शादी विवाह का समय है तो आइए आज बात करते हैं एक विवाह गीत की जिसे मैंने कुछ दिन पहले ही सुना। विवाह भी ऐसा वैसा नहीं बल्कि सियावर राजा रामचंद्र जी का तो मैंने सोचा कि आपको भी ये मधुर लोकगीत सुनाता चलूँ। पर गीत सुनने से पहले ये जानना नहीं चाहेंगे कि राम जी की ये बारात किस इलाके में गयी थी?
ये इलाका है मिथिलांचल का जो कि बिहार के उत्तर पूर्वी हिस्से में फैला हुआ है। यहाँ की जनभाषा मैथिली है।किंवदंती है कि महाराजा जनक की उत्पत्ति उनके मृत पिता निमि की देह से हुई। इसीलिए जनक को मंथन से पैदा होने की वजह से ‘मिथिल’ और विदेह होने के कारण ‘वैदेह’ कहा जाता है। इतिहास में ये इलाका विदेह और फिर बाद में मिथिला के रूप में जाना गया। मधुबनी और दरभंगा मिथिला के सांस्कृतिक केंद्र माने जाते हैं। जनकपुत्री वैदेही यानि सीता जी का जन्म भी इसी इलाके सीतामढ़ी जिले में माना जाता है।
आज जिस गीत की ऊपर चर्चा मैंने छेड़ी है उसे गाया है सत्रह वर्षीय मैथिली ठाकुर ने जो मधुबनी से ताल्लुक रखती हैं।
मैथिली ने बचपन में अपने दादा जी से संगीत सीखा। पिता दिल्ली में संगीत के शिक्षक थे। जब मैथिली ग्यारह साल की थीं तो वो उन्हें दिल्ली ले आए और उन्हें संगीत की विधिवत शिक्षा देनी शुरु कर दी। इस दौरान मैथिली ने कई सारे रियालिटी शो में भाग लिया। पर किसी ना किसी चरण में वे बाहर होती गयीं। उनकी मेहनत ज़ारी रही और पिछले साल कलर्स टीवी के राइसिंग स्टार कार्यक्रम में वे प्रथम रनर्स अप तक पहुँची। इस कार्यक्रम में उनके प्रदर्शन को मोनाली ठाकुर और शंकर महादेवन जैसे नामी कलाकारों ने भी खूब सराहा। मैथिली ने इस कार्यक्रम में कई फिल्मी गीत गाए पर उनकी तमन्ना है कि वो अपने नाम के अनुरूप अपनी भाषा के लोकगीतों को पूरी दुनिया में फैलाएँ। यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि अपने इस उद्देश्य में वो कच्ची उम्र में ही वांछित सफलता अर्जित कर रही हैं।
तो बात हो रही थी मिथिलांचल की जहाँ का ये लोकगीत है। चूँकि सीता जी मिथिला से थीं तो यहाँ की शादियों में राम विवाह से जुड़े लोकगीत सदियों से गाए जाते रहे। जब मैंने इस गीत को सुना तो मुझे इसके बोल रामचरितमानस के बालकांड में लिखी चौपाइयों से प्रेरित लगे जिसे मेरी नानी मुझे बचपन में सुनाया करती थीं। उसी बालकांड की एक चौपाई याद आती है जिसमें राम के अद्भुत व्यक्तित्व का वर्णन है। चौपाई कुछ यूँ थी
पीत जनेउ महाछबि देई। कर मुद्रिका चोरि चितु लेई॥
सोहत ब्याह साज सब साजे। उर आयत उरभूषन राजे॥
(राम के शरीर पर पीला जनेऊ उनकी शोभा को बढ़ा रहा है। हाथ की जो अँगूठी है उसकी चमक दिल को चुरा लेने वाली है। ब्याह की जो साज सज्जा है वो बड़ी सुंदर लग रही है। श्री राम की छाती आभूषणों से सुसज्जित है।)
यहाँ लोकगीत में राम की आरती उतारने का प्रसंग है (जिसे आमतौर पर मिथिला की शादियों में आजकल द्वारपूजा के वक्त गाया जाता है)। जो स्त्रियाँ उन्हें देख रही हैं उनकी आँखें आनंद से भरी जा रही हैं। बाकी जैसा चौपाई में है वैसे ही शादी के मंडप और श्रीराम की सुंदरता का बखान इस लोकगीत में भी है।
चारू दूल्हा के आरती उतारूँ हे सखी
चितचोरवा के आरती उतारूँ हे सखी
दुल्हिन श्री मिथिलेश कुमारी, दूल्हा दुलरुवा श्री अवध बिहारी
