जगजीत सिंह से जुड़ी इन कड़ियों में आपसे बात हो रही थी ऐसी हिंदी फिल्मों की जिनके संगीतकार की भूमिका निभाई जगजीत सिंह ने। प्रेम गीत की शानदार सफलता के बाद अगले ही साल 1982 में एक और फिल्म जगजीत की झोली में आई और वो थी अर्थ। जगजीत सिंह ने जितनी भी फिल्मों का संगीत निर्देशन किया उसमें सबसे अधिक सफल यही फिल्म रही। फिल्म महेश भट्ट की थी और फिल्म का कथानक पति पत्नी व प्रेमिका के टूटते जुड़ते रिश्तों पर आधारित था। जगजीत ने कहानी की परिस्थितियों को कैफ़ी आज़मी की लिखी ग़ज़लों और नज़्मों में ऍसा ढाला कि फिल्म का हर एक गीत यादगार बन गया। झुकी झुकी सी नज़र और तुम इतना जो मुस्कुरा रहे हो और तू नहीं तो ज़िदगी में और क्या रह जाएगा..तो क्या आम क्या खास सबके दिलों में छा गया। अपनी बात करूँ तो उन दिनों एकाकी पलों में इस फिल्म की नज़्म कोई ये कैसे बताया कि वो तन्हा क्यूँ है आँखों में नमी पैदा कर देती थी।
जगजीत जी के सम्मान में हुए एक कार्यक्रम में फिल्म की नायिका शबाना आज़मी ने अर्थ के संगीत को याद करते हुए कहा था कि "मैं बहुत खुशकिस्मत हूँ कि अर्थ के तीन गाने मेरे ऊपर फिल्माए गए थे। उन्होंने संगीत के साथ शब्दों में दर्द को इस तरह पिरोया था कि मेरे पास करने लायक कुछ रह नहीं गया था।"
फिल्म साथ साथ में भी जगजीत व चित्रा की गायिकी सराही गयी पर इस फिल्म का संगीत जगजीत ने नहीं बल्कि उनके मित्र कुलदीप सिंह ने दिया था। जगजीत जी को अर्थ की सफलता के बाद फिल्म संगीत रचने के जितने मौके मिलने चाहिए थे उतने नही मिले। शायद इसकी वज़ह जगजीत का अपने निजी एलबमों को ज्यादा तवज्जोह देना भी रहा हो। उन्हें जो मौके मिले भी वो छोटे बैनर या लीक से हटकर बनी फिल्मों के लिए मिले।
1983 में शत्रुघ्न सिन्हा ने एक फिल्म कालका बनाई जिसमें अपनी गायिकी और संगीत के ज़रिए जगजीत ने शास्त्रीयता का एक अलग ही रूप दिखाया। अगर आपको अर्धशास्त्रीय संगीत पसंद है तो जगजीत के रचे "कैसे कैसे रंग दिखाए कारी रतिया", "तराना" और "बिदेशिया" को सुनना ना भूलिएगा।
1983 में शत्रुघ्न सिन्हा ने एक फिल्म कालका बनाई जिसमें अपनी गायिकी और संगीत के ज़रिए जगजीत ने शास्त्रीयता का एक अलग ही रूप दिखाया। अगर आपको अर्धशास्त्रीय संगीत पसंद है तो जगजीत के रचे "कैसे कैसे रंग दिखाए कारी रतिया", "तराना" और "बिदेशिया" को सुनना ना भूलिएगा।
इसी साल उन्होंने निर्वाण का भी संगीत दिया। इसका एक गीत चित्रा सिंह ने गाया है जिसके संगीत में आपको जगजीत के चिरपरिचित ग़ज़ल वाले संगीत की छाया तक नहीं मिलेगी। राही मासूम रज़ा के लिखे इस गीत का मुखड़ा था "रातें थीं सूनी सूनी, दिन थे उदास मेरे..तुम मिल गए तो जागे सोए हुए सवेरे "। बाद में इसे जगजीत ने अपने एलबम Rare Moments में शामिल कर लिया।
एक साल बाद उन्हें एक और फिल्म मिली जिसका नाम था रावण। इसी फिल्म के लिए उन्होंने अपनी मशहूर ग़ज़ल "हम तो यूँ अपनी ज़िंदगी से मिले अजनबी जैसे अजनबी से मिले....." रची थी जो आप सबने सुनी ही होगी।
