वार्षिक संगीतमाला में गीतों की उल्टी गिनती शुरु होने में अभी भी एक हफ्ते का वक़्त है। इस एक हफ्ते में आपकी मुलाकात कुछ ऍसे गीतों से करवाना चाहता हूँ जो संगीतमाला के बेहतरीन पच्चीस गीतों मे आते आते रह गए। वैसे भी साल में सौ से अधिक रिलीज़ हई फिल्मों के चार सौ से भी ज्यादा गीतों में से पच्चीस गीत छाँटते वक्त सबसे अधिक मुश्किल आख़िरी की पायदानों के लिए होती है जिसके दावेदार कई नग्मे होते हैं। पिछले साल के मुकाबले ये साल संगीत के लिहाज़ से बेहतर ही रहा है, ऐसा मुझे गीतों को सुनते वक़्त लगा। चुने हुए शुरुआती गीतों की सूची साठ की थी जिसे कतरते कतरते पच्चीस तक लाना पड़ा। फिर भी दस बारह गीत तो जरूर ऐसे रहे जो गायिकी, बोलों और संगीत की दृष्टि से शामिल गीतों को अच्छी टक्कर देते रहे।
इनमें से तो कुछ मेरे बेहद अज़ीज़ हैं और उन पर अलग से भी आलेख लिखने का मेरा इरादा है। तो चलिए शुरुआत करते हैं फिल्म परी के एक गीत से जिसे लिखा अन्विता दत्त ने और धुन बनाई अनुपम राय ने। अनुपम ने गिटार आधारित इस धुन को गवाया नवोदित गायक इशान मित्रा से। अन्विता के गहरे शब्दों को इशान की आवाज़ की मुलायमियत पूरा न्याय करती दिखती है। ये गीत मेरी गीतमाला की आख़िर में बाहर हो गया और इसका मुझे अफसोस भी है पर इस गीत के बोलों के साथ इसका एक और जिक्र एक शाम मेरे नाम पर कभी जरूर होगा इसका विश्वास दिलाता हूँ। तो अन्विता के इन प्यारे शब्दों के साथ फिलहाल तो सुनिए ये पूरा गीत..
दिल के बिछौने जो थे कोरे कोरे
रंग से खिलने लगे
ख्वाब के बगीचे धागा धागा चुने
फुर्सत से सिलने लगे
दिल के बिछौने जो थे कोरे कोरे
रंग से खिलने लगे
ख्वाब के बगीचे धागा धागा चुने
फुर्सत से सिलने लगे
आतिफ असलम की आवाज़ इस साल ढेर सारे फिल्मी गीतों में गूँजी है और अरिजीत के एकाधिपत्य को इस बार वो तोड़ने में काफी हद तक सफल रहे हैं। लैला मजनूँ के आलावा दास देव में गाया उनका नग्मा सहमी सी धड़कन इस बार पच्चीस गीतों की दौड़ में शामिल नहीं हो पाया। लैला मजनूँ के अन्य गीतों की तुलना में इस गीत के बोल मुझे थोड़े कमज़ोर लगे पर इसकी धुन और पर्दे पर इसका फिल्मांकन इतना अच्छा जरूर है कि इसे एक बार सुना जाए।
Wo Rishta
अंकित तिवारी की चमक आशिकी के बाद फीकी जरूर पड़ी है और इस साल उनका कोई बड़ा एलबम देखने को नहीं मिला पर फिल्म काशी में अभेंद्र कुमार उपाध्याय की जोड़ी के साथ उन्होंने एक बेहद मधुर गीत रचा जो गीतमाला में "मेरी खामोशी" है की तरह एक नज़दीकी दस्तक दे गया।
इक चुटकी रोज़ाना तुम हँसी दे जाना
मुट्ठी भर कुछ साँसे पास में रख जाना
बिन शर्त बाँधे जो हमको
वो रिश्ता तुम ले आना
अभेंद्र इश्किया गीत लिखने में माहिर हैं और ये गीत उसका एक अच्छा उदहारण है।
रूमानी गीत अगर शास्त्रीयता की चादर ओढ़े हों तो उनका नशा धीरे धीरे चढ़ता है। रेखा भारद्वाज और राशिद खाँ की जोड़ी का वोडका डॉयरीज के लिए गाया ये नग्मा इसी श्रेणी का नग्मा है जिसे लिखा मशहूर शायर आलोक श्रीवास्तव ने। इस गीत को कभी शांत पलों में फुर्सत से सुनिए अच्छा लगेगा..
