रविवार, अक्तूबर 14, 2018

प्रेम गीत जिसने जगजीत सिंह को दी एक संगीत निर्देशक की पहचान : होठों से छू लो तुम Hothon se Chhulo Tum...

पिछले हफ्ते जगजीत जी की सातवीं पुण्य तिथि थी जिसे लोग अक्सर किसी की याद का दिन भी कहते हैं पर जगजीत जी कब यादों से जुदा हुए हैं। उनकी आवाज़ का अक़्स तो रुह में नक़्श हो चुका है। जब तब कानों में गूँजती ही रहती है। ग़ज़लों के बेताज बादशाह थे वे। मैंने उनकी पसंदीदा ग़ज़लों के बारे इस ब्लॉग पर विस्तार से लिखा भी है और उसका प्रमाण ये है कि ये उन पर लिखा जाने वाला चालीसवाँ आलेख है।

एक ग़ज़ल गायक के आलावा जगजीत जी ने एक डेढ़ दशक तक फिल्मों में भी संगीत दिया। उनके द्वारा संगीत निर्देशित फिल्मों में से ज्यादातर बड़े बजट की फिल्में नहीं थीं। कुछ तो ठीक से देश भर में प्रदर्शित भी नहीं हुई इसलिए उनके गाने भी आम लोगों तक उस तरह नहीं पहुँचे जैसे उनके एलबम्स की ग़ज़लें पहुँचती थीं। इसलिए मैंने सोचा कि क्यूँ ना आपको उनके कुछ सुने और अनसुने संगीतबद्ध फिल्मी गीतों से मिलवाया जाए। इस सिलसिले की शुरुआत एक ऐसे गीत जिसे शायद ही किसी ने ना सुना हो और जिससे मेरी व्यक्तिगत यादें जुड़ी हैं।


बतौर संगीत निर्देशक उनकी पहली और सबसे नामी फिल्म प्रेम गीत (1981) थी। ऐसा नहीं है कि प्रेम गीत से पहले सत्तर के दशक में उन्होंने संगीत निर्देशन नहीं किया था। उन्हें इस दौरान कुछ फिल्में मिली भी पर वो कभी रुपहले पर्दे का मुँह नहीं देख पायीं और बनने के पहले ही बंद हो गयीं। उनकी गायी मशहूर नज़्म "बात निकलेगी तो फिर दूर तलक जाएगी.." को तो उन्होंने एक फिल्म के लिए गायक भूपेंद्र की आवाज़ में रिकार्ड भी कर लिया था। उनके ऐसे कई संगीतबद्ध नग्मे अनसुने ही रह गए।

प्रेम गीत ने सब कुछ बदल कर रख दिया। The Unforgettables की सफलता के बाद उनकी आवाज़ और संगीत की जादूगरी की खनक फिल्मी दुनिया में फैल चुकी थी। जहाँ तक मुझे याद है कि जगजीत जी का गाया सबसे पहला फिल्मी गीत जो मैंने सुना था वो इसी फिल्म का था। जी हाँ होठों से छू लो तुम मेरा गीत अमर कर दो। मैं तब छठी कक्षा में रहा हूँगा। उस वक़्त क्या रेडियो क्या नुक्कड़ और क्या स्कूल सब जगह इसी गीत के चर्चे थे। इतने प्यारे, सहज और सच्चे शब्द थे इस गीत के कि उस छोटी उम्र में भी सीधे दिल पर लगे थे।

इसी गीत से जुड़ा एक वाकया है जिसे आपके साथ यहाँ बाँटना चाहूँगा। मैं कभी स्कूल में गाता  नहीं था पर एक कार्यक्रम के लिए मेरी कक्षा से गायकों की तलाश हो रही थी़। जब क्लॉसटीचर ने इस कार्यक्रम में हिस्सा लेने के लिए गायकों का चुनाव करने के लिए इच्छुक छात्रों का नाम पूछा तो पता नहीं मुझ जैसे संकोची बालक ने कैसे हाथ उठा दिया। जिन दो लोगों को अंततः शिक्षिका ने गाने के लिए चुना उनमें एक मैं भी था।  कमाल की बात ये थी  कि हम दोनों ही छात्रों ने होठों से छू लो तुम को ही गाने के लिए चुना था । मैंने कक्षा में उठकर पहली बार इसी गीत को गाया पर मेरे मित्र ने इसे और बेहतर निभाया और उसका कार्यक्रम के लिए चुनाव हो गया।

गीतकार के लिहाज से इंदीवर मेरे कभी प्रिय नहीं रहे पर इस गीत के लिए उनकी जितनी प्रशंसा की जाए कम होगी। जिस तरह शैलेंद्र आम से लहजे में गहरी बात कह देते थे उसी तरह इंदीवर ने  इतने सीमित शब्दों में इस गीत के माध्यम से सच्चे प्रेम की जो परिभाषा गढ़ी वो नायाब थी

ना उम्र की सीमा हो, ना जन्म का हो बंधन
जब प्यार करे कोई, तो देखे केवल मन
नई रीत चलाकर तुम, ये रीत अमर कर दो...