निर्वाण,रावण और उसके बाद संगीत निर्देशित तुम लौट आओ के गीत तो ज्यादा चर्चित नहीं रहे पर ये इतनी छोटे बजट की फिल्में थी कि इनके संगीत तक आम जनता की कभी पहुँच ही नहीं हुई। पर इन फिल्मों के कुछ गीत निश्चय ही श्रवणीय थे। आज इन्हीं फिल्मों में से "तुम लौट आओ" का एक प्यारा सा नग्मा आपको सुनवाने जा रहा हूँ जिसे लिखा था सुदर्शन फ़ाकिर साहब ने और जिसका शुमार जगजीत चित्रा के कम सुने गीतों में होता है।
फिल्म में नायक विदेश जाने की तमन्ना में अपने प्यार और उससे अंकुरित बीज को प्रेमिका के गर्भ में छोड़ कर जाने को तत्पर हो जाता है। सुदर्शन जी ने प्रेम में टूटी और दिग्भ्रमित नायिका की बात को बड़ी खूबी से इन लफ़्ज़ों में बयाँ किया है रात सपना बहार का देखा, दिन हुआ तो ग़ुबार सा देखा..बेवफ़ा वक़्त बेज़ुबाँ निकला, बेज़ुबानी को नाम क्या दें हम। वहीं नायक इसे अपनी नहीं बल्कि जवानी की भूल बताकर जीवन में आगे बढ़ने को लालायित है। गीत के तीनों अंतरे इस परिस्थिति की दास्तान को बखूबी श्रोताओं के समक्ष रख देते हैं।
ज़ख़्म जो आप की इनायत है, इस निशानी को नाम क्या दें हम
प्यार दीवार बन के रह गया है, इस कहानी को नाम क्या दें हम
आप इल्ज़ाम धर गये हम पर, एक एहसान कर गये हम पर
आप की ये भी मेहरबानी है, मेहरबानी को नाम क्या दें हम
आपको यूँ ही ज़िन्दगी समझा, धूप को हमने चाँदनी समझा
भूल ही भूल जिस की आदत है, इस जवानी को नाम क्या दें हम
रात सपना बहार का देखा, दिन हुआ तो ग़ुबार सा देखा
बेवफ़ा वक़्त बेज़ुबाँ निकला, बेज़ुबानी को नाम क्या दें हम
ग़ज़ल के बारे में लिखते हुए जगजीत का गाया ये अंतरा गुनगुनाने का मन हुआ तो उसे यहाँ शेयर कर रहा हूँ..
मुझे आशा है कि इस आलेख में उल्लेख किए गए कुछ गीत आपके लिए भी अनसुने होंगे। फिलहाल तो इजाज़त दीजिए। फिर लौटूँगा जगजीत जी की संगीत निर्देशित कुछ और फिल्मों के साथ।
10 टिप्पणियाँ:
इस खूबसूरत गीत से अब तक अनजान थे... फ़िल्म का नाम तक नही सुने थे। जानकारी के लिए धन्यवाद सर
हां उनके संगीतबद्ध अनजान गीतों को ही सुनवाने का इरादा है इस श्रंखला में:)
Thanks
ये गीत तो पहली बार सुना.......
आपकी पोस्ट से पता चला की जगजीत सिंह जी के ऐसे बहुत सारे फ़िल्मी गीत हे जो आज तक मैंने सुने ही नहीं.. रेडियो पर प्रेम गीत, अर्थ, साथ साथ के गीत बहुत बार सुने, इसके अलावा शायद ही उनका कोई फ़िल्मी गीत सुना हो... आपकी ये श्रंखला हम सभी के लिए बहुत ख़ास होने वाली हे.. :)
हर्षवर्धन हार्दिक आभार !
हाँ स्वाति मेरे लिए भी इनमें से कुछ गीत नए थे। कई गीत जो नहीं चले वो जगजीत जी ने एक दशक बाद अपने एलबमों में कहीं ना कहीं शामिल किए पर कुछ ऐसे भी गीत हैं जो उनके संगीतनिर्देशन में दूसरे गायकों ने गाए। वो तो बिल्कुल अनसुने हैं।
बहुत दिनों बाद जगजीत सिंह के बारे में पढ़ा. आपका धन्यवाद्
बेहतरीन
कोटि कोटि नमन !
यहाँ पधारने और अपनी राय देने के लिए शुक्रिया शशांक !
अनु शुक्ला धन्यवाद
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