सखि री पिया को, जो मैं ना देखूँ
तो कैसे काटूँ अँधेरी रतियाँ
वो जिनमें उनकी ही रोशनी हो
कहीं से ला दो वैसी अँखियाँ
इस साल गीतों में सबसे ज्यादा भगवान शिव की चर्चा हुई। फिल्म काशी और केदारनाथ में उनकी महिमा को गीत के बोलों में बाँधा गया पर अमिताभ भट्टाचार्य ने केदारनाथ में जो गीत लिखा उसे साल के सबसे बेहतरीन भक्ति गीत में शामिल करना चाहिए ऐसी मेरी राय है।
इस साल नए संगीतकारों, गीतकारों और गायक गायिकाओं की बाढ़ सी आई दिखी। जितनी छोटे बजट की फिल्में थीं उनमें से ज्यादातर की कमान अनसुने नामों के हाथ थी। पुरुष गायकों में सोनू निगम, जावेद अली और केके को चुनिंदा गीतों से संतोष करना पड़ा। ऍसे में केके की आवाज़ को फिल्म जलेबी के इस गीत में सुनना अच्छा लगा।
इस साल भी अगर किसी गायक को सबसे ज्यादा मौके मिले तो वे अरिजीत सिंह थे। अरिजीत एक गुणी गायक हैं पर उनकी आवाज़ का इस्तेमाल बहुतेरे गीतों में एक ही तरह से हो रहा है। आज वो युवाओं की चाहत हैं तो हर फिल्म का रूमानी गीत ज्यादातर उनकी झोली में गिरता है। संगीतकार उन्हें जो धुने दे रहे हैं वो उसी बँधे बँधाए ढर्रे पर चलती हैं जिन्हें सुनकर आपको शायद ही लगे कि आपने कुछ नया सुना। गीतमाला में मैंने उन गीतों को तरजीह देने की कोशिश की जिन्होंने संगीत रचते कुछ नया सृजन करने की कोशिश की। यही वज़ह रही कि अरिजीत के बहुत सारे गीत आख़िरी सूची से बाहर हो गए। ये अंत तक था पर बेहतर गीतों की वज़ह से इसे भी अंत में बाहर छिटकना पड़ा।
गुलज़ार मेरे प्रिय गीतकार रहे हैं। इस साल भी उन्होंने पटाखा, राजी और सूरमा जैसी फिल्मी के लिए अपनी कलम चलाई है। सूरमा का ये गीत कुछ हिस्सों में मुझे बेहतरीन लगता है और कुछ हिस्सों में पहले की धुनों का दोहराव नज़र आता है।
गिन के देख बदन पे नील दिए हैं इश्क़ ने
पड़े जो हाथ में छाले छील दिए हैं इश्क़ ने ...
याद आ जाये तो तेरा नाम ले के झूम लूँ
शाम आ जाए तो उठ के चाँद का माथा चूम लूँ...
जैसी पंक्तियाँ से गुलज़ार मन को बाग बाग कर देते हैं। ज़ाहिर है ते गीत भी संगीतमाला में दाखिल होने के बेहद करीब था।
गिन के देख बदन पे नील दिए हैं इश्क़ ने
पड़े जो हाथ में छाले छील दिए हैं इश्क़ ने ...
याद आ जाये तो तेरा नाम ले के झूम लूँ
शाम आ जाए तो उठ के चाँद का माथा चूम लूँ...
जैसी पंक्तियाँ से गुलज़ार मन को बाग बाग कर देते हैं। ज़ाहिर है ते गीत भी संगीतमाला में दाखिल होने के बेहद करीब था।
आज तो जो गीत मैंने आपको सुनाए उनमें ज्यादा का रंग रूमानी था। संगीतमाला से थोड़ी दूरी पर छूटने वाले गीतों की अगली कड़ी वैसे गीतों की होगी जिसमें होगा मस्ती का रंग.. :).
11 टिप्पणियाँ:
शुरुआत अच्छी है. आगे का इंतज़ार रहेगा.
केदारनाथ से नमो-नमो... और काफिराना.. मुझे भी बहुत पसन्द आये। फ़िल्म में गीत देखने लायक हैं।
हाँ मनीष मुझे भी बेहतर लगे। हालांकि तुम्हारी पसंदीदा नग्मों की छोटी सी सूची में मैंने इन गीतों का जिक्र नहीं देखा।
सर उस समय ये गीत याद नही आये। कुछ और गीत होंगे, याद आये तो फिर से सूची बढ़ाता रहूँगा।
सुमित ये तो शुरुआत के पहले की शुरुआत है। :) वैसे इन गीतों में आपकी पसंद का कोई गीत था ?
वाह सर। सच कहूं तो इनमें से काफी गीत मेरे सुने हुए नहीं है..बेहद उम्दा। ' शुरुआत के पहले की शुरुआत ' :)
ओह...
ख़ामोशी बाहर !
:)
👍👍👍👍👍
केके को काफी दिनो बाद सुनना अच्छा लगा. रेखा और राशिद मंझे हुए कलाकार हैं ये पता चलता है उनकी प्रस्तुती मे. ईशान की आवाज अच्छी लगी. उनको अपने लहजे पे थोड़ा काम करना होगा. अन्विता के बोल खूबसूरत थे .. ... सुना हुआ तो सिर्फ नमो नमो ही था. गहरे समुद्र से मोती आप लाइए ढूंढ ढूंढ के. हम लोग आंनद उठाएंगे उसका बैठे बैठे. :)
दिशा.. मुझे भी इस संगीतमाला के लिए गीत छाँटते छाँटते कुछ बेहद प्यारे गीत सुनने को मिलते हैं। इस साल का एक एलबम तो एकदम अनसुना था पर उसके अब चार गीत संगीतमाला में शामिल हुए। तुमने वैसे अपनी पिछले साल की पसंद अब तक जाहिर नहीं की।
मंटू मेरी खामोशी समझ लो 26 से 30 के बीच की सूची में रहता।
वाह, सुमित आप से इसी तरह की राय की अपेक्षा है।
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