अस्सी का दशक हिंदी फिल्म संगीत का पराभव काल था। मवाली, हिम्मतवाला, तोहफा और जस्टिस चौधरी जैसी फिल्में अपनी फूहड़ता के बावजूद सफलता के झंडे गाड़ रही थीं। गीतकार भी ऐसे थे जो झोपड़ी के अंदर के क्रियाकलापों से लेकर साड़ी के हवा होने के प्रसंग को गीतों में ढाल रहे थे। बप्पी लाहिड़ी और लक्ष्मीकांत प्यारेलाल ऐसे दो संगीतकार थे जिनकी तूती इस दौर में बॉलीवुड में बोल रही थी।
पंचम परिदृश्य से बाहर नहीं हुए थे और हर साल पन्द्रह बीस फिल्में कर ले रहे थे पर संगीत के इस माहौल का असर उनके काम पर भी पड़ा था। मुझे याद है कि बप्पी और एलपी से हटकर अगर आर डी की कोई फिल्म आती तो उसके संगीत को हम सुनना नहीं भूलते थे। अस्सी के दशक की फिल्मों में मासूम, सितारा लव स्टोरी, बेताब सागर और इजाज़त में उनका काम सराहा गया पर इन फिल्मों के बीच दर्जनों फिल्में ऐसी रही जो बॉक्स आफिस पर बिना कोई आहट किये चलती बनीं। किशोर दा के जाने के बाद स्थिति और भी बदतर हो गयी थी और पंचम अपने काम के प्रति पूरा दिल नहीं लगा पा रहे थे।
ऐसी ही बुरे दौर में जब पंचम का ख़ुद पर से विश्वास डगमगा सा गया था तो उन्हें फिल्म जीवा का संगीत देने की जिम्मेदारी मिली। पंचम की एक खासियत थी कि वो गुलज़ार के बोलों पर अक्सर संगीत देने में काफी मेहनत किया करते थे। जब ये फिल्म आई थी तो इसका एक गाना जीवा रे आ रे खूब चला था। पर जहाँ तक रोज़ रोज़ आँखों तले की बात है ये गीत फिल्म रिलीज़ होने के बहुत बाद लोकप्रियता की सीढ़ियाँ चढ़ सका।
ग़जब की धुन बनाई थी पंचम ने इतना प्यारा उतार चढ़ाव जिसे गुलज़ार के शब्दों ने एक अलग मुकाम पर पहुँचा दिया था। मुखड़े में आँखों तले एक सपना चलने और उसकी तपिश से काजल जलने की सोच बस गुलज़ार की ही हो सकती है। पहले अंतरे में गुलज़ार क्या खूब कहते हैं जबसे तुम्हारे नाम की मिसरी होठ लगायी है मीठा सा ग़म है और, मीठी सी तन्हाई है। अब इस मिठास को तो वही महसूस कर सकते हैं जिन्होंने प्रेम का स्वाद चखा हो।
गुलज़ार का लिखा दूसरा अंतरा अपेक्षाकृत कमजोर था और शायद इसीलिए फिल्म में शामिल नहीं किया गया। पर पंचम की कलाकारी देखिए कि तीनों इंटरल्यूड्स में उन्होंने कुछ नया करने की कोशिश की। पहले दो इंटरल्यूड्स में बाँसुरी और फिर आख़िरी में गिटार। मेन रिदम के लिए तबला और डु्ग्गी और उसके साथ रेसो रेसो जिसको बजाने के लिए अमृतराव काटकर जाने जाते थे।
रोज़ रोज़ आँखों तले एक ही सपना चले
रात भर काजल जले,
आँख में जिस तरह
ख़्वाब का दीया जले
जबसे तुम्हारे नाम की मिसरी होठ लगायी है
मीठा सा ग़म है और, मीठी सी तन्हाई है
रोज़ रोज़ आँखों तले...
छोटी सी दिल की उलझन है, ये सुलझा दो तुम
जीना तो सीखा है मरके, मरना सिखा दो तुम
रोज़ रोज़ आँखों तले...
आँखों पर कुछ ऐसे तुमने ज़ुल्फ़ गिरा दी है
बेचारे से कुछ ख़्वाबों की नींद उड़ा दी है
रोज़ रोज़ आँखों तले...
आशा जी के साथ इस गाने को अपनी आवाज़ से सँवारा था किशोर दा के सुपुत्र अमित कुमार ने..
इस गीत की धुन को कई वाद्य यंत्रों से बजाया गया है पर हाल ही मैं मैंने इसे पुणे से ताल्लुक रखने वाले मराठी वादक सचिन जाम्भेकर द्वारा हारमोनियम पर सुना और सच मानिए रोंगटे खड़े हो गए। पंचम की इस कृति के महीन टुकड़ों को भी हारमोनियम में इतनी सहजता से सचिन ने आत्मसात किया है कि मन प्रसन्न हो जाता है। वैसे एक रोचक तथ्य ये है कि सचिन जिस हारमोनियम पर इस गीत को बजा रहे हैं वो पंचम दा का है। पंचम के देहान्त के बाद आशा जी ने ये हारमोनियम सचिन जाम्भेकर को भेंट किया था ।
8 टिप्पणियाँ:
यह गीत बहुत ही प्यारा है, कैसेट के जमाने में कई कैसेट घिस गए इस गाने को सुन सुन कर... और 'हारमोनियम' वाला वर्जन और भी कमाल लग रहा है.....
हाँ, प्रशांत नब्बे के दशक मैं मैंने भी गुलज़ार की कैसेट से इस गीत को बारहा सुना है। पर अभी इस गीत की याद इसके हारमोनियम वाले वर्सन को सुन कर आई। किसी साज पर गीत की धुन से रचित गीत की जटिलता का पता लगता है। पंचम और उनकी टीम ने कमाल का काम किया था इसकी धुन पर।
बहुत खूबसूरत इत्तेफाक.. आज सुबह ही इस गाने को गुनगुना रही थी और यहाँ आपकी ये पोस्ट मिल गयी
सोच ही रही थी की इसके बोल, इसकी धुन और गायिकी तीनो ही कितने कमाल के हे.. एक जादू सा बिखेरते हे...
यहाँ इसे हारमोनियम पर सुनना सचमुच एक सुखद एहसास हे..
सुखत संयोग है ये :)
स्वाति कई बार धुनों की गहराई शानदार गायिकी के पीछे छिप जाती है। जब इसे हारमोनियम पर सुना तब लगा कि कितनी जटिल पर कर्णप्रिय धुन रची थी पंचम दा ने वो भी ऐसे वक़्त में जब उनके हालात अच्छे नहीं थे।
पंचम सही मायनों में माइस्ट्रो रहे है सीने जगत में ।
उनके लिए संवेदना प्रकट करना खलता है,
गुलज़ार सदैव पंचम के लिए सर्वश्रेष्ठ रहें क्योंकि जुगलबन्दी ही ऐसी थी ।
जीवा के इस गीत में बहुतों के प्यार के पल बीते हुए जिनमें से एक मे भी हूँ ।
सादर वंदे ।।
जय जय
#गाईड
हारमोनियम पर सुनकर मेरे भी रोंगटे खड़े हो गये।
लाज़वाब ।गुलज़ार के सारे नगमे मुझे बेहद पसंद है । ये नगमा भी ।
nice bahut hi badiya
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