बहुत कम ही ऐसी फिल्में होंगी जिसका हर एक इक नग्मा मकबूलियत की सीढ़ियाँ चढ़ने में कामयाब रहा हो। चितचोर ऐसे ही एक फिल्म थी जिसके चारों गाने बेहद मशहूर हुए। येशुदास की शानदार आवाज़, हेमलता का सुरीला साथ और रवींद्र जैन के सहज व कोमल बोलों और अद्भुत संगीत की वज़ह से ही ये कमाल संभव हो पाया था। पिछले महीने आपसे बाते हुई थी चितचोर के दो गीतों जब दीप जले आना.. और गोरी तेरा गाँव बड़ा प्यारा के बारे में। आज चर्चा करते हैं इसी फिल्म के अन्य दो गीतों की।
आज से पहले आज से ज्यादा इस फिल्म का सबसे खुशनुमा गाना था जो गाँव की जुबान पर वक़्त चढ़ गया था। गीत की लय, शब्दों की धनात्मक उर्जा और उस पर येशुदास की आवाज़ को सुनकर श्रोता इसे गुनगुनाने को मजबूर हो जाया करते थे।
आज से पहले आज से ज्यादा इस फिल्म का सबसे खुशनुमा गाना था जो गाँव की जुबान पर वक़्त चढ़ गया था। गीत की लय, शब्दों की धनात्मक उर्जा और उस पर येशुदास की आवाज़ को सुनकर श्रोता इसे गुनगुनाने को मजबूर हो जाया करते थे।
आज से पहले आज से ज्यादा
खुशी आज तक नहीं मिली
इतनी सुहानी ऐसी मीठी
घड़ी आज तक नहीं मिली
इसी फिल्म का एक बेहद सुरीला गीत था तू जो मेरे सुर में सुर मिला ले..... जिसमें येशुदास का साथ दिया था हेमलता ने। राजश्री प्रोडक्शंस तमाम फिल्मों में रवींद्र जैन ने हेमलता से बड़े प्यारे नग्मे गवाए हैं। अक्सर लोग जानना चाहते हैं कि रवींद्र जैन हेमलता के संपर्क में कैसे आए और उन्होंने लता के बजाए हेमलता को इतना प्रश्रय क्यूँ दिया? इस प्रश्न का जवाब देने के लिए आपको हेमलता के हिंदी फिल्म संगीत में बतौर पार्श्वगायिका स्थापित होने के पहले के सफ़र को जानना होगा।
हेमलता के पिता पंडित जयचंद भट्ट लाहौर के किराना घराने से जुड़े प्रख्यात शास्त्रीय गायक व संगीतज्ञ थे। संगीत का माहौल बचपन से होने के बावज़ूद हेमलता के मारवाड़ी ब्राह्मण पिता रूढ़िवादी विचारों के थे और लड़कियों के सार्वजनिक रूप से गायन को अच्छा नहीं मानते थे। पर हेमलता को बचपन से ही गाने में रुचि थी। तब हेमलता का परिवार कोलकाता में रहा करता था। उनकी प्रतिभा को देखते हुए उनके पिता के एक शिष्य ने चुपके से दुर्गा पूजा के उपलक्ष्य में हो रहे संगीत समारोह में सात साल की हेमलता को गाने का मौका दे दिया। उस कार्यक्रम में रफ़ी, किशोर, हेमंत व लता जैसे मशहूर पार्श्व गायकों को बुलाया गया था। हेमलता ने जब लता जी का गाना गाया तो भीड़ अति उत्साहित हो उठी और उनसे और गाने की फर्माइश करने लगी। नतीजा ये हुआ कि उन्हें उस दिन एक के बजाए एक दर्जन गीत गाने पड़े और आयोजकों ने उनकी इस उपलब्धि पर उन्हें बेबी लता का नाम देकर एक गोल्ड मेडल भी दे डाला। इस कार्यक्रम में उनके पिता को भी बुलाया गया था। उनकी गायिकी को सुन पिता का भी दिल पसीज़ा और वो उन्हें मुंबई भेजने को राजी हो गए।
हेमलता |
हेमलता के मुंबई जाने के कुछ साल पूर्व रवींद्र जैन संगीत प्रभाकर बनने के बाद उच्च शिक्षा के लिए कोलकाता आए थे। उन्होंने इस दौरान पंडित जयचंद भट्ट से भी शिक्षा ली। यहीं उनकी मुलाकात बेबी लता यानि हेमलता से हुई। गुरु से सीखने के बाद वो अपनी कुछ रचनाएँ हेमलता से भी गवाते। हेमलता को हिंदी फिल्मों में पहला मौका रवींद्र जैन ने नहीं दिया। हेमलता कुछ दिनों तक संगीतकार नौशाद की शागिर्द रहीं पर उन्होंने अपने पहले कुछ गीत उषा खन्ना और कल्याणजी आनंदजी के लिए गाए।
सत्तर के दशक में जब रवींद्र जैन अपने को स्थापित कर रहे थे तब हेमलता सौ से ज्यादा गीत गा चुकी थीं पर ये भी सच है कि हेमलता के ढीले ढाले चलते कैरियर में पंख रवींद्र जी ने ही लगाए। फकीरा का उनका खूब लोकप्रिय हुआ गीत फकीरा चल चला चल रवींद्र जैन का ही संगीतबद्ध था।
लता जी रवींद्र जैन की पसंदीदा गायिका थीं पर एक तो उन्हें नया संगीतकार होने की वज़ह से लता जी का समय नहीं मिल पाता था और दूसरी ओर लता भी उनकी नई नई आवाजों को ज्यादा बढ़ावा देने के रवैये से खुश नहीं रहती थीं। यही वज़ह रही कि हेमलता का नाम रवींद्र जैन के रचे संगीत में बारहा आता रहा।
सत्तर के दशक में जब रवींद्र जैन अपने को स्थापित कर रहे थे तब हेमलता सौ से ज्यादा गीत गा चुकी थीं पर ये भी सच है कि हेमलता के ढीले ढाले चलते कैरियर में पंख रवींद्र जी ने ही लगाए। फकीरा का उनका खूब लोकप्रिय हुआ गीत फकीरा चल चला चल रवींद्र जैन का ही संगीतबद्ध था।
लता जी रवींद्र जैन की पसंदीदा गायिका थीं पर एक तो उन्हें नया संगीतकार होने की वज़ह से लता जी का समय नहीं मिल पाता था और दूसरी ओर लता भी उनकी नई नई आवाजों को ज्यादा बढ़ावा देने के रवैये से खुश नहीं रहती थीं। यही वज़ह रही कि हेमलता का नाम रवींद्र जैन के रचे संगीत में बारहा आता रहा।
लौटते हैं चितचोर के इस गीत की तरफ़। रवींद्र जैन अपनी फिल्मों में पार्श्व संगीत यानि Background Music से लेकर अपने गाने के संगीत संयोजन को खुद ही देखते थे। उनका मानना था कि हर गीत में एक आत्मा होती है जो उसके राग और रचना से मिल कर निकलती है। इसीलिए गीतों के अंदर वाद्य यंत्रों का संयोजन इस तरह से होना चाहिए कि संगीत गीत की आत्मा के अनुरूप बहे। तू जो मेरे सुर में.. को उन्होंने राग पीलू पर संगीतबद्ध किया था। इस गीत के इंटरल्यूड्स में बाँसुरी, सितार और तबले की संगत देखते ही बनती है। उनका कमाल इस बात में था कि वो सरगम को भी इन इंटल्यूड्स में खूबसूरती से पिरोते थे।
मुझे ये बड़ा ही सच्चा सहज और अपना सा गीत लगता है। वक़्त के साथ प्रेम को व्यक्त करने के तौर तरीके बदल भले गए हों पर मुझे तो अभी भी प्रेम की परिभाषा का एक रूप रवींद्र जैन के इन बोलों में उतर आया दिखता है जब वो कहते हैं...चाँदनी रातों में, हाथ लिए हाथों में....डूबे रहें एक दूसरे की, रस भरी बातों में...तू जो मेरे संग में, मुस्कुरा ले, गुनगुना ले....तो ज़िंदगी हो जाए सफ़ल..तू जो मेरे मन को..
हेमलता को इस गीत के लिए सर्वश्रेष्ठ पार्श्व गायिका का फिल्मफेयर एवार्ड मिला था जबकि गोरी तेरा गाँव के लिए येशुदास राष्ट्रीय पुरस्कार जीतने में सफल रहे थे। तो आइए एक बार फिर सुनें इस गीत को
तू जो मेरे सुर में, सुर मिला ले, संग गा ले
तो ज़िंदगी हो जाए सफ़ल
तू जो मेरे मन को, घर बना ले, मन लगा ले
तो बंदगी हो जाए सफ़ल...तू जो मेरे सुर में
चाँदनी रातों में, हाथ लिए हाथों में
डूबे रहें एक दूसरे की, रस भरी बातों में
तू जो मेरे संग में, मुस्कुरा ले, गुनगुना ले
तो ज़िंदगी हो जाए सफ़ल..तू जो मेरे मन को..
क्यूँ हम बहारों से, खुशियाँ उधार लें
क्यूँ ना मिलके हम खुद ही अपना जीवन सँवार लें
तू जो मेरे पथ में, दीप उगा ले हों उजाले
तो बंदगी हो जाए सफ़ल..तू जो मेरे सुर में..
4 टिप्पणियाँ:
Behad khoobsurat geet!! Behtarin prastuti!
धन्यवाद सुमित! आलेख आपको रुचिकर लगा जान कर प्रसन्नता हुई.
वास्तव में राजश्री प्रो. हमेशा नए, नवोदित, कम चर्चित कलाकारों को प्रोत्साहन देती रही फिल्म निर्माण के हर क्षेत्र में, मुझे लगता है इसी के अंतर्गत रविन्द्र जैन और हेमलता दोनों है
Bahut hi pyara geet aur hemlata ji ke baare kafi kuch jaankar khusi hui
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