भरी भरी नैना निहारूँ हे सखी, आहे
भरी भरी नैना निहारूँ हे सखी
चितचोरवा के आरती उतारूँ हे सखी
चारू दूल्हा के आरती उतारूँ हे सखी
ब्याह विभूषण अंग अंग साजे
मणि मंडप मंगलमय राचे
तन मन धन न्योछारूँ हे सखी आहे
तन मन धन न्योछारूँ हे सखी
चितचोरवा के आरती उतारूँ हे सखी
चारू दूल्हा के आरती उतारूँ हे सखी
चितचोरवा के आरती उतारूँ हे सखी
चारू दूल्हा के आरती उतारूँ हे सखी
चितचोरवा के आरती उतारूँ हे सखी
दुल्हिन श्री मिथिलेश कुमारी, दूल्हा दुलरुवा श्री अवध बिहारी
भरी भरी नैना निहारूँ हे सखी, आहे
भरी भरी नैना निहारूँ हे सखी
चितचोरवा के आरती उतारूँ हे सखी
चारू दूल्हा के आरती उतारूँ हे सखी
ब्याह विभूषण अंग अंग साजे
मणि मंडप मंगलमय राचे
तन मन धन न्योछारूँ हे सखी आहे
तन मन धन न्योछारूँ हे सखी
चितचोरवा के आरती उतारूँ हे सखी
चारू दूल्हा के आरती उतारूँ हे सखी
चितचोरवा के आरती उतारूँ हे सखी
वैसे मैथिली ठाकुर की शास्त्रीय संगीत पर कितनी अच्छी पकड़ है इसका अंदाज़ा आप मास्टर सलीम के साथ उनकी इस बेजोड़ संगत को सुन के समझ सकते हैं। मैंथिली अपनी माटी के लोकगीतों के साथ हर तरह के नग्मों को गाने में प्रवीणता हासिल करेंगी ऐसा मेरा विश्वास है।
18 टिप्पणियाँ:
क्लिप देखने के बाद गायिका के बारे में जानने की जो उत्सुकता थी, आपकी पोस्ट को पढ़कर शान्त हुयी। मैथिली की आवाज़ जितनी सधी हुयी है, ऋषभ की तबले पर पकड़ भी उतनी ही बेहतरीन है। परिचय करवाने के लिये शुक्रियः मनीष जी।
हाँ, मैंने भी जब ये वीडियो शेयर किया तो लगा कि लोगों में मिथिला की खुशबू पहनाने वाली इस गायिका के बारे में लोग और जानें। आलेख पसंद करने के लिए धन्यवाद।
लोकगीत के पर सटीक कसी आवाज़।
हां बिल्कुल। जितने प्यार से लोकगीत गाती है उतना ही कमाल इसकी शास्त्रीय गायकी में भी है।
बहुत प्यारी आवाज है।
बहुत सुंदर।
शुक्रिया संजय !
स्मिता जी अच्छा लगता है जब बच्चे लोग हमारी पुरानी लोक संस्कृति को इस तरह से उभारते हैं।
सही अपनी जड़ों से जुड़े इन बच्चों से बहुत आशाएँ हैं ..बहुत स्नेह।
मैथिली ठाकुर सम्बंधित आलेख में मिथिलांचल और महाराज जनक से जुड़ी जानकारी रोचक है। यह विवाह गीत हमारी आंचलिकता और जड़ों से जुड़ा है। बहुत ही खूबसूरत मन को छूलेने वाला लोकगीत उतने ही सरस भाव से गया है बच्चो ने।
भक्तिभाव पूर्ण ,लय सुर ताल युक्त सुंदर प्रस्तुति।
इस पोस्ट के लिए आपको शुक्रिया। साथ ही शुभकामना है की मैथिली और उनके भाई खूब ऊंचाइयों को छूयें।
Awesome
ईश्वर मैथिली की प्रतिभा को अप्रतिम ऊंचाई प्रदान करें
प्रकाश तिवारी धन्यवाद !
ओमप्रकाश तिवारी आपकी दुआ कुबूल हो !
Bahut talented bachchi hai. Uski muskaan awaz harmonium sabhi bahut madhur aur charming hai. Ishwar use nayi unchayiyan pradaan kare.
Alok Kumar Tripathi jee मैथिली की गायकी और हारमोनियम पर उसकी थिरकती उंगलियां दोनों ही तारीफ के काबिल हैं। होठों पर मुस्कान के साथ एक आत्मविश्वास भी उसके चेहरे से झलकता है।
That's great.keep it up.
Wah 👌God bless them
अरुण जी और अर्चना जी जानकर प्रसन्नता हुई कि मैथिली का गाया गीत आपको पसंद आया।
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