रविवार, सितंबर 17, 2017

रस घोलता रवींद्र संगीत : तुमी रोबे नीरोबे Tomi Robe Nirobe

रवींद्र नाथ टैगोर एक कवि, उपन्यासकार, चिंतक तो थे ही, साथ ही एक गीतकार और संगीतकार भी थे। दो हजार से ज्यादा गीतों को लिखना और उनकी धुन तैयार करना इस बहुमुखी प्रतिभा वाले व्यक्तित्व का कमाल ही लगता है। उनके समस्त संगीत को रवींद्र संगीत के नाम से जाना जाता रहा है।  यूँ तो रवींद्र संगीत की जड़े बंगाल में रहीं पर बंगाल के लोगों ने इस गायन शैली को बिहार, झारखंड और ओड़ीसा तक पहुँचाने में मदद की। मुझे याद है कि बचपन में पटना का रवींद्र भवन सांस्कृतिक गतिविधियों का केंद्र हुआ करता था। रवींद्र संगीत को पहली बार सुनने का अवसर मुझे वहीं मिला।

रवींद्र संगीत की खासियत रही है कि इन गीतों में वाद्य यंत्रों का कम से कम इस्तेमाल रहा और ज्यादा महत्त्व बोलों और गायिकी को मिला। गुरुवर टैगोर नहीं चाहते थे कि उनकी धुन, उनके नोटेशेन्स के साथ किसी तरह की छेड़छाड़ की जाए। यही वजह थी कि उनका गीत भले ही तमाम कलाकारों द्वारा क्यूँ ना गाया गया हो सब का गाने का अंदाज एक सा रहता है। पर हाल ही में मेरे एक बंगाली मित्र ने बताया कि विगत कुछ वर्षों से कॉपीराइट अवधि खत्म होने के बाद लोग उनके गीतों को अलग धुनों में पेश कर रहे हैं।



पिछले महीने मुझे टैगोर का रचा ऐसा ही एक गीत सुनने को मिला जिसे मैं आपको सुनाने जा रहा हूँ नई पीढ़ी के दो उदीयमान गायकों की आवाज़ में जिसमें एक ने तो हाल ही में गायिकी के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार जीता है तो दूसरा आज के युवाओं का चहेता है और पुराने से लेकर नए गानों को अपनी आवाज़ में ढालने में माहिर है।

इस गाने में जो बांग्ला प्रयुक्त हुई है वो बिल्कुल कठिन नहीं हैं क्यूँकि उसमें ज्यादा संस्कृत से आए शब्द हैं जो हिंदी में उतने ही प्रचलित हैं । फिर भी आप इस संवेदनशील गीत का लुत्फ उठा सकें इसलिए इसका अनुवाद करने की कोशिश की है मैंने।

तुमी रोबे नीरोबे हृदय ममो
निबिरो निभृतो पूर्णिमा निशीथीनी समो

ममो जीबनो जौबनों ममो अखिलो भुबनो
तुमी भोरिबे गौरबे निशीथीनी समो
तुमी रोबे नीरोबे हृदय ममो

जागिबे एकाकी तबो करूणो आखी
तबो अंचोल छाया मोरे रोहिबे ढाकी
ममो दुखो बेदनो ममो सफल स्वपनो
तुमी भोरिबे सौरभे निशीथीनी समो

तुम मेरे हृदय में चुपचाप यूँ ही प्रकाशमान रहोगी जैसे कि पूर्णिमा का चाँद अकेली गहरी रातों में चमकता है। मेरे इस जीवन,इस यौवन और मेरे संसार को तुम अपने गौरव से भर दोगी जैसे कोई रात रोशनी को पाकर चमक उठती है। उन एकाकी रातों में तुम्हारी उन करुणमयी आँखें का स्पर्श मुझे पुलकित करेगा। तुम्हारे आँचल की छाया मेरे सारे दुख, मेरी सारी वेदना को ढक लेगी। मेरे सपनों को तुम वैसे ही सुरभित करोगी जैसे कि कोई महकती हुई रात ।

जीवन में जरूरी नहीं कि हम उन्हीं से संबल प्राप्त करें जो हमारे साथ हों। दूर रहकर भी कुछ व्यक्तित्व मन में ऐसी छाप छोड़ देते हैं कि लगता ही नहीं कि वो हमसे कभी अलग हुए। ये गीत ऐसी ही कुछ भावनाएँ मन में छोड़ जाता है।

तो आइए सुनते हैं सबसे पहले इस गीत को इमोन चक्रवर्ती की आवाज़ में। 29 वर्षीय इस गायिका का नाम सुर्ख्रियों में तब गूँजा जब अपनी पहली ही फिल्म के लिए इन्हें सर्वश्रेष्ठ पार्श्व गायिका का वर्ष 2017 का राष्ट्रीय पुरस्कार मिला। हावड़ा जिले के छोटे से कस्बे में जन्मी इमोन इससे पहले टैगोर के लिखे गीतों को गाती रही हैं। उनकी आवाज़ में एक ठसक है, एक गहराई है जो इस गीत के हर शब्द और उसमें छुपे प्रेम और वेदना को एक साथ उभारती है।


यूँ तो इस गीत को हेमंत कुमार से लेकर शान तक ने आपनी आवाज़ दी है। पर ये सारे गायक बंगाल से ताल्लुक रखते हैं। पर इस फेरहिस्त में जब मैंने सनम पुरी का नाम देखा तो मैं अचंभित रह गया।  हँसी तो फँसी, गोरी तेरे प्यार में, हमशक्ल जैसी फिल्मों में कुछ गीत गुनगुनाने वाले सनम मुख्यतः अपने बैंड के लिए जाने जाते हैं जो नए पुराने गानों को एक अलग अंदाज़ में पिछले कुछ सालों से पेश करता रहा है। यू ट्यूब में सनम का चैनल लाखों लोगों द्वारा सुना जाता है। उन्होंने इस बांग्ला गीत को जिस तरह डूब कर गाया है, बांग्ला उच्चारण को हू बहू पकड़ा है वो निश्चय ही काबिलेतारीफ़ है।

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4 टिप्पणियाँ:

pushpendra dwivedi on सितंबर 21, 2017 ने कहा…

वाह बहुत खूब बहुत बढ़िया रवींद्र जी के संगीत का रचनात्मक विश्लेषण

Manish Kumar on सितंबर 22, 2017 ने कहा…

पसंद करने के लिए आभार !

प्रवीण पाण्डेय on अक्टूबर 01, 2017 ने कहा…

अहा, कर्णप्रिय, भावप्रिय...

Manish Kumar on अक्टूबर 04, 2017 ने कहा…

शुक्रिया प्रवीण !

 

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