और फिर शोध की दिशा भी वही होती है। पर इतिहास, संगीत और साहित्य कुछ ऐसे विषय हैं जिन को जानना समझना और फिर उन्हें फिर व्यक्त करना हमेशा से सुकून देता आया है।
मेरा भी बहुत प्यारा, बड़ा अपना सा गीत।
@Shubhra jee जानकर अच्छा लगा कि ये आपकी भी पसंद है।
Shabana Azmi my favourite actress...hv really tried following her...but I guess missed out on this one... thanks for posting this one...
@Vinita jee She is one of the finest actress we have in our industry. I heard this song on radio in my college days and got hooked to it especially the mukhda
मुझे भी बेहद पसंद
मनीषा जी इतनी अच्छी कविता, गहरे भाव, मधुर धुन और आशा की खनकती आवाज़ एक साहित्यकार को कैसे आकर्षित नहीं करेंगे? :)
गजब की पोस्ट
बहुत सुंदर
शुक्रिया खरे जी !
film is really good.. must watch.. intense acting by shabana.. vijay arora n chaand usmani...
कोई शब्द नहीं कहने को. लगा ऐसा कि पुराने खंडहर में खजाना मिल गया
भूपेंद्र जी : आशा है आप का साथ इस ब्लॉग को आगे भी मिलता रहेगा।
इस शानदार लेख के लिय धन्यवाद..!!
My all time favourite song.
1 of best of Amrita Pritam .gems.
शुक्रिया संजीव जी सराहने के लिए.
Nice to know Arunava.
True Sitanshu
बेहतरीन गीत, आज बरसों बाद सुना !
लाजबाब पोस्ट 👍👍👍
शुक्रिया अनुपम !
मैंने अमृता जी के बहुत से नॉवेल पढ़े है, उनकी आत्मकथा भी। पर उनके गीतों को कभी नहीं पढ़ा, उन्हें समझना मेरे लिए कभी आसान नहीं रहा, बहुत गूढ़ मतलब होता था उनकी रचनाओं का। आपने इस लेख में गीत की बहुत अच्छी व्याख्या की है। वो एक दौर था जब ऐसी रचनाएं लिखी जाती थी और ऐसी फिल्में बनती थी, ये दौर तो वापस नहीं आएगा पर आप ऐसे गीत और ऐसे लेख हम तक पहुंचाते रहिएगा :)
Swati Guptaकई बार मेरे साथ भी ऐसा हुआ है उन्हें पढ़ते हुए। इस गीत के मुखड़े के प्रति मेरा प्रारंभिक संशय कई बरसों बना रहा। फिल्म जब देखी तब लगा कि हाँ अब इस गीत के बारे में लिख सकता हूँ।
आप जैसे सुधी पाठक जब ऐसी प्रतिक्रिया देते हैं तो मन में संतोष का अनुभव होता है कि मैं सेतु बन पाया इस गीत के पीछे की भावनाओं को आप तक पहुँचाने में।
इतना भावपूर्ण गीत अदभुत मधु संगीत अमृता जी की अमर रचना बर्षो बाद सुना अतिशेष धनयवाद
शुक्रिया गुमनाम :)
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