गीत के बाकी अंतरे भी एक ऐसे टूटे हुए इंसान का दर्द बयाँ करते हैं जो अब अपनी सूखी बिखरी ज़िदगी में अपनी प्रेयसी के प्रेम की फुहार पाकर फिर से जी उठना चाहता है।

इस गीत में जगजीत की आवाज़ और संगीत इस तरह घुल मिल गए है कि उन पर अलग अलग टिप्पणी करना संभव नहीं। भगवान ने जगजीत जी की आवाज़ बनाई ही ऐसी थी जिससे दर्द यूँ छलकता था जैसे लबालब भरी हुई मटकी से पानी और इसीलिए आज भी लोग इसे सुनते हैं तो भावुक हो जाते हैं। 

जहाँ तक फिल्मी गीतों की बात है ये उनकी सबसे सुरीली पेशकश रही है। इस फिल्म के लिए जगजीत ने एक और संगीत रचना की थी जो सराही गयी थी। गीत के बोल थे आओ मिल जाएँ सुगंध और सुमन की तरह। वैसे जगजीत ने अगले ही साल फिल्म अर्थ में जो संगीत दिया वो सफलता के सारे रिकार्ड तोड़ गया लेकिन अर्थ में सिर्फ ग़ज़लों और नज्मों का इस्तेमाल हुआ था जिसमें जगजीत जी की माहिरी जगज़ाहिर थी। जगजीत की संगीत निर्देशित फिल्मों की चर्चा आगे भी ज़ारी रहेगी। फिलहाल तो प्रेम गीत का ये अजर अमर गीत सुनिए।

होठों से छू लो तुम, मेरा गीत अमर कर दो
बन जाओ मीत मेरे, मेरी प्रीत अमर कर दो

ना उम्र की सीमा हो, ना जन्म का हो बंधन
जब प्यार करे कोई, तो देखे केवल मन
नई रीत चलाकर तुम, ये रीत अमर कर दो
होठों से छू लो तुम  ...

आकाश का सूनापन, मेरे तनहा मन में
पायल छनकाती तुम, आ जाओ जीवन में
साँसें देकर अपनी, संगीत अमर कर दो
होठों से छू लो तुम  ...

जग ने छीना मुझसे, मुझे जो भी लगा प्यारा
सब जीता किये मुझसे, मैं हर दम ही हारा
तुम हार के दिल अपना, मेरी जीत अमर कर दो

होठों से छू लो तुम  ...

बतौर संगीतकार जगजीत सिंह का फ़िल्मी सफ़र  


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7 टिप्पणियाँ:

Manish Kaushal on अक्तूबर 14, 2018 ने कहा…

हमलोग बचपन में भाई, बहन और दोस्तों के साथ अंताक्षरी खेला करते थे। अपनी बारी आने पर दीदी अक्सर ये गीत गुनगुनाया करती थी। मुझे जगजीत सिंह जी की अर्थ फ़िल्म से झुकी झुकी सी नज़र.. भी बेहद पसन्द है।

Manish Kumar on अक्तूबर 14, 2018 ने कहा…

ऐसे गीतों को अंत्याक्षरी में इस्तेमाल करने में खुशी होती थी। अर्थ की तो लगभग सभी फिल्मी ग़ज़लें और नज़्में पसंद हैं मुझे। झुकी झुकी सी नज़र भी।

Rajesh Goyal on अक्तूबर 15, 2018 ने कहा…

निश्चित रूप से ये अत्यंत सुरीला और बेहद कामयाब गीत है पर मुझे "साथ साथ" फिल्म के गीत / ग़ज़ल अधिक पसंद हैं । 'तुमको देखा' 'प्यार मुझसे जो किया' 'क्यूँ ज़िंदगी की राह में' मेरे पसंदीदा हैं ।

Manish Kumar on अक्तूबर 15, 2018 ने कहा…

राजेश गोयल जी साथ साथ की ग़ज़लें और नज़्में निश्चय ही बेहतरीन है पर इस फिल्म का संगीत जगजीत सिंह ने नहीं दिया था। साथ साथ का संगीत जगजीत जी के करीबी मित्र कुलदीप सिंह ने दिया था इसीलिए मैंने उसका जिक्र यहाँ नहीं किया।

Unknown on अक्तूबर 22, 2018 ने कहा…

मुझे तो याद नहीं की मैंने जगजीत सिंह जी का पहला गाना कौन सा और कब सुना था पर ग़ज़लों से मेरा परिचय उन्ही ने करवाया... उनकी ग़ज़लों का असर तो मेरी सोच और मेरे व्यक्तित्व पर भी पड़ा... जिसके लिए में उनकी आभारी रहूंगी...

एक आभार आपका भी मनीष जी.. आपके जरिये उन्हें याद करते रहते हे... उनके बारे में बात करते रहते हे.. :)

Manish Kumar on अक्तूबर 23, 2018 ने कहा…

हाँ मुझे पता है आप उनकी कितनी बड़ी प्रशंसक हैं। पहला गीत भले ना याद हो पर हिंदी फिल्मों में इस्तेमाल की गयी उनके गीतों में आपकी पसंद कौन सी है बताइएगा़?

Unknown on अक्तूबर 26, 2018 ने कहा…

वैसे तो उनका गाया हर गीत मेरे दिल के बहुत करीब हे... पर पहला गीत जो ज़हन में आता हे वो "होठो से छू लो तुम" ही हे... कभी रेडियो पर ये सुनने के लिए मिल जाता था तो दिन बन जाता था :)
इसके अलावा "कोई फरियाद तेरे दिल में दबी हो जैसे" उनकी बहुत ही बेहतरीन ग़ज़ल हे... बहुत खूबसूरती और संजीदगी से उन्होंने इसे गाया हे
इनके अलावा एक लम्बी फेहरिस्त हे उनकी ग़ज़लों की
बड़ी नाज़ुक हे ये मंज़िल
कोई ये कैसे बताये
प्यार मुझसे जो किया तुमने
होश वालो को खबर क्या... आदि
एक निवेदन आपसे मनीष जी... हिंदी फिल्मो में इस्तेमाल की गयी आपकी पसंद की अन्य गज़ले ( अन्य गायको जैसे मोहम्मद रफ़ी, आशा जी, लता जी की ) भी हमसे साँझा कीजियेगा..

